उपद्रवी स्थान को शुद्ध करने के लिए करें दुर्गा सप्तशती का यह सिद्ध उपाय

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ओम नमः शिवाय,

सज्जनों

बहुत से व्यक्तियों के कुछ इस प्रकार से प्रश्न होते हैं। कि हमारा चलता चलता काम अचानक से रुक गया है और पड़ोस की दुकान वालों का काम अच्छा चलना शुरू हो गया है, डरावने सपने आते हैं, बिना कारण से भय लगता है, कई बार घर में किसी छाया अथवा आकृति का आभास होता है, प्रतिदिन घर में कलह क्लेश होता है, रोजी-रोटी बंद हो गई है, कमाई में बरकत नहीं हो रही है, घर परिवार में कोई खुशियां नहीं है और ना ही कोई खुशी के मौके जीवन में आते हैं, अच्छी डिग्री व योग्यता होने के बावजूद जीवन में सफलता नहीं मिल रही हैं। कई सारे उपाय करने के बावजूद भी कुछ लाभ नहीं मिल रहा है आदि – आदि …….

सज्जनों कई बार कुछ ईर्ष्या व द्वेष से ग्रसित व्यक्ति किसी तांत्रिक अथवा अशुभ शक्तियों का संचालन करने वाले व्यक्तियों के पास जाकर जिससे वह ईर्ष्या – द्वेष और नफरत करते हैं। उसके काम धंधे को बंधवा देते हैं या उनके घर परिवार में तंत्र प्रयोग के द्वारा अशुभ शक्तियां भेजकर पारिवारिक सुख – समृद्धि, स्वास्थ्य आदि को खराब कर देते हैं। यदि किसी व्यक्ति के संग इसी प्रकार की गतिविधि हो रखी है और उस व्यक्ति को लगता है कि अवश्य ही मेरे यहां इस प्रकार की परेशानियां चल रही हैं तो आज हमारे द्वारा श्री दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) के 12 वें अध्याय के 19 में मंत्र की सिद्धि के बारे में बताया जाएगा। इस मंत्र के प्रयोग से मां भगवती जगदंबा की कृपा से किसी भी प्रकार की तंत्र क्रिया, बंधन क्रिया व अशुभ शक्तियों का समूल विनाश होता है। इस मंत्र का विधिवत अनुष्ठान करने से रोजी-रोटी व किसी भी प्रकार का बंधन खुलता है। ऊपरी अथवा अंदरूनी हवाओं, भूत – प्रेत, ब्लैक मैजिक व अशुभ तंत्र बाधा का समूल नाश होता है।

मंत्र – ॐ ह्रीं दुर्वत्तानामशेषाणां बलहानिकरं परम

रक्षो भूतपिशाचानां पठनादेव नाशनम् ह्रीं ॐ।।

इस मंत्र का एक दिन में 11000 जाप करके सिद्ध कर लें अथवा नवरात्रि या गुप्त नवरात्रि में प्रतिदिन जाप करके मंत्र को सिद्ध कर लें। तत्पश्चात इस मंत्र का दशांश हवन, हवन का दशांश मार्जन व मार्जन का दशांश तर्पण करें। इसके बाद 8 खेजड़ी (शमी) की लकड़ी, 8 खैर की लकड़ी, 8 लोहे की कील, 8 पीली कौड़ी, 8 हल्दी की गांठ, 8 डोडे वाली लौंग लेकर ऊपर बताए मंत्र से अभिमंत्रित करके उपद्रवी स्थान की 8 दिशाओं में गाड़ दें।

ध्यान रहे की यह पूरी प्रक्रिया मंत्र बोलते हुए अग्नि कोण से दक्षिण दिशा की तरफ से शुरू करनी है तथा एक हाथ का गड्ढा खोदकर दबानी चाहिए। कौड़ी चित्त (कट वाला हिस्सा ऊपर) करके रखनी चाहिए। इस विधिपूर्वक भगवती के मंत्र का प्रयोग करने से वह स्थान सभी प्रकार की बाधाओं से रहित होकर श्रेष्ठ फलदाई हो जाता है। भगवती की कृपा बनाए रखने के लिए प्रत्येक नवरात्रि में सप्तशती का पाठ अथवा सप्तशती के मंत्रों से अपने घर पर यज्ञ करें।

