Sri Ketu Dev Ashtottara Shatanamavali – श्री केतु अष्टोत्तरशतनामावली

Ketu dev

Ketu dev

Sri Ketu Ashtottara Shatanamavali – श्री केतु अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ केतवे नमः।
  2. ॐ स्थूलशिरसे नमः।
  3. ॐ शिरोमात्राय नमः।
  4. ॐ ध्वजाकृतये नमः।
  5. ॐ नवग्रहयुताय नमः।
  6. ॐ सिंहिकासुरीगर्भसम्भवाय नमः।
  7. ॐ महाभीतिकराय नमः।
  8. ॐ चित्रवर्णाय नमः।
  9. ॐ पिङ्गलाक्षकाय नमः।
  10. ॐ फलोधूम्रसङ्काशाय नमः।
  11. ॐ तीक्ष्णदम्ष्ट्राय नमः।
  12. ॐ महोरगाय नमः।
  13. ॐ रक्तनेत्राय नमः।
  14. ॐ चित्रकारिणे नमः।
  15. ॐ तीव्रकोपाय नमः।
  16. ॐ महासुराय नमः।
  17. ॐ क्रूरकण्ठाय नमः।
  18. ॐ क्रोधनिधये नमः।
  19. ॐ छायाग्रहविशेषकाय नमः।
  20. ॐ अन्त्यग्रहाय नमः।
  21. ॐ महाशीर्षाय नमः।
  22. ॐ सूर्यारये नमः।
  23. ॐ पुष्पवद्ग्रहिणे नमः।
  24. ॐ वरदहस्ताय नमः।
  25. ॐ गदापाणये नमः।
  26. ॐ चित्रवस्त्रधराय नमः।
  27. ॐ चित्रध्वजपताकाय नमः।
  28. ॐ घोराय नमः।
  29. ॐ चित्ररथाय नमः।
  30. ॐ शिखिने नमः।
  31. ॐ कुलुत्थभक्षकाय नमः।
  32. ॐ वैडूर्याभरणाय नमः।
  33. ॐ उत्पातजनकाय नमः।
  34. ॐ शुक्रमित्राय नमः।
  35. ॐ मन्दसखाय नमः।
  36. ॐ गदाधराय नमः।
  37. ॐ नाकपतये नमः।
  38. ॐ अन्तर्वेदीश्वराय नमः।
  39. ॐ जैमिनिगोत्रजाय नमः।
  40. ॐ चित्रगुप्तात्मने नमः।
  41. ॐ दक्षिणामुखाय नमः।
  42. ॐ मुकुन्दवरपात्राय नमः।
  43. ॐ महासुरकुलोद्भवाय नमः।
  44. ॐ घनवर्णाय नमः।
  45. ॐ लम्बदेहाय नमः।
  46. ॐ मृत्युपुत्राय नमः।
  47. ॐ उत्पातरूपधारिणे नमः।
  48. ॐ अदृश्याय नमः।
  49. ॐ कालाग्निसन्निभाय नमः।
  50. ॐ नृपीडाय नमः।
  51. ॐ ग्रहकारिणे नमः।
  52. ॐ सर्वोपद्रवकारकाय नमः।
  53. ॐ चित्रप्रसूताय नमः।
  54. ॐ अनलाय नमः।
  55. ॐ सर्वव्याधिविनाशकाय नमः।
  56. ॐ अपसव्यप्रचारिणे नमः।
  57. ॐ नवमे पापदायकाय नमः।
  58. ॐ पञ्चमे शोकदाय नमः।
  59. ॐ उपरागखेचराय नमः।
  60. ॐ अतिपुरुषकर्मणे नमः।
  61. ॐ तुरीये सुखप्रदाय नमः।
  62. ॐ तृतीये वैरदाय नमः।
  63. ॐ पापग्रहाय नमः।
  64. ॐ स्फोटककारकाय नमः।
  65. ॐ प्राणनाथाय नमः।
  66. ॐ पञ्चमे श्रमकारकाय नमः।
  67. ॐ द्वितीयेऽस्फुटवग्दात्रे नमः।
  68. ॐ विषाकुलितवक्त्रकाय नमः।
  69. ॐ कामरूपिणे नमः।
  70. ॐ सिंहदन्ताय नमः।
  71. ॐ सत्ये अनृतवते नमः।
  72. ॐ चतुर्थे मातृनाशाय नमः।
  73. ॐ नवमे पितृनाशकाय नमः।
  74. ॐ अन्त्ये वैरप्रदाय नमः।
  75. ॐ सुतानन्दनबन्धकाय नमः।
  76. ॐ सर्पाक्षिजाताय नमः।
  77. ॐ अनङ्गाय नमः।
  78. ॐ कर्मराश्युद्भवाय नमः।
  79. ॐ उपान्ते कीर्तिदाय नमः।
  80. ॐ सप्तमे कलहप्रदाय नमः।
  81. ॐ अष्टमे व्याधिकर्त्रे नमः।
  82. ॐ धने बहुसुखप्रदाय नमः।
  83. ॐ जनने रोगदाय नमः।
  84. ॐ ऊर्ध्वमूर्धजाय नमः।
  85. ॐ ग्रहनायकाय नमः।
  86. ॐ पापदृष्टये नमः।
  87. ॐ खेचराय नमः।
  88. ॐ शाम्भवाय नमः।
  89. ॐ अशेषपूजिताय नमः।
  90. ॐ शाश्वताय नमः।
  91. ॐ नटाय नमः।
  92. ॐ शुभाऽशुभफलप्रदाय नमः।
  93. ॐ धूम्राय नमः।
  94. ॐ सुधापायिने नमः।
  95. ॐ अजिताय नमः।
  96. ॐ भक्तवत्सलाय नमः।
  97. ॐ सिंहासनाय नमः।
  98. ॐ केतुमूर्तये नमः।
  99. ॐ रवीन्दुद्युतिनाशकाय नमः।
  100. ॐ अमराय नमः।
  101. ॐ पीडकाय नमः।
  102. ॐ अमर्त्याय नमः।
  103. ॐ विष्णुदृष्टाय नमः।
  104. ॐ असुरेश्वराय नमः।
  105. ॐ भक्तरक्षाय नमः।
  106. ॐ वैचित्र्यकपटस्यन्दनाय नमः।
  107. ॐ विचित्रफलदायिने नमः।
  108. ॐ भक्ताभीष्टफलप्रदाय नमः।

॥ इति श्री केतु अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Rahu Dev Ashtottara Shatanamavali – श्री राहु अष्टोत्तरशतनामावली

