स्कन्द षष्ठी व्रत विधि | Skand shishathi Vrat Katha, Puja Vidhi

Skand Shashthi

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स्कन्द षष्ठी व्रत विधि | Skand shishathi Vrat Katha, Puja Vidhi

षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द (Skand) को समर्पित हैं। शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन श्रद्धालु लोग उपवास करते हैं। षष्ठी तिथि जिस दिन पञ्चमी तिथि के साथ मिल जाती है उस दिन स्कन्द षष्ठी (Skand Shishathi) के व्रत को करने के लिए प्राथमिकता दी गयी है। इसीलिए स्कन्द षष्ठी (Skand Shishathi) का व्रत पञ्चमी तिथि के दिन भी हो सकता है।

स्कन्द षष्ठी (Skand Shishathi) को कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

स्कन्द देव (Skand Dev)भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र और भगवान गणेश के छोटे भाई हैं। भगवान स्कन्द को मुरुगन, कार्तिकेय और सुब्रहमन्य के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान कार्तिकेय को मुरुगन के नाम से जाना जाता है क्योंकि इनका वाहन मोर है।

मां दुर्गा के 5वें स्वरूप स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है। नवरात्रि के 5 वें दिन स्कंदमाता (Skand Mata) का पूजन करने का विधान है। इसके अलावा इस षष्ठी को चम्पा षष्ठी भी कहते हैं, क्योंकि भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम भी पुकारते हैं और उनका प्रिय पुष्प चम्पा है। भगवान स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं। भगवान कार्तिकेय के पराक्रम को देखकर उन्हें देवताओं का सेनापति बना दिया गया। इस पर्व पर भगवान मुरुगन की आराधना से मान-सम्मान, शौर्य-यश और विजय की प्राप्ति होती है। इस शुभ अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का भी विधान है। 

स्कंद षष्ठी की पहली कथा | Skand Shishathi Katha

जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी ‘सती’ कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है। देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा।

इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर ‘पार्वती’ के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।

स्कंद षष्ठी की दूसरी कथा | Story of Skand Shishathi Vrat

स्कंद पुराण के अनुसार, सुरपद्मा, सिंहमुख और तारकासुर के नेतृत्व में राक्षसों ने देवताओं को हराया और पृथ्वी पर कब्जा कर लिया। उन्हें देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार करना अच्छा लगता था। उन्होंने वह सब कुछ नष्ट कर दिया जो देवों और मनुष्यों का था। सुरपद्मा को वरदान मिला था कि केवल भगवान शिव का एक पुत्र ही उसे मार सकता है। दानव का मानना ​​​​था कि देवी सती की मृत्यु के बाद गहरे ध्यान में चले गए भगवान शिव कभी भी सांसारिक जीवन में वापस नहीं आएंगे। देवों ने अपनी दुर्दशा भगवान शिव को बताई, लेकिन वे गहरे ध्यान में थे। भगवान ब्रह्मा ने देवताओं को कामदेव की मदद लेने की सलाह दी। उन्होंने भगवान शिव में यौन इच्छा को उकसाया। लेकिन क्रोधित भगवान शिव ने उसे जलाकर भस्म कर दिया।

भगवान शिव से निकला वीर्य छह भागों में बंट गया और गंगा में जमा हो गया। देवी गंगा ने छह भागों को एक जंगल में छिपा दिया। इसने छह बच्चों का रूप धारण किया। छह कार्तिकाई सितारों द्वारा बच्चों की देखभाल की गई। बाद में, देवी पार्वती ने छह बच्चों को एक में मिला दिया।

स्कंद षष्ठी पूजा विधि | Skand Shishathi Puja Vidhi

इस तिथि पर विधिपूर्वक व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और रोग, दुख, दरिद्रता से भी मुक्ति मिलती है। विधिपूर्वक व्रत करने के लिए सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि के बाद नए वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात् भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा की स्थापना करें और दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजन करें। पूजा सामग्री में घी और दही को अवश्य शामिल करें। इसके बाद भगवान मुरुगन की आराधना के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप करें।

“ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात”।।
या
“ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते” ।।

व्रती को मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन का परित्याग कर देना चाहिए। ब्राह्मी का रस और घी का सेवन कर सकते हैं और रात्रि को जमीन पर सोना चाहिए।

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