श्री हनुमानबाहुक | Sri Hanuman Bahuk

Bhagawan Hanuman ji

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श्री हनुमानबाहुक | Sri Hanuman Bahuk

॥ छप्पय

सिंधु-तरन, सिय-सोच हरन, रबि-बालबरन-तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ॥
गहन-दहन-निरदहन-लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ, सेवक हित सन्तत निकट।
गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत, समन सकल-संकट-बिकट ॥१॥

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन तेज घन।
उर बिसाल, भुज दण्ड चण्ड नख बज्र बज्रतन ॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल-बल-भानन॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥२॥

॥ झूलना
पञ्चमुख-छमुख-भृगुमुख्य भट-असुर-सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो।
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है पवन को पूत रजपूत रुरो॥३॥

॥ घनाक्षरी ॥

भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो॥४॥

भारत में पारथ के रथ केतु कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो।
कह्यो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो॥
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँगहूँतें घाटि नभतल भो।
नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ॥५॥

गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो॥
संकटसमाज असमंजस भो रामराज, काज जुग-पूगनिको करतल पल भो।
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह, लोक पाल पालन को फिर थिर थल भो॥६॥

कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ैं मानो, नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो।
जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो॥
कुम्भकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनको, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान-सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥७॥

दूत रामरायको, सपूत पूत पौनको, तू, अंजनीको नन्दन प्रताप भूरि भानु सो।
सीय-सोच-समन, दुरित-दोष-दमन, सरन आये अवन, लखनप्रिय प्रान सो॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबेको भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।
ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो॥८॥

दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को॥
लोक-परलोकतें बिसोक सपने न सोक, तुलसीके हिये है भरोसो एक ओरको।
रामको दुलारो दास बामदेवको निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोरको॥९॥

महाबल-सीम, महाभीम, महाबानइत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को।
कुलिस-कठोरतनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीरको॥
दुर्जनको कालसो कराल पाल सज्जनको, सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको।
सीय-सुखदायक दुलारो रघुनायकको, सेवक सहायक है साहसी समीर को॥१०॥

रचिबेको बिधि जैसे, पालिबेको हरि, हर, मीच मारिबेको, ज्याइबेको सुधापान भो।
धरिबेको धरनि, तरनि तम दलिबेको, सोखिबे कृसानु, पोषिबेको हिम-भानु भो॥
खल-दुःख-दोषिबेको, जन-परितोषिबेको, माँगिबो मलीनताको मोदक सुदान भो।
आरतकी आरति निवारिबेको तिहुँ पुर, तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो॥११॥

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँकको।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँकको॥
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको।
सब दिन रूरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँकको॥१२॥

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी।
लोक परलोकको बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी॥
केसरीकिसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधानकी।
बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमानकी॥१३॥

करुना निधान, बलबुद्धिके निधान, मोद-महिमानिधान, गुन-ज्ञानके निधान हौ।
बामदेव-रूप, भूप राम के सनेही, नाम, लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ॥
आपने प्रभाव, सीतानाथके सुभाव सील, लोक-बेद-बिधिके बिदुष हनुमान हौ।
मनकी, बचनकी, करमकी तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ॥१४॥

मनको अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराजके समाज साज साजे हैं।
देव-बंदीछोर रनरोर केसरीकिसोर, जुग-जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं॥
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसीकी ओर, सुनि सकुचाने साधु, खलगन गाजे हैं।
बिगरी सँवार अंजनीकुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमानके निवाजे हैं॥१५॥

॥ सवैया ॥

जानसिरोमनि हौ हनुमान सदा जनके मन बास तिहारो।
ढारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो॥
साहेब सेवक नाते ते हातो कियो सो तहाँ तुलसीको न चारो।
दोष सुनाये तें आगेहुँको होशियार ह्वै हों मन तौ हिय हारो॥१६॥

तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे उर घाले।
तेरे निवाजे गरीबनिवाज बिराजत बैरिनके उर साले॥
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरीके-से जाले।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले॥१७॥

सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से।
तैं रन-केहरि केहरिके बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से॥
तोसों समत्थ सुसाहेब सेइ सहै तुलसी दुख दोष दवासे।
बानर बाज बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से॥१८॥

अच्छ-बिमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न से कुंजर केहरि-बारो॥
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीरदुलारो।
पापतें, सापतें, ताप तिहूँतें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो॥१९॥

॥ घनाक्षरी ॥

जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन, मन अनुमानि, बलि, बोल न बिसारिये।
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो, ताहि माहुर न मारिये।
साहसी समीरके दुलारे रघुबीरजूके, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये॥२०॥

बालक बिलोकि, बलि, बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये।
रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल, आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये॥
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलिको, निहारि सो निवारिये।
केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये॥२१॥

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये।
राम के गुलामनिको कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये॥
साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये॥२२॥

रामको सनेह, राम साहस लखन सिय, रामकी भगति, सोच संकट निवारिये।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंतको भरोसो तेरो भारिये॥
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठिकै बिचारिये।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये॥२३॥

लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो, देव दुखी देखियत भारिये।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये॥२४॥

करम-कराल-कंस भूमिपालके भरोसे, बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरैगी।
बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि, बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी॥
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसीकी, बाँहपीर महाबीर, तेरे मारे मरैगी॥२५॥

भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है, बेदन बिषम पाप-ताप छलछाँहकी।
करमन कूटकी कि जन्त्र मन्त्र बूटकी, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँहकी॥
पैहहि सजाय नत कहत बजाय तोहि, बावरी न होहि बानि जानि कपिनाँहकी।
आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी, सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बाँहकी॥२६॥

सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है॥
तोरि जमकातरि मदोदरी कढ़ोरि आनी, रावनकी रानी मेघनाद महँतारी है।
भीर बाँहपीरकी निपट राखी महाबीर, कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है॥२७॥

तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि-राहुकी।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहुकी॥
साम दाम भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी।
आलस अनख परिहासकै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसीके बाहुकी॥२८॥

टूकनिको घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है।
कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर, आपनो बिसारिहैं न मेरेहू भरोसो है॥
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरीको मरन खेल बालकनिको सो है॥२९॥

आपने ही पापतें त्रितापतें कि सापतें, बढ़ी है बाँहबेदन कही न सहि जाति है।
औषध अनेक जन्त्र-मन्त्र-टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म, काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत, ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है॥३०॥

दूत रामरायको, सपूत पूत बायको, समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥
एते बडे़ साहेब समर्थको निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन कायको।
थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको, कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभाय को॥३१॥

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत हैं॥
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं।
क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं॥३२॥

तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबरके॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके।
तुलसी के माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके॥३३॥