Rahu Dev

Rahu Dev

Sri Rahu Ashtottara Shatanamavali – श्री राहु अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ राहवे नमः।
  2. ॐ सैंहिकेयाय नमः।
  3. ॐ विधुन्तुदाय नमः।
  4. ॐ सुरशत्रवे नमः।
  5. ॐ तमसे नमः।
  6. ॐ फणिने नमः।
  7. ॐ गार्ग्यायणाय नमः।
  8. ॐ सुरागवे नमः।
  9. ॐ नीलजीमूतसङ्काशाय नमः।
  10. ॐ चतुर्भुजाय नमः।
  11. ॐ खड्गखेटकधारिणे नमः।
  12. ॐ वरदायकहस्तकाय नमः।
  13. ॐ शूलायुधाय नमः।
  14. ॐ मेघवर्णाय नमः।
  15. ॐ कृष्णध्वजपताकावते नमः।
  16. ॐ दक्षिणाशामुखरताय नमः।
  17. ॐ तीक्ष्णदम्ष्ट्रधराय नमः।
  18. ॐ शूर्पाकारासनस्थाय नमः।
  19. ॐ गोमेदाभरणप्रियाय नमः।
  20. ॐ माषप्रियाय नमः।
  21. ॐ कश्यपर्षिनन्दनाय नमः।
  22. ॐ भुजगेश्वराय नमः।
  23. ॐ उल्कापातजनये नमः।
  24. ॐ शूलिने नमः।
  25. ॐ निधिपाय नमः।
  26. ॐ कृष्णसर्पराजे नमः।
  27. ॐ विषज्वलावृतास्याय नमः।
  28. ॐ अर्धशरीराय नमः।
  29. ॐ जाद्यसम्प्रदाय नमः।
  30. ॐ रवीन्दुभीकराय नमः।
  31. ॐ छायास्वरूपिणे नमः।
  32. ॐ कठिनाङ्गकाय नमः।
  33. ॐ द्विषच्चक्रच्छेदकाय नमः।
  34. ॐ करालास्याय नमः।
  35. ॐ भयङ्कराय नमः।
  36. ॐ क्रूरकर्मणे नमः।
  37. ॐ तमोरूपाय नमः।
  38. ॐ श्यामात्मने नमः।
  39. ॐ नीललोहिताय नमः।
  40. ॐ किरीटिणे नमः।
  41. ॐ नीलवसनाय नमः।
  42. ॐ शनिसामान्तवर्त्मगाय नमः।
  43. ॐ चाण्डालवर्णाय नमः।
  44. ॐ अश्व्यर्क्षभवाय नमः।
  45. ॐ मेषभवाय नमः।
  46. ॐ शनिवत्फलदाय नमः।
  47. ॐ शूराय नमः।
  48. ॐ अपसव्यगतये नमः।
  49. ॐ उपरागकराय नमः।
  50. ॐ सूर्यहिमांशुच्छविहारकाय नमः।
  51. ॐ नीलपुष्पविहाराय नमः।
  52. ॐ ग्रहश्रेष्ठाय नमः।
  53. ॐ अष्टमग्रहाय नमः।
  54. ॐ कबन्धमात्रदेहाय नमः।
  55. ॐ यातुधानकुलोद्भवाय नमः।
  56. ॐ गोविन्दवरपात्राय नमः।
  57. ॐ देवजातिप्रविष्टकाय नमः।
  58. ॐ क्रूराय नमः।
  59. ॐ घोराय नमः।
  60. ॐ शनेर्मित्राय नमः।
  61. ॐ शुक्रमित्राय नमः।
  62. ॐ अगोचराय नमः।
  63. ॐ माने गङ्गास्नानदात्रे नमः।
  64. ॐ स्वगृहे प्रबलाढ्यकाय नमः।
  65. ॐ सद्गृहेऽन्यबलधृते नमः।
  66. ॐ चतुर्थे मातृनाशकाय नमः।
  67. ॐ चन्द्रयुक्ते चण्डालजन्मसूचकाय नमः।
  68. ॐ जन्मसिंहे नमः।
  69. ॐ राज्यदात्रे नमः।
  70. ॐ महाकायाय नमः।
  71. ॐ जन्मकर्त्रे नमः।
  72. ॐ विधुरिपवे नमः।
  73. ॐ मत्तको ज्ञानदाय नमः।
  74. ॐ जन्मकन्याराज्यदात्रे नमः।
  75. ॐ जन्महानिदाय नमः।
  76. ॐ नवमे पितृहन्त्रे नमः।
  77. ॐ पञ्चमे शोकदायकाय नमः।
  78. ॐ द्यूने कलत्रहन्त्रे नमः।
  79. ॐ सप्तमे कलहप्रदाय नमः।
  80. ॐ षष्ठे वित्तदात्रे नमः।
  81. ॐ चतुर्थे वैरदायकाय नमः।
  82. ॐ नवमे पापदात्रे नमः।
  83. ॐ दशमे शोकदायकाय नमः।
  84. ॐ आदौ यशः प्रदात्रे नमः।
  85. ॐ अन्ते वैरप्रदायकाय नमः।
  86. ॐ कालात्मने नमः।
  87. ॐ गोचराचाराय नमः।
  88. ॐ धने ककुत्प्रदाय नमः।
  89. ॐ पञ्चमे धृषणाशृङ्गदाय नमः।
  90. ॐ स्वर्भानवे नमः।
  91. ॐ बलिने नमः।
  92. ॐ महासौख्यप्रदायिने नमः।
  93. ॐ चन्द्रवैरिणे नमः।
  94. ॐ शाश्वताय नमः।
  95. ॐ सुरशत्रवे नमः।
  96. ॐ पापग्रहाय नमः।
  97. ॐ शाम्भवाय नमः।
  98. ॐ पूज्यकाय नमः।
  99. ॐ पाठीनपूरणाय नमः।
  100. ॐ पैठीनसकुलोद्भवाय नमः।
  101. ॐ दीर्घ कृष्णाय नमः।
  102. ॐ अशिरसे नमः।
  103. ॐ विष्णुनेत्रारये नमः।
  104. ॐ देवाय नमः।
  105. ॐ दानवाय नमः।
  106. ॐ भक्तरक्षाय नमः।
  107. ॐ राहुमूर्तये नमः।
  108. ॐ सर्वाभीष्टफलप्रदाय नमः।

॥ इति श्री राहु अष्टोत्तरशतनामावली ॥

Other Keywords:-

Sri Rahu Ashtottara Shatanamavali, Rahu 108 namavali, 108 naam Rahu dev, Rahu graha 108 namawali,

Sri Shani Dev Ashtottara Shatanamavali – श्री शनि अष्टोत्तरशतनामावली

Shani Dev

Shani Dev

Sri Shani Ashtottara Shatanamavali – श्री शनि अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ शनैश्चराय नमः।
  2. ॐ शान्ताय नमः।
  3. ॐ सर्वाभीष्टप्रदायिने नमः।
  4. ॐ शरण्याय नमः।
  5. ॐ वरेण्याय नमः।
  6. ॐ सर्वेशाय नमः।
  7. ॐ सौम्याय नमः।
  8. ॐ सुरवन्द्याय नमः।
  9. ॐ सुरलोकविहारिणे नमः।
  10. ॐ सुखासनोपविष्टाय नमः।
  11. ॐ सुन्दराय नमः।
  12. ॐ घनाय नमः।
  13. ॐ घनरूपाय नमः।
  14. ॐ घनाभरणधारिणे नमः।
  15. ॐ घनसारविलेपाय नमः।
  16. ॐ खद्योताय नमः।
  17. ॐ मन्दाय नमः।
  18. ॐ मन्दचेष्टाय नमः।
  19. ॐ महनीयगुणात्मने नमः।
  20. ॐ मर्त्यपावनपदाय नमः।
  21. ॐ महेशाय नमः।
  22. ॐ छायापुत्राय नमः।
  23. ॐ शर्वाय नमः।
  24. ॐ शरतूणीरधारिणे नमः।
  25. ॐ चरस्थिरस्वभावाय नमः।
  26. ॐ चञ्चलाय नमः।
  27. ॐ नीलवर्णाय नमः।
  28. ॐ नित्याय नमः।
  29. ॐ नीलाञ्जननिभाय नमः।
  30. ॐ नीलाम्बरविभूषाय नमः।
  31. ॐ निश्चलाय नमः।
  32. ॐ वेद्याय नमः।
  33. ॐ विधिरूपाय नमः।
  34. ॐ विरोधाधारभूमये नमः।
  35. ॐ भेदास्पदस्वभावाय नमः।
  36. ॐ वज्रदेहाय नमः।
  37. ॐ वैराग्यदाय नमः।
  38. ॐ वीराय नमः।
  39. ॐ वीतरोगभयाय नमः।
  40. ॐ विपत्परम्परेशाय नमः।
  41. ॐ विश्ववन्द्याय नमः।
  42. ॐ गृध्नवाहाय नमः।
  43. ॐ गूढाय नमः।
  44. ॐ कूर्माङ्गाय नमः।
  45. ॐ कुरूपिणे नमः।
  46. ॐ कुत्सिताय नमः।
  47. ॐ गुणाढ्याय नमः।
  48. ॐ गोचराय नमः।
  49. ॐ अविद्यामूलनाशाय नमः।
  50. ॐ विद्याऽविद्यास्वरूपिणे नमः।
  51. ॐ आयुष्यकारणाय नमः।
  52. ॐ आपदुद्धर्त्रे नमः।
  53. ॐ विष्णुभक्ताय नमः।
  54. ॐ वशिने नमः।
  55. ॐ विविधागमवेदिने नमः।
  56. ॐ विधिस्तुत्याय नमः।
  57. ॐ वन्द्याय नमः।
  58. ॐ विरूपाक्षाय नमः।
  59. ॐ वरिष्ठाय नमः।
  60. ॐ गरिष्ठाय नमः।
  61. ॐ वज्राङ्कुशधराय नमः।
  62. ॐ वरदाभयहस्ताय नमः।
  63. ॐ वामनाय नमः।
  64. ॐ ज्येष्ठापत्नीसमेताय नमः।
  65. ॐ श्रेष्ठाय नमः।
  66. ॐ मितभाषिणे नमः।
  67. ॐ कष्टौघनाशकाय नमः।
  68. ॐ पुष्टिदाय नमः।
  69. ॐ स्तुत्याय नमः।
  70. ॐ स्तोत्रगम्याय नमः।
  71. ॐ भक्तिवश्याय नमः।
  72. ॐ भानवे नमः।
  73. ॐ भानुपुत्राय नमः।
  74. ॐ भव्याय नमः।
  75. ॐ पावनाय नमः।
  76. ॐ धनुर्मण्डलसंस्थाय नमः।
  77. ॐ धनदाय नमः।
  78. ॐ धनुष्मते नमः।
  79. ॐ तनुप्रकाशदेहाय नमः।
  80. ॐ तामसाय नमः।
  81. ॐ अशेषजनवन्द्याय नमः।
  82. ॐ विशेषफलदायिने नमः।
  83. ॐ वशीकृतजनेशाय नमः।
  84. ॐ पशूनां पतये नमः।
  85. ॐ खेचराय नमः।
  86. ॐ खगेशाय नमः।
  87. ॐ घननीलाम्बराय नमः।
  88. ॐ काठिन्यमानसाय नमः।
  89. ॐ आर्यगणस्तुत्याय नमः।
  90. ॐ नीलच्छत्राय नमः।
  91. ॐ नित्याय नमः।
  92. ॐ निर्गुणाय नमः।
  93. ॐ गुणात्मने नमः।
  94. ॐ निरामयाय नमः।
  95. ॐ निन्द्याय नमः।
  96. ॐ वन्दनीयाय नमः।
  97. ॐ धीराय नमः।
  98. ॐ दिव्यदेहाय नमः।
  99. ॐ दीनार्तिहरणाय नमः।
  100. ॐ दैन्यनाशकराय नमः।
  101. ॐ आर्यजनगण्याय नमः।
  102. ॐ क्रूराय नमः।
  103. ॐ क्रूरचेष्टाय नमः।
  104. ॐ कामक्रोधकराय नमः।
  105. ॐ कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमः।
  106. ॐ परिपोषितभक्ताय नमः।
  107. ॐ परभीतिहराय नमः।
  108. ॐ भक्तसङ्घमनोऽभीष्टफलदाय नमः।

