श्रावण माह माहात्म्य छठवाँ अध्याय | Chapter -6 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

Shravan Mass 06 Adhyay

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श्रावण माह माहात्म्य छठवाँ अध्याय
Chapter -6

 

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सोमवार व्रत विधान

सनत्कुमार बोले – हे भगवन ! मैनें रविवार का हर्षकारक माहात्म्य सुन लिया, अब आप श्रावण मास (Shravan Maas) में सोमवार का माहात्म्य मुझे बताइए।

ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! सूर्य मेरा नेत्र है, उसका माहात्म्य इतना श्रेष्ठ है तो फिर उमासहित (सोम) मेरे नाम वाले उस सोमवार का कहना ही क्या! उसका जो माहात्म्य मेरे लिए वर्णन के योग्य है, उसे मैं आपसे कहता हूँ। सोम चन्द्रमा का नाम है और यह ब्राह्मणों का राजा है, यज्ञों का साधन भी सोम है। उस सोम के नाम के कारणों को आप सावधान होकर मुझसे सुनिए क्योंकि यह वार मेरा ही स्वरुप है, अतः इसे सोम कहा गया है। इसीलिए यह समस्त राज्य का प्रदाता तथा श्रेष्ठ है। व्रत करने वाले को यह संपूर्ण राज्य का फल देने वाला है।

हे विप्र ! उसकी विधि सुनिए, मैं आपको विस्तारपूर्वक बता रहा हूँ। बारहों महीनों में सोमवार अत्यंत श्रेष्ठ है। उन मासों में यदि सोमवार व्रत करने में असमर्थ हो तो श्रावण मास (Shravan Maas) में इसे अवश्य करना चाहिए। इस मास में इस व्रत को करके मनुष्य वर्ष भर के लिए व्रत का फल प्राप्त करता है। श्रावण में शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को यह संकल्प करें कि “मैं विधिवत इस व्रत को करूँगा/करुँगी, शिवजी मुझ पर प्रसन्न हों” । इस प्रकार चारों सोमवार के दिन और यदि पांच हो जाए तो उसमें भी प्रातःकाल यह संकल्प करें और रात्रि में शिवजी का पूजन करें। सोलह उपचारों से सांयकाल में भी शिवजी की पूजा करें और एकाग्रचित्त होकर इस दिव्य कथा का श्रवण करें।

हे सनत्कुमार ! इस सोमवार की कही जाने वाली विधि को अब मुझसे सुनिए। श्रावण मास (Shravan Maas) के प्रथम सोमवार को इस श्रेष्ठ व्रत को प्रारम्भ करे। मनुष्य को चाहिए कि अच्छी तरह स्नान कर के पवित्र होकर श्वेत वस्त्र धारण कर ले और काम, क्रोध, अहंकार, द्वेष, निंदा आदि का त्याग कर के मालती, मल्लिका आदि श्वेत पुष्पों को लाएं। इनके अतिरिक्त अन्य विविध पुष्पों से तथा अभीष्ट पूजनोपचारों के द्वारा “त्र्यम्बक” – इस मूल मन्त्र से शिवजी की पूजा करें। उसके बाद कहें – मैं शव, भावनाश, महादेव, उग्र, उग्रनाथ, भाव, शशिमौलि, रूद्र, नीलकंठ, शिव (Lord Shiv) तथा भवहारी का ध्यान करता हूँ।

