श्रावण माह माहात्म्य अट्ठाईसवाँ अध्याय | Chapter -28 Sawan Maas ki Katha

Shravan Maas 28 Adhyay

श्रावण माह माहात्म्य अट्ठाईसवाँ अध्याय

Chapter -28

 

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अगस्त्य जी को अर्घ्य प्रदान की विधि

ईश्वर बोले – हे ब्रह्मपुत्र ! अब मैं अगस्त्य जी को अर्घ्य प्रदान करने की उत्तम विधि का वर्णन करूंगा, जिसे करने से मनुष्य सभी वांछित फल प्राप्त कर लेता है। अगस्त्य के उदय के पूर्व काल का नियम जानना चाहिए। जब समरात्रि अर्थात आठ या दस रात्रि उदय होने में शेष रहे तब सात रात्रि पहले से उदयकाल तक प्रतिदिन अर्घ्य प्रदान करें, उसकी विधि मैं आपसे कहता हूँ। जब से अर्घ्य देना प्रारम्भ करे उस दिन प्रातःकाल श्वेत तिलों से स्नान करके गृहाश्रमी मनुष्य श्वेत माला तथा श्वेत वस्त्र धारण करे और सुवर्ण आदि से निर्मित कुम्भ स्थापित करें, जो छिद्र रहित, पंचरत्न से युक्त, घृतपात्र से समन्वित, अनेक प्रकार के मोदक आदि भक्ष्य पदार्थ तथा फलों से संयुक्त, माला-वस्त्र से विभूषित तथा ऊपर स्थित ताम्र के पूर्णपात्र से सुशोभित हो।

उस पात्र के ऊपर अगस्त्य जी की सुवर्ण-प्रतिमा स्थापित करें जो अंगुष्ठमात्र प्रमाण वाले, पुरुषाकर, चार भुजाओं से युक्त, स्थूल तथा दीर्घ भुजदंडों से सुशोभित, दक्ष्णि दिशा की ओर मुख किए हुए, सुन्दर, शांतभाव संपन्न, जटामंडलधारी, कमण्डलु धारण किए हुए, अनेक शिष्यों से आवृत, हाथों में कुश तथा अक्षत लिए हुए हों, ऐसे लोपामुद्रा सहित मुनि अगस्त्य का आवाहन करें और गंध, पुष्प आदि सोलह उपचारों तथा अनेक प्रकार के नैवेद्यों से उनका पूजन करें। इसके बाद भक्तियुक्त चित्त से उन्हें दही तथा भात की बलि प्रदान करें। इसके बाद अर्घ्य दें जिसकी विधि इस प्रकार है –

सुवर्ण, चाँदी, ताम्र अथवा बाँस के पात्र में नारंगी, खजूर, नारिकेल, कुष्मांड, करेला, केला, अनार, बैंगन, बिजौरा नीबू, अखरोट, पिस्तक, नीलकमल, पद्म, कुश, दूर्वांकुर, अन्य प्रकार के भी उपलब्ध फल तथा पुष्प, नानाविध भक्ष्य पदार्थ, सप्तधान्य, सप्त अंकुर, पंचपल्लव और वस्त्र – इन पदार्थों को रखकर पात्र की विधिवत पूजा करें। पुनः घुटने के बल, सिर झुकाकर उस पात्र को मस्तक से लगाकर नीचे की ओर मुख करके अगस्त्य मुनि का इस प्रकार से ध्यान करें और श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सावधान होकर अर्घ्य प्रदान करें – काशपुष्प के समान स्वरुप वाले, अग्नि तथा वायु से प्रादुर्भूत तथा मित्रावरुण के पुत्र हे अगस्त्य ! आपको नमस्कार है। विंध्य की वृद्धि को रोक देने वाले, मेघ के जल का विष हरने वाले, रत्नों के स्वामी तथा लंका में वास करने वाले हे देवर्षे ! आपको नमस्कार है।