पालो तेरे टूकको परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।
भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥
अंबु तू हौं अंबुचर, अंबु तू हौं डिंभ, सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसीकी बाँह पर लामीलूम फेरिये॥३४॥

घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है॥
करुनानिधान हनुमान महाबलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं तैं उड़ाई है।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है॥३५॥

॥ सवैया ॥

रामगुलाम तुही हनुमान गोसाँइ सुसाँइ सदा अनुकूलो।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥
बाँहकी बेदन बाँहपगार पुकारत आरत आनँद भूलो।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो॥३६॥

॥ घनाक्षरी ॥

कालकी करालता करम कठिनाई कीधौं, पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डावरे॥
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहूँ तावरे।
भूतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान, जानियत सबहीकी रीति राम रावरे॥३७॥

पाँयपीर पेटपीर बाँहपीर मुँहपीर, जरजर सकल सरीर पीरमई है।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहिपर दवरि दमानक सी दई है॥
हौं तो बिन मोलके बिकानो बलि बारेही तें, ओट रामनामकी ललाट लिखि लई है।
कुंभज के किंकर बिकल बूड़े गोखुरनि, हाय रामराय ऐसी हाल कहूँ भई है॥३८॥

बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर-केतुजा कुरोग जातुधान है।
राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान है॥
सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान है।
तुलसी सँभारि ताड़का-सँहारि भारि भट, बेधे बरगदसे बनाइ बानवान हैं॥३९॥

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, रामनाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं।
पर्यो लोकरीतिमें पुनीत प्रीति रामराय, मोहबस बैठो तोरि तरकितराक हौं॥
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं।
तुलसी गोसाइँ भयो भोंड़े दिन भूलि गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥४०॥

असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय-हाय को।
तुलसी अनाथसो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सीलसिंधु आपने सुभायको॥
नीच यहि बीच पति पाइ भरुहाइगो, बिहाइ प्रभु-भजन बचन मन काय को।
तातें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि-फूटि निकसत लोन रामरायको॥४१॥

जिओं जग जानकीजीवनको कहाइ जन, मरिबेको बारानसी बारि सुरसरि को।
तुलसीके दुहूँ हाथ मोदक है ऐसे ठाउँ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरिको॥
मोको झूठो साँचो लोग रामको कहत सब, मेरे मन मान है न हरको न हरिको।
भारी पीर दुसह सरीरतें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करिको॥४२॥

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेसको महेस मानो गुरु कै।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुरकै॥
ब्याधि भूतजनित उपाधि काहू खलकी, समाधि कीजे तुलसीको जानि जन फुरकै।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोगसिंधु क्यों न डारियत गाय खुरकै॥४३॥

कहों हनुमानसों सुजान रामरायसों, कृपानिधान संकरसों सावधान सुनिये।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरंचि सब देखियत दुनिये॥
माया जीव कालके करमके सुभायके, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये।
तुम्हतें कहा न होय हाहा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौन ही बयो सो जानि लुनिये॥४४॥

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श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक | Shri Sankatmochan Hanumanashtak

Bhagwan Hanuman ji

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श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक |Shri Sankatmochan Hanumanashtak

बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सो जात न टारो।
देवन आनि करी विनती तब, छाँड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सों जु, बिना सुधि लाए इहां पगुधारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब, लाय सिया-सुधि प्रान उबारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥

रावन त्रास दई सिय को तब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय अशोक सों आगिसु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥

बाण लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु-बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्राण उबारो ॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥५॥

रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारोI
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥६॥

बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समेत संहारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥७॥

काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥

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Sri Anjaneya Ashtottara Shatanamavali – श्री आञ्जनेय अष्टोत्तरशतनामावली

Bhagwan Hanuman ji

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Sri Anjaneya Ashtottara Shatanamavali – श्री आञ्जनेय अष्टोत्तरशतनामावली