इस प्रकार अपने विभव के अनुसार मनोहर उपचारों से देवेश शिव (Lord Shiv) का विधिवत पूजन करें, जो इस व्रत को करता है उसके पुण्य फल को सुनिए। जो लोग सोमवार के दिन पार्वती सहित शिव (Lord Shiv) की पूजा करते हैं, वे पुनरावृत्ति से रहित अक्षय लोक प्राप्त करते हैं। हे सनत्कुमार ! इस मास में नक्तव्रत से जो पुण्य प्राप्त होता है, उसे मैं संक्षेप में कहता हूँ। देवताओं तथा दानवों से भी अभेद्य सात जन्मों का अर्जित पाप नक्तभोजन से नष्ट हो जाता है, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए अथवा इस अत्युत्तम व्रत को उपवासपूर्वक करें। इसे करने से पुत्र कि इच्छा रखने वाला मनुष्य पुत्र प्राप्त करता है और धन चाहने वाला धन प्राप्त करता है। वह जिस-जिस अभीष्ट की कामना करता है, उसे पा जाता है। इस लोक में दीर्घकालिक वांछित सुखोपभोगों को भोगकर अंत में श्रेष्ठ विमान पर आरूढ़ होकर वह रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। चित्त चंचल है, धन चंचल है और जीवन भी चंचल है – ऐसा समझकर प्रयत्नपूर्वक व्रत का उद्यापन करना चाहिए। चांदी के वृषभ पर विराजमान सुवर्ण निर्मित शिव (Lord Shiv) तथा पार्वती जी की प्रतिमा अपने सामर्थ्य के अनुसार बनानी चाहिए, इसमें धन की कृपणता नहीं करनी चाहिए।

उसके बाद एक दिव्य तथा शुभ लिंगतोभद्र-मंडल बनाए तथा उसमें दो श्वेत वस्त्रों से युक्त एक घट स्थापित करें। घट के ऊपर तांबे अथवा बांस का बना हुआ पात्र रखें और उसके ऊपर उमासहित शिव (Lord Shiv) को स्थापित करें। उसके बाद श्रुति, स्मृति तथा पुराणों में कहे गए मन्त्रों से शिव (Lord Shiv) की पूजा करें। पुष्पों का मंडप बनाएं तथा उसके ऊपर सुन्दर चंदोवा लगाएं। उसमें गीतों तथा बाजों की मधुर ध्वनि के साथ रात में जागरण करें। उसके बाद बुद्धिमान मनुष्य अपने गृह्यसूत्र में निर्दिष्ट विधान के अनुसार अग्नि-स्थापन करे और फिर शव आदि ग्यारह श्रेष्ठ नामों से पलाश की समिधाओं से एक सौ आठ आहुति प्रदान करें, यव, व्रीहि, तिल, आदि की आहुति “आप्यायस्व.” – इस मन्त्र से दें और बिल्वपत्रों की आहुति “त्र्यम्बक.” अथवा षडक्षर मन्त्र – “ॐ नमः शिवाय” – से प्रदान करें।

उसके बाद स्विष्टकृत होम करके पूर्णाहुति देकर आचार्य का पूजन करें और बाद में उन्हें गौ प्रदान करें। उसके बाद ग्यारह श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा उन्हें वंशपात्र सहित ग्यारह घाट प्रदान करें। इसके बाद पूजित देवता को तथा देवता को अर्पित सभी सामग्री आचार्य को दे और तत्पश्चात प्रार्थना करें – “मेरा व्रत परिपूर्ण हो और शिवजी मुझ पर प्रसन्न हों” । उसके बाद बंधुओं के साथ हर्षपूर्वक भोजन करें। इसी विधान से जो मनुष्य इस व्रत को करता है वह जिस-जिस अभिलषित वस्तु की कामना करता है, उसे प्राप्त कर लेता है और अंत में शिव (Lord Shiv) लोक को प्राप्त होकर उस लोक में पूजित होता है। हे सनत्कुमार ! सर्वप्रथम श्रीकृष्ण ने इस मंगलकारी सोमवार व्रत को किया था। श्रेष्ठ, आस्तिक तथा धर्मपरायण राजाओं ने भी इस व्रत को किया था। जो इस व्रत का नित्य श्रवण करता है वह भी उस व्रत के करने का फल प्राप्त करता है।

॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास (Shravan Maas) माहात्म्य में “सोमवार व्रत कथन” नामक छठा अध्याय पूर्ण हुआ ॥

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श्रावण माह माहात्म्य पाँचवाँ अध्याय | Chapter -5 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

Shravan Mass 05 Adhyay

Shravan Mass 05 Adhyay

श्रावण माह माहात्म्य पाँचवाँ अध्याय
Chapter -5

 