॥ इति श्री शनि अष्टोत्तरशतनामावली ॥

Other Keywords:-

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Sri Shukra Dev Ashtottara Shatanamavali – श्री शुक्र अष्टोत्तरशतनामावली

Shukara Dev

Shukara Dev

Sri Sukra Ashtottara Shatanamavali – श्री शुक्र अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ शुक्राय नमः।
  2. ॐ शुचये नमः।
  3. ॐ शुभगुणाय नमः।
  4. ॐ शुभदाय नमः।
  5. ॐ शुभलक्षणाय नमः।
  6. ॐ शोभनाक्षाय नमः।
  7. ॐ शुभ्ररूपाय नमः।
  8. ॐ शुद्धस्फटिकभास्वराय नमः।
  9. ॐ दीनार्तिहरकाय नमः।
  10. ॐ दैत्यगुरवे नमः।
  11. ॐ देवाभिवन्दिताय नमः।
  12. ॐ काव्यासक्ताय नमः।
  13. ॐ कामपालाय नमः।
  14. ॐ कवये नमः।
  15. ॐ कल्याणदायकाय नमः।
  16. ॐ भद्रमूर्तये नमः।
  17. ॐ भद्रगुणाय नमः।
  18. ॐ भार्गवाय नमः।
  19. ॐ भक्तपालनाय नमः।
  20. ॐ भोगदाय नमः।
  21. ॐ भुवनाध्यक्षाय नमः।
  22. ॐ भुक्तिमुक्तिफलप्रदाय नमः।
  23. ॐ चारुशीलाय नमः।
  24. ॐ चारुरूपाय नमः।
  25. ॐ चारुचन्द्रनिभाननाय नमः।
  26. ॐ निधये नमः।
  27. ॐ निखिलशास्त्रज्ञाय नमः।
  28. ॐ नीतिविद्याधुरन्धराय नमः।
  29. ॐ सर्वलक्षणसम्पन्नाय नमः।
  30. ॐ सर्वावगुणवर्जिताय नमः।
  31. ॐ समानाधिकनिर्मुक्ताय नमः।
  32. ॐ सकलागमपारगाय नमः।
  33. ॐ भृगवे नमः।
  34. ॐ भोगकराय नमः।
  35. ॐ भूमिसुरपालनतत्पराय नमः।
  36. ॐ मनस्विने नमः।
  37. ॐ मानदाय नमः।
  38. ॐ मान्याय नमः।
  39. ॐ मायातीताय नमः।
  40. ॐ महाशयाय नमः।
  41. ॐ बलिप्रसन्नाय नमः।
  42. ॐ अभयदाय नमः।
  43. ॐ बलिने नमः।
  44. ॐ बलपराक्रमाय नमः।
  45. ॐ भवपाशपरित्यागाय नमः।
  46. ॐ बलिबन्धविमोचकाय नमः।
  47. ॐ घनाशयाय नमः।
  48. ॐ घनाध्यक्षाय नमः।
  49. ॐ कम्बुग्रीवाय नमः।
  50. ॐ कलाधराय नमः।
  51. ॐ कारुण्यरससम्पूर्णाय नमः।
  52. ॐ कल्याणगुणवर्धनाय नमः।
  53. ॐ श्वेताम्बराय नमः।
  54. ॐ श्वेतवपुषे नमः।
  55. ॐ चतुर्भुजसमन्विताय नमः।
  56. ॐ अक्षमालाधराय नमः।
  57. ॐ अचिन्त्याय नमः।
  58. ॐ अक्षीणगुणभासुराय नमः।
  59. ॐ नक्षत्रगणसञ्चाराय नमः।
  60. ॐ नयदाय नमः।
  61. ॐ नीतिमार्गदाय नमः।
  62. ॐ वर्षप्रदाय नमः।
  63. ॐ हृषीकेशाय नमः।
  64. ॐ क्लेशनाशकराय नमः।
  65. ॐ कवये नमः।
  66. ॐ चिन्तितार्थप्रदाय नमः।
  67. ॐ शान्तमतये नमः।
  68. ॐ चित्तसमाधिकृते नमः।
  69. ॐ आधिव्याधिहराय नमः।
  70. ॐ भूरिविक्रमाय नमः।
  71. ॐ पुण्यदायकाय नमः।
  72. ॐ पुराणपुरुषाय नमः।
  73. ॐ पूज्याय नमः।
  74. ॐ पुरुहूतादिसन्नुताय नमः।
  75. ॐ अजेयाय नमः।
  76. ॐ विजितारातये नमः।
  77. ॐ विविधाभरणोज्ज्वलाय नमः।
  78. ॐ कुन्दपुष्पप्रतीकाशाय नमः।
  79. ॐ मन्दहासाय नमः।
  80. ॐ महामतये नमः।
  81. ॐ मुक्ताफलसमानाभाय नमः।
  82. ॐ मुक्तिदाय नमः।
  83. ॐ मुनिसन्नुताय नमः।
  84. ॐ रत्नसिंहासनारूढाय नमः।
  85. ॐ रथस्थाय नमः।
  86. ॐ रजतप्रभाय नमः।
  87. ॐ सूर्यप्राग्देशसञ्चाराय नमः।
  88. ॐ सुरशत्रुसुहृदे नमः।
  89. ॐ कवये नमः।
  90. ॐ तुलावृषभराशीशाय नमः।
  91. ॐ दुर्धराय नमः।
  92. ॐ धर्मपालकाय नमः।
  93. ॐ भाग्यदाय नमः।
  94. ॐ भव्यचारित्राय नमः।
  95. ॐ भवपाशविमोचकाय नमः।
  96. ॐ गौडदेशेश्वराय नमः।
  97. ॐ गोप्त्रे नमः।
  98. ॐ गुणिने नमः।
  99. ॐ गुणविभूषणाय नमः।
  100. ॐ ज्येष्ठानक्षत्रसम्भूताय नमः।
  101. ॐ ज्येष्ठाय नमः।
  102. ॐ श्रेष्ठाय नमः।
  103. ॐ शुचिस्मिताय नमः।
  104. ॐ अपवर्गप्रदाय नमः।
  105. ॐ अनन्ताय नमः।
  106. ॐ सन्तानफलदायकाय नमः।
  107. ॐ सर्वैश्वर्यप्रदाय नमः।
  108. ॐ सर्वगीर्वाणगणसन्नुताय नमः।

॥ इति श्री शुक्र अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Brihaspati Dev Ashtottara Shatanamavali – श्री बृहस्पति अष्टोत्तरशतनामावली