  1. ॐ आञ्जनेयाय नमः।
  2. ॐ महावीराय नमः।
  3. ॐ हनुमते नमः।
  4. ॐ मारुतात्मजाय नमः।
  5. ॐ तत्त्वज्ञानप्रदाय नमः।
  6. ॐ सीतादेवीमुद्राप्रदायकाय नमः।
  7. ॐ अशोकवनिकाच्छेत्रे नमः।
  8. ॐ सर्वमायाविभञ्जनाय नमः।
  9. ॐ सर्वबन्धविमोक्त्रे नमः।
  10. ॐ रक्षोविध्वंसकारकाय नमः।
  11. ॐ परविद्यापरीहाराय नमः।
  12. ॐ परशौर्यविनाशनाय नमः।
  13. ॐ परमन्त्रनिराकर्त्रे नमः।
  14. ॐ परयन्त्रप्रभेदकाय नमः।
  15. ॐ सर्वग्रहविनाशिने नमः।
  16. ॐ भीमसेनसहायकृते नमः।
  17. ॐ सर्वदुःखहराय नमः।
  18. ॐ सर्वलोकचारिणे नमः।
  19. ॐ मनोजवाय नमः।
  20. ॐ पारिजातद्रुमूलस्थाय नमः।
  21. ॐ सर्वमन्त्रस्वरूपवते नमः।
  22. ॐ सर्वतन्त्रस्वरूपिणे नमः।
  23. ॐ सर्वयन्त्रात्मकाय नमः।
  24. ॐ कपीश्वराय नमः।
  25. ॐ महाकायाय नमः।
  26. ॐ सर्वरोगहराय नमः।
  27. ॐ प्रभवे नमः।
  28. ॐ बलसिद्धिकराय नमः।
  29. ॐ सर्वविद्यासम्पत्प्रदायकाय नमः।
  30. ॐ कपिसेनानायकाय नमः।
  31. ॐ भविष्यच्चतुराननाय नमः।
  32. ॐ कुमारब्रह्मचारिणे नमः।
  33. ॐ रत्नकुण्डलदीप्तिमते नमः।
  34. ॐ सञ्चलद्वालसन्नद्धलम्बमानशिखोज्ज्वलाय नमः।
  35. ॐ गन्धर्वविद्यातत्त्वज्ञाय नमः।
  36. ॐ महाबलपराक्रमाय नमः।
  37. ॐ कारागृहविमोक्त्रे नमः।
  38. ॐ शृङ्खलाबन्धमोचकाय नमः।
  39. ॐ सागरोत्तारकाय नमः।
  40. ॐ प्राज्ञाय नमः।
  41. ॐ रामदूताय नमः।
  42. ॐ प्रतापवते नमः।
  43. ॐ वानराय नमः।
  44. ॐ केसरीसुताय नमः।
  45. ॐ सीताशोकनिवारकाय नमः।
  46. ॐ अञ्जनागर्भसम्भूताय नमः।
  47. ॐ बालार्कसदृशाननाय नमः।
  48. ॐ विभीषणप्रियकराय नमः।
  49. ॐ दशग्रीवकुलान्तकाय नमः।
  50. ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः।
  51. ॐ वज्रकायाय नमः।
  52. ॐ महाद्युतये नमः।
  53. ॐ चिरञ्जीविने नमः।
  54. ॐ रामभक्ताय नमः।
  55. ॐ दैत्यकार्यविघातकाय नमः।
  56. ॐ अक्षहन्त्रे नमः।
  57. ॐ काञ्चनाभाय नमः।
  58. ॐ पञ्चवक्त्राय नमः।
  59. ॐ महातपसे नमः।
  60. ॐ लङ्किणीभञ्जनाय नमः।
  61. ॐ श्रीमते नमः।
  62. ॐ सिंहिकाप्राणभञ्जनाय नमः।
  63. ॐ गन्धमादनशैलस्थाय नमः।
  64. ॐ लङ्कापुरविदाहकाय नमः।
  65. ॐ सुग्रीवसचिवाय नमः।
  66. ॐ धीराय नमः।
  67. ॐ शूराय नमः।
  68. ॐ दैत्यकुलान्तकाय नमः।
  69. ॐ सुरार्चिताय नमः।
  70. ॐ महातेजसे नमः।
  71. ॐ रामचूडामणिप्रदाय नमः।
  72. ॐ कामरूपिणे नमः।
  73. ॐ पिङ्गलाक्षाय नमः।
  74. ॐ वार्धिमैनाकपूजिताय नमः।
  75. ॐ कबलीकृतमार्ताण्डमण्डलाय नमः।
  76. ॐ विजितेन्द्रियाय नमः।
  77. ॐ रामसुग्रीवसन्धात्रे नमः।
  78. ॐ महिरावणमर्दनाय नमः।
  79. ॐ स्फटिकाभाय नमः।
  80. ॐ वागधीशाय नमः।
  81. ॐ नवव्याकृतिपण्डिताय नमः।
  82. ॐ चतुर्बाहवे नमः।
  83. ॐ दीनबन्धवे नमः।
  84. ॐ महात्मने नमः।
  85. ॐ भक्तवत्सलाय नमः।
  86. ॐ सञ्जीवननगाहर्त्रे नमः।
  87. ॐ शुचये नमः।
  88. ॐ वाग्मिने नमः।
  89. ॐ दृढव्रताय नमः।
  90. ॐ कालनेमिप्रमथनाय नमः।
  91. ॐ हरिमर्कटमर्कटाय नमः।
  92. ॐ दान्ताय नमः।
  93. ॐ शान्ताय नमः।
  94. ॐ प्रसन्नात्मने नमः।
  95. ॐ शतकण्ठमदापहृते नमः।
  96. ॐ योगिने नमः।
  97. ॐ रामकथालोलाय नमः।
  98. ॐ सीतान्वेषणपण्डिताय नमः।
  99. ॐ वज्रदंष्ट्राय नमः।
  100. ॐ वज्रनखाय नमः।
  101. ॐ रुद्रवीर्यसमुद्भवाय नमः।
  102. ॐ इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्रविनिवारकाय नमः।
  103. ॐ पार्थध्वजाग्रसंवासिने नमः।
  104. ॐ शरपञ्जरभेदकाय नमः।
  105. ॐ दशबाहवे नमः।
  106. ॐ लोकपूज्याय नमः।
  107. ॐ जाम्बवत्प्रीतिवर्धनाय नमः।
  108. ॐ सीतासमेतश्रीरामपादसेवाधुरन्धराय नमः।

॥ इति श्री आञ्जनेय अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Anjaneya Ashtottara Shatanama stotram – श्री हनुमत् अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

Hanuman Ji

Hanuman Ji

Sri Anjaneya Ashtottara Shatanama stotram – श्री हनुमत् अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

॥ ध्यान ॥

वन्दे विद्युज्ज्वलनविलसद्ब्रह्मसूत्रैकनिष्ठं
कर्णद्वन्द्वे कनकरचिते कुण्डले धारयन्तम्।
सत्कौपीनं कपिचरवृतं कामरूं कपीन्द्रं
पुत्रं वायोरिनसुतसुखदं वज्रदेहं वरेयम्।।

॥ स्तोत्र ॥

आञ्जनेयो महावीरः हनुमान्मारुतात्मजः ।
तत्त्वज्ञानप्रदायकः सीतामुद्राप्रदायकः ॥ १ ॥

अशोकवनिकाच्छेत्ता सर्वमायाविभञ्जनः ।
सर्वबन्धविमोक्ता च रक्षोविध्वंसकारकः ॥ २ ॥

परविद्यापरीहारः परशौर्यविनाशनः ।
परमन्त्रनिराकर्ता परयन्त्रप्रभेदकः ॥ ३ ॥

सर्वग्रहविनाशी च भीमसेनसहायकृत् ।
सर्वदुःखहरः सर्वलोकचारी मनोजवः ॥ ४ ॥

पारिजातद्रुमूलस्थः सर्वमन्त्रस्वरूपवान् ।
सर्वतन्त्रस्वरूपी च सर्वयन्त्रात्मकश्च वै ॥ ५ ॥

कपीश्वरो महाकायः सर्वरोगहरः प्रभुः ।
बलसिद्धिकरः सर्वविद्यासम्पत्प्रदायकः ॥ ६ ॥

कपिसेनानायकश्च भविष्यच्चतुराननः ।
कुमारब्रह्मचारी च रत्नकुण्डलदीप्तिमान् ॥ ७ ॥

सञ्चलद्बालसन्नद्धलम्बमानशिखोज्ज्वलः ।
गन्धर्वविद्यातत्त्वज्ञो महाबलपराक्रमः ॥ ८ ॥

कारागृहविमोक्ता च शृङ्खलाबन्धमोचकः ।
सागरोत्तारकः प्राज्ञः रामदूतः प्रतापवान् ॥ ९ ॥

वानरः केसरिसुतः सीताशोकनिवारणः ।
अञ्जनागर्भसम्भूतो बालार्कसदृशाननः ॥ १० ॥

विभीषणप्रियकरो दशग्रीवकुलान्तकः ।
लक्ष्मणप्राणदाता च वज्रकायो महाद्युतिः ॥ ११ ॥

चिरजीवी रामभक्तो दैत्यकार्यविघातकः ।
अक्षहन्ता काञ्चनाभः पञ्चवक्त्रो महातपाः ॥ १२ ॥

लङ्किनीभञ्जनः श्रीमान् सिंहिकाप्राणभञ्जनः ।
गन्धमादनशैलस्थः लङ्कापुरविदाहकः ॥ १३ ॥

सुग्रीवसचिवो धीरः शूरो दैत्यकुलान्तकः ।
सुरार्चितो महातेजा रामचूडामणिप्रदः ॥ १४ ॥

कामरूपी पिङ्गलाक्षो वार्धिमैनाकपूजितः ।
कवलीकृतमार्ताण्डमण्डलो विजितेन्द्रियः ॥ १५ ॥