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श्रावण मास (Shravan Maas) में किए जाने वाले विभिन्न व्रतानुष्ठान और रविवार व्रत वर्णन में सुकर्मा द्विज की कथा

ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! करोड़ पार्थिव लिंगों के माहात्म्य तथा पुण्य का वर्णन नहीं किया जा सकता। जब मात्र एक लिंग का माहात्म्य नहीं कहा जा सकता तो फिर करोड़ लिंगों के विषय में कहना ही क्या ! मनुष्य को चाहिए की करोड़ लिंग निर्माण असमर्थता में एक लाख लिंग बनाए या हजार लिंग या एक सौ लिंग ही बनाए, यहां तक कि एक लिंग बनाने से भी मेरी सन्निधि मिल जाती है। षडाक्षर मन्त्र से सोलह उपचारों के द्वारा भक्तिपूर्ण मन से भगवान् शिव (Lord Shiv) कि पूजा करनी चाहिए। ग्रह यज्ञ के साथ उद्यापन करना चाहिए, उसके बाद होम करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

हे सनत्कुमार ! इस अनुष्ठान को करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होगी। यह व्रत बांझपन को दूर करने वाला, सभी विपत्तियों का नाश करने वाला तथा सभी संपत्तियों कि वृद्धि करने वाला है। मृत्यु के पश्चात वह मनुष्य कल्पपर्यन्त मेरे समीप कैलाशवास करता है। जो मनुष्य श्रावण मास (Shravan Maas) में पंचामृत से शिवजी का अभिषेक करता है वह सदा पंचामृत का पान करने वाला, गोधन से संपन्न, अत्यंत मधुर भाषण करने वाला तथा त्रिपुर के शत्रु भगवान् शिव (Lord Shiv) को प्रिय होता है। जो इस मास में अनोदान व्रत करने वाला तथा हविष्यान्न ग्रहण करने वाला होता है, वह व्रीहि आदि सभी प्रकार के धान्यों का अक्षय निधिस्वरूप हो जाता है। पत्तल पर भोजन करने वाला श्रेष्ठ मनुष्य सुवर्णपात्र में भोजन करने वाला तथा शाक को त्याग करने से शाककर्ता हो जाता है।

श्रावण मास (Shravan Maas) में केवल भूमि पर सोने वाला कैलाश में निवास प्राप्त करता है। इस मास में एक भी दिन प्रातःस्नान करने से मनुष्य को एक वर्ष स्नान करने के फल का भागी कहा गया है। इस मास में जितेन्द्रिय होने से इन्द्रियबल प्राप्त होता है। इस मास में स्फटिक, पाषाण, मृत्तिका, मरकतमणि, पिष्ट(पीठी), धातु, चन्दन, नवनीत आदि से निर्मित अथवा अन्य किसी भी शिवलिंग में साथ ही किसी स्वयं आविर्भूत न हुए लिंग में श्रेष्ठ पूजा करने वाला मनुष्य सैकड़ों ब्रह्महत्या को भस्म कर डालता है।

किसी तीर्थक्षेत्र में सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के अवसर पर एक लाख जप से जो सिद्धि होती है, वह इस मास में एक बार के जप से ही हो जाती है। अन्य समय में जो हजार नमस्कार और प्रदक्षिणाएँ की जाती हैं, उनका जो फल होता है, वह इस मास में एक बार करने से ही प्राप्त हो जाता है। मुझको प्रिय इस श्रावण मास (Shravan Maas) में वेद पारायण करने पर सभी वेद मन्त्रों की पूर्ण रूप से सिद्धि हो जाती है। श्रद्धायुक्त होकर इस मास में एक हजार बार पुरुष-सूक्त का पाठ करना चाहिए अथवा कलियुग में उसका चौगुना पाठ करना चाहिए अथवा वर्ण संख्या का सौ गुना पाठ करना चाहिए अथवा वह करने में असमर्थ हो तो आलस्यहीन होकर मात्र एक सौ पाठ करने चाहिए। ऐसा करने वाला मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पापों से मुक्त हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

