Dhanteras , Yam Deep | धनतेरस पूजा , यम दीपम | धनत्रयोदशी तिथि और मुहूर्त
कार्तिक मास में प्रदोष व्रत और धनत्रयोदशी को लेकर काफी अधिक संदेह लोगों के मन में बना हुआ है। आज की इस पोस्ट में हम इसी संदेह का निवारण करेंगे मैंने स्वयं भी कई सारे लोगों की पोस्ट देखी है। इसको लेकर कई स्थानों पर अलग-अलग मैसेज चल रहा है कि 22 तारीख को ही धनत्रयोदशी है और 22 तारीख को ही प्रदोष व्रत है। लगभग सभी मित्र बंधुओं ने इसका कारण दिया कि 22 अक्टूबर दिन शनिवार शाम 6:02 से त्रयोदशी आरंभ हो जाएगी और 23 अक्टूबर दिन रविवार को शाम 6:03 पर त्रयोदशी समाप्त हो जाएगी। इसीलिए प्रदोष काल और वृषभ लग्न को ध्यान में रखते हुए स्वयं निर्धारित मर्मज्ञ पंडितों ने इसे 22 अक्टूबर को निर्धारित कर दिया है। इसमें शास्त्रों का अवलोकन कहीं भी नहीं किया गया है। क्योंकि दोनों ही दिन शाम के समय त्रयोदशी तिथि प्रदोष व्यापिनी है। इसके बारे में कालमाधवकार का यह वचन देखिए उन्होंने कहा है कि दोनों दिन प्रदोष में त्रयोदशी की आंशिक या संपूर्ण व्याप्ति की स्थिति में यह व्रत सदैव दूसरे दिन ही होता है। इसके लिए श्लोक
इस बारे कालमाधवकार का यह वचन देखिए-
‘प्रदोषव्यापिनी नक्ते तिथिः व्याप्तिर्दिनद्वये।
अत्याप्तिर्वाथवांशेन व्याप्तिः स्यात्सर्वथोत्तरा॥’
अतः उपरोक्त शास्त्र प्रमाण वाक्य के नियमानुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत और धनत्रयोदशी 23 अक्टूबर 2022 को ही मान्य है। जो कि सर्वथा शास्त्र सम्मत है।
Importance of Dhanteras | धनतेरस विशेष :
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवन्तरि (Dhanwantri) अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए इस तिथि को धनतेरस (Dhanteras) के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी (Dhanwantri) जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
दीपावली की रात भी लक्ष्मी माता के सामने साबुत धनिया रखकर पूजा करें। अगले दिन प्रातः साबुत धनिया को गमले में या बाग में बिखेर दें। माना जाता है कि साबुत धनिया से हरा भरा स्वस्थ पौधा निकल आता है तो आर्थिक स्थिति उत्तम होती है।
धनिया का पौधा हरा भरा लेकिन पतला है तो सामान्य आय का संकेत होता है। पीला और बीमार पौधा निकलता है या पौधा नहीं निकलता है तो आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
धनतेरस (Dhanteras) के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरीदें। इसके पीछे यह कारण है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि (Dhanwantri) जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।
Dhanteras | धनतेरस पौराणिक कथा:
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।
धनतेरस (Dhanteras) की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में रंगोली बना कर दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, एक समय एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धनतेरस पूजा विधि | Dhanteras Puja Vidhi :
इस दिन लक्ष्मी-गणेश और धनवंतरी पूजन का भी विशेष महत्व है।
धनतरेस पर धनवंतरी और लक्ष्मी गणेश की पूजा करने के लिए-
- सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना लें।
- इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें।
दिये को किसी चीज से ढक दें। - दिये के आस पास तीन बार गंगा जल छिड़कें।
- इसके बाद दीपक पर रोली का तिलक लगाएं और साथ चावल का भी तिलक लगाएं।
- इसके बाद दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं।
- फिर दीपक में १ रुपया रखें। रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें।
- इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें और परिवार के लोगों से भी आशीर्वाद लेने को कहें।
- इसके बाद यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें, ध्यान रखे कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो।
यमदीपदान विधि (Yum Deepdaan Vidhi) :
यमदीपदान विधिमें नित्य पूजा की थालीमें घिसा हुआ चंदन, पुष्प, हल्दी, कुमकुम, अक्षत अर्थात अखंड चावल इत्यादि पूजासामग्री होनी चाहिए । साथ ही आचमन के लिए ताम्रपात्र, पंच-पात्र, आचमनी ये वस्तुएं भी आवश्यक होती हैं । यमदीपदान करनेके लिए हल्दी मिलाकर गुंथे हुए गेहूं के आटे से बने विशेष दीपका उपयोग करते हैं ।
यमदीपदान (Yum Deepdaan) प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियाँ बना लें । उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई दें । अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें ।
प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पुजन करें । उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी-सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है । दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चारमुँह के दीपक को खील (लाजा) आदि की ढेरी के ऊपर रख दें –
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।
अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों ।
उक्त मन्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें ।
धन्वंतरि स्तोत्र:-
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:।
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय॥
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप।
श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
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