रामसुग्रीवसन्धाता महारावणमर्दनः ।
स्फटिकाभो वागधीशो नवव्याकृतिपण्डितः ॥ १६ ॥

चतुर्बाहुर्दीनबन्धुर्महात्मा भक्तवत्सलः ।
सञ्जीवननगाहर्ता शुचिर्वाग्मी दृढव्रतः ॥ १७ ॥

कालनेमिप्रमथनो हरिमर्कटमर्कटः ।
दान्तः शान्तः प्रसन्नात्मा शतकण्ठमदापहृत् ॥ १८ ॥

योगी रामकथालोलः सीतान्वेषणपण्डितः ।
वज्रदंष्ट्रो वज्रनखो रुद्रवीर्यसमुद्भवः ॥ १९ ॥

इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्रविनिवारकः ।
पार्थध्वजाग्रसंवासी शरपञ्जरभेदकः ॥ २० ॥

दशबाहुर्लोकपूज्यो जाम्बवत्प्रीतिवर्धनः ।
सीतासमेतश्रीरामपादसेवाधुरन्धरः ॥ २१ ॥

॥ इति श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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श्री राम स्तुति | Shri Ram Stuti | Download Free PDF

Ram-Sita

Ram-Sita

श्री राम स्तुति | Shri Ram Stuti

श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणम्।
नव कंजलोचन कंज मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्॥

कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥

भज दीनबंधु दिनेश दानव दैत्यवंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथ नन्दनम्॥

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणम्॥

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादी खलदल गंजनम्॥

मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुणा निधान सुजान शील सनेहू, जानत रावरो॥

एहि भांति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषी अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥

॥ दोहा ॥
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥

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Shri Rama Ashtottara Shatanamavali – श्री राम अष्टोत्तरनामावली

Rama ji

Rama ji

Shri Rama Ashtottara Shatanamavali – श्री राम अष्टोत्तरनामावली

  1. ॐ श्रीरामाय नमः।
  2. ॐ रामभद्राय नमः।
  3. ॐ रामचन्द्राय नमः।
  4. ॐ शाश्वताय नमः।
  5. ॐ राजीवलोचनाय नमः।
  6. ॐ श्रीमते नमः।
  7. ॐ राजेन्द्राय नमः।
  8. ॐ रघुपुङ्गवाय नमः।
  9. ॐ जानकीवल्लभाय नमः।
  10. ॐ जैत्राय नमः।
  11. ॐ जितामित्राय नमः।
  12. ॐ जनार्दनाय नमः।
  13. ॐ विश्वामित्रप्रियाय नमः।
  14. ॐ दान्ताय नमः।
  15. ॐ शरणत्राणतत्पराय नमः।
  16. ॐ वालिप्रमथनाय नमः।
  17. ॐ वाग्मिने नमः।
  18. ॐ सत्यवाचे नमः।
  19. ॐ सत्यविक्रमाय नमः।
  20. ॐ सत्यव्रताय नमः।
  21. ॐ व्रतधराय नमः।
  22. ॐ सदाहनुमदाश्रिताय नमः।
  23. ॐ कौसलेयाय नमः।
  24. ॐ खरध्वंसिने नमः।
  25. ॐ विराधवधपण्डिताय नमः।
  26. ॐ विभीषणपरित्रात्रे नमः।
  27. ॐ हरकोदण्डखण्डनाय नमः।
  28. ॐ सप्ततालप्रभेत्त्रे नमः।
  29. ॐ दशग्रीवशिरोहराय नमः।
  30. ॐ जामदग्न्यमहादर्पदलनाय नमः।
  31. ॐ ताटकान्तकाय नमः।
  32. ॐ वेदान्तसाराय नमः।
  33. ॐ वेदात्मने नमः।
  34. ॐ भवरोगस्यभेषजाय नमः।
  35. ॐ दूषणत्रिशिरोहन्त्रे नमः।
  36. ॐ त्रिमूर्तये नमः।
  37. ॐ त्रिगुणात्मकाय नमः।
  38. ॐ त्रिविक्रमाय नमः।
  39. ॐ त्रिलोकात्मने नमः।
  40. ॐ पुण्यचारित्रकीर्तनाय नमः।
  41. ॐ त्रिलोकरक्षकाय नमः।
  42. ॐ धन्विने नमः।
  43. ॐ दण्डकारण्यकर्तनाय नमः।
  44. ॐ अहल्याशापशमनाय नमः।
  45. ॐ पितृभक्ताय नमः।
  46. ॐ वरप्रदाय नमः।
  47. ॐ जितेन्द्रियाय नमः।
  48. ॐ जितक्रोधाय नमः।
  49. ॐ जितामित्राय नमः।
  50. ॐ जगद्गुरवे नमः।
  51. ॐ ऋक्षवानरसङ्घातिने नमः।
  52. ॐ चित्रकूटसमाश्रयाय नमः।
  53. ॐ जयन्तत्राणवरदाय नमः।
  54. ॐ सुमित्रापुत्रसेविताय नमः।
  55. ॐ सर्वदेवाधिदेवाय नमः।
  56. ॐ मृतवानरजीवनाय नमः।
  57. ॐ मायामारीचहन्त्रे नमः।
  58. ॐ महादेवाय नमः।
  59. ॐ महाभुजाय नमः।
  60. ॐ सर्वदेवस्तुताय नमः।
  61. ॐ सौम्याय नमः।
  62. ॐ ब्रह्मण्याय नमः।
  63. ॐ मुनिसंस्तुताय नमः।
  64. ॐ महायोगिने नमः।
  65. ॐ महोदाराय नमः।
  66. ॐ सुग्रीवेप्सितराज्यदाय नमः।
  67. ॐ सर्वपुण्याधिकफलाय नमः।
  68. ॐ स्मृतसर्वाघनाशनाय नमः।
  69. ॐ आदिपुरुषाय नमः।
  70. ॐ परमपुरुषाय नमः।
  71. ॐ महापुरुषाय नमः।
  72. ॐ पुण्योदयाय नमः।
  73. ॐ दयासाराय नमः।
  74. ॐ पुराणपुरुषोत्तमाय नमः।
  75. ॐ स्मितवक्त्राय नमः।
  76. ॐ मितभाषिणे नमः।
  77. ॐ पूर्वभाषिणे नमः।
  78. ॐ राघवाय नमः।
  79. ॐ अनन्तगुणगम्भीराय नमः।
  80. ॐ धीरोदात्तगुणोत्तमाय नमः।
  81. ॐ मायामानुषचारित्राय नमः।
  82. ॐ महादेवादिपूजिताय नमः।
  83. ॐ सेतुकृते नमः।
  84. ॐ जितवाराशये नमः।
  85. ॐ सर्वतीर्थमयाय नमः।
  86. ॐ हरये नमः।
  87. ॐ श्यामाङ्गाय नमः।
  88. ॐ सुन्दराय नमः।
  89. ॐ शूराय नमः।
  90. ॐ पीतवाससे नमः।
  91. ॐ धनुर्धराय नमः।
  92. ॐ सर्वयज्ञाधिपाय नमः।
  93. ॐ यज्विने नमः।
  94. ॐ जरामरणवर्जिताय नमः।
  95. ॐ विभीषणप्रतिष्ठात्रे नमः।
  96. ॐ सर्वावगुणवर्जिताय नमः।
  97. ॐ परमात्मने नमः।
  98. ॐ परस्मै ब्रह्मणे नमः।
  99. ॐ सच्चिदानन्दविग्रहाय नमः।
  100. ॐ परस्मै ज्योतिषे नमः।
  101. ॐ परस्मै धाम्ने नमः।
  102. ॐ पराकाशाय नमः।
  103. ॐ परात्पराय नमः।
  104. ॐ परेशाय नमः।
  105. ॐ पारगाय नमः।
  106. ॐ पाराय नमः।
  107. ॐ सर्वदेवात्मकाय नमः।
  108. ॐ परस्मै नमः।