गुरुपत्नी के साथ संसर्गजन्य पाप के लिए यही महान प्रायश्चित है। इसके समान पुण्यप्रद, पवित्र तथा पापनाशक कुछ भी नहीं है। पुरुषसूक्त के जप के बिना इस मास में एक भी दिन व्यतीत नहीं करना चाहिए। जो मनुष्य इस फल को अर्थवाद कहता है वह नरकगामी होता है। इस महीने में समिधा, चारु, तिल और घृत से ग्रहयज्ञ होम करना चाहिए। शिव (Lord Shiv) के रूपों का भली-भाँति ध्यान आदि करके धुप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए और अपने सामर्थ्य के अनुसार कोटिहोम, लक्षहोम अथवा दस सहस्त्र होम करना चाहिए।

व्याहृतियों – ॐ भूः, ॐ भुवः, ॐ स्वः –के साथ तिलों के द्वारा भी यह ग्रहयज्ञ नामक होम किया जाता है। हे सनत्कुमार ! इसके बाद अब मैं वारों के व्रतों का वर्णन करूंगा, आप सुनिए।

हे अनघ ! उनमें सर्वप्रथम मैं आपको रविवार का व्रत बताऊंगा। इस संबंध में लोग एक प्राचीन इतिहास को कहते हैं। प्रतिष्ठानपुर में सुकर्मा नामक एक द्विज था, वह दरिद्र, कृपण तथा भिक्षावृत्ति में लगा रहता था। एक बार वह धान्य माँगने के लिए घूमते-घूमते नगर में गया। उसने किसी एक गृहस्थ के घर में मिलकर रविवार का उत्तम व्रत करती हुई स्त्रियों को देखा तब उसे देखकर वे स्त्रियां परस्पर कहने लगी कि इस पूजा विधि को शीघ्रतापूर्वक छिपा लो। इस पर वह विप्र उन स्त्रियों से बोला – हे श्रेष्ठ स्त्रियों ! आप लोग इस व्रत को क्यों छिपा रही हैं? समान चित्त वाले सज्जनों के लिए परमार्थ ही स्वार्थ है। मैं दरिद्र तथा दुखी हूँ, इस श्रेष्ठ व्रत को सुनकर मैं भी इसे करूँगा, अतः आप लोग इस व्रत का विधान व फल अवश्य बताएं।

स्त्रियां बोली – हे द्विज ! इस व्रत के करने में आप उन्माद तथा प्रमाद करेंगे अथवा भूल जाएंगे अथवा इसके प्रति अभक्ति या अनास्था रखने लगेंगे, अतः आपको यह व्रत कैसे बताऊँ ! उनकी यह बात सुनकर उनमें जो एक प्रौढ़ा स्त्री थी वह उस ब्राह्मण से व्रत तथा व्रत कि विधि बताने लगी।

हे ब्राह्मण ! श्रावण मास (Shravan Maas) के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार को मौन होकर उठ करके शीतल जल से स्नान करें। उसके बाद अपना नित्यकर्म संपन्न करके पान के एक शुभ दल पर रक्त चन्दन से सूर्य के समान पूर्ण गोलाकार बारह परिधियों वाला सुन्दर मंडल बनाएं। उस मंडल में रक्त चंदन से संज्ञा सहित सूर्य का पूजन करें। उसके बाद घुटनों के बल भूमि पर झुककर बारहों मंडलों पर अलग-अलग रक्तचंदन तथा जपाकुसुम से मिश्रित अर्घ्य श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सूर्य को विधिवत प्रदान करें और लाल अक्षत, जपाकुसुम तथा अन्य उपचारों से पूजन करें। उसके बाद मिश्री से युक्त नारिकेल के बीज का नैवेद्य अर्पित करके आदित्य मन्त्रों से सूर्य कि स्तुति करें और श्रेष्ठ द्वादश मन्त्रों से बारह नमस्कार तथा प्रदक्षिणाएँ करें। उसके बाद छह तंतुओं से बनाए गए सूत्र में छह ग्रंथियां बनाकर देवेश सूर्य को अर्पण करके उसे अपने गले में बांधे और पुनः बारह फलों से युक्त वायन ब्राह्मण को प्रदान करें।

