Did You Know – Hanuman Chalisa | हनुमान चालीसा की रचना कब और कैसे हुई?

Tulsidas-Hanuman ji

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Did You Know – Hanuman Chalisa | हनुमान चालीसा की रचना कब और कैसे हुई?

ॐ श्री हनुमते नमः॥

भगवान को अगर किसी युग में आसानी से प्राप्त किया जा सकता है तो वह युग है कलियुग। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है।

कलियुग केवल नाम अधारा ,

सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।

अर्थात- कलियुग में मोक्ष प्राप्त करने का एक ही लक्ष्य है वो है भगवान का नाम लेना।

तुलसीदास जी (Tulsidas ji)  ने अध्यात्म जगत को बहुत सुन्दर रचनाएँ दी हैं। कलियुग में हनुमान जी (Hanuman ji) सबसे जल्दी प्रसन्न हो जाने वाले भगवान हैं। उन्होंने हनुमान जी (Hanuman ji) की स्तुति में कई रचनाएँ रची जिनमें हनुमान बाहुक (Hanuman Bahuk), हनुमानाष्टक (Hanumanashtak) और हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) प्रमुख हैं।

हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) की रचना के पीछे एक बहुत सुंदर व रोचक कहानी है। आइये जानते हैं हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) की रचना की कहानी :-

ये बात उस समय की है जब भारत पर मुग़ल सम्राट अकबर (Aakbar) का राज्य था। सुबह का समय था। एक महिला ने पूजा से लौटते हुए, तुलसीदास जी (Tulsidas ji) के पैर छुए। तुलसीदास जी (Tulsidas ji) ने नियमानुसार उसे सौभाग्यशाली होने का आशीर्वाद दिया।

आशीर्वाद मिलते ही वो महिला फूट-फूट कर रोने लगी और रोते हुए, उसने बताया कि अभी-अभी उसके पति की मृत्यु हो गई है। इस बात का पता चलने पर भी तुलसीदास जी (Tulsidas ji) जरा भी विचलित न हुए और वे अपने आशीर्वाद को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे।

क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान भली भाँति था कि भगवान राम बिगड़ी बात संभाल लेंगे और उनका आशीर्वाद खाली नहीं जाएगा। उन्होंने उस औरत सहित सभी को राम नाम का जाप करने को कहा। वहां उपस्थित सभी लोगों ने ऐसा ही किया और वह मरा हुआ व्यक्ति राम नाम के जाप आरंभ होते ही जीवित हो उठा।

यह बात पूरे राज्य में जंगल की आग की तरह फैल गयी। जब यह बात बादशाह अकबर के कानों तक पहुंची तो उसने अपने महल में तुलसीदास जी (Tulsidas ji) को बुलाया और भरी सभा में उनकी परीक्षा लेने के लिए कहा कि कोई चमत्कार दिखाएँ।

ये सब सुन कर तुलसीदास जी (Tulsidas ji) ने अकबर (Aakbar)  से बिना डरे उसे बताया की वो कोई चमत्कारी बाबा नहीं हैं, सिर्फ श्री राम जी के भक्त हैं। अकबर (Aakbar)  इतना सुनते ही क्रोध में आ गया और उसने उसी समय सिपाहियों से कह कर तुलसीदास जी (Tulsidas ji) को कारागार में डलवा दिया।

तुलसीदास जी (Tulsidas ji) ने तनिक भी प्रतिक्रिया नहीं दी और राम का नाम जपते हुए कारागार में चले गए। उन्होंने कारागार में भी अपनी आस्था बनाए रखी और वहाँ रह कर ही हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) की रचना की और लगातार 40 दिन तक उसका निरंतर पाठ किया।

चालीसवें दिन एक चमत्कार हुआ। हजारों बंदरों ने एक साथ अकबर (Aakbar) के राज्य पर हमला बोल दिया। अचानक हुए इस हमले से सब अचंभित हो गए।

अकबर (Aakbar) को समझते देर न लगी। उसे भक्ति की महिमा समझ में आ गई। उसने उसी क्षण तुलसीदास जी से क्षमा मांग कर कारागार से मुक्त किया और आदर सहित उन्हें विदा किया।