Brihaspati Dev

Brihaspati Dev

Sri Brihaspati Ashtottara Shatanamavali – श्री बृहस्पति अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ गुरवे नमः।
  2. ॐ गुणवराय नमः।
  3. ॐ गोप्त्रे नमः।
  4. ॐ गोचराय नमः।
  5. ॐ गोपतिप्रियाय नमः।
  6. ॐ गुणिने नमः।
  7. ॐ गुणवतां श्रेष्ठाय नमः।
  8. ॐ गुरूणां गुरवे नमः।
  9. ॐ अव्ययाय नमः।
  10. ॐ जेत्रे नमः।
  11. ॐ जयन्ताय नमः।
  12. ॐ जयदाय नमः।
  13. ॐ जीवाय नमः।
  14. ॐ अनन्ताय नमः।
  15. ॐ जयावहाय नमः।
  16. ॐ आङ्गीरसाय नमः।
  17. ॐ अध्वरासक्ताय नमः।
  18. ॐ विविक्ताय नमः।
  19. ॐ अध्वरकृत्पराय नमः।
  20. ॐ वाचस्पतये नमः।
  21. ॐ वशिने नमः।
  22. ॐ वश्याय नमः।
  23. ॐ वरिष्ठाय नमः।
  24. ॐ वाग्विचक्षणाय नमः।
  25. ॐ चित्तशुद्धिकराय नमः।
  26. ॐ श्रीमते नमः।
  27. ॐ चैत्राय नमः।
  28. ॐ चित्रशिखण्डिजाय नमः।
  29. ॐ बृहद्रथाय नमः।
  30. ॐ बृहद्भानवे नमः।
  31. ॐ बृहस्पतये नमः।
  32. ॐ अभीष्टदाय नमः।
  33. ॐ सुराचार्याय नमः।
  34. ॐ सुराराध्याय नमः।
  35. ॐ सुरकार्यहितङ्कराय नमः।
  36. ॐ गीर्वाणपोषकाय नमः।
  37. ॐ धन्याय नमः।
  38. ॐ गीष्पतये नमः।
  39. ॐ गिरीशाय नमः।
  40. ॐ अनघाय नमः।
  41. ॐ धीवराय नमः।
  42. ॐ धिषणाय नमः।
  43. ॐ दिव्यभूषणाय नमः।
  44. ॐ देवपूजिताय नमः।
  45. ॐ धनुर्धराय नमः।
  46. ॐ दैत्यहन्त्रे नमः।
  47. ॐ दयासाराय नमः।
  48. ॐ दयाकराय नमः।
  49. ॐ दारिद्र्यनाशनाय नमः।
  50. ॐ धन्याय नमः।
  51. ॐ दक्षिणायनसम्भवाय नमः।
  52. ॐ धनुर्मीनाधिपाय नमः।
  53. ॐ देवाय नमः।
  54. ॐ धनुर्बाणधराय नमः।
  55. ॐ हरये नमः।
  56. ॐ आङ्गीरसाब्जसञ्जताय नमः।
  57. ॐ आङ्गीरसकुलोद्भवाय नमः।
  58. ॐ सिन्धुदेशाधिपाय नमः।
  59. ॐ धीमते नमः।
  60. ॐ स्वर्णवर्णाय नमः।
  61. ॐ चतुर्भुजाय नमः।
  62. ॐ हेमाङ्गदाय नमः।
  63. ॐ हेमवपुषे नमः।
  64. ॐ हेमभूषणभूषिताय नमः।
  65. ॐ पुष्यनाथाय नमः।
  66. ॐ पुष्यरागमणिमण्डलमण्डिताय नमः।
  67. ॐ काशपुष्पसमानाभाय नमः।
  68. ॐ कलिदोषनिवारकाय नमः।
  69. ॐ इन्द्रादिदेवोदेवेशाय नमः।
  70. ॐ देवताभीष्टदायकाय नमः।
  71. ॐ असमानबलाय नमः।
  72. ॐ सत्त्वगुणसम्पद्विभासुराय नमः।
  73. ॐ भूसुराभीष्टदाय नमः।
  74. ॐ भूरियशसे नमः।
  75. ॐ पुण्यविवर्धनाय नमः।
  76. ॐ धर्मरूपाय नमः।
  77. ॐ धनाध्यक्षाय नमः।
  78. ॐ धनदाय नमः।
  79. ॐ धर्मपालनाय नमः।
  80. ॐ सर्ववेदार्थतत्त्वज्ञाय नमः।
  81. ॐ सर्वापद्विनिवारकाय नमः।
  82. ॐ सर्वपापप्रशमनाय नमः।
  83. ॐ स्वमतानुगतामराय नमः।
  84. ॐ ऋग्वेदपारगाय नमः।
  85. ॐ ऋक्षराशिमार्गप्रचारवते नमः।
  86. ॐ सदानन्दाय नमः।
  87. ॐ सत्यसन्धाय नमः।
  88. ॐ सत्यसङ्कल्पमानसाय नमः।
  89. ॐ सर्वागमज्ञाय नमः।
  90. ॐ सर्वज्ञाय नमः।
  91. ॐ सर्ववेदान्तविदे नमः।
  92. ॐ वराय नमः।
  93. ॐ ब्रह्मपुत्राय नमः।
  94. ॐ ब्राह्मणेशाय नमः।
  95. ॐ ब्रह्मविद्याविशारदाय नमः।
  96. ॐ समानाधिकनिर्मुक्ताय नमः।
  97. ॐ सर्वलोकवशंवदाय नमः।
  98. ॐ ससुरासुरगन्धर्ववन्दिताय नमः।
  99. ॐ सत्यभाषणाय नमः।
  100. ॐ बृहस्पतये नमः।
  101. ॐ सुराचार्याय नमः।
  102. ॐ दयावते नमः।
  103. ॐ शुभलक्षणाय नमः।
  104. ॐ लोकत्रयगुरवे नमः।
  105. ॐ श्रीमते नमः।
  106. ॐ सर्वगाय नमः।
  107. ॐ सर्वतो विभवे नमः।
  108. ॐ सर्वेशाय नमः।

॥ इति श्री बृहस्पति अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Budha Dev Ashtottara Shatanamavali – श्री बुध अष्टोत्तरशतनामावली

Budh Dev

Budh Dev

Sri Budha Ashtottara Shatanamavali – श्री बुध अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ बुधाय नमः।
  2. ॐ बुधार्चिताय नमः।
  3. ॐ सौम्याय नमः।
  4. ॐ सौम्यचित्ताय नमः।
  5. ॐ शुभप्रदाय नमः।
  6. ॐ दृढव्रताय नमः।
  7. ॐ दृढफलाय नमः।
  8. ॐ श्रुतिजालप्रबोधकाय नमः।
  9. ॐ सत्यवासाय नमः।
  10. ॐ सत्यवचसे नमः।
  11. ॐ श्रेयसां पतये नमः।
  12. ॐ अव्ययाय नमः।
  13. ॐ सोमजाय नमः।
  14. ॐ सुखदाय नमः।
  15. ॐ श्रीमते नमः।
  16. ॐ सोमवंशप्रदीपकाय नमः।
  17. ॐ वेदविदे नमः।
  18. ॐ वेदतत्त्वज्ञाय नमः।
  19. ॐ वेदान्तज्ञानभास्वराय नमः।
  20. ॐ विद्याविचक्षणाय नमः।
  21. ॐ विभवे नमः।
  22. ॐ विद्वत्प्रीतिकराय नमः।
  23. ॐ ऋजवे नमः।
  24. ॐ विश्वानुकूलसञ्चाराय नमः।
  25. ॐ विशेषविनयान्विताय नमः।
  26. ॐ विविधागमसारज्ञाय नमः।
  27. ॐ वीर्यवते नमः।
  28. ॐ विगतज्वराय नमः।
  29. ॐ त्रिवर्गफलदाय नमः।
  30. ॐ अनन्ताय नमः।
  31. ॐ त्रिदशाधिपपूजिताय नमः।
  32. ॐ बुद्धिमते नमः।
  33. ॐ बहुशास्त्रज्ञाय नमः।
  34. ॐ बलिने नमः।
  35. ॐ बन्धविमोचकाय नमः।
  36. ॐ वक्रातिवक्रगमनाय नमः।
  37. ॐ वासवाय नमः।
  38. ॐ वसुधाधिपाय नमः।
  39. ॐ प्रसन्नवदनाय नमः।
  40. ॐ वन्द्याय नमः।
  41. ॐ वरेण्याय नमः।
  42. ॐ वाग्विलक्षणाय नमः।
  43. ॐ सत्यवते नमः।
  44. ॐ सत्यसङ्कल्पाय नमः।
  45. ॐ सत्यबन्धवे नमः।
  46. ॐ सदादराय नमः।
  47. ॐ सर्वरोगप्रशमनाय नमः।
  48. ॐ सर्वमृत्युनिवारकाय नमः।
  49. ॐ वाणिज्यनिपुणाय नमः।
  50. ॐ वश्याय नमः।
  51. ॐ वाताङ्गाय नमः।
  52. ॐ वातरोगहृते नमः।
  53. ॐ स्थूलाय नमः।
  54. ॐ स्थैर्यगुणाध्यक्षाय नमः।
  55. ॐ स्थूलसूक्ष्मादिकारणाय नमः।
  56. ॐ अप्रकाशाय नमः।
  57. ॐ प्रकाशात्मने नमः।
  58. ॐ घनाय नमः।
  59. ॐ गगनभूषणाय नमः।
  60. ॐ विधिस्तुत्याय नमः।
  61. ॐ विशालाक्षाय नमः।
  62. ॐ विद्वज्जनमनोहराय नमः।
  63. ॐ चारुशीलाय नमः।
  64. ॐ स्वप्रकाशाय नमः।
  65. ॐ चपलाय नमः।
  66. ॐ जितेन्द्रियाय नमः।
  67. ॐ उदङ्मुखाय नमः।
  68. ॐ मखासक्ताय नमः।
  69. ॐ मगधाधिपतये नमः।
  70. ॐ हरये नमः।
  71. ॐ सौम्यवत्सरसञ्जाताय नमः।
  72. ॐ सोमप्रियकराय नमः।
  73. ॐ सुखिने नमः।
  74. ॐ सिंहाधिरूढाय नमः।
  75. ॐ सर्वज्ञाय नमः।
  76. ॐ शिखिवर्णाय नमः।
  77. ॐ शिवङ्कराय नमः।
  78. ॐ पीताम्बराय नमः।
  79. ॐ पीतवपुषे नमः।
  80. ॐ पीतच्छत्रध्वजाङ्किताय नमः।
  81. ॐ खड्गचर्मधराय नमः।
  82. ॐ कार्यकर्त्रे नमः।
  83. ॐ कलुषहारकाय नमः।
  84. ॐ आत्रेयगोत्रजाय नमः।
  85. ॐ अत्यन्तविनयाय नमः।
  86. ॐ विश्वपावनाय नमः।
  87. ॐ चाम्पेयपुष्पसङ्काशाय नमः।
  88. ॐ चारणाय नमः।
  89. ॐ चारुभूषणाय नमः।
  90. ॐ वीतरागाय नमः।
  91. ॐ वीतभयाय नमः।
  92. ॐ विशुद्धकनकप्रभाय नमः।
  93. ॐ बन्धुप्रियाय नमः।
  94. ॐ बन्धमुक्ताय नमः।
  95. ॐ बाणमण्डलसंश्रिताय नमः।
  96. ॐ अर्केशानप्रदेशस्थाय नमः।
  97. ॐ तर्कशास्त्रविशारदाय नमः।
  98. ॐ प्रशान्ताय नमः।
  99. ॐ प्रीतिसम्युक्ताय नमः।
  100. ॐ प्रियकृते नमः।
  101. ॐ प्रियभाषणाय नमः।
  102. ॐ मेधाविने नमः।
  103. ॐ माधवसक्ताय नमः।
  104. ॐ मिथुनाधिपतये नमः।
  105. ॐ सुधिये नमः।
  106. ॐ कन्याराशिप्रियाय नमः।
  107. ॐ कामप्रदाय नमः।
  108. ॐ घनफलाश्रयाय नमः।