॥ इति श्री राम अष्टोत्तरनामावली ॥

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Shri Rama Ashtottara Shatanama Stotram – श्री राम अष्टोत्तरनाम स्तोत्रम्

Ram ji

Ram ji

Shri Rama Ashtottara Shatanama Stotram – श्री राम अष्टोत्तरनाम स्तोत्रम्

।। ध्यान ।।

श्रीराघवं दशरथात्मजमप्रमेयं सीतापतिं रघुकुलान्वयरत्नदीपम्।
आजानुबाहुमरविन्ददलायताक्षं रामं निशाचरविनाशकरं नमामि।।

।। स्तोत्र ।।

श्रीरामो रामभद्रश्च रामचन्द्रश्च शाश्वतः ।
राजीवलोचनः श्रीमान् राजेन्द्रो रघुपुङ्गवः ॥ १ ॥

जानकीवल्लभो जैत्रो जितामित्रो जनार्दनः ।
विश्वामित्रप्रियो दान्तः शरणत्राणतत्परः ॥ २ ॥

वालिप्रमथनो वाग्मी सत्यवाक्सत्यविक्रमः ।
सत्यव्रतो व्रतधरः सदा हनुमदाश्रितः ॥ ३ ॥

कौसलेयः खरध्वंसी विराधवधपण्डितः ।
विभीषणपरित्राता हरकोदण्डखण्डनः ॥ ४ ॥

सप्ततालप्रभेत्ता च दशग्रीवशिरोहरः ।
जामदग्न्यमहादर्पदलनस्ताटकान्तकः ॥ ५ ॥

वेदान्तसारो वेदात्मा भवरोगस्यभेषजम् ।
दूषणत्रिशिरोहन्ता त्रिमूर्तिस्त्रिगुणात्मकः ॥ ६ ॥

त्रिविक्रमस्त्रिलोकात्मा पुण्यचारित्रकीर्तनः ।
त्रिलोकरक्षको धन्वी दण्डकारण्यकर्तनः ॥ ७ ॥

अहल्याशापशमनः पितृभक्तो वरप्रदः ।
जितेन्द्रियो जितक्रोधो जितामित्रो जगद्गुरुः ॥ ८ ॥

ऋक्षवानरसंघाती चित्रकूटसमाश्रयः ।
जयन्तत्राणवरदः सुमित्रापुत्रसेवितः ॥ ९ ॥

सर्वदेवादिदेवश्च मृतवानरजीवनः ।
मायामारीचहन्ता च महादेवो महाभुजः ॥ १० ॥

सर्वदेवस्तुतः सौम्यो ब्रह्मण्यो मुनिसंस्तुतः ।
महायोगो महोदारः सुग्रीवेप्सितराज्यदः ॥ ११ ॥

सर्वपुण्याधिकफलः स्मृतसर्वाघनाशनः ।
अनादिरादिपुरुषः महापुरुष एव च ॥ १२ ॥

पुण्योदयो दयासारः पुराणपुरुषोत्तमः ।
स्मितवक्त्रो स्मिताभाषी पूर्वभाषी च राघवः ॥ १३ ॥

अनन्तगुणगम्भीरो धीरोदात्तगुणोत्तमः ।
मायामानुषचारित्रो महादेवादिपूजितः ॥ १४ ॥

सेतुकृज्जितवारीशः सर्वतीर्थमयो हरिः ।
श्यामाङ्गः सुन्दरः शूरः पीतवासा धनुर्धरः ॥ १५ ॥

सर्वयज्ञाधिपो यज्वा जरामरणवर्जितः ।
शिवलिङ्गप्रतिष्ठाता सर्वापगुणवर्जितः ॥ १६ ॥

परमात्मा परं ब्रह्म सच्चिदानन्दविग्रहः ।
परं ज्योतिः परं धाम पराकाशः परात्परः ।।१७।।

परेशः पारगः पारः सर्वदेवात्मकः परः ॥ १८ ॥

।। इति श्रीपद्मपुराणे उत्तरखण्डे श्ररामाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

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Sri Ganga (108) Ashtottara Shatanam Stotram- श्री गंगा अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

ganga Mata

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Sri Ganga Ashtottara Shatanama Stotram-श्री गंगा अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

॥ ध्यान ॥

सितमकरनिषण्णां शुभ्रवर्णां त्रिनेत्रां करधृतकलशोद्यत्सोत्पलामत्यभीष्टाम्।
विधिहरिहररूपां सेन्दुकोटीरचूडां कलितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि॥

॥ स्तोत्र ॥

॥ श्री नारद उवाच ॥

गङ्गा नाम परं पुण्यं कथितं परमेश्वर।
नामानि कति शस्तानि गङ्गायाः प्रणिशंस मे॥१॥

॥ श्री महादेव उवाच ॥

नाम्नां सहस्त्रमध्ये तु नामाष्टशतमुत्तमम्।
जाह्नव्या मुनिशार्दूल तानि मे शृणु तत्त्वतः॥२॥

ॐ गङ्गा त्रिपथगा देवी शम्भुमौलिविहारिणी।
जाह्नवी पापहन्त्री च महापातकनाशिनी॥३॥

पतितोद्धारिणी स्त्रोतस्वती परमवेगिनी।
विष्णुपादाब्जसम्भूता विष्णुदेहकृतालया॥४॥

स्वर्गाब्धिनिलया साध्वी स्वर्णदी सुरनिम्नगा।
मन्दाकिनी महावेगा स्वर्णशृङ्गप्रभेदिनी॥५॥