इस तरह तुलसीदास जी (Tulsidas ji) ने एक व्यक्ति को कठिनाई की घड़ी से निकलने के लिए हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) के रूप में एक ऐसा रास्ता दिया है। जिस पर चल कर हम किसी भी मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं।

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श्री हनुमान आरती | Shri Hanuman Aarti

Bhagwan Hanuman ji

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श्री हनुमान आरती|Sri Hanuman Aarti

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरिवर कांपै। रोग-दोष जाके निकट न झांपै॥

अंजनिपुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥

दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुधि लाये॥

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥

लंका जारि असुर संहारे। सीयरामजी के काज संवारे॥

लक्ष्मण मूर्च्छित पड़े सकारे।आनि सजीवन प्रान उबारे॥

पैठि पाताल तोरि ज़मकारे। अहिरावन की भुजा उखारे॥

बांये भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संत जन तारे॥

सुर नर मुनिजन आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥

जो हनुमानजी की आरती गावै। बसि बैकुंठ परमपद पावै॥

लंक विध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई॥

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श्री हनुमान चालीसा | Shri Hanuman Chalisa

Bhagawan Hanuman ji

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श्री हनुमान चालीसा | Shri Hanuman Chalisa

॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु क्लेश विकार ॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै।
कांधे मूँज जनेऊ साजै॥

शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥

लाय संजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद शारद सहित अहीसा॥

यम कुबेर दिग्पाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना।
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥

जुग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥

भूत पिशाच-निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन-कर्म-वचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय जय जय हनुमान गोसाँई।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥

जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महासुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजे नाथ हृदय महँ डेरा॥

॥ दोहा ॥

पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

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श्री बजरंग बाण | Shri Bajrang Baan

Bhagwan Hanuman ji

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श्री बजरंग बाण | Sri Bajrang Baan

॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु महिपारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा॥

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

बाग उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा॥

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई॥
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी॥

जय जय लखन प्राण के दाता। आतुर होय दुःख हरहु निपाता॥
जय गिरिधर जय जय सुख सागर। सुर समूह समरथ भटनागर॥

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥

ओंकार हुँकार महाप्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥

सत्य होहु हरि शपथ पायके। रामदूत धरु मारु जाय के॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा॥

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा॥
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं॥

पांय परौं कर जोरि मनावौं। येहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन वीर हनुमन्ता॥

बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रति पालक॥
भूत, प्रेत, पिशाच, निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की। राखउ नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब ना लावो॥

जय जय जय धुनि होत अकासा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा॥
चरण शरण कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई॥
ॐ चँ चँ चँ चँ चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥

ऊँ हँ हँ हाँक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल॥
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो॥

यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै॥
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमंत रक्षा करैं प्राण की॥

यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत-प्रेत सब काँपै॥
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा॥

॥ दोहा ॥
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

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श्री हनुमानबाहुक | Sri Hanuman Bahuk

Bhagawan Hanuman ji

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श्री हनुमानबाहुक | Sri Hanuman Bahuk

॥ छप्पय

सिंधु-तरन, सिय-सोच हरन, रबि-बालबरन-तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ॥
गहन-दहन-निरदहन-लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ, सेवक हित सन्तत निकट।
गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत, समन सकल-संकट-बिकट ॥१॥

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन तेज घन।
उर बिसाल, भुज दण्ड चण्ड नख बज्र बज्रतन ॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल-बल-भानन॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥२॥

॥ झूलना
पञ्चमुख-छमुख-भृगुमुख्य भट-असुर-सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो।
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है पवन को पूत रजपूत रुरो॥३॥

॥ घनाक्षरी ॥

भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो॥४॥

भारत में पारथ के रथ केतु कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो।
कह्यो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो॥
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँगहूँतें घाटि नभतल भो।
नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ॥५॥

गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो॥
संकटसमाज असमंजस भो रामराज, काज जुग-पूगनिको करतल पल भो।
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह, लोक पाल पालन को फिर थिर थल भो॥६॥

कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ैं मानो, नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो।
जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो॥
कुम्भकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनको, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान-सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥७॥