॥ इति श्री बुध अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Mangal Dev Ashtottara Shatanamavali– श्री अङ्गारक अष्टोत्तरशतनामावली

Mangal dev

Mangal dev

Sri Angaraka (Mangala) Ashtottara Shatanamavali – श्री अङ्गारक अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ महीसुताय नमः।
  2. ॐ महाभागाय नमः।
  3. ॐ मङ्गलाय नमः।
  4. ॐ मङ्गलप्रदाय नमः।
  5. ॐ महावीराय नमः।
  6. ॐ महाशूराय नमः।
  7. ॐ महाबलपराक्रमाय नमः।
  8. ॐ महारौद्राय नमः।
  9. ॐ महाभद्राय नमः।
  10. ॐ माननीयाय नमः।
  11. ॐ दयाकराय नमः।
  12. ॐ मानदाय नमः।
  13. ॐ अमर्षणाय नमः।
  14. ॐ क्रूराय नमः।
  15. ॐ तापपापविवर्जिताय नमः।
  16. ॐ सुप्रतीपाय नमः।
  17. ॐ सुताम्राक्षाय नमः।
  18. ॐ सुब्रह्मण्याय नमः।
  19. ॐ सुखप्रदाय नमः।
  20. ॐ वक्रस्तम्भादिगमनाय नमः।
  21. ॐ वरेण्याय नमः।
  22. ॐ वरदाय नमः।
  23. ॐ सुखिने नमः।
  24. ॐ वीरभद्राय नमः।
  25. ॐ विरूपाक्षाय नमः।
  26. ॐ विदूरस्थाय नमः।
  27. ॐ विभावसवे नमः।
  28. ॐ नक्षत्रचक्रसञ्चारिणे नमः।
  29. ॐ क्षत्रपाय नमः।
  30. ॐ क्षात्रवर्जिताय नमः।
  31. ॐ क्षयवृद्धिविनिर्मुक्ताय नमः।
  32. ॐ क्षमायुक्ताय नमः।
  33. ॐ विचक्षणाय नमः।
  34. ॐ अक्षीणफलदाय नमः।
  35. ॐ चक्षुर्गोचराय नमः।
  36. ॐ शुभलक्षणाय नमः।
  37. ॐ वीतरागाय नमः।
  38. ॐ वीतभयाय नमः।
  39. ॐ विज्वराय नमः।
  40. ॐ विश्वकारणाय नमः।
  41. ॐ नक्षत्रराशिसञ्चाराय नमः।
  42. ॐ नानाभयनिकृन्तनाय नमः।
  43. ॐ कमनीयाय नमः।
  44. ॐ दयासाराय नमः।
  45. ॐ कनत्कनकभूषणाय नमः।
  46. ॐ भयघ्नाय नमः।
  47. ॐ भव्यफलदाय नमः।
  48. ॐ भक्ताभयवरप्रदाय नमः।
  49. ॐ शत्रुहन्त्रे नमः।
  50. ॐ शमोपेताय नमः।
  51. ॐ शरणागतपोषकाय नमः।
  52. ॐ साहसिने नमः।
  53. ॐ सद्गुणाय नमः
  54. ॐ अध्यक्षाय नमः।
  55. ॐ साधवे नमः।
  56. ॐ समरदुर्जयाय नमः।
  57. ॐ दुष्टदूराय नमः।
  58. ॐ शिष्टपूज्याय नमः।
  59. ॐ सर्वकष्टनिवारकाय नमः।
  60. ॐ दुश्चेष्टवारकाय नमः।
  61. ॐ दुःखभञ्जनाय नमः।
  62. ॐ दुर्धराय नमः।
  63. ॐ हरये नमः।
  64. ॐ दुःस्वप्नहन्त्रे नमः।
  65. ॐ दुर्धर्षाय नमः।
  66. ॐ दुष्टगर्वविमोचकाय नमः।
  67. ॐ भरद्वाजकुलोद्भूताय नमः।
  68. ॐ भूसुताय नमः।
  69. ॐ भव्यभूषणाय नमः।
  70. ॐ रक्ताम्बराय नमः।
  71. ॐ रक्तवपुषे नमः।
  72. ॐ भक्तपालनतत्पराय नमः।
  73. ॐ चतुर्भुजाय नमः।
  74. ॐ गदाधारिणे नमः।
  75. ॐ मेषवाहाय नमः।
  76. ॐ मिताशनाय नमः।
  77. ॐ शक्तिशूलधराय नमः।
  78. ॐ शक्ताय नमः।
  79. ॐ शस्त्रविद्याविशारदाय नमः।
  80. ॐ तार्किकाय नमः।
  81. ॐ तामसाधाराय नमः।
  82. ॐ तपस्विने नमः।
  83. ॐ ताम्रलोचनाय नमः।
  84. ॐ तप्तकाञ्चनसङ्काशाय नमः।
  85. ॐ रक्तकिञ्जल्कसन्निभाय नमः।
  86. ॐ गोत्राधिदेवाय नमः।
  87. ॐ गोमध्यचराय नमः।
  88. ॐ गुणविभूषणाय नमः।
  89. ॐ असृजे नमः।
  90. ॐ अङ्गारकाय नमः।
  91. ॐ अवन्तीदेशाधीशाय नमः।
  92. ॐ जनार्दनाय नमः।
  93. ॐ सूर्ययाम्यप्रदेशस्थाय नमः।
  94. ॐ यौवनाय नमः।
  95. ॐ याम्यदिङ्मुखाय नमः।
  96. ॐ त्रिकोणमण्डलगताय नमः।
  97. ॐ त्रिदशाधिपसन्नुताय नमः।
  98. ॐ शुचये नमः।
  99. ॐ शुचिकराय नमः।
  100. ॐ शूराय नमः।
  101. ॐ शुचिवश्याय नमः।
  102. ॐ शुभावहाय नमः।
  103. ॐ मेषवृश्चिकराशीशाय नमः।
  104. ॐ मेधाविने नमः।
  105. ॐ मितभाषणाय नमः।
  106. ॐ सुखप्रदाय नमः।
  107. ॐ सुरूपाक्षाय नमः।
  108. ॐ सर्वाभीष्टफलप्रदाय नमः।

॥ इति श्री अङ्गारक अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Surya Dev Ashtottara Shatanamavali – श्री सूर्य अष्टोत्तरशतनामावली

Surya Dev

Surya Dev

Sri Surya Ashtottara Shatanamavali – श्री सूर्य अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ अरुणाय नमः।
  2. ॐ शरण्याय नमः।
  3. ॐ करुणारससिन्धवे नमः।
  4. ॐ असमानबलाय नमः।
  5. ॐ आर्तरक्षकाय नमः।
  6. ॐ आदित्याय नमः।
  7. ॐ आदिभूताय नमः।
  8. ॐ अखिलागमवेदिने नमः।
  9. ॐ अच्युताय नमः।
  10. ॐ अखिलज्ञाय नमः।
  11. ॐ अनन्ताय नमः।
  12. ॐ इनाय नमः।
  13. ॐ विश्वरूपाय नमः।
  14. ॐ इज्याय नमः।
  15. ॐ इन्द्राय नमः।
  16. ॐ भानवे नमः।
  17. ॐ इन्दिरामन्दिराप्ताय नमः।
  18. ॐ वन्दनीयाय नमः।
  19. ॐ ईशाय नमः।
  20. ॐ सुप्रसन्नाय नमः।
  21. ॐ सुशीलाय नमः।
  22. ॐ सुवर्चसे नमः।
  23. ॐ वसुप्रदाय नमः।
  24. ॐ वसवे नमः।
  25. ॐ वासुदेवाय नमः।
  26. ॐ उज्ज्वलाय नमः।
  27. ॐ उग्ररूपाय नमः।
  28. ॐ ऊर्ध्वगाय नमः।
  29. ॐ विवस्वते नमः।
  30. ॐ उद्यत्किरणजालाय नमः।
  31. ॐ हृषीकेशाय नमः।
  32. ॐ ऊर्जस्वलाय नमः।
  33. ॐ वीराय नमः।
  34. ॐ निर्जराय नमः।
  35. ॐ जयाय नमः।
  36. ॐ ऊरुद्वयाभावरूपयुक्तसारथये नमः।
  37. ॐ ऋषिवन्द्याय नमः।
  38. ॐ रुग्घन्त्रे नमः।
  39. ॐ ऋक्षचक्रचराय नमः।
  40. ॐ ऋजुस्वभावचित्ताय नमः।
  41. ॐ नित्यस्तुत्याय नमः।
  42. ॐ ॠकारमातृकावर्णरूपाय नमः।
  43. ॐ उज्ज्वलतेजसे नमः।
  44. ॐ ॠक्षाधिनाथमित्राय नमः।
  45. ॐ पुष्कराक्षाय नमः।
  46. ॐ लुप्तदन्ताय नमः।
  47. ॐ शान्ताय नमः।
  48. ॐ कान्तिदाय नमः।
  49. ॐ घनाय नमः।
  50. ॐ कनत्कनकभूषाय नमः।
  51. ॐ खद्योताय नमः।
  52. ॐ लूनिताखिलदैत्याय नमः।
  53. ॐ सत्यानन्दस्वरूपिणे नमः।
  54. ॐ अपवर्गप्रदाय नमः।
  55. ॐ आर्तशरण्याय नमः।
  56. ॐ एकाकिने नमः।
  57. ॐ भगवते नमः।
  58. ॐ सृष्टिस्थित्यन्तकारिणे नमः।
  59. ॐ गुणात्मने नमः।
  60. ॐ घृणिभृते नमः।
  61. ॐ बृहते नमः।
  62. ॐ ब्रह्मणे नमः।
  63. ॐ ऐश्वर्यदाय नमः।
  64. ॐ शर्वाय नमः।
  65. ॐ हरिदश्वाय नमः।
  66. ॐ शौरये नमः।
  67. ॐ दशदिक्सम्प्रकाशाय नमः।
  68. ॐ भक्तवश्याय नमः।
  69. ॐ ओजस्कराय नमः।
  70. ॐ जयिने नमः।
  71. ॐ जगदानन्दहेतवे नमः।
  72. ॐ जन्ममृत्युजराव्याधिवर्जिताय नमः।
  73. ॐ औच्चस्थान समारूढरथस्थाय नमः।
  74. ॐ असुरारये नमः।
  75. ॐ कमनीयकराय नमः।
  76. ॐ अब्जवल्लभाय नमः।
  77. ॐ अन्तर्बहिः प्रकाशाय नमः।
  78. ॐ अचिन्त्याय नमः।
  79. ॐ आत्मरूपिणे नमः।
  80. ॐ अच्युताय नमः।
  81. ॐ अमरेशाय नमः।
  82. ॐ परस्मै ज्योतिषे नमः।
  83. ॐ अहस्कराय नमः।
  84. ॐ रवये नमः।
  85. ॐ हरये नमः।
  86. ॐ परमात्मने नमः।
  87. ॐ तरुणाय नमः।
  88. ॐ वरेण्याय नमः।
  89. ॐ ग्रहाणाम्पतये नमः।
  90. ॐ भास्कराय नमः।
  91. ॐ आदिमध्यान्तरहिताय नमः।
  92. ॐ सौख्यप्रदाय नमः।
  93. ॐ सकलजगताम्पतये नमः।
  94. ॐ सूर्याय नमः।
  95. ॐ कवये नमः।
  96. ॐ नारायणाय नमः।
  97. ॐ परेशाय नमः।
  98. ॐ तेजोरूपाय नमः।
  99. ॐ श्रीं हिरण्यगर्भाय नमः।
  100. ॐ ह्रीं सम्पत्कराय नमः।
  101. ॐ ऐं इष्टार्थदाय नमः।
  102. ॐ अनुप्रसन्नाय नमः।
  103. ॐ श्रीमते नमः।
  104. ॐ श्रेयसे नमः।
  105. ॐ भक्तकोटिसौख्यप्रदायिने नमः।
  106. ॐ निखिलागमवेद्याय नमः।
  107. ॐ नित्यानन्दाय नमः।
  108. ॐ श्री सूर्य नारायणाय नमः।