नोट  यह प्रयोग अनेक बार करके अनुभूत किया गया है।

क्या शत्रु ने किया है – मारण, वशीकरण, उच्चाटन प्रयोग ? दुर्गा सप्तशती से करें निवारण

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शास्त्रों में छह प्रकार के आभिचारिक कर्म बताए गए हैं। मतलब अशुभ कार्य जिनके द्वारा दूसरों को दुख, पीड़ा, परेशानी दी जा सकती है। यह 6 प्रकार के आभिचारिक कर्म क्रमशः मारण, मोहन, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन कहलाए जाते हैं।

मारण (Maran) प्रयोग में व्यक्ति के ऊपर मारक मंत्रों के द्वारा प्रयोग किए जाते हैं। जिससे कि उस पर मृत्यु समान कष्ट आता है अथवा कई बार उसकी मृत्यु भी हो जाती है।

मोहन (Mohan) कर्म में उसको मोह लिया जाता है तथा वशीकरण (Vashikaran) प्रयोग करके उसको अपने वश में कर लिया जाता है।

स्तंभन (Stambhan) प्रयोग में कोई भी चलता हुआ कार्य, चलती हुई गाड़ी अथवा पढ़ाई में अच्छे चल रहे बालक पर यदि स्तंभन प्रयोग कर दिया जाए तो सब चीजें स्तंभित हो जाती हैं अर्थात रुक जाती हैं। कई बार किसी की कोख पर भी स्तंभन कर दिया जाता है। इसलिए उस स्त्री को बालक नहीं हो पाते और कई बार चलती हुई दुकान अथवा काम धंधा भी बिल्कुल ठप हो जाता है। इसका मुख्य कारण स्तंभन प्रयोग ही होता है।

विद्वेषण (Vidveshan) प्रयोग में जिन व्यक्तियों के बीच आपस में प्यार – प्रेम, स्नेह होता है। उनके ऊपर विद्वेषण प्रयोग कर दिया जाता है। जिस कारण से उनमें आपस में बैर, दुश्मनी, ईर्ष्या, लड़ाई झगड़े होने आरंभ हो जाते हैं।

उच्चाटन (Uchhatan) प्रयोग में जिस व्यक्ति के ऊपर उच्चाटन प्रयोग होता है। उस व्यक्ति का मन, बुद्धि, अंतरात्मा उच्चाट हो जाती है अर्थात वह पागलों की नाईं इधर-उधर भटकता है। उसका चित्त कहीं भी टिकता नहीं है। इस प्रकार से यह छह आभिचारिक कर्म है और यह प्रयोग जिस किसी व्यक्ति के ऊपर होते हैं तो ऊपर बताए गए विधान के अनुसार उस पर प्रभाव आता है।

शास्त्रों में सातवा कर्म भी बताया गया है। जिसे शांति कहा जाता है। जिस किसी व्यक्ति के ऊपर यदि उसके शत्रु ने यह 6 प्रकार के अभिचार कर्म कर दिए हैं तो वह दुर्गा जी की आराधना करके इन सभी की शांति कर सकता है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा | Significance of Siddha Kunjika Stotram

जीवन में सफलता की कुंजी हैसिद्ध कुंजिका नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है। भगवती आपकी रक्षा करेंगी।

भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक की अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि | Sidha Kunjika Stotram Pathh Vidhi

कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां हम इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन कर रहे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाए। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सामान्य पूजन करें। तेल या घी का दीपक लगाए और देवी को हलवे या मिष्ठान्न् का नैवेद्य लगाएं। 

इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, एक रुपए का सिक्का रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयमनियम से करने का संकल्प लें। यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें। यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें।

Precautions | सावधानी (ध्यान रखने योग्य)

देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है। साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरूरी है। बुरे कर्म, बुरी वाणी का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इससे विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।

कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए। इसका उल्टा प्रभाव पाठ करने वाले पर ही हो सकता है।

साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन करें। मैथुन के बारे में विचार भी मन में लाएं।

 

।। श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रम् ।।

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥

 

।। अथ मन्त्रः ।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सःज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥

॥ इति मन्त्रः॥

 

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥२॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥३॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि ॥४॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥५॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥६॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥७॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥८॥

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥

यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्॥

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Maa Durga 32 Naam Mantra | Shtru Vinashak Mantra | दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला

Maa Durga 32 naam

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Maa Durga Battis Naamavali | श्री दुर्गा बत्तीस नामवली

देवताओ को परास्त करने के बाद असुरो का अत्याचार सम्पूर्ण संसार में होने लगा । तब देवताओ की स्तुति अराधना के  पश्चात मां भगवती ने अपनी शक्तियो के साथ मिलकर सभी असुरो का नाश किया । दानव महिषासुर व दुर्गम जैसे महादानवो का वध करने वाली माता से जब देवो ने ऐसे किसी अमोघ उपाय की याचना की, जो सरल हो और कठिन से कठिन विपत्ति से छुड़ाने वाला हो। जिसका स्मरण करने मात्र से सब कष्टो से निवृति हो जाये ।

देवताओं ने कहा, ” हे देवी! यदि वह उपाय गोपनीय हो तब भी कृपा कर हमें कहें।”

तब मां भगवती ने अपने ही बत्तीस नामों की माला के एक अद्भुत गोपनीय रहस्यमय चमत्कारी जप का उपदेश दिया

मां दुर्गा जी ने कहा, ”जो मनुष्य मुझ दुर्गा की इस नाम माला का पाठ करता है, वह निःसन्देह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जाएगा।”

‘कोई शत्रुओं से पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बंधन में पड़ा हो, इन बत्तीस नामों के पाठ मात्र से संकट से छुटकारा पा जाता है। इसमें तनिक भी संदेह के लिए स्थान नहीं है। यदि राजा क्रोध में भरकर वध के लिये अथवा और किसी कठोर दण्ड के लिये आज्ञा दे दे या युद्ध में शत्रुओं द्वारा मनुष्य घिर जाय अथवा वन में व्याघ्र आदि हिंसक जंतुओं के चंगुल में फँस जाय, तो इन बत्तीस नामों का एक सौ आठ बार पाठ मात्र करने से वह संपूर्ण भयों से मुक्त हो जाता है। विपत्ति के समय इसके समान भय नाशक उपाय दूसरा नहीं है। देवगण !   इस नाम माला का पाठ करने वाले मनुष्यों की कभी कोई हानि नहीं होती। अभक्त, नास्तिक और शठ मनुष्य को इसका उपदेश नहीं देना चाहिए। जो भारी विपत्ति में पड़ने पर भी इस नामावली का हजार, दस हजार अथवा लाख बार पाठ स्वयं करता या ब्राह्मणों से कराता है, वह सब प्रकार की आपत्तियों से मुक्त हो जाता है। सिद्ध अग्नि में मधु मिश्रित सफेद तिलों से इन नामों द्वारा लाख बार हवन करे तो मनुष्य सब विपत्तियों से छूट जाता है। इस नाम माला का पुरश्चरण तीस हजार का है। पुरश्चरण पूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा संपूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता है। मेरी सुंदर मिट्टी की अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आठों भुजाओं में क्रमशः गदा, खड्ग, त्रिशूल, बाण, धनुष, कमल, खेट (ढाल) और मुद्गर धारण करावे। मुर्ति के मस्तक में चंद्रमा का चिह्न हो, उसके तीन नेत्र हों, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हो, वह सिंह के कंधे पर सवार हो और शूल से महिषासुर का वध कर रही हो, इस प्रकार की प्रतिमा बनाकर नाना प्रकार की सामग्रियों से भक्ति पूर्वक मेरा पूजन करे। मेरे उत्तम नामों से लाल कनेर के फूल चढ़ाते हुए सौ बार पूजा करे और मंत्र-जाप करते हुए पूए से हवन करें। भाँति-भाँति के उत्तम पदार्थ भोग लगावे। इस प्रकार करने से मनुष्य और असाध्य कार्य को भी सिद्ध कर लेता है। जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता है, वह भी विपत्ति में नहीं पड़ता।’