दूत रामरायको, सपूत पूत पौनको, तू, अंजनीको नन्दन प्रताप भूरि भानु सो।
सीय-सोच-समन, दुरित-दोष-दमन, सरन आये अवन, लखनप्रिय प्रान सो॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबेको भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।
ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो॥८॥

दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को॥
लोक-परलोकतें बिसोक सपने न सोक, तुलसीके हिये है भरोसो एक ओरको।
रामको दुलारो दास बामदेवको निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोरको॥९॥

महाबल-सीम, महाभीम, महाबानइत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को।
कुलिस-कठोरतनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीरको॥
दुर्जनको कालसो कराल पाल सज्जनको, सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको।
सीय-सुखदायक दुलारो रघुनायकको, सेवक सहायक है साहसी समीर को॥१०॥

रचिबेको बिधि जैसे, पालिबेको हरि, हर, मीच मारिबेको, ज्याइबेको सुधापान भो।
धरिबेको धरनि, तरनि तम दलिबेको, सोखिबे कृसानु, पोषिबेको हिम-भानु भो॥
खल-दुःख-दोषिबेको, जन-परितोषिबेको, माँगिबो मलीनताको मोदक सुदान भो।
आरतकी आरति निवारिबेको तिहुँ पुर, तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो॥११॥

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँकको।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँकको॥
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको।
सब दिन रूरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँकको॥१२॥

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी।
लोक परलोकको बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी॥
केसरीकिसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधानकी।
बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमानकी॥१३॥

करुना निधान, बलबुद्धिके निधान, मोद-महिमानिधान, गुन-ज्ञानके निधान हौ।
बामदेव-रूप, भूप राम के सनेही, नाम, लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ॥
आपने प्रभाव, सीतानाथके सुभाव सील, लोक-बेद-बिधिके बिदुष हनुमान हौ।
मनकी, बचनकी, करमकी तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ॥१४॥

मनको अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराजके समाज साज साजे हैं।
देव-बंदीछोर रनरोर केसरीकिसोर, जुग-जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं॥
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसीकी ओर, सुनि सकुचाने साधु, खलगन गाजे हैं।
बिगरी सँवार अंजनीकुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमानके निवाजे हैं॥१५॥

॥ सवैया ॥

जानसिरोमनि हौ हनुमान सदा जनके मन बास तिहारो।
ढारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो॥
साहेब सेवक नाते ते हातो कियो सो तहाँ तुलसीको न चारो।
दोष सुनाये तें आगेहुँको होशियार ह्वै हों मन तौ हिय हारो॥१६॥

तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे उर घाले।
तेरे निवाजे गरीबनिवाज बिराजत बैरिनके उर साले॥
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरीके-से जाले।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले॥१७॥

सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से।
तैं रन-केहरि केहरिके बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से॥
तोसों समत्थ सुसाहेब सेइ सहै तुलसी दुख दोष दवासे।
बानर बाज बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से॥१८॥

अच्छ-बिमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न से कुंजर केहरि-बारो॥
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीरदुलारो।
पापतें, सापतें, ताप तिहूँतें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो॥१९॥

॥ घनाक्षरी ॥

जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन, मन अनुमानि, बलि, बोल न बिसारिये।
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो, ताहि माहुर न मारिये।
साहसी समीरके दुलारे रघुबीरजूके, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये॥२०॥

बालक बिलोकि, बलि, बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये।
रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल, आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये॥
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलिको, निहारि सो निवारिये।
केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये॥२१॥

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये।
राम के गुलामनिको कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये॥
साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये॥२२॥

रामको सनेह, राम साहस लखन सिय, रामकी भगति, सोच संकट निवारिये।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंतको भरोसो तेरो भारिये॥
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठिकै बिचारिये।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये॥२३॥

लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो, देव दुखी देखियत भारिये।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये॥२४॥

करम-कराल-कंस भूमिपालके भरोसे, बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरैगी।
बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि, बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी॥
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसीकी, बाँहपीर महाबीर, तेरे मारे मरैगी॥२५॥

भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है, बेदन बिषम पाप-ताप छलछाँहकी।
करमन कूटकी कि जन्त्र मन्त्र बूटकी, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँहकी॥
पैहहि सजाय नत कहत बजाय तोहि, बावरी न होहि बानि जानि कपिनाँहकी।
आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी, सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बाँहकी॥२६॥

सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है॥
तोरि जमकातरि मदोदरी कढ़ोरि आनी, रावनकी रानी मेघनाद महँतारी है।
भीर बाँहपीरकी निपट राखी महाबीर, कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है॥२७॥

तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि-राहुकी।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहुकी॥
साम दाम भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी।
आलस अनख परिहासकै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसीके बाहुकी॥२८॥

टूकनिको घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है।
कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर, आपनो बिसारिहैं न मेरेहू भरोसो है॥
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरीको मरन खेल बालकनिको सो है॥२९॥

आपने ही पापतें त्रितापतें कि सापतें, बढ़ी है बाँहबेदन कही न सहि जाति है।
औषध अनेक जन्त्र-मन्त्र-टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म, काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत, ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है॥३०॥

दूत रामरायको, सपूत पूत बायको, समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥
एते बडे़ साहेब समर्थको निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन कायको।
थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको, कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभाय को॥३१॥

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत हैं॥
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं।
क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं॥३२॥

तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबरके॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके।
तुलसी के माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके॥३३॥

पालो तेरे टूकको परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।
भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥
अंबु तू हौं अंबुचर, अंबु तू हौं डिंभ, सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसीकी बाँह पर लामीलूम फेरिये॥३४॥

घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है॥
करुनानिधान हनुमान महाबलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं तैं उड़ाई है।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है॥३५॥

॥ सवैया ॥

रामगुलाम तुही हनुमान गोसाँइ सुसाँइ सदा अनुकूलो।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥
बाँहकी बेदन बाँहपगार पुकारत आरत आनँद भूलो।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो॥३६॥

॥ घनाक्षरी ॥

कालकी करालता करम कठिनाई कीधौं, पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डावरे॥
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहूँ तावरे।
भूतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान, जानियत सबहीकी रीति राम रावरे॥३७॥

पाँयपीर पेटपीर बाँहपीर मुँहपीर, जरजर सकल सरीर पीरमई है।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहिपर दवरि दमानक सी दई है॥
हौं तो बिन मोलके बिकानो बलि बारेही तें, ओट रामनामकी ललाट लिखि लई है।
कुंभज के किंकर बिकल बूड़े गोखुरनि, हाय रामराय ऐसी हाल कहूँ भई है॥३८॥

बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर-केतुजा कुरोग जातुधान है।
राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान है॥
सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान है।
तुलसी सँभारि ताड़का-सँहारि भारि भट, बेधे बरगदसे बनाइ बानवान हैं॥३९॥

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, रामनाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं।
पर्यो लोकरीतिमें पुनीत प्रीति रामराय, मोहबस बैठो तोरि तरकितराक हौं॥
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं।
तुलसी गोसाइँ भयो भोंड़े दिन भूलि गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥४०॥

असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय-हाय को।
तुलसी अनाथसो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सीलसिंधु आपने सुभायको॥
नीच यहि बीच पति पाइ भरुहाइगो, बिहाइ प्रभु-भजन बचन मन काय को।
तातें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि-फूटि निकसत लोन रामरायको॥४१॥

जिओं जग जानकीजीवनको कहाइ जन, मरिबेको बारानसी बारि सुरसरि को।
तुलसीके दुहूँ हाथ मोदक है ऐसे ठाउँ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरिको॥
मोको झूठो साँचो लोग रामको कहत सब, मेरे मन मान है न हरको न हरिको।
भारी पीर दुसह सरीरतें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करिको॥४२॥

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेसको महेस मानो गुरु कै।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुरकै॥
ब्याधि भूतजनित उपाधि काहू खलकी, समाधि कीजे तुलसीको जानि जन फुरकै।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोगसिंधु क्यों न डारियत गाय खुरकै॥४३॥