देवपूज्यतमा दिव्या दिव्यस्थाननिवासिनी।
सुचारुनीररुचिरा महापर्वतभेदिनी॥६॥

भागीरथी भगवती महामोक्षप्रदायिनी।
सिन्धुसङ्गगता शुद्धा रसातलनिवासिनी॥७॥

महाभोगा भोगवती सुभगानन्ददायिनी।
महापापहरा पुण्या परमाह्लाददायिनी॥८॥

पार्वती शिवपत्नी च शिवशीर्षगतालया।
शम्भोर्जटामध्यगता निर्मला निर्मलानना॥९॥

महाकलुषहन्त्री च जह्नुपुत्री जगत्प्रिया।
त्रेलोक्यपावनी पूर्णा पूर्णब्रह्मस्वरूपिणी॥१०॥

जगत्पूज्यतमा चारुरूपिणी जगदम्बिका।
लोकानुग्रहकर्त्री च सर्वलोकदयापरा॥११॥

याम्यभीतिहरा तारा पारा संसारतारिणी।
ब्रह्माण्डभेदिनी ब्रह्मकमण्डलुकृतालया॥१२॥

सौभाग्यदायिनी पुंसां निर्वाणपददायिनी।
अचिन्त्यचरिता चारुरुचिरातिमनोहरा॥१३॥

मर्त्यस्था मृत्युभयहा स्वर्गमोक्षप्रदायिनी।
पापापहारिणी दूरचारिणी वीचिधारिणी॥१४॥

कारुण्यपूर्णा करुणामयी दुरितनाशिनी।
गिरिराजसुता गौरीभगिनी गिरिशप्रिया॥१५॥

मेनकागर्भसम्भूता मैनाकभगिनीप्रिया।
आद्या त्रिलोकजननी त्रैलोक्यपरिपालिनी॥१६॥

तीर्थश्रेष्ठतमा श्रेष्ठा सर्वतीर्थमयी शुभा।
चतुर्वेदमयी सर्वा पितृसंतृप्तिदायिनी॥१७॥

शिवदा शिवसायुज्यदायिनी शिववल्लभा।
तेजस्विनी त्रिनयना त्रिलोचनमनोरमा॥१८॥

सप्तधारा शतमुखी सगरान्वयतारिणी।
मुनिसेव्या मुनिसुता जह्नुजानुप्रभेदिनी॥१९॥

मकरस्था सर्वगता सर्वाशुभनिवारिणी।
सुदृश्या चाक्षुषीतृप्तिदायिनी मकरालया॥२०॥

सदानन्दमयी नित्यानन्ददा नगपूजिता।
सर्वदेवाधिदेवैश्च परिपूज्यपदाम्बुजा॥२१॥

एतानि मुनिशार्दूल नामानि कथितानि ते।
शस्तानि जाह्नवीदेव्याः सर्वपापहराणि च॥२२॥

य इदं पठते भक्त्या प्रातरुत्थाय नारद।
गङ्गायाः परमं पुण्यं नामाष्टशतमेव हि॥२३॥

तस्य पापानि नश्यन्ति ब्रह्महत्यादिकान्यपि।
आरोग्यमतुलं सौख्यं लभते नात्र संशयः॥२४॥

यत्र कुत्रापि संस्नायात्पठेत्स्तोत्रमनुत्तमम्।
तत्रैव गङ्गास्नानस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम्॥२५॥

प्रत्यहं प्रपठेदेतद् गङ्गानामशताष्टकम्।
सोऽन्ते गङ्गामनुप्राप्य प्रयाति परमं पदम्॥२६॥

गङ्गायां स्नानसमये यः पठेद्भक्त्तिसंयुतः।
सोऽश्वमेधसहस्त्राणां फलमाप्नोति मानवः॥२७॥

गवामयुतदानस्य यत्फलं समुदीरितम्।
तत्फलं समवाप्नोति पञ्चम्यां प्रपठन्नरः॥२८॥

कार्तिक्यां पौर्णमास्यां तु स्नात्वा सागरसङ्गमे।
यः पठेत्स महेशत्वं याति सत्यं न संशयः॥२९॥

॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे श्री गंगाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

Sri Ganga (108) Ashtottara Shatanamavali – श्री गंगा  अष्टोत्तरशतनामावली

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श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् | Sri Ashtalakshmi Stotram | Download Free PDF

Maa Ashth Laxmi

Maa Ashth Laxmi

श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् | Sri Ashtalakshmi Stotram

देवी लक्ष्मी के आठ रूपों को सयुंक्त रूप से अष्टलक्ष्मी कहा जाता है। देवी आदिलक्ष्मी, देवी धान्यलक्ष्मी, देवी धैर्यलक्ष्मी, देवी गजलक्ष्मी, देवी सन्तानलक्ष्मी, देवी विजयलक्ष्मी, देवी विद्यालक्ष्मी तथा देवी धनलक्ष्मी आदि देवी महालक्ष्मी के आठ भिन्न – भिन्न रूप हैं। इन आठ देविओं की कृपा प्राप्त करने हेतु श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।

 

श्री अष्ट लक्ष्मी यंत्र

श्री अष्ट लक्ष्मी यंत्र में देवी लक्ष्मी के 8 रूपों को निर्मित होता हैं।

सोने, चांदी अथवा भोजपत्र पर हस्तलिखित श्री अष्ट लक्ष्मी यंत्र की स्थापना कर स्तोत्र का पाठ करना शुभ फलदाई रहता है। हमारे यहां भोजपत्र पर विशेष शुभ मुहूर्त में अनार की कलम तथा अष्टगंध से युक्त स्याही द्वारा हस्तलिखित श्री अष्ट लक्ष्मी यंत्र बनाए हुए उपलब्ध हैं।

॥ आद्यलक्ष्मी ॥

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,चन्द्र सहोदरि हेममये
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायनि,मञ्जुळभाषिणि वेदनुते।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित,सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,आदिलक्ष्मि सदा पालय माम्॥१॥

देवी तुम सभी भले मनुष्यों (सु-मनस) के द्वारा वन्दित, सुंदरी, माधवी (माधव की पत्नी), चन्द्र की बहन, स्वर्ण (सोना) की मूर्त रूप, मुनिगणों से घिरी हुई, मोक्ष देने वाली, मृदु और मधुर शब्द कहने वाली, वेदों के द्वारा प्रशंसित हो।”

॥ अमृतलक्ष्मी ॥

अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि,वैदिकरूपिणि वेदमये
क्षीरसमुद्भव मङ्गलरूपिणि,मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि,देवगणाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम् ॥२॥

हे अमृतलक्ष्मी, तुम प्रभु की प्रिय हो, कलि युग के दोषों का नाश करती हो, तुम वेदों का साक्षात् रूप हो, तुम क्षीरसमुद्र से जन्मी हो, तुम्हारा रूप मंगल करने वाला है, मंत्रो में तुम्हारा निवास है और तुम मन्त्रों से ही पूजित हो।

तुम सभी को मंगल प्रदान करती हो, तुम अम्बुज (कमल) में निवास करती हो, सभी देवगण तुहारे चरणों में आश्रय पाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी धान्य लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।”