देवताओं से ऐसा कहकर जगदंबा वहीं अंतर्धान हो गयीं। दुर्गा जी के इस उपाख्यान को जो सुनते हैं, उन पर कोई विपत्ति नहीं आती।

 

।। अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला ।।

दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।

दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी॥

दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा।

दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला॥

दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।

दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता॥

दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी।

दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी॥

दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी॥

दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी।

नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः॥

पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः॥

 

मां दुर्गा के 32 नाम| Maa Durga 32 Naam in Hindi

1 दुर्गा, 2 दुर्गार्तिशमनी, 3  दुर्गापद्विनिवारिणी, 4 दुर्ग मच्छेदिनी, 5 दुर्गसाधिनी, 6 दुर्गनाशिनी,  7 दुर्गतोद्धारिणी, 8 दुर्गनिहन्त्री, 9 दुर्गमापहा, 10 दुर्गमज्ञानदा, 11 दुर्गदैत्यलोकदवानला,  12 दुर्गमा, 13 दुर्गमालोका, 14 दुर्गमात्मस्वरूपिणी, 15 दुर्गमार्गप्रदा,  16 दुर्गमविद्या, 17 दुर्गमाश्रिता, 18 दुर्गमज्ञानसंस्थाना, 19 दुर्गमध्यानभासिनी, 20 दुर्गमोहा, 21 दुर्गमगा, 22 दुर्गमार्थस्वरूपिणी, 23 दुर्गमासुरसंहन्त्री, 24 दुर्गमायुधधारिणी, 25 दुर्गमाङ्गी, 26 दुर्गमता, 27 दुर्गम्या, 28 दुर्गमेश्वरी, 29 दुर्गभीमा, 30 दुर्गभामा, 31 दुर्गभा, 32 दुर्गदारिणी

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दुर्गा श्राप विमोचन कैसे करें ? Durga Shaap Vimochan

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।। श्री दुर्गा शाप विमोचन ।।

विशेष सूचना:-  ब्रह्मा, वसिष्ठ, विश्वामित्र और शुक्राचार्य आदि चार ऋषियों के द्वारा गायत्री-मन्त्र शापित है। अतः गायत्री मंत्र का जाप करने से पहले शाप विमोचन जरूर करना चाहिए। तभी गायत्री मंत्र जाप करने का पूरा पूण्य फल प्राप्त होता है। एक बार शाप विमोचन करने के बाद जब तक आपका जाप अनवरत रूप से चलता रहता है,तब तक प्रत्येक दिन श्राप विमोचन की कोई जरूरत नहीं है।

केवल जब किसी कारणवश जैसे घर-परिवार में सूतक अथवा पातक लगने अथवा किसी दिन आपने जाप नहीं किया और कुछ दिनों के बाद दोबारा जाप आरम्भ करेंगे केवल तब दोबारा शाप-निवृत्ति के लिये शाप-विमोचन करना चाहिए।

इसी प्रकार दुर्गा जी के भी सभी मंत्र शापित है। उन्हें भी तीन ऋषियों के द्वारा श्राप दिया गया है। अतः बिना श्राप विमोचन किए व्यक्ति को दुर्गा और गायत्री पाठ का पूरा पूण्य फल नहीं मिल पाता। अतः इन दोनों देवियों के मंत्रो का जाप, पाठ अथवा अनुष्ठान करने से पहले सभी साधकों को श्राप विमोचन अवश्य कर लेना चाहिए।

ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शाप विमोचन मन्त्रस्य वसिष्ठ
नारद संवाद साम वेदा अधिपति ब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्य कारिणी श्रीदुर्गा देवता
चरित्र त्रयं बीजं ह्रीं शक्तिः त्रिगुणात्म् स्वरूप चण्डिका शाप विमुक्तौ मम
संकल्पित कार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

(यह विनियोग बोलकर आचमनी में पानी भरकर धरती पर गिराएं)

ॐ ( ह्रीं ) रीं रेतः स्वरूपिण्यै मधुकैटभ मर्दिन्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। १ ।।

ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिण्यै महिषासुर सैन्य नाशिन्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। २ ।।

ॐ रं रक्त स्वरूपिण्यै महिषासुर मर्दिन्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। ३ ।।

ॐ क्षुं क्षुधा स्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। ४ ।।

ॐ छां छाया स्वरूपिण्यै दूत संवादिन्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। ५ ।।

ॐ शं शक्ति स्वरूपिण्यै ध्रूमलोचन घातिन्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। ६ ।।

ॐ तृं तृषा स्वरूपिण्यै चण्ड-मुण्ड वध कारिण्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। ७ ।।

ॐ क्षां क्षान्ति स्वरूपिण्यै रक्तबीज वध कारिण्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। ८ ।।

ॐ जां जाति स्वरूपिण्यै निशुम्भ वध कारिण्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। ९ ।।

ॐ लं लज्जा स्वरूपिण्यै शुम्भ वध कारिण्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। १0 ।।

ॐ शां शांति स्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। ११ ।।

ॐ श्रं श्रद्धा स्वरूपिण्यै सकल फलदात्र्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। १२ ।।

ॐ कां कान्ति स्वरूपिण्यै राजवर प्रदायै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। १३ ।।

ॐ मां मातृ स्वरूपिण्यै अनर्गल महिम सहितायै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। १४।।

ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सवैश्वर्य कारिण्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। १५ ।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्य कवच स्वरूपिण्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। १६ ।।

ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेद स्वरूपिण्यै ब्रह्मा वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ।। १७ ।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादिव्यै नमः ।। १८ ।।

इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर ।
चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः ।। १९ ।।

एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः ।
आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः ।। २0 ।।

नोट :- जो दुर्गा साधक एक दिन में पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वह नवरात्रों में अथवा प्रतिदिन पहले दिन 1, दूसरे दिन 2, तीसरे दिन 1, चौथे दिन 4, पांचवें दिन 2, छठे दिन 1 और सातवें दिन 2 अध्यायों को क्रम से सात दिनों में पाठ पूरा करने का आदेश दिया गया है।

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दुश्मन विनाश के लिए मंत्र | Destroy Enemy Mantra | Durga mantra

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एक समय की बात है ब्रह्मा आदि देवताओं ने पुष्पों तथा अनेक उपचारों से महेश्वरी भगवती दुर्गा जी का पूजन किया। इससे प्रसन्न होकर दुष्टों का नाश करने वाली दुर्गा जी ने कहा –

‘हे ! देवताओं,  मैं तुम्हारे पूजन से संतुष्ट हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो, मांग लो,  मैं तुम्हें दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करूंगी।

दुर्गा जी का यह वचन सुनकर देवता बोले हे ! देवी, हमारे जितने भी शत्रु थे, उन सबको आप ने मार डाला। यह जो एक से एक महान बलशाली जैसे महिसासुर, चंड – मुंड, धूम्र विलोचन, रक्तबीज, शुंभ – निशुंभ आदि सब राक्षसों को आपने मार डाला, इससे संपूर्ण जगत निर्भय हो गया है। सबके भीतर का डर खत्म हो गया है।

आपकी ही कृपा से हमें दोबारा अपने – अपने पद की प्राप्ति हुई है। आप भक्तों के लिए कल्प वृक्ष के समान हैं। हे ! माता’ हम आप की शरण में आए हैं, अतः अब हमारे मन में कुछ भी पाने की इच्छा बाकी नहीं है।