कहों हनुमानसों सुजान रामरायसों, कृपानिधान संकरसों सावधान सुनिये।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरंचि सब देखियत दुनिये॥
माया जीव कालके करमके सुभायके, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये।
तुम्हतें कहा न होय हाहा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौन ही बयो सो जानि लुनिये॥४४॥

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श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक | Shri Sankatmochan Hanumanashtak

Bhagwan Hanuman ji

Bhagwan Hanuman ji

श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक |Shri Sankatmochan Hanumanashtak

बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सो जात न टारो।
देवन आनि करी विनती तब, छाँड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सों जु, बिना सुधि लाए इहां पगुधारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब, लाय सिया-सुधि प्रान उबारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥

रावन त्रास दई सिय को तब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय अशोक सों आगिसु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥

बाण लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु-बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्राण उबारो ॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥५॥

रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारोI
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥६॥

बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समेत संहारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥७॥

काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥

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Sri Anjaneya Ashtottara Shatanamavali – श्री आञ्जनेय अष्टोत्तरशतनामावली

Bhagwan Hanuman ji

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Sri Anjaneya Ashtottara Shatanamavali – श्री आञ्जनेय अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ आञ्जनेयाय नमः।
  2. ॐ महावीराय नमः।
  3. ॐ हनुमते नमः।
  4. ॐ मारुतात्मजाय नमः।
  5. ॐ तत्त्वज्ञानप्रदाय नमः।
  6. ॐ सीतादेवीमुद्राप्रदायकाय नमः।
  7. ॐ अशोकवनिकाच्छेत्रे नमः।
  8. ॐ सर्वमायाविभञ्जनाय नमः।
  9. ॐ सर्वबन्धविमोक्त्रे नमः।
  10. ॐ रक्षोविध्वंसकारकाय नमः।
  11. ॐ परविद्यापरीहाराय नमः।
  12. ॐ परशौर्यविनाशनाय नमः।
  13. ॐ परमन्त्रनिराकर्त्रे नमः।
  14. ॐ परयन्त्रप्रभेदकाय नमः।
  15. ॐ सर्वग्रहविनाशिने नमः।
  16. ॐ भीमसेनसहायकृते नमः।
  17. ॐ सर्वदुःखहराय नमः।
  18. ॐ सर्वलोकचारिणे नमः।
  19. ॐ मनोजवाय नमः।
  20. ॐ पारिजातद्रुमूलस्थाय नमः।
  21. ॐ सर्वमन्त्रस्वरूपवते नमः।
  22. ॐ सर्वतन्त्रस्वरूपिणे नमः।
  23. ॐ सर्वयन्त्रात्मकाय नमः।
  24. ॐ कपीश्वराय नमः।
  25. ॐ महाकायाय नमः।
  26. ॐ सर्वरोगहराय नमः।
  27. ॐ प्रभवे नमः।
  28. ॐ बलसिद्धिकराय नमः।
  29. ॐ सर्वविद्यासम्पत्प्रदायकाय नमः।
  30. ॐ कपिसेनानायकाय नमः।
  31. ॐ भविष्यच्चतुराननाय नमः।