॥ इति श्री सूर्य अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Chandra Dev Ashtottara Shatanamavali – श्री चन्द्र अष्टोत्तरशतनामावली

Chandra Dev

Chandra Dev

Sri Chandra Ashtottara Shatanamavali – श्री चन्द्र अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ श्रीमते नमः।
  2. ॐ शशधराय नमः।
  3. ॐ चन्द्राय नमः।
  4. ॐ ताराधीशाय नमः।
  5. ॐ निशाकराय नमः।
  6. ॐ सुधानिधये नमः।
  7. ॐ सदाराध्याय नमः।
  8. ॐ सत्पतये नमः।
  9. ॐ साधुपूजिताय नमः।
  10. ॐ जितेन्द्रियाय नमः।
  11. ॐ जगद्योनये नमः।
  12. ॐ ज्योतिश्चक्रप्रवर्तकाय नमः।
  13. ॐ विकर्तनानुजाय नमः।
  14. ॐ वीराय नमः।
  15. ॐ विश्वेशाय नमः।
  16. ॐ विदुषाम्पतये नमः।
  17. ॐ दोषाकराय नमः।
  18. ॐ दुष्टदूराय नमः।
  19. ॐ पुष्टिमते नमः।
  20. ॐ शिष्टपालकाय नमः।
  21. ॐ अष्टमूर्तिप्रियाय नमः।
  22. ॐ अनन्ताय नमः।
  23. ॐ कष्टदारुकुठारकाय नमः।
  24. ॐ स्वप्रकाशाय नमः।
  25. ॐ प्रकाशात्मने नमः।
  26. ॐ द्युचराय नमः।
  27. ॐ देवभोजनाय नमः।
  28. ॐ कलाधराय नमः।
  29. ॐ कालहेतवे नमः।
  30. ॐ कामकृते नमः।
  31. ॐ कामदायकाय नमः।
  32. ॐ मृत्युसंहारकाय नमः।
  33. ॐ अमर्त्याय नमः।
  34. ॐ नित्यानुष्ठानदायकाय नमः।
  35. ॐ क्षपाकराय नमः।
  36. ॐ क्षीणपापाय नमः।
  37. ॐ क्षयवृद्धिसमन्विताय नमः।
  38. ॐ जैवातृकाय नमः।
  39. ॐ शुचये नमः।
  40. ॐ शुभ्राय नमः।
  41. ॐ जयिने नमः।
  42. ॐ जयफलप्रदाय नमः।
  43. ॐ सुधामयाय नमः।
  44. ॐ सुरस्वामिने नमः।
  45. ॐ भक्तानामिष्टदायकाय नमः।
  46. ॐ भुक्तिदाय नमः।
  47. ॐ मुक्तिदाय नमः।
  48. ॐ भद्राय नमः।
  49. ॐ भक्तदारिद्र्यभञ्जकाय नमः।
  50. ॐ सामगानप्रियाय नमः।
  51. ॐ सर्वरक्षकाय नमः।
  52. ॐ सागरोद्भवाय नमः।
  53. ॐ भयान्तकृते नमः।
  54. ॐ भक्तिगम्याय नमः।
  55. ॐ भवबन्धविमोचकाय नमः।
  56. ॐ जगत्प्रकाशकिरणाय नमः।
  57. ॐ जगदानन्दकारणाय नमः।
  58. ॐ निस्सपत्नाय नमः।
  59. ॐ निराहाराय नमः।
  60. ॐ निर्विकाराय नमः।
  61. ॐ निरामयाय नमः।
  62. ॐ भूच्छयाऽऽच्छादिताय नमः।
  63. ॐ भव्याय नमः।
  64. ॐ भुवनप्रतिपालकाय नमः।
  65. ॐ सकलार्तिहराय नमः।
  66. ॐ सौम्यजनकाय नमः।
  67. ॐ साधुवन्दिताय नमः।
  68. ॐ सर्वागमज्ञाय नमः।
  69. ॐ सर्वज्ञाय नमः।
  70. ॐ सनकादिमुनिस्तुताय नमः।
  71. ॐ सितच्छत्रध्वजोपेताय नमः।
  72. ॐ सिताङ्गाय नमः।
  73. ॐ सितभूषणाय नमः।
  74. ॐ श्वेतमाल्याम्बरधराय नमः।
  75. ॐ श्वेतगन्धानुलेपनाय नमः।
  76. ॐ दशाश्वरथसंरूढाय नमः।
  77. ॐ दण्डपाणये नमः।
  78. ॐ धनुर्धराय नमः।
  79. ॐ कुन्दपुष्पोज्ज्वलाकाराय नमः।
  80. ॐ नयनाब्जसमुद्भवाय नमः।
  81. ॐ आत्रेयगोत्रजाय नमः।
  82. ॐ अत्यन्तविनयाय नमः।
  83. ॐ प्रियदायकाय नमः।
  84. ॐ करुणारससम्पूर्णाय नमः।
  85. ॐ कर्कटप्रभवे नमः।
  86. ॐ अव्ययाय नमः।
  87. ॐ चतुरश्रासनारूढाय नमः।
  88. ॐ चतुराय नमः।
  89. ॐ दिव्यवाहनाय नमः।
  90. ॐ विवस्वन्मण्डलाग्नेयवाससे नमः।
  91. ॐ वसुसमृद्धिदाय नमः।
  92. ॐ महेश्वरप्रियाय नमः।
  93. ॐ दान्ताय नमः।
  94. ॐ मेरुगोत्रप्रदक्षिणाय नमः।
  95. ॐ ग्रहमण्डलमध्यस्थाय नमः।
  96. ॐ ग्रसितार्काय नमः।
  97. ॐ ग्रहाधिपाय नमः।
  98. ॐ द्विजराजाय नमः।
  99. ॐ द्युतिलकाय नमः।
  100. ॐ द्विभुजाय नमः।
  101. ॐ द्विजपूजिताय नमः।
  102. ॐ औदुम्बरनगावासाय नमः।
  103. ॐ उदाराय नमः।
  104. ॐ रोहिणीपतये नमः।
  105. ॐ नित्योदयाय नमः।
  106. ॐ मुनिस्तुत्याय नमः।
  107. ॐ नित्यानन्दफलप्रदाय नमः।
  108. ॐ सकलाह्लादनकराय नमः।

॥ इति श्री चन्द्र अष्टोत्तरशतनामावली ॥

Other Keywords:-
Sri Chandra Ashtottara Shatanamavali, Chandra 108 namavali, 108 naam Chandra dev, Chandra graha 108 namawali

