Way to Wealth| सभी बाधाओं से मुक्ति व धन-पुत्रादि में वृद्धि के लिए मंत्र

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मनुष्य जीवन अनेक अनिश्चितताओं / Uncertainty का संगम है। इसमें कुछ भी स्थिर नहीं है। कभी जिसकी कल्पना न की हो, वह वस्तु अनायास ही मिल जाती है, और कभी, जिसको पाने के लिए अथक मेहनत की हो, रुपया – पैसा खर्च किया हो, भागदौड़ की हो और जिसके पीछे अपने जीवन के बहुमूल्य वर्ष / Years लगा दिए हों, वह वस्तु अंत तक भी हाथ नहीं आ पाती।

इन्हीं सब परेशानियों से निजात पाने के लिए हमारे धर्म शास्त्रों में अनेक उपाय दिए हैं। उन्हीं उपायों में से कुछ चुनिंदा और आजमाए हुए उपाय/ remedies आज मैं यहां आप लोगों को बता रहा हूं जिन्हें अपनाकर जीवन में आ रही अथवा आने वाली रुकावटों को दूर अथवा कम किया जा सकता है।

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो, धनधान्यसुतान्वितः ।

मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न संशय: ।। (दुर्गा सप्तशती)

जीवन में जब भी किसी कार्य में बार-बार विघ्न आ रहा हो, अथक प्रयास करने के बाद भी काम नहीं बन रहा हो, आता हुआ पैसा रुक जाता हो, संतान को कष्ट अथवा संतान से कष्ट मिल रहा हो, तो व्यक्ति को एकांत स्थान में भगवती का चित्र स्थापित करें।

चित्र के सामने लाल रंग के आसन पर बैठकर गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं और ऊपर दिए गए मंत्र का 11000 जाप करके अनुष्ठान पूरा करें। इस मंत्र अनुष्ठान से यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा। इसके बाद एक माला का जाप नित्य करें। मां जगदंबा की कृपा से जल्दी ही धन और संतान का पूर्ण सुख मिलेगा व जीवन में आ रहे कष्ट की काट हो जाएगी। यह मंत्र दुर्गा जी का सिद्ध संपुट मंत्र है। अनेक लोगों ने इस मंत्र की शक्ति को आजमाया हुआ है।

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HOLI | होली का संदेश

होली का मतलब है, जो हो गया सो हो गया।

किसी कवि ने बड़ा ठीक कहा है।

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि ले।

holi

जीवन में हमसे जो गलतियां हुई हैं। जो कमियां हमने की हैं। जो असफलता हमने पाई है। जो धोखा हमने खाया है। जो नुकसान हमने सहा है।

उन सभी से सीख लेते हुए आगे बढ़ें। बीते हुए जीवन में आई हुई परेशानियों को याद करते हुए सिर पर हाथ रखकर ना बैठे रहें। अपने भाग्य को अथवा विपरीत परेशानियों को ना कोसते रहे यही संदेश देती है होली।

होली की शुरुआत भक्त प्रल्हाद से शुरू हुई। आपके और हमारे जीवन में क्या परेशानियां आई ?

क्या भक्त प्रल्हाद से भी बड़ी ?

आप को किसने धोखा दिया ? रिश्तेदार ने ?  मित्र ने ? या दुश्मन ने ? पिता ने तो नहीं दिया ?

पर भक्त प्रह्लाद को तो पिता ने ही धोखा दे दिया।

आपको किसने नष्ट करने की कोशिश की ? आपके दुश्मन ने ?

पर भक्त प्रह्लाद को तो उनके पिताजी ने ही नष्ट करने की कोशिश की ।

क्या आपको पहाड़ से फेंका गया ? अथवा अग्नि में जलाया गया ? क्या हाथी तले रौंद ने की कोशिश की गई ? क्या आपको भगवान का नाम लेने से उनकी प्रार्थना करने से किसी ने रोका है ?

नहीं ना ?

तो हम से तो बहुत अधिक दुख भक्त प्रह्लाद को झेलने पड़े और उन्होंने भगवान के नाम का आश्रय लेते हुए। भगवान की भक्ति का आश्रय लेते हुए। भगवान के मंत्रों का जाप जपते हुए।

इतने गहन दुख अपने ऊपर झेल लिए बल्कि वह तो भगवान की भक्ति में, भगवान के मंत्र जाप में इतने रमे हुए थे कि उन्हें दुख की अनुभूति भी नहीं हुई। तो सोचिए कितना गहन विश्वास होगा उनका भगवान के प्रति।

क्या हमारा ऐसा विश्वास है हमारे धर्म में ? हमारे शास्त्रों में ? हमारे इष्टदेव में ? हमारे गुरु में अथवा हमारे मंत्र में ?