  32. ॐ कुमारब्रह्मचारिणे नमः।
  33. ॐ रत्नकुण्डलदीप्तिमते नमः।
  34. ॐ सञ्चलद्वालसन्नद्धलम्बमानशिखोज्ज्वलाय नमः।
  35. ॐ गन्धर्वविद्यातत्त्वज्ञाय नमः।
  36. ॐ महाबलपराक्रमाय नमः।
  37. ॐ कारागृहविमोक्त्रे नमः।
  38. ॐ शृङ्खलाबन्धमोचकाय नमः।
  39. ॐ सागरोत्तारकाय नमः।
  40. ॐ प्राज्ञाय नमः।
  41. ॐ रामदूताय नमः।
  42. ॐ प्रतापवते नमः।
  43. ॐ वानराय नमः।
  44. ॐ केसरीसुताय नमः।
  45. ॐ सीताशोकनिवारकाय नमः।
  46. ॐ अञ्जनागर्भसम्भूताय नमः।
  47. ॐ बालार्कसदृशाननाय नमः।
  48. ॐ विभीषणप्रियकराय नमः।
  49. ॐ दशग्रीवकुलान्तकाय नमः।
  50. ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः।
  51. ॐ वज्रकायाय नमः।
  52. ॐ महाद्युतये नमः।
  53. ॐ चिरञ्जीविने नमः।
  54. ॐ रामभक्ताय नमः।
  55. ॐ दैत्यकार्यविघातकाय नमः।
  56. ॐ अक्षहन्त्रे नमः।
  57. ॐ काञ्चनाभाय नमः।
  58. ॐ पञ्चवक्त्राय नमः।
  59. ॐ महातपसे नमः।
  60. ॐ लङ्किणीभञ्जनाय नमः।
  61. ॐ श्रीमते नमः।
  62. ॐ सिंहिकाप्राणभञ्जनाय नमः।
  63. ॐ गन्धमादनशैलस्थाय नमः।
  64. ॐ लङ्कापुरविदाहकाय नमः।
  65. ॐ सुग्रीवसचिवाय नमः।
  66. ॐ धीराय नमः।
  67. ॐ शूराय नमः।
  68. ॐ दैत्यकुलान्तकाय नमः।
  69. ॐ सुरार्चिताय नमः।
  70. ॐ महातेजसे नमः।
  71. ॐ रामचूडामणिप्रदाय नमः।
  72. ॐ कामरूपिणे नमः।
  73. ॐ पिङ्गलाक्षाय नमः।
  74. ॐ वार्धिमैनाकपूजिताय नमः।
  75. ॐ कबलीकृतमार्ताण्डमण्डलाय नमः।
  76. ॐ विजितेन्द्रियाय नमः।
  77. ॐ रामसुग्रीवसन्धात्रे नमः।
  78. ॐ महिरावणमर्दनाय नमः।
  79. ॐ स्फटिकाभाय नमः।
  80. ॐ वागधीशाय नमः।
  81. ॐ नवव्याकृतिपण्डिताय नमः।
  82. ॐ चतुर्बाहवे नमः।
  83. ॐ दीनबन्धवे नमः।
  84. ॐ महात्मने नमः।
  85. ॐ भक्तवत्सलाय नमः।
  86. ॐ सञ्जीवननगाहर्त्रे नमः।
  87. ॐ शुचये नमः।
  88. ॐ वाग्मिने नमः।
  89. ॐ दृढव्रताय नमः।
  90. ॐ कालनेमिप्रमथनाय नमः।
  91. ॐ हरिमर्कटमर्कटाय नमः।
  92. ॐ दान्ताय नमः।
  93. ॐ शान्ताय नमः।
  94. ॐ प्रसन्नात्मने नमः।
  95. ॐ शतकण्ठमदापहृते नमः।
  96. ॐ योगिने नमः।
  97. ॐ रामकथालोलाय नमः।
  98. ॐ सीतान्वेषणपण्डिताय नमः।
  99. ॐ वज्रदंष्ट्राय नमः।
  100. ॐ वज्रनखाय नमः।
  101. ॐ रुद्रवीर्यसमुद्भवाय नमः।
  102. ॐ इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्रविनिवारकाय नमः।
  103. ॐ पार्थध्वजाग्रसंवासिने नमः।
  104. ॐ शरपञ्जरभेदकाय नमः।
  105. ॐ दशबाहवे नमः।
  106. ॐ लोकपूज्याय नमः।
  107. ॐ जाम्बवत्प्रीतिवर्धनाय नमः।
  108. ॐ सीतासमेतश्रीरामपादसेवाधुरन्धराय नमः।

॥ इति श्री आञ्जनेय अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Anjaneya Ashtottara Shatanama stotram – श्री हनुमत् अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

Hanuman Ji

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Sri Anjaneya Ashtottara Shatanama stotram – श्री हनुमत् अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

॥ ध्यान ॥

वन्दे विद्युज्ज्वलनविलसद्ब्रह्मसूत्रैकनिष्ठं
कर्णद्वन्द्वे कनकरचिते कुण्डले धारयन्तम्।
सत्कौपीनं कपिचरवृतं कामरूं कपीन्द्रं
पुत्रं वायोरिनसुतसुखदं वज्रदेहं वरेयम्।।