Monday Fast – जानिए 16 सोमवार व्रत कैसे करें, सम्पूर्ण कथा पूजन और उद्यापन विधि

Solah Somvar

Solah Somvar

सोलह सोमवार (Monday Fast) व्रत का महात्मय एवं विधि-विधान, व्रत कथा

भगवान शिव और मातेश्वरी पार्वती जी की विशेष कृपाओं की प्राप्ति और सभी मनोकामनाओं की आपूर्ति के लिए सोलह सोमवार व्रत पूजन किया जाता है। सोलह सोमवार व्रत करते समय तो भगवान शिव और मातेश्वरी पार्वती जी की विशेष रूप से पूजा-आराधना की जाती है। सभी सोमवारों को एक ही शिवलिंग की पूजा की जाती है। यही कारण है कि व्रत को करते समय आप घर पर ही शिवलिंग अथवा शिवजी जी की मूर्ति रख कर पूजा करें जिससे कहीं बाहर जाते समय आप उसे अपने साथ ले जा सकें। इच्छानुकूल जीवन साथी और सुयोग्य संतान की प्राप्ति के लिए तो यह व्रत किया जाता है, वैसे सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा दिलाकर सभी प्रकार के सुख और अंत में मोक्ष तक दिलाने में यह व्रत पूर्ण समर्थ है। अधिकांश व्यक्ति तो सोलह सोमवारों तक लगा कर यह व्रत करने के बाद उद्यापन कर लेते हैं, और इतने से ही उनकी अभिलाषा की आपूर्ति भी हो जाती है। जहां तक जीवन में सभी सुखों और अंत में मोक्ष प्राप्ति का प्रश्न है नौं अथवा चौदह वर्ष तक लगातार यह व्रत किया जाना चाहिए। शिवजी की पूजा में गंगाजल, बिल्वपत्र, आक और धतूरे के फूलों, भस्म, सफेद चंदन आदि का विशेष महत्व है। पूजा में तुलसी का प्रयोग न करें। शिव चालीसा का पाठ तथा रुद्राक्ष की माला का धारण, इस व्रत के पुण्य फलों में अत्यंत वृद्धि कर देता है, वैसे भोले शंकर भगवान शिव सच्चे हृदय से मात्र एक लोटा जल चढ़ाने वाले भक्त की भी सभी मनोकामनाओं की आपूर्ति कर देते हैं।

सोलह सोमवार व्रत कथा | Solah Somvar Vrat Katha

मृत्यु लोक में भ्रमण करने की इच्छा से एक समय महादेव जी माता पार्वती जी के साथ पृथ्वी पर पधारे। यहां पर भ्रमण करते-करते विदर्भ देशांतगर्त अमरावती नाम की अति रमणीक नगरी में पहुंचे। अमरावती नगरी अमरापुरी के सदृश्य सब प्रकार के सुखों से परिपूर्ण थी। उसमें वहां के महाराज का बनाया हुआ अति रमणीक शिवजी का मंदिर बना हुआ था। उसमें कैलाश पति अपनी धर्म पत्नी के साथ निवास करने लगे। एक दिन माता पार्वती अपने प्राण प्रिय को प्रसन्न देख कहने लगीं-हे महाराज! आज तो हम तुम दोनों चौसर खेलें। शिवजी जी ने प्राण प्रिय की बात को मान लिया और वे चौसर खेलने लगे। उसी समय मंदिर का पुजारी मंदिर में पूजा करने आया। माताजी ने ब्राह्मण से प्रश्न किया कि पुजारी जी बताओ, इस बाजी में दोनों में से किसकी जीत होगी। ब्राह्मण बिना विचारे ही बोल उठा कि महादेव जी की जीत होगी। थोड़ी देर में बाजी समाप्त हो गई और पार्वती जी की विजय हुई। अब तो पार्वती जी ब्राह्मण को झूठ बोलने के अपराध के कारण श्राप देने से उद्यत हो गई। तब महादेव जी पार्वती जी को बहुत समझाने लगे, परंतु उन्होंने ब्राह्मण को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया।

कुछ समय में पार्वती जी के श्राप वश पुजारी के शरीर में कोढ़ पैदा हो गया। इस कारण पुजारी अनेक प्रकार से दुःखी रहने लगा। इस तरह से कष्ट पाते-पाते जब बहुत दिन हो गए तो देवलोक की अप्सराये शिवजी की पूजा करने उसी मंदिर में पधारीं। पुजारी के कोढ़ के कष्ट को देखकर वे बड़े दयाभाव से रोगी होने का कारण पूछने लगीं। पुजारी ने निःसंकोच सब बात उनसे कह दी। तब वे अप्सरायें बोली-हे पुजारी, अब तुम अधिक दुःखी मत होना, भगवान शिव जी तुम्हारे कष्ट को दूर कर देंगे। तुम सब व्रतों में श्रेष्ठ सोलह सोमवार व्रत भक्ति के साथ करो। तब पुजारी अप्सराओं से हाथ जोड़कर विनय भाव से सोलह सोमवार व्रत की विधि पूछने लगा। अप्सराये बोलीं कि जिस दिन सोमवार हो उस दिन भक्ति के साथ व्रत करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें। आधा सेर अच्छे बिने स्वच्छ गेहूं का आटा लें। उसके तीन अंगा बनावें। घी, गुड़, दीप, नैवेद्य, पुंगीफल, बेलपत्र, जनेऊ जोड़ा, चंदन, अक्षत, पुष्पादि के द्वारा प्रदोष काल में भगवान शंकर का विधि से पूजन करें।

तत्पश्चात अंगाओं में से एक शिवजी को अर्पण करें, बाकी दो को शिवजी का प्रसाद समझकर उपस्थित जनों में बांट दें और आप भी प्रसाद पावें। इस विधि से सोलह सोमवार व्रत करें। तत्पश्चात सत्रहवें सोमवार के दिन पाव सेर पवित्र गेहूं के आटे की बाटी बनावें। उसमें घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनावें और शिवजी जी का भोग लगाकर उपस्थित भक्तों में बांट दें। पीछे आप सकुटुंब प्रसाद लेवें तो भगवान शिवजी की कृपा से उसके मनोरथ पूर्ण हो जावें। ऐसा कहकर अप्सरायें स्वर्ग को चली गई। ब्राह्मण ने यथा विधि सोलह सोमवार व्रत किया और भगवान शिव की कृपा से रोगमुक्त होकर आनंद से रहने लगा।

कुछ दिन बाद शिवजी और पार्वती फिर उस मंदिर में पधारे। पुजारी को निरोग देख पार्वती जी ने ब्राह्मण से रोग मुक्ति के कारण पूछा तो ब्राह्मण ने सोलह सोमवार व्रत करने की बात बतलाई। अब तो पार्वती जी ने ब्राह्मण से व्रत की विधि पूछ कर स्वयं यह व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके रूठे हुए पुत्र स्वामी कार्तिकेय स्वयं माता के आज्ञाकारी हुए। कार्तिकेय को अपने यह विचार परिवर्तन का रहस्य जानने की इच्छा हुई और माता से बोले- हे माता जी आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिससे मेरा मन आप की ओर आकर्षित हुआ। तब पार्वती जी ने सोलह सोमवार कथा उनको कह सुनाई। तब वह बोले कि इस व्रत को मैं भी करूंगा क्योंकि मेरा प्रिय मित्र ब्राह्मण बहुत दुःखी दिल से परदेस गया है। हमें उससे मिलने की बहुत इच्छा है। तब कार्तिकेय ने इस व्रत को किया और उनका प्रिय मित्र वापस आ गया। मित्र ने इस आकस्मिक मिलन का भेद कार्तिकेय जी से पूछा तो वे बोले-हे मित्र हमने तुम्हारे मिलन की इच्छा करके सोलह सोमवार का व्रत किया था।

ब्राह्मण पुत्र को अपने विवाह की बड़ी इच्छा थी। उसने कार्तिकेय से व्रत की विधि पूछी और यथा विधि व्रत किया। व्रत के प्रभाव से जब वह किसी कार्यवश विदेश गया तो वहां के राजा की लड़की का स्वयंवर था। राजा ने प्रण किया था कि जिस राजकुमार के गले में सब प्रकार श्रृंगारित हथिनी माला डालेगी मैं उसी के साथ अपनी प्यारी पुत्री का विवाह करूंगा। शिवजी जी की कृपा से ब्राह्मण भी स्वयंवर देखने की इच्छा से राजसभा में एक ओर बैठ गया। नियत समय पर हथिनी आई और उसने जयमाला उस ब्राह्मण के गले में डाल दी। राजा ने प्रतिज्ञा के अनुसार बड़ी धूम-धाम से कन्या का विवाह उस ब्राह्मण के साथ कर दिया और ब्राह्मण को बहुत-सा धन और सम्मान दिया।

ब्राह्मण सुंदर राज कन्या पाकर सुख से जीवन व्यतीत करने लगा। एक दिन राज कन्या ने अपने पति से प्रश्न किया-हे प्राणनाथ! आपने ऐसा कौन-सा भारी पुण्य किया जिसके प्रभाव से हथिनी ने सब राजकुमारों को छोड़कर आप का वरण किया? ब्राह्मण बोला-हे प्राणप्रिये! मैंने अपने मित्र कार्तिकेय के कथानानुसार सोलह सोमवार का व्रत किया था, उसी से प्रभाव से मुझे तुम जैसा स्वरूपवान लक्ष्मी की प्राप्ति हुई।