अगर हम इस बात को तोल कर देखें तो हम कहां पाएंगे अपने आपको। यह बात किसी को बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि व्यक्ति अपने आप इस बात की अनुभूति कर सकता है।

जिसके घर में राक्षस भरे हुए हो ? जो हर समय नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हो ? इसके बावजूद भी जो अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है। उसको कोई नहीं रोक सकता और परमात्मा स्वयं उसके लिए नरसिंह अवतार धारण करके उसके जीवन में आ रहे संकटों का खात्मा करते हैं, तो होली सिर्फ इसी बात का संदेश देने के लिए आती है, कि जो हो गया, सो हो गया।

जो हो लिया, सो हो लिया। अब जीवन में आई हुई परिस्थितियों से सबक सीखते हुए हमें आगे बढ़ना चाहिए।

इसीलिए कहा भी गया है ‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले।’

क्या हाय-हाय करने से अथवा मैं दुखी, मैं दुखी करने से हमारे दुख दूर हो जाएंगे ? क्या कोई आकर हमें आगे बढ़ा देगा ? कौन हमें सहारा देगा ? याद रखिए सुखी, खुश और चमकते हुए चेहरे के पास ही कोई जाना पसंद करता है। उसको देखना पसंद करता है। उससे बात करना पसंद करता है।

दुखिया के पास कोई नहीं जाता। उससे कोई नहीं बात करता। उसकी तरफ कोई देखता भी नहीं। हम और आप मंदिर में जाते हैं। उस परमात्मा के घर में जाते हैं। वहां परमात्मा की बहुत सुंदर मूर्तियां होती हैं, तो क्या परमात्मा का चेहरा दुखी अवस्था का दिखता है ? क्या वह परेशान दिखते हैं ? नहीं ना जबकि हर एक अवतार ने बहुत संघर्ष किया है अपने जीवन में। फिर भी उनके चेहरे पर चमक होती है। खुशी होती है। आनंद होता है। प्रसन्नता होती है। मधुरता होती है।

वह हमें इसी बात का संदेश देने के लिए अवतार रूप में आते हैं, की परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो, व्यक्ति को कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हमेशा अपने आत्म बल को याद करके आगे बढ़ते रहना चाहिए। ना तो दुनिया की चकाचौंध में फसना चाहिए। वाहवाही में ठहरना नहीं और कोई निंदा चुगली करें हमारे लिए बुरा बोले तो उसमें फसना नहीं।

जो बात जुबान से निकल गई, उस बात का पीछा कौन करे।

जो तीर कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे।

क्या भगवान राम की किसी ने निंदा नहीं की ? क्या उनके लिए किसी ने अपशब्द नहीं बोले ? क्या सतयुग में नहीं बोले ? द्वापर में नहीं बोले या अब कलयुग में नहीं बोलते ? उनके सामने भी बोला और उनके बाद भी बोला, पर क्या इससे भगवान की महिमा कम हो गई। इसी तरह हमें भी उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन पथ में आ रही तमाम परिस्थितियों से लड़ते हुए आगे बढ़ना है।

यही बात हमें होली सिखाती है। भक्त प्रह्लाद के भी जीवन में अनेक विघ्न और संकट आए परंतु वह डटे रहे और आखिर में स्वयं भगवान नरसिंह ने उनको अपनी गोद में बैठाया अर्थात सभी दुखों से मुक्त कर दिया।

सावधान

आज के समय में बहुत से लोग होली नहीं खेलते, बल्कि होली के नाम पर दुश्मनी खेलते हैं। आप सभी सज्जनों को मेरी ओर से यह प्रार्थना है कि बड़े ही संयम के साथ होली खेलें। होली से 8 दिन पहले ही होलाष्टक आरंभ हो जाता है। इस समय ग्रह चाल के कारण से कुछ शक्तियां बड़ी प्रबल हो जाती हैं। इसीलिए अनेक प्रकार की सिद्धियां, यंत्र – मंत्र – तंत्र का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। इन सावधानियों में मुख्य रूप से किसी के यहां भोजन आदि नहीं करना चाहिए। यदि करते भी हैं तो नमकीन भोजन कर सकते हैं। मीठा अथवा तरल जैसे जूस अथवा दूध आदि का सेवन तो भूल कर भी ना करें।