॥ स्तोत्र ॥

आञ्जनेयो महावीरः हनुमान्मारुतात्मजः ।
तत्त्वज्ञानप्रदायकः सीतामुद्राप्रदायकः ॥ १ ॥

अशोकवनिकाच्छेत्ता सर्वमायाविभञ्जनः ।
सर्वबन्धविमोक्ता च रक्षोविध्वंसकारकः ॥ २ ॥

परविद्यापरीहारः परशौर्यविनाशनः ।
परमन्त्रनिराकर्ता परयन्त्रप्रभेदकः ॥ ३ ॥

सर्वग्रहविनाशी च भीमसेनसहायकृत् ।
सर्वदुःखहरः सर्वलोकचारी मनोजवः ॥ ४ ॥

पारिजातद्रुमूलस्थः सर्वमन्त्रस्वरूपवान् ।
सर्वतन्त्रस्वरूपी च सर्वयन्त्रात्मकश्च वै ॥ ५ ॥

कपीश्वरो महाकायः सर्वरोगहरः प्रभुः ।
बलसिद्धिकरः सर्वविद्यासम्पत्प्रदायकः ॥ ६ ॥

कपिसेनानायकश्च भविष्यच्चतुराननः ।
कुमारब्रह्मचारी च रत्नकुण्डलदीप्तिमान् ॥ ७ ॥

सञ्चलद्बालसन्नद्धलम्बमानशिखोज्ज्वलः ।
गन्धर्वविद्यातत्त्वज्ञो महाबलपराक्रमः ॥ ८ ॥

कारागृहविमोक्ता च शृङ्खलाबन्धमोचकः ।
सागरोत्तारकः प्राज्ञः रामदूतः प्रतापवान् ॥ ९ ॥

वानरः केसरिसुतः सीताशोकनिवारणः ।
अञ्जनागर्भसम्भूतो बालार्कसदृशाननः ॥ १० ॥

विभीषणप्रियकरो दशग्रीवकुलान्तकः ।
लक्ष्मणप्राणदाता च वज्रकायो महाद्युतिः ॥ ११ ॥

चिरजीवी रामभक्तो दैत्यकार्यविघातकः ।
अक्षहन्ता काञ्चनाभः पञ्चवक्त्रो महातपाः ॥ १२ ॥

लङ्किनीभञ्जनः श्रीमान् सिंहिकाप्राणभञ्जनः ।
गन्धमादनशैलस्थः लङ्कापुरविदाहकः ॥ १३ ॥

सुग्रीवसचिवो धीरः शूरो दैत्यकुलान्तकः ।
सुरार्चितो महातेजा रामचूडामणिप्रदः ॥ १४ ॥

कामरूपी पिङ्गलाक्षो वार्धिमैनाकपूजितः ।
कवलीकृतमार्ताण्डमण्डलो विजितेन्द्रियः ॥ १५ ॥

रामसुग्रीवसन्धाता महारावणमर्दनः ।
स्फटिकाभो वागधीशो नवव्याकृतिपण्डितः ॥ १६ ॥

चतुर्बाहुर्दीनबन्धुर्महात्मा भक्तवत्सलः ।
सञ्जीवननगाहर्ता शुचिर्वाग्मी दृढव्रतः ॥ १७ ॥

कालनेमिप्रमथनो हरिमर्कटमर्कटः ।
दान्तः शान्तः प्रसन्नात्मा शतकण्ठमदापहृत् ॥ १८ ॥

योगी रामकथालोलः सीतान्वेषणपण्डितः ।
वज्रदंष्ट्रो वज्रनखो रुद्रवीर्यसमुद्भवः ॥ १९ ॥

इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्रविनिवारकः ।
पार्थध्वजाग्रसंवासी शरपञ्जरभेदकः ॥ २० ॥

दशबाहुर्लोकपूज्यो जाम्बवत्प्रीतिवर्धनः ।
सीतासमेतश्रीरामपादसेवाधुरन्धरः ॥ २१ ॥

॥ इति श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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