आपने हमें बिना मांगे ही सब कुछ दे दिया है। हमारे मन में इस समूचे जगत की रक्षा के लिए एक प्रश्न हैं। वह प्रश्न हम आप से पूछना चाहते हैं।

हे ! भद्रकाली’ कौन सा ऐसा उपाय है ? जिससे जल्दी प्रसन्न होकर आप संकट में पड़े हुए प्राणी की तुरंत रक्षा करती हैं। हे ! देवेश्वरी’ यह बात यदि सर्वथा गोपनीय हो तो भी आप हम पर कृपा करके हमें अवश्य बताएं।

देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर दयामयी दुर्गा देवी ने कहा-

‘हे ! देवगण’ सुनो जो रहस्य मैं आप लोगों को बता रही हूं, यह रहस्य संपूर्ण जगत में अत्यंत दुर्लभ और गोपनीय है। जो व्यक्ति संकट में पड़ा होने पर, मेरे बत्तीस नामों की माला का जाप करता है, उसके ऊपर आई हुई आपत्ति और विपत्ति का तुरंत नाश हो जाता है।

हे ! देवताओं, तीनों लोकों में इन बत्तीस नामों की स्तुति के समान कोई दूसरी स्तुति नहीं है। यह स्तुति बहुत ही रहस्यमयी है, फिर भी तुम पर कृपा करते हुए मैं इसे बतलाती हूं, ध्यान से सुनो –

1   दुर्गा                                             2  दुर्गार्तिशमनी                                            3  दुर्गापद्विनिवारिणी

4   दुर्गमच्छेदिनी                              5   दुर्गसाधिनी                                               6  दुर्गनाशिनी

7   दुर्गतो धारिणी                             8  दुर्गनिहन्त्री                                                9   दुर्गमापहा

10  दुर्गमज्ञानदा                               11  दुर्ग दत्य लोक दवानला                             12  दुर्गमा

13  दुर्गमालोका                               14  दुर्गम आत्म स्वरूपिणी                            15  दुर्गमार्गप्रदा

16  दुर्गमविद्या                                  17   दुर्गमाश्रिता                                            18  दुर्गम ज्ञान संस्थाना

19  दुर्गम ध्यान भासिनी                    20   दुर्गमोहा                                                21  दुर्गमगा

22  दुर्गमार्थस्वरूपिणी                     23   दुर्गमासुरसंहन्त्री                                   24  दुर्गमायुधधारिणी

25  दुर्गमांगी                                     26    दुर्गमता                                              27   दुर्गम्या

28   दुर्गमेश्वरी                                  29    दुर्गभीमा                                               30   दुर्गभामा

31   दुर्गभा                                        32    दुर्गदारिणी

हे ! देवताओं, जो मनुष्य मेरे इन बत्तीस नामों की नाम माला का पाठ करता है, वह निसंदेह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है।

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भय विनाश के लिए मंत्र | Durga Saptshati Mantra

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ज्वाला-कराल-मृत्युग्रम-शेषासुर-सूदनम् ।

त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकाली नमोस्तुते ।। (दुर्गा सप्तशती)

यदि किसी व्यक्ति के जीवन में किसी दुश्मन के कारण से डर हो। अचानक कोई विपत्ति आ पड़ी हो, तो इस मंत्र का की एक माला या श्रद्धा अनुसार नित्य जाप करना चाहिए।

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विपत्ति विनाश के लिए मंत्र | Mantra to Destroy Disaster

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शरणागत दीनार्त, परित्राण परायणे ।

सर्वस्यार्तिहरे देवी, नारायणि नमोस्तुते ।। (दुर्गा सप्तशती)

जब चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। दानवों और राक्षसों ने तपस्या के बल पर स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। अच्छे और सज्जन लोगों पर को दुख दिया जाता था और प्रताड़ित किया जाता था।

जब किसी को कुछ नहीं सोच रहा था। यहां तक की सभी देवी देवता भी राक्षसों के भय से आतंकित थे, तो सबने मिलकर शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा का आवाहन किया और उनसे अपने प्राण बचाने का निवेदन किया।

