नव ग्रहों के दान, जप, हवन और व्रत विधि | Sampuran Navgrah Vrat Vidhi

Shree Nav Graha

नौ ग्रह (Nav Garha) एवं सत्ताइस नक्षत्र हमारे कार्य-व्यवहार, स्वभाव, चरित्रगत विशेषताओं और सफलताओं-असफलताओं के साथ-साथ भूमंडल के वातावरण तथा सभी कार्यकलापों पर बहुत अधिक प्रभाव डालते हैं। सूर्य (Sun), चंद्रमा (Moon), मंगल (Mars), बुध (Mercury), बृहस्पति (Jupiter), शुक्र (Venus), शनि (Saturn) तथा राहु (North Node of the Moon) और केतु (South Node of the Moon) नौ ग्रह हैं और इन सभी का केंद्र बिंदु है सूर्य अर्थात् भगवान भास्कर। इनमें राहु और केतु तो छाया ग्रह है और बाकी के सात ग्रहों के नाम पर रविवार से शनिवार तक सप्ताह के सातों दिनों का नामकरण हुआ है।

प्रत्येक ग्रह का एक अधिपति देव है तथा उस अधिपति देव की पूजा एवं व्रत उसके विशेष वार को की जाती है। इनमें से किसी भी वार के व्रत को पूर्ण करने के बाद उसका उद्यापन किया जाता है। उद्यापन का अर्थ है कि अब आप उस व्रत को करना बंद कर सकते हैं। सभी व्रतों की समय सीमा, पूजा विधि, निषिद्ध कर्म और उद्यापन आदि पृथक-पृथक है।

ग्रह की विशेष पीड़ा निवारण के उपाय के लिए उस ग्रह के व्रत करना श्रेष्ठ फलदाई होता है। 

व्रत के उद्यापन के समय सामर्थ्य के अनुसार दान – दक्षिणा तथा ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।

नवग्रहों के व्रत की संपूर्ण विधि:-

 

  

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