मंगल (भौम) प्रदोष व्रत कथा | Bhom Pradosh Vrat Katha Vidhi Mahatmya

मंगल (भौम) प्रदोष व्रत | Mangal (Bhom | Bhaum) Pradosh Vrat

 

जिस प्रकार एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है । उसी प्रकार त्रयोदशी का व्रत यानी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है जब त्रयोदशी का व्रत मंगलवार को आ जाए तब  इस प्रदोष व्रत को मंगल प्रदोष व्रत (Mangal Pradosh Vrat) कहते हैं। मंगल प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत (Bhom | Bhaum Pradosh Vrat) भी कहा जाता है।   मंगलवार के दिन व्रत होने के कारण, इस व्रत को करने से शिव पार्वती और हनुमान जी की विशेष प्रसन्नता प्राप्त होती है ।

जिन जातकों की कुंडली में मंगल ग्रह खराब  अवस्था का बैठा हुआ हो, उन्हें मंगल प्रदोष व्रत (Mangal Pradosh Vrat) करना चाहिए, इस व्रत के करने से उन्हें मंगल तथा भगवान शिव पार्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है । इस व्रत का पारण अगले दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाने से होता है ।

मंगल प्रदोष व्रत (Mangal Pradosh Vrat) के दिन पंचाक्षरी मंत्र

“ॐ नमः शिवाय”

तथा  मंगल के बीज मंत्र

“ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः”

का जाप करना चाहिएयदि संभव हो सके तो इन मंत्रों से अपनी क्षमता के अनुसार  हवन में आहुतियां भी डालनी चाहिए।

सभी ग्रहों में मंगल ग्रह विशेष ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है। मंगल की पूजा के लिए लाल रंग का विशेष महत्व है। अतः मंगल ग्रह की पूजा के लिए लाल रंग के फल, फूल, मिठाई, वस्त्र आदि का उपयोग होता है। मंगल प्रदोष व्रत उत्तम संतान तथा घर परिवार मैं समृद्धि देने वाला होता है।

मंगल प्रदोष व्रत कथा

एक शहर में एक बूढ़ी औरत रहती थी। उस बूढ़ी औरत का एक बेटा था और बूढ़ी औरत को हनुमानजी पर अटूट विश्वास था। इसलिए, हर मंगलवार को वह महिला अत्यधिक भक्ति के साथ भगवान हनुमान का उपवास रखती और प्रार्थना करती थी।

एक दिन, जब उसने भगवान हनुमानजी से प्रार्थना की, तो प्रभु खुद उस बूढ़ी महिला से मिलने के लिए आए।  उन्होनें एक बूढ़े ऋषि का रूप धारण कर लिया और यह कहते हुए उसकी झोपड़ी में चले गए– ‘क्या कोई है जो इस घर में हनुमान का उपासक है, कोई है जो मेरी बात सुन सकता है और मेरी इच्छाओं को पूरा कर सकता है?’

इस तरह से वह ऋषि लोगों को बाहर बुलाने लगा।

तब, उसकी आवाज सुनकर, बूढ़ी औरत बाहर आई और विनम्रतापूर्वक ऋषि से उसकी इच्छाऐं बताने को कहा।

तो, हनुमान जी ने कहा कि वह भूखे हैं और वह खाना चाहते हैं, लेकिन उससे पहले उसके लिए फर्श साफ किया जाए। वह बूढ़ी औरत तो जमीन खोद सकती थी और ही फर्श साफ कर सकती थी, क्योंकि वह बूढ़ी थी और उसके जोड़ों में दर्द था।

अतः, उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर हनुमान से अनुरोध किया कि वह इस काम के बजाय, कुछ और करने का आदेश दे, वह उसे निश्चित रूप से कर देगी। तब, ऋषि ने उससे तीन बार वादा लिया और फिर उससे कहा कि वह अपने बेटे से कहे कि वह अपने पेट के बल पर लेट जाए और वह खाना बनाने के लिए उसकी पीठ पर आग जलाएगा।

यह सुनकर महिला हैरान रह गई, परंतु अब वह वचन दे चुकी थी, उसके पास ऋषि के शब्दों से सहमत होने के अलावा  कोई ओर रास्ता नहीं था।

उसका दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था और उसकी आंखों से आँसू बह रहे थे, बहुत देर तक अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के बाद, उसने आखिरकार अपने बेटे को बुलाया। तब वह अपनी माँ के बुलाने पर बाहर आया, उसने उसे ऋषि को समर्पित कर दिया।

बेटा भी चुप रहा, और बिना किसी सवाल के लेटने को तैयार हो गया । बेटे ने अपने जीवन के लिए संघर्ष नहीं किया, जबकि वह अच्छी तरह जानता था कि आग लगने से, वह निश्चित रूप से मारा जाएगा। बेटे को माँ की नीयत पर  कोई शक नहीं हुआ और ना ही उसने ऋषि की मंशा पर संदेह या सवाल किया।

ऋषि ने महिला के बेटे की पीठ पर आग लगाई और आग जलाने के बाद, वह घर के अंदर चली गई। वह अपने बेटे को जलकर मरते हुए नहीं देखना चाहती थी, क्योंकि वह जानती थी कि यह उसका अंत समय होगा।

लेकिन, फिर जब एक बार ऋषि ने भोजन बना लिया तब उसने बुढ़िया को बुलाया, और बुढ़िया से  कहा कि वह अपने पुत्र को उठने के लिए बोले ताकि वह भी भोजन करने से पहले भगवान को प्रसाद चढ़ा सके।

बूढ़ी औरत को यकीन था कि उसका बेटा मर चुका है, और वह अपने बेटे को बुलाना नहीं चाहती थी । तब उसने ऋषि से कहा कि उसे अपने मृत बेटे को पुकारने में अधिक पीड़ा होगी। लेकिन, ऋषि के कहने पर उसने अपने बेटे को पुकारा और पता चला कि उसका बेटा जीवित था। अपने पुत्र को जीवित पाकर बुढ़िया चैंक गई और वह ऋषि के चरणों में गिर गई। तब हनुमानजी अपने मूल रूप में गए और बूढ़ी औरत और उसके बेटे को आशीर्वाद दिया।

इस दिन अपने संकल्प को यह कह कर समाप्त कर सकते हैं:

‘‘अहम्ध्या महादेवस्य कृपाप्रपतेया भौमाप्रदोष व्रतं करिष्ये।’’

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