जिस पर आपको शक है। उसके यहां ना जाए। मध्याहन, संध्या काल अथवा रात्रि काल में चौराहे आदि को न लाघें।  इस बात का पूर्ण रुप से ध्यान रखें कि किसी का दिया हुआ प्रसाद स्वीकार तो जरूर करें, पर उसका सेवन ना करें। उसे किसी एकांत और पवित्र स्थान पर किसी पेड़ आदि के नीचे रख दें। उसके बाद हाथ मुंह धो कर जल का छीटा अपने ऊपर मार लें।

हर्बल होली

अब बात आती है होली खेलने की। आजकल बहुत सारे कृत्रिम और रासायनिक रंगों से होली खेली जाती है। जो कि हमारे तन, मन, शरीर-स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। क्योंकि हानिकारक रसायन त्वचा के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश करता है और उससे अनेक प्रकार के बीमारियां होती हैं।

हर्बल होली खेलने की परंपरा आदि काल से ही है। आज मैं आपको हर्बल रंग बनाने की विधि बताता हूं।

सामग्री

100 ग्राम टेसू के फूल, 50 ग्राम गुलाब की पत्तियां और एक शीशी सर्व औषधी ले लीजिए।  यह सभी सामान आपको पंसारी की दुकान पर मात्र 50-60 रुपए में रुपए में मिल जाएगा।  एक बर्तन में 4 – 5 लिटर पानी भरकर यह तीनों सामान उसमे डाल दीजिए और पानी को गर्म कर दीजिए। पानी में एक उबाला आने के बाद ठंडा करके पानी छान लीजिए। यह बन गया आपका हर्बल रंग। जो कि आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा रहेगा। अब आप कपड़ों सहित इस रंग को अपने, परिवार के सदस्यों, मित्रों व अपने प्रिय जनों के ऊपर डाल सकते हैं। ध्यान रहे – कपड़े को भीगा रहने दें। जितनी ज्यादा देर तक हर्बल रंग से भीगा कपड़ा हमारे शरीर से लगा रहेगा उतना ज्यादा यह यह फूलों और औषधियों का रस हमारे शरीर के अंदर जाएगा। यह हर्बल रंग रोमकूपों को खोलेगा।

आप सभी को पता है कि होली के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है। जिसमें लू लगने के चांस बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं। परंतु यह हर्बल रंग आने वाली भीषण गर्मी से आपकी रक्षा करता है।

टेसू के फूल ठंडे होते हैं और साथ ही गुलाब जल भी ठंडा होता है। आने वाली गर्मियों के लिए यह आपके लिए अमृत के समान होगा। गर्मी अधिक नहीं लगेगी। लू लगना, मितली आना, उल्टी आना जैसे रोगों की शांति होगी और भी बहुत सारे लाभ आपको मिलेंगे।

भोजन

इस दिन  चिकना – चुपड़ा अथवा तला हुआ भोजन खाने का रिवाज भी सदियों पुराना है। उसका भी अपना एक कारण है, क्योंकि होली से पहले सर्दी की ऋतु जाती है। त्वचा बहुत अधिक खुश्क, रूखी – सुखी व बेजान हो जाती है।  इसीलिए तला, चिकना – चुपड़ा भोजन खाने से शरीर की खुश्की दूर होकर तरलता व चिकनापन आता है। जिससे शरीर की शुद्धि होती है और शरीर खुल जाता है। घर के बनाए हुए तेल आदि में अगर हम पकवान पकाते हैं। तला हुआ खाते हैं, तो यह हमारे शरीर के लिए अच्छा रहता है। आप भी खाएं और औरों को भी खिलाएं। यह तन और मन दोनों को प्रफुल्लित करता है।

हुल्लड, नाच गान

आपने देखा होगा उस दिन बहुत सारे लोग खूब हो-हल्ला करके हुल्लड़ और नाच गान करते हैं। ऐसा करने की भी पुरानी परंपरा है इसके पीछे भी ऋषि मुनियों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। इस दिन हम भगवान के नाम का भी हुल्लड़ और नाच गान सकते हैं। उनके नाम की पुकार कर सकते हैं। भजन गाकर नाच गान कर सकते हैं। क्योंकि जोर जोर से बोलने व नाचने से हमारे शरीर में जमा हुआ कफ जल्दी पिघलता है। इससे हमारा शरीर खुल जाता है। एकदम स्वस्थ और तरो – ताजा हो जाता है। शरीर में तेज – ओज – बल की वृद्धि होती है।