॥ योगलक्ष्मी ॥

जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि,मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद,ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि,साधुजनाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूधन कामिनि,धैर्यलक्ष्मी सदा पालय माम् ॥३॥

हे वैष्णवी, तुम विजय का वरदान देती हो, तुमने भार्गव ऋषि की कन्या के रूप में अवतार लिया, तुम मंत्रस्वरुपिणी हो मन्त्रों बसती हो, देवताओं के द्वारा पूजित हे देवी तुम शीघ्र ही पूजा का फल देती हो, तुम ज्ञान में वृद्धि करती हो, शास्त्र तुम्हारा गुणगान करते हैं।

तुम सांसारिक भय को हरने वाली, पापों से मुक्ति देने वाली हो, साधू जन तुम्हारे चरणों में आश्रय पाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी धैर्य लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।”

॥ सत्यलक्ष्मी ॥

जय जय दुर्गतिनाशिनि कामिनि,सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत,परिजनमण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,तापनिवारिणि पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥४॥

हे दुर्गति का नाश करने वाली विष्णु प्रिया, सभी प्रकार के फल (वर) देने वाली, शास्त्रों में निवास करने वाली देवी तुम जय-जयकार हो, तुम रथों, हाथी-घोड़ों और सेनाओं से घिरी हुई हो, सभी लोकों में तुम पूजित हो।

तुम हरि, हर (शिव) और ब्रह्मा के द्वारा पूजित हो, तुम्हारे चरणों में आकर सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी गज लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।’

॥ सौभाग्यलक्ष्मी ॥

अहिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि,रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,स्वरसप्त भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,मानववन्दित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम् ॥५॥

गरुड़ तुम्हारा वाहन है, मोह में डालने वाली, चक्र धारण करने वाली, राग (संगीत) से तुम्हारी पूजा होती है, तुम ज्ञानमयी हो, तुम सभी शुभ गुणों का समावेश हो, तुम समस्त लोक का हित करती हो, सप्त स्वरों के गान से तुम प्रशंसित हो।

सभी सुर (देवता), असुर, मुनि और मनुष्य तुम्हारे चरणों की वंदना करते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी संतान लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।”

॥ कमललक्ष्मी ॥

जय कमलासनि सद्गतिदायिनि,ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर,भूषित वासित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,शङ्कर देशिक मान्य पदे
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,विजयलक्ष्मी सदा पालय माम् ॥६॥

कमल के आसन पर विराजित देवी तुम्हारी जय हो, तुम भक्तों के ब्रह्मज्ञान को बढाकर उन्हें सद्गति प्रदान करती हो, तुम मंगलगान के रूप में व्याप्त हो, प्रतिदिन तुम्हारी अर्चना होने से तुम कुंकुम से ढकी हुई हो, मधुर वाद्यों से तुम्हारी पूजा होती है।

तुम्हारे चरणों के वैभव की प्रशंसा आचार्य शंकर और देशिक ने कनकधारा स्तोत्र में की है, मधुसूदन की प्रिय हे देवी विजय लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।”

॥ विद्यालक्ष्मी ॥

प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि,शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमयभूषित कर्णविभूषण,शान्तिसमावृत हास्यमुखे।
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि,कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥७॥

सुरेश्वरि को, भारति, भार्गवी, शोक का विनाश करने वाली, रत्नों से शोभित देवी को प्रणाम करो, विद्यालक्ष्मी के कर्ण (कान) मणियों से विभूषित हैं, उनके चेहरे का भाव शांत और मुख पर मुस्कान है।

देवी तुम नव निधि प्रदान करती हो, कलि युग के दोष हरती हो, अपने वरद हस्त से मनचाहा वर देती हो, मधुसूदन की प्रिय हे देवी विद्या लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।

॥ भोगलक्ष्मी ॥

धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि-धिंधिमि,दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम,शङ्खनिनाद सुवाद्यनुते।
वेदपूराणेतिहास सुपूजित,वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम् ॥८॥

दुन्दुभी (ढोल) के धिमि-धिमि स्वर से तुम परिपूर्ण हो, घुम-घुम-घुंघुम की ध्वनि करते हुए शंखनाद से तुम्हारी पूजा होती है, वेद, पुराण और इतिहास के द्वारा पूजित देवी तुम भक्तों को वैदिक मार्ग दिखाती हो, मधुसूदन की प्रिय हे देवी धन लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।”

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Sri Kamallakshmi Ashtottara Shatanamavali – श्री कमल लक्ष्मी अष्टोत्तरशतनामावली

Maa Kamal Laxmi

Maa Kamal Laxmi

Sri Kamallakshmi Ashtottara Shatanamavali – श्री कमल लक्ष्मी अष्टोत्तरशतनामावली

॥ कमल लक्ष्मी ॥

जय कमलासनि सद्गतिदायिनि,ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर,भूषित वासित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,शङ्कर देशिक मान्य पदे
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,विजयलक्ष्मी सदा पालय माम् ॥६॥

कमल के आसन पर विराजित देवी तुम्हारी जय हो, तुम भक्तों के ब्रह्मज्ञान को बढाकर उन्हें सद्गति प्रदान करती हो, तुम मंगलगान के रूप में व्याप्त हो, प्रतिदिन तुम्हारी अर्चना होने से तुम कुंकुम से ढकी हुई हो, मधुर वाद्यों से तुम्हारी पूजा होती है।

तुम्हारे चरणों के वैभव की प्रशंसा आचार्य शंकर और देशिक ने कनकधारा स्तोत्र में की है, मधुसूदन की प्रिय हे देवी विजय लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।’