व्रत की महिमा को सुनकर राजकन्या को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह भी पुत्र की कामना करके व्रत करने लगी। शिवजी जी की दया से उसके गर्भ से एक अति सुंदर, सुशील, धर्मात्मा और विद्वान पुत्र उत्पन्न हुआ। दोनों उस पुत्र को पाकर अति प्रसन्न हुए। जब पुत्र समझदार हुआ तो एक दिन उसने माता से प्रश्न किया-तुमने कौन-सा तप किया है जो मेरे जैसा पुत्र तुम्हारे गर्भ से उत्पन्न हुआ। माता ने पुत्र का प्रबल मनोरथ जानकर अपने किए हुए सोलह सोमवार व्रत को विधि के सहित पुत्र के सम्मुख प्रकट किया। पुत्र ने ऐसे सरल व्रत को सब तरह के मनोरथों का पूर्ण करने वाला सुना तो वह भी इस व्रत को राज्याधिकारी पाने की इच्छा से करने लगा। वह हर सोमवार को यथा विधि व्रत करने लगा। उसी समय एक देश के वृद्ध राजा के दूतों ने आकर उसका एक राजकन्या के लिए वरण किया। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह ऐसे सर्वगुण संपन्न ब्राह्मण युवक के साथ करके बड़ा सुख प्राप्त किया।

वृद्ध राजा के देवलोक होने पर यही ब्राह्मण बालक गद्दी पर बिठाया गया, क्योंकि दिवंगत भूप के कोई पुत्र नहीं था। राज्य का अधिकारी होकर भी वह ब्राह्मण पुत्र अपने सोलह सोमवार व्रत को करता रहा। जब सत्रहवां सोमवार आया तो विप्र-पुत्र ने अपनी प्रियतमा से सब पूजन सामग्री लेकर शिवालय में चलने के लिए कहा। परंतु राजकन्या ने उसकी आज्ञा की परवाह नहीं की। दास-दासियों द्वारा सब सामग्रियां शिवालय भिजवा दीं और आप नहीं गई। जब राजा ने शिवजी का पूजन समाप्त किया तब आकाशवाणी हुई-हे राजा ! अपनी इस रानी को राजमहल से निकाल दो नहीं तो यह तुम्हारा सर्वनाश कर देगी। आकाशवाणी सुनकर राजा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और तत्काल ही दरबार में आकर अपने सभासदों से पूछने लगा-हे मंत्रियों ! मुझे आज शिवजी की आकाशवाणी हुई है कि राजा तू अपनी इस रानी को निकाल दे नहीं तो यह तेरा सर्वनाश कर देंगी। मंत्री आदि सब बड़े विस्मय और दुःख में डूब गये। वे सोचने लगे कि जिस कन्या के कारण इसे राज मिला है, राजा उसे ही निकालने का जाल रच रहा है।

राजा ने रानी को अपने यहां से निकाल दिया। रानी दुःखी हृदय से भाग्य को कोसती हुई नगर के बाहर हुई। फटे वस्त्र पहने,भूख से दुःखी धीरे-धीरे चलकर एक नगर में पहुंची। वहां एक बुढ़िया सूत कातकर बेचने को जा रही थी। वह रानी की करूणा दशा देखकर बोली-चल, तू मेरा सूत बिकवा दे। मैं वृद्धा हूं, भाव करना नहीं जानती। बुढ़िया की यह बात सुनकर रानी ने बुढ़िया के सिर से सूत की गठरी उतारकर अपने सिर पर रख ली। थोड़ी देर में ऐसी आंधी आई कि बुढ़िया का सूत पोटली सहित उड़ गया। बेचारी बुढि़या पछताती रह गई और रानी को अपने से दूर कर दिया। अब रानी एक तेली के घर गई, तो तेली के सब मटके शिवजी के प्रकोप के कारण उसी समय चटक गए। ऐसी दशा देख तेली ने रानी को अपने घर से निकाल दिया। इसी प्रकार रानी अत्यंत दुःख पाती हुई नदी के तट पर गई तो उस नदी का समस्त जल सूख गया।

उस नगर से निकालकर भूखी-प्यासी रानी एक वन में गई। वहां जाकर सरोवर में सीढ़ी उतर पानी पीने को गई। उसके हाथ से जल स्पर्श होते ही सरोवर का नीलकमल के सदृश्य जल असंख्य कीड़ों-मय गंदला हो गया। रानी ने भाग्य पर दोषारोपण करते हुए उस जल को पीकर पेड़ की शीतल छाया में विश्राम करना चाहा। वह रानी जिस पेड़ के नीचे जाती उस पेड़ के पत्ते तत्काल ही गिर जाते। अपने वन, सरोवर और जल की ऐसी दशा देखकर उस वन में गउएँ चराने वाले वाले ग्वाले बड़ी दुःखी हुए। उन्होंने ये बातें उस जंगल में स्थित मंदिर के पुजारी से कहीं। ग्वाले रानी को पकड़कर पुजारी के पास ले गए। रानी की मुख-कांति और शरीर की शोभा देखकर पुजारी जी जान गए, यह अवश्य ही विधि-गति की मारी कोई कुलीन अबला है। ऐसा सोच पुजारी ने रानी से कहा-हे पुत्री! मैं तुमको पुत्री के सम्मान रखूंगा तुम मेरे आश्रम में ही रहो।

पुजारी के ऐसे वचन सुन रानी को धीरज हुआ और आश्रम में रहने लगी परंतु आश्रम में रानी जो भोजन बनाती उसमें कीड़े, जल भर के लावे उसमें कीड़े पड़ जावें। अब तो पुजारी जी भी दुःखी हुए और रानी से बोले-हे पुत्री! तुम सब मनोरथों को पूर्ण करने वाले सोलह सोमवार व्रत को करो। उसके प्रभाव से अपने कष्टों से मुक्त हो जाओगी। पुजारी की यह बात सुनकर रानी ने सोलह सोमवार व्रत को विधिवत सम्पन्न किया। सत्रहवें सोमवार को पूजन के प्रभाव से राजा के हृदय में विचार उत्पन्न हुआ कि रानी को गये बहुत समय व्यतीत हो गया न जाने कहां-कहां भटकती होगी, ढुंढवाना चाहिए। राजा ने यह सोचकर रानी को तलाश करने चारों दिशाओं में दूत भेजे। वे तलाश करते हुए पुजारी के आश्रम में रानी को पाकर पुजारी से रानी को मांगने लगे परन्तु पुजारी ने उनसे मना कर दिया। दूत चुपचाप लौट गये और आकर महाराज के सम्मुख रानी का पता बताया।

रानी का पता पाकर राजा स्वयं पुजारी की आश्रम में गये और पुजारी से प्रार्थना करने लगे कि महाराज जो बाई जी आपके आश्रम में रहती है वह मेरी पत्नी है। शिवजी के कोप से मैंने उसको त्याग दिया था। अब इस पर से शिव-प्रकोप शांत हो गया है इसलिए मैं इसे लिवाने आया हूं, आप मेरे साथ जाने की आज्ञा दे दीजिए। पुजारी जी ने रानी को राजा के साथ जाने की आज्ञा दे दी। रानी प्रसन्न होकर राजा के साथ महल में आई, नगर में अनेक प्रकार के बधावे बजने लगे। नगर वासियों ने नगर के दरवाजे तोरण बांधे और बन्दनवारों और विविध-विधि से नगर सजाया। घर-घर में मंगल गान होने लगे। धूम-धाम से रानी ने अपनी राजधानी में प्रवेश किया।

महाराज ने अनेक तरह से ब्राह्मणों को दानादि देकर संतुष्ट किया और याचकों को धन-धान्य दिया। नगर में स्थान-स्थान पर थासदाव्रत खुलवाए, जहां भूखों को खाना मिलता था। इस प्रकार से राजा शिवजी का कृपा पात्र होकर राजधानी में रानी के साथ अनेक तरह के सुखों का भोग करते हुए आनंद से जीवन व्यतीत करने लगा। अब तो राजा और रानी प्रत्येक सोमवार को यह व्रत करने लगे। विधिवत शिव पूजन करते भू-लोक में अनेकानेक सुखों को भोगने के पश्चात वे दोनों अंत में शिवपुरी को प्राप्त हुए। ऐसे ही जो मनुष्य मनसा-वाचा-कर्मणा करके भक्ति सहित सोलह सोमवार का व्रत, पूजन इत्यादि विधिवत करता है वह इस लोक में समस्त सुखों को भोग अन्त में शिवपुरी को प्राप्त होता है। यह व्रत सब मनोरथों को पूर्ण करने वाला है।

भगवान शिव की आरती | Aarti to god shiv

ॐ जय शिव ओंकारा , प्रभु हर ॐ शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांङ्गी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा……

एकानन, चतुरानन, पंचानन राजै ।
हंसानन , गरुड़ासन, वृषवाहन साजै॥ ॐ जय शिव ओंकारा……

दो भुज चार चतुर्भज, दस भुज ते सोहै ।
तीनों रुप निरखता, त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव ओंकारा……

अक्षमाला, वनमाला, मुण्डमाला धारी ।
चंदन-मृगमद लोचन सोहै, त्रिपुरारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा……

श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव ओंकारा……

कर मध्ये कमण्डलू, चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा……

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रवणाक्षर के मध्य ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव ओंकारा……

त्रिगुण शिव जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा……

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