जिन्होंने आतापी तथा वातापी का भक्षण किया, लोपामुद्रा के पति, महाबली तथा श्रीमान जो ये अगस्त्य जी हैं, उन्हें बार-बार नमस्कार है। जिनके उदित होने से समस्त पाप, मानसिक तथा शारीरिक रोग और तीनों प्रकार के ताप – आधिदैविक, आधिभौतिक, आध्यात्मिक – नष्ट हो जाते हैं, उन्हें बार-बार नित्य नमस्कार है। जिन्होंने जल-जंतुओं से परिपूर्ण समुद्र को पूर्वकाल में सूखा दिया था, उन पुत्रसहित, शिष्यसहित तथा भार्या सहित अगस्त्य जी को नमस्कार है. बुद्धिमान द्विजाति “अगस्त्यस्य नद्भयः” (ऋक. १०|६०|६) – इस वेदमंत्र से तथा शूद्र पौराणिक मन्त्र से अगस्त्य जी को अर्घ्य देकर उन्हें प्रणाम करें. इसके बाद लोपामुद्रा को अर्घ्य दें। हे राजपुत्रि ! हे महाभागे ! हे ऋषिपत्नि ! हे सुमुखि ! हे लोपामुद्रे ! आपको नमस्कार है, मेरे अर्घ्य को स्वीकार कीजिए।

इसके बाद अर्घ्य मन्त्र से घृत की आठ हजार अथवा एक सौ आठ आहुति प्रदान करें। इस प्रकार करके अगस्त्य जी को प्रणाम करने के बाद यह कहकर विसर्जन करे – बुद्धि से परे चरित्र वाले हे अगस्त्य ! मैंने सम्यक रूप से आपका पूजन किया है, अतः मेरी इहलौकिक तथा पारलौकिक कार्यसिद्धि को करके आप प्रस्थान कीजिए। इस प्रकार उन अगस्त्य जी को विसर्जित करके वेद-वेदांग के विद्वान्, निर्धन तथा गृहस्थ ब्राह्मण को समस्त पदार्थ अर्पण कर दे और मुख से यह कहें – “सत्कार किए गए अगस्त्य जी ब्राह्मण रूप से स्वीकार करें। अगस्त्य ही ग्रहण करते हैं, अगस्त्य ही देते हैं और दोनों का उद्धार करने वाले भी अगस्त्य ही हैं, अगस्त्य जी को बार-बार नमस्कार है।”

दोनों मन्त्रों का उच्चारण करके दान करें, ब्राह्मण आदि पूर्व विहित वैदिक मन्त्र का उच्चारण करें और शूद्र पौराणिक मन्त्र का उच्चारण करे। उसके बाद सुवर्णमयी सींगवाली, दूध देने वाली, बछड़े सहित, चाँदी के खुरवाली, ताम्र के पीठवाली, अत्यंत सुन्दर, काँसे की दोहनी से युक्त और घंटा तथा वस्त्र से विभूषित श्वेत वर्ण की धेनु प्रदान करें। अगस्त्य मुनि के उदय के सात दिन पूर्व से इस प्रकार अर्घ्य देकर ही सातवें दिन दक्षिणा सहित गौ प्रदान करें।

इस प्रकार इस व्रत को सात वर्ष तक करके निष्काम व्यक्ति पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता और सकाम व्यक्ति चक्रवर्ती राजा होता है तथा रूप व आरोग्य से युक्त रहता है, ब्राह्मण चार वेदों तथा सभी शास्त्रों का विद्वान् हो जाता है क्षत्रिय समुद्रपर्यन्त समस्त पृथ्वी को प्राप्त कर लेता है, वैश्य धान्यसंपदा और गोधन प्राप्त कर लेता है। शूद्रों को अत्यधिक धन, आरोग्य तथा सत्य की प्राप्ति होती है, स्त्रियों को पुत्र उत्पन्न होते हैं, उनका सौभाग्य बढ़ता है तथा घर समृद्धिमय हो जाता है। हे ब्रह्मपुत्र ! विधवाओं का महापुण्य बढ़ता है, कन्या रूपगुणसंपन्न पति प्राप्त करती है और दुःखी मनुष्य रोग से मुक्त हो जाता है।

जिन देशों में मनुष्यों के द्वारा अगस्त्य की पूजा की जाती है, उन देशों में मेघ लोगों की इच्छा के अनुसार वृष्टि करता है, वहाँ प्राकृतिक आपदाएं निर्मूल हो जाती हैं और व्याधियां नष्ट हो जाती हैं। जो कोई भी अगस्त्य जी के इस अर्घ्यदान का पाठ करते हैं अथवा इसे सुनते हैं, वे सर्वश्रेष्ठ मनुष्य पापों से छूट जाते हैं और पृथ्वीलोक में दीर्घकाल तक निवास करके हंसयुक्त विमान से स्वर्ग जाते हैं। जो लोग जीवनपर्यन्त निष्काम भाव से इसे करते हैं वे मुक्ति के भागी होते हैं।

॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अंतर्गत ईश्वरसनत्कुमार संवाद में श्रावण मास (Sawan Maas) माहात्म्य में “अगस्त्य अर्घ्यविधि” नामक अट्ठाईसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥

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