सज्जनों आप अगर देखेंगे कि हमारे जितने भी तीज – त्यौहार हैं। उन सब का कोई न कोई महत्व है। वह कोई न कोई संदेश देते हैं। त्यौहार मनाना भारतीय परंपरा के अनुसार हर एक व्यक्ति के लिए शुभ होता है। भले ही वह हमें नहीं दिखता, परंतु इसके बहुत सारे वैज्ञानिक दृष्टिकोण हैं।

भले ही हमारे ऋषि – मुनि जंगलों में रहते थे। एकांत जीवन जीते थे। परंतु उन्होंने मनुष्य मात्र के भले के लिए ऐसे त्योहारों का आयोजन किया। जिससे व्यक्ति अपने जीवन में आनंद और प्रसन्नता प्राप्त कर सके।

आप देखेंगे कि लगभग सभी तीज – त्यौहार आनंद और प्रसन्नता ही देते हैं । खुशी का माहौल बनता है। लोग एक दूसरे से मिलते हैं। जान पहचान होती है। गिले शिकवे दूर होते हैं और परस्पर प्रेम बढ़ता है। इसलिए हमें अपने सभी त्योहार पूरी श्रद्धा और आदर के साथ मनाने चाहिए। साथ ही अगर उन त्योहारों के संदेश हमें पता हो तो इसका आनंद ही अलग हो जाता है।

नमः शिवाय

आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आपके जीवन में जो भी समस्याएं हैं। जो विपरीत परिस्थितियां हैं। भगवान करे उन सभी की होली हो जाए अर्थात वह जलकर भस्म हो जाए।

जिस प्रकार प्रह्लाद भक्त प्रल्हाद धधकती हुई अग्नि से सकुशल बाहर आ गए थे इसी तरह आप भी विपरीत परिस्थितियों से सकुशल बाहर आ जाएं। ऐसी मेरी भगवान से प्रार्थना है। आप सभी लोगों का मंगल हो। आप का कल्याण हो।

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Gandmool | गंडमूल दोष क्या है ? जानें तुलसीदास जी पर इसका प्रभाव

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आप सभी ने तुलसीदास जी महाराज का नाम तो अवश्य सुना होगा। उनके द्वारा बनाए हुए सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ हर हनुमान भक्त अवश्य करता है। वही तुलसीदास जी भी गंडमूल नक्षत्र में ही पैदा हुए थे।

इस नक्षत्र के प्रभाव से ही तुलसीदास जी के जन्म के दूसरे ही दिन उनकी माता का देहांत हो गया। किसी अनिष्ट से डर से उनके पिता ने उनका त्याग कर दिया। चुनिया नाम की दासी ने उनको पाला परंतु गंडमूल नक्षत्र के दोष के कारण उसका भी देहांत हो गया।

इस प्रकार मुट्ठीभर अन्न के लिए तुलसीदास जी को दर-दर भटकना पड़ा। कोई उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आता था। कोई उन्हें आश्रय नहीं देता था। सब उनसे मुंह मोड़ लेते थे। जो कोई भी उनको आश्रय देता उसका विनाश हो जाता था।

इस गंडमूल नक्षत्र में जन्म के कारण से ही उन्हें अपने जीवन में बहुत दुख उठाना पड़ा। अनेक दिनों तक भूखा रहकर अनेक यातनाएं सहनी पड़ी।

तो सज्जनों तुलसीदास जी के गंडमूल नक्षत्र का अशुभ प्रभाव उनके परिवार के सुख पर भारी था। इसलिए उन्हें ना तो मां का और ना पिता का ना और ही किसी रिश्तेदार अथवा पत्नी और बच्चों का पूर्ण सुख मिल पाया।

गंडमूल दोष क्या है ?

आकाश मंडल में अभिजीत् सहित कुल 28 नक्षत्र होते हैं। इन्हीं में से 6 नक्षत्र गंड अर्थात दूषित होते हैं।

इन छह नक्षत्रों के नाम हैं – अश्विनी, जयेष्ठा, आश्लेषा, मघा, मूल तथा रेवती

प्रत्येक गंडमूल नक्षत्र का व्यक्ति के ऊपर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। किसी नक्षत्र में जन्म लेने पर शिक्षा पर, तो किसी में नौकरी पर और किसी में व्यापार पर बुरा प्रभाव आता है। कई बार व्यक्ति स्वयं पर भारी होता है।