तब मां दुर्गा ने ही इस समस्त ब्रह्मांड को संपूर्ण भयों से मुक्त किया था। आज भी जो भक्तगण श्रद्धा और विश्वास के साथ मां शक्ति की पूजा – उपासना करते हैं। उन सब का अनुभव है कि माता अपने भक्तों की संपूर्ण विपत्तियों का अंत कर देती हैं।

इसलिए जीवन में आ रहे संकटों के नाश व मां भगवती की कृपा प्राप्ति के लिए इस मंत्र का श्रद्धा अनुसार जाप करना चाहिए।

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सौभाग्य और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मंत्र | Health Mantra

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देहि सौभाग्यमारोग्यं, देहि में परमं सुखम् ।

रूपम देहि, जयं देहि, यशो देहि, द्विषो जहि ।। (दुर्गा सप्तशती)

आज के समय में अच्छा स्वास्थ्य किसे नहीं चाहिए  अच्छा स्वास्थ्य ही सभी उन्नतियों को दर्शाता है।

‘कहा भी गया है, पहला सुख निरोगी काया’

उस धन का भी क्या फायदा जो हम उपभोग ना कर सकें। आज के समय में बहुत सारे लोग पैसा तो बहुत कमाते हैं, परंतु वह सारा पैसा डॉक्टर हकीम वैद्य आदि के पास जाता रहता है अर्थात खर्च होता रहता है। कारण शरीर रोगों का घर बन गया है। हमारे शास्त्रों में बताए गए दिव्य मंत्रों का उपयोग करके हम आरोग्यता को प्राप्त कर सकते हैं, इन्हीं दिव्य मंत्रों में से यह सप्तशती मंत्र बड़ा अमोघ है।इस मंत्र का नियमित जाप करने से अच्छे स्वास्थ्य, विजय, सौभाग्य व यश की प्राप्ति होती है।

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दुर्घटना व महामारी नाश के लिए मंत्र | Remove Badluck

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जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी ।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।।

(दुर्गा सप्तशती)

यदि किसी के घर में अचानक अनहोनी घटनाएं, दुर्घटना, अकाल मृत्यु, भय, रोग, शोक आदि बार-बार होते हों, उस स्थिति में इस मंत्र का 11,000 जप-अनुष्ठान करना चाहिए।

घर से निकलने से पहले प्रतिदिन तीन बार इस मंत्र का जाप करके जाना चाहिए। इस मंत्र के प्रभाव से अकाल मृत्यु आदि दोषों का निवारण होता है। इस दिव्य मंत्र के प्रभाव से अनहोनी घटनाएं रुक जाएंगी और व्यक्ति को जीवन में सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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रोग नाश करने के लिए मंत्र  | Health Mantra | Durga Saptshati

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रोगान् शेषान् पहंसि तुष्टा ,

रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।

त्वामाश्रितानाम् न विपत्रराणाम् ,

त्वामाश्रिता हाश्रयताम् प्रयान्ति ।। (दुर्गा सप्तशती)

जो व्यक्ति बहुत अधिक बीमार रहता हो, अनेक उपाय व बहुत इलाज करने के बावजूद भी यदि ठीक नहीं हो रहा हो, तो उसे मां जगदंबा के इस अलोकिक मंत्र का आसरा लेना चाहिए।

मैंने स्वयं इस मंत्र का चमत्कार अपने जीवन में कई बार देखा है। मरण तुल्य कष्ट में पड़े हुए व्यक्ति को भी जीवन दान देने का सामर्थ्य इस मंत्र में है। मां भगवती का ध्यान करके लाल रंग के आसन पर बैठकर एक कटोरी पानी में देखते हुए अथवा रोगी की दवाई को निहारते हुए इस मंत्र की एक माला जाप करें।

फिर वह अभिमंत्रित जल या दवाई उस रोगी को खिला दें। मंत्र के प्रभाव से रोगी को दवाई लगनी शुरू हो जाएगी और जल्दी ही भला चंगा हो जाएगा।

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