  1. ॐ क्लीं ॐ विजयलक्ष्म्यै नमः।
  2. ॐ क्लीं ॐ अम्बिकायै नमः।
  3. ॐ क्लीं ॐ अम्बालिकायै नमः।
  4. ॐ क्लीं ॐ अम्बुधिशयनायै नमः।
  5. ॐ क्लीं ॐ अम्बुधये नमः।
  6. ॐ क्लीं ॐ अन्तकघ्न्यै नमः।
  7. ॐ क्लीं ॐ अन्तकर्त्र्यै नमः।
  8. ॐ क्लीं ॐ अन्तिमायै नमः।
  9. ॐ क्लीं ॐ अन्तकरूपिण्यै नमः।
  10. ॐ क्लीं ॐ ईड्यायै नमः।
  11. ॐ क्लीं ॐ इभास्यनुतायै नमः।
  12. ॐ क्लीं ॐ ईशानप्रियायै नमः।
  13. ॐ क्लीं ॐ ऊत्यै नमः।
  14. ॐ क्लीं ॐ उद्यद्भानुकोटिप्रभायै नमः।
  15. ॐ क्लीं ॐ उदाराङ्गायै नमः।
  16. ॐ क्लीं ॐ केलिपरायै नमः।
  17. ॐ क्लीं ॐ कलहायै नमः।
  18. ॐ क्लीं ॐ कान्तलोचनायै नमः।
  19. ॐ क्लीं ॐ काञ्च्यै नमः।
  20. ॐ क्लीं ॐ कनकधारायै नमः।
  21. ॐ क्लीं ॐ कल्यै नमः।
  22. ॐ क्लीं ॐ कनककुण्डलायै नमः।
  23. ॐ क्लीं ॐ खड्गहस्तायै नमः।
  24. ॐ क्लीं ॐ खट्वाङ्गवरधारिण्यै नमः।
  25. ॐ क्लीं ॐ खेटहस्तायै नमः।
  26. ॐ क्लीं ॐ गन्धप्रियायै नमः।
  27. ॐ क्लीं ॐ गोपसख्यै नमः।
  28. ॐ क्लीं ॐ गारुड्यै नमः।
  29. ॐ क्लीं ॐ गत्यै नमः।
  30. ॐ क्लीं ॐ गोहितायै नमः।
  31. ॐ क्लीं ॐ गोप्यायै नमः।
  32. ॐ क्लीं ॐ चिदात्मिकायै नमः।
  33. ॐ क्लीं ॐ चतुर्वर्गफलप्रदायै नमः।
  34. ॐ क्लीं ॐ चतुराकृत्यै नमः।
  35. ॐ क्लीं ॐ चकोराक्ष्यै नमः।
  36. ॐ क्लीं ॐ चारुहासायै नमः।
  37. ॐ क्लीं ॐ गोवर्धनधरायै नमः।
  38. ॐ क्लीं ॐ गुर्व्यै नमः।
  39. ॐ क्लीं ॐ गोकुलाभयदायिन्यै नमः।
  40. ॐ क्लीं ॐ तपोयुक्तायै नमः।
  41. ॐ क्लीं ॐ तपस्विकुलवन्दितायै नमः।
  42. ॐ क्लीं ॐ तापहारिण्यै नमः।
  43. ॐ क्लीं ॐ तार्क्षमात्रे नमः।
  44. ॐ क्लीं ॐ जयायै नमः।
  45. ॐ क्लीं ॐ जप्यायै नमः।
  46. ॐ क्लीं ॐ जरायवे नमः।
  47. ॐ क्लीं ॐ जवनायै नमः।
  48. ॐ क्लीं ॐ जनन्यै नमः।
  49. ॐ क्लीं ॐ जाम्बूनदविभूषायै नमः।
  50. ॐ क्लीं ॐ दयानिध्यै नमः।
  51. ॐ क्लीं ॐ ज्वालायै नमः।
  52. ॐ क्लीं ॐ जम्भवधोद्यतायै नमः।
  53. ॐ क्लीं ॐ दुःखहन्त्र्यै नमः।
  54. ॐ क्लीं ॐ दान्तायै नमः।
  55. ॐ क्लीं ॐ द्रुतेष्टदायै नमः।
  56. ॐ क्लीं ॐ दात्र्यै नमः।
  57. ॐ क्लीं ॐ दीनार्तिशमनायै नमः।
  58. ॐ क्लीं ॐ नीलायै नमः।
  59. ॐ क्लीं ॐ नागेन्द्रपूजितायै नमः।
  60. ॐ क्लीं ॐ नारसिंह्यै नमः।
  61. ॐ क्लीं ॐ नन्दिनन्दायै नमः।
  62. ॐ क्लीं ॐ नन्द्यावर्तप्रियायै नमः।
  63. ॐ क्लीं ॐ निधये नमः।
  64. ॐ क्लीं ॐ परमानन्दायै नमः।
  65. ॐ क्लीं ॐ पद्महस्तायै नमः।
  66. ॐ क्लीं ॐ पिकस्वरायै नमः।
  67. ॐ क्लीं ॐ पुरुषार्थप्रदायै नमः।
  68. ॐ क्लीं ॐ प्रौढायै नमः।
  69. ॐ क्लीं ॐ प्राप्त्यै नमः।
  70. ॐ क्लीं ॐ बलिसंस्तुतायै नमः।
  71. ॐ क्लीं ॐ बालेन्दुशेखरायै नमः।
  72. ॐ क्लीं ॐ बन्द्यै नमः।
  73. ॐ क्लीं ॐ बालग्रहविनाशन्यै नमः।
  74. ॐ क्लीं ॐ ब्राह्म्यै नमः।
  75. ॐ क्लीं ॐ बृहत्तमायै नमः।
  76. ॐ क्लीं ॐ बाणायै नमः।
  77. ॐ क्लीं ॐ ब्राह्मण्यै नमः।
  78. ॐ क्लीं ॐ मधुस्रवायै नमः।
  79. ॐ क्लीं ॐ मत्यै नमः।
  80. ॐ क्लीं ॐ मेधायै नमः।
  81. ॐ क्लीं ॐ मनीषायै नमः।
  82. ॐ क्लीं ॐ मृत्युमारिकायै नमः।
  83. ॐ क्लीं ॐ मृगत्वचे नमः।
  84. ॐ क्लीं ॐ योगिजनप्रियायै नमः।
  85. ॐ क्लीं ॐ योगाङ्गध्यानशीलायै नमः।
  86. ॐ क्लीं ॐ यज्ञभुवे नमः।
  87. ॐ क्लीं ॐ यज्ञवर्धिन्यै नमः।
  88. ॐ क्लीं ॐ राकायै नमः।
  89. ॐ क्लीं ॐ राकेन्दुवदनायै नमः।
  90. ॐ क्लीं ॐ रम्यायै नमः।
  91. ॐ क्लीं ॐ रणितनूपुरायै नमः।
  92. ॐ क्लीं ॐ रक्षोघ्न्यै नमः।
  93. ॐ क्लीं ॐ रतिदात्र्यै नमः।
  94. ॐ क्लीं ॐ लतायै नमः।
  95. ॐ क्लीं ॐ लीलायै नमः।
  96. ॐ क्लीं ॐ लीलानरवपुषे नमः।
  97. ॐ क्लीं ॐ लोलायै नमः।
  98. ॐ क्लीं ॐ वरेण्यायै नमः।
  99. ॐ क्लीं ॐ वसुधायै नमः।
  100. ॐ क्लीं ॐ वीरायै नमः।
  101. ॐ क्लीं ॐ वरिष्ठायै नमः।
  102. ॐ क्लीं ॐ शातकुम्भमय्यै नमः।
  103. ॐ क्लीं ॐ शक्त्यै नमः।
  104. ॐ क्लीं ॐ श्यामायै नमः।
  105. ॐ क्लीं ॐ शीलवत्यै नमः।
  106. ॐ क्लीं ॐ शिवायै नमः।
  107. ॐ क्लीं ॐ होरायै नमः।
  108. ॐ क्लीं ॐ हयगायै नमः।

॥ इति श्री कमललक्ष्मी अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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