कई बार माता-पिता, दादा-दादी आदि पर भारी होता है। किसी नक्षत्र में जन्म लेने पर उसके जन्म के बाद से ही घर में उपद्रव और नुकसान होने शुरू हो जाते हैं। पिता आदि की लगी लगाई नौकरी छूट जाती है और घर में अनेक संकटों का सामना करना पड़ता है। कई बार शरीर पर भी रोगों का बुरा असर आता है और अनेक उपाय या दवाई करने के बावजूद भी रोग ठीक नहीं होता।

कई बार दौरे पड़ना, हाथ-मुंह टेढ़ा हो जाना जैसे प्रभाव भी आते हैं। बुद्धि में भ्रम बने रहते हैं। दिल-दिमाग काम नहीं करता। गंडमूल दोष से ग्रसित बच्चा या तो विद्या पढ़ नहीं पाता या पढ़ी हुई विद्या उसके काम नहीं आती। ऐसे व्यक्ति को जीवन भर सफलता के लिए छटपटाना पड़ता है।

अनेक अवसरों पर भलाई के बदले बुराई मिलती है और झूठे आरोप भी लग जाते हैं। कुल मिलाकर गंडमूल दोष व्यक्ति को पूर्ण रूप से उन्नति नहीं करने देता।

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Gandmool गंडमूल दोष के बारे में यह article यदि आपको पसंद आया हो, तो इसे like और दूसरों को share करें। आप Comment box में Comment जरुर करें, ताकि यह जानकारी और लोगों तक भी पहुंच सके। इस subject से जुड़े प्रश्न आप नीचे Comment section में पूछ सकते हैं।

Manglik or Mool क्या मांगलिक दोष 28 साल की आयु के बाद समाप्त हो जाता है ?

manglik dosha puja

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आज के समय में बहुत सारे लोग अनेक प्रकार की धारणाओं से त्रस्त हैं। इन्हीं में से एक भ्रम है, 28 साल की आयु के बाद मांगलिक दोष का समाप्त होना ?

जैसे कि बहुत सारे लोग कहते हैं कि मेरा मांगलिक दोष तो 28 साल होते ही खत्म हो गया है। परंतु इसके बारे में हमारे शास्त्र क्या कहते हैं ? हमारे लिए यह देखना बहुत जरूरी है।

आप सभी को मैं यहां बताना चाहूंगा कि एक होता है।

मांगलिक दोष और दूसरा होता है गंडमूल दोष।

मांगलिक दोष कुंडली में 1,4,7,8 और 12 वें घर में मंगल के बैठने पर होता है और गंडमूल दोष 28 में से 6 दूषित नक्षत्रों जैसे अश्विनी, जयेष्ठा, आश्लेषा, मघा, मूल तथा रेवती नक्षत्र में जन्म होने पर होता है।

मांगलिक दोष बिना उपाय के अथवा बिना मांगलिक जीवन साथी के साथ विवाह किए दूर नहीं होता| परंतु गंडमूल दोष 28 साल बाद अपने आप समाप्त हो जाता है। ऐसा हमारे जातक शास्त्रों में लिखा है।

बावजूद इसके कुछ तथाकथित लोगों ने मांगलिक और गंडमूल दोष को आपस में मिला दिया है। इसी भ्रांति के कारण बहुत सारे लोगों को भूल हो जाती है कि 28 साल पूरे होने पर उनका भी मांगलिक दोष समाप्त हो गया है। जो जीवन में एक बड़ी भूल के रूप में सामने आता है और इंसान को इस गलती की सजा भुगतनी पड़ती है।

उनके गलत निर्णय के कारण गलत मिलान हो जाता है और आने वाला वैवाहिक जीवन अनेक प्रकार की परेशानियों को साथ लेकर आता है। ‘ तो सज्जनों इस प्रकार आपके मन से भी यह भ्रम निकल गया होगा कि 28 साल की आयु पूरी होने पर मांगलिक दोष अपने आप खत्म हो जाता है।’

यदि आप भी ऐसी ही किसी भ्रांति के शिकार हैं तो चिंता न करें आप हमारे संस्थान से मांगलिक दोष की रिपोर्ट मंगवा सकते हैं।

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Manglik / मांगलिक के बारे में यह article यदि आपको पसंद आया हो, तो इसे like और दूसरों को share करें। आप Comment box में Comment जरुर करें, ताकि यह जानकारी और लोगों तक भी पहुंच सके। इस subject से जुड़े प्रश्न आप नीचे Comment section में पूछ सकते हैं।

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