माघ मास का माहात्म्य चौथा अध्याय | Chapter 4 Magha Puran ki Katha

Magh mass chotha adhyay

माघ मास का माहात्म्य चौथा अध्याय

Chapter 4

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श्री वशिष्ठजी कहने लगे कि हे राजन! अब मैं माघ के उस माहात्म्य को कहता हूँ जो कार्तवीर्य के पूछने पर दत्तात्रेय ने कहा था।

जिस समय साक्षात विष्णु के रुप श्री दत्तात्रेय सत्य पर्वत पर रहते थे तब महिष्मति के राजा सहस्रार्जुन ने उनसे पूछा कि हे योगियों में श्रेष्ठ दत्तात्रेयजी! मैंने सब धर्म सुने। अब आप कृपा करके मुझे माघ मास का माहात्म्य (Magh Maas Mahatmya) कहिए। तब दत्तात्रेय जी बोले – जो नारदजी से ब्रह्माजी ने कहा था वही माघ माहात्म्य (Magh Maas Mahatmya) मैं तुमसे कहता हूँ। इस कर्म भूमि भारत में जन्म लेकर जिसने माघ स्नान नहीं किया उसका जन्म निष्फल गया।

भगवान की प्रसन्नता, पापों के नाश और स्वर्ग की प्राप्ति के लिए माघ स्नान अवश्य करना चाहिए। यदि यह पुष्ट व शुद्ध शरीर माघ स्नान के बिना ही रह जाए तो इसकी रक्षा करने से क्या लाभ! जल में बुलबुले के समान, मक्खी जैसे तुच्छ जंतु के समान यह शरीर माघ स्नान के बिना मरण समान है। विष्णु भगवान की पूजा न करने वाला ब्राह्मण, बिना दक्षिणा के श्राद्ध, ब्राह्मण रहित क्षेत्र, आचार रहित कुल ये सब नाश के बराबर हैं।

गर्व से धर्म का, क्रोध से तप का, गुरुजनों की सेवा न करने से स्त्री तथा ब्रह्मचारी, बिना जली अग्नि से हवन और बिना साक्षी के मुक्ति का नाश हो जाता है। जीविका के लिए कहने वाली कथा, अपने ही लिए बनाए हुए भोजन की क्रिया, शूद्र से भिक्षा लेकर किया हुआ यज्ञ तथा कंजूस का धन, यह सब नाश के कारण हैं। बिना अभ्यास और आलस्य वाली विद्या, असत्य वाणी, विरोध करने वाला राजा, जीविका के लिए तीर्थयात्रा, जीविका के लिए व्रत, संदेहयुक्त मंत्र का जप, व्यग्र चित्त होकर जप करना, वेद न जानने वाले को दान देना, संसार में नास्तिक मत ग्रहण करना, श्रद्धा बिना धार्मिक क्रिया, यह सब व्यर्थ है और जिस तरह दरिद्र का जीना व्यर्थ है उसी तरह माघ स्नान के बिना मनुष्य का जीना व्यर्थ है। ब्रह्मघाती, सोना चुराने वाला, मदिरा पीने वाला, गुरु-पत्नीगामी और इन चारों की संगति करने वाला माघ स्नान से पवित्र होता है।

जल कहता है कि सूर्योदय से पहले जो मुझसे स्नान करता है मैं उसके बड़े से बड़े पापों को नष्ट करता हूँ। महापातक भी स्नान करने से भस्म हो जाते हैं। माघ मास(Magh Maas) के स्नान का जब समय आ जाता है तो सब पाप अपने नाश के भय से काँप जाते हैं।

जैसे मेघों से मुक्त होकर चंद्रमा प्रकाश करता है वैसे ही श्रेष्ठ मनुष्य माघ मास में स्नान करके प्रकाशमान होते हैं। काया, वाचा, मनसा से किए हुए छोटे या बड़े, नए या पुराने सभी पाप स्नान से नष्ट हो जाते हैं। आलस्य में बिना जाने जो पाप किए हों वह भी नाश को प्राप्त होते हैं। जिस तरह जन्म-जन्मांतर के अभ्यास से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है उसी तरह जन्मान्तर अभ्यास से ही माघ स्नान में मनुष्य की रुचि होती है। यह अपवित्रों को पवित्र करने वाला बड़ा तप और संसार रूपी कीचड़ को धोने की पवित्र वस्तु है।

हे राजन! जो मनवांछित फल देने वाला माघ स्नान नही करते वह सूर्य, चंद्र के समान भोगों को कैसे भोग सकते हैं!

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