इस व्रत कि विधि को किसी के सामने नहीं सुनाना चाहिए। हे विप्र ! इस विधि से व्रत के किए जाने पर धनहीन व्यक्ति धन प्राप्त कर्ता है, पुत्रहीन पुत्र प्राप्त कर्ता है, कोढ़ी कोढ़ से मुक्त हो जाता है, बंधन में पड़ा व्यक्ति बंधन से छूट जाता है, रोगी व्यक्ति रोग से मुक्त हो जाता है। हे विपेन्द्र ! अधिक कहने से क्या प्रयोजन, साधक जिस-जिस अभीष्ट कि कामना कर्ता है वह इस व्रत के प्रभाव से उसे मिल जाता है।

इस प्रकार श्रावण के चार रविवारों और कभी-कभी पांच रविवारों में इस व्रत को करना चाहिए। इसके बाद व्रत की संपूर्णता के लिए उद्यापन करना चाहिए। हे विपेन्द्र आप भी इसी प्रकार करें, इससे आपकी सभी कामनाओं की सिद्धि हो जाएगी। उसके बाद उन पतिव्रताओं को नमस्कार करके वह ब्राह्मण अपने घर आ गया। उसने जैसा सूना था, उसी विधि से उस संपूर्ण व्रत को किया और अपनी दोनों पुत्रियों को भी वह विधि सुनाई। उस व्रत के सुनाने मात्र से शिवजी के दर्शन से तथा उनके पूजन के प्रभाव से वे कन्याएं देवांगनाओं के सदृश हो गई।

उसी समय से उस ब्राह्मण के घर में लक्ष्मी ने प्रवेश किया और वह अनेक उपायों तथा निमित्तों से धनवान हो गया। किसी दिन उस नगर के राजा ने ब्राह्मण के घर से होकर राजमार्ग से जाते समय खिड़की में कड़ी उन दोनों सुन्दर तथा अनुपमेय कन्याओं को देख लिया। तीनों लोकों में कमल, चन्द्रमा आदि जो भी सुन्दर वस्तुएं हैं, उन्हें वे दोनों कन्याएं अपने शरीर के अवयवों से तिरस्कृत कर रही हैं। उन्हें देखकर राजा मोहित हो गए और क्षण भर के लिए वहीँ खड़े हो गए। ब्राह्मण को शीघ्र बुलाकर उन्होंने दोनों कन्याओं को मांग लिया तब उस ब्राह्मण ने भी हर्षित होकर दोनों कन्याएं राजा को प्रदान कर दी। उस राजा को पति रूप में प्राप्त करके वे कन्याएं भी प्रसन्न हो गई। वे स्वयं इस व्रत को करने लगी और पुत्र, पौत्र आदि से संपन्न हो गई।

हे मुने ! महान ऐश्वर्य देने वाले इस व्रत को मैंने आपसे कह दिया। हे विधिनंदन ! जिस व्रत के श्रवण मात्र से मनुष्य सभी मनोरथों को प्राप्त कर लेता है, उसके अनुष्ठान करने के फल का वर्णन कैसे किया जाए।

॥ इस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास (Shravan Maas) माहात्म्य में “प्रकीर्णक-नानाव्रत – रविवार व्रतादि कथन” नामक पांचवां अध्याय पूर्ण हुआ ॥

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श्रावण माह माहात्म्य चौथा अध्याय | Chapter -4 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

Shravan Mass 04 Adhyay

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श्रावण माह माहात्म्य चौथा अध्याय
Chapter -4

 

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धारणा-पारणा, मासोपवास व्रत और रूद्र वर्तिव्रत वर्णन में सुगंधा का आख्यान

ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! अब मैं धारण-पारण व्रत का वर्णन करूँगा। प्रतिपदा के दिन से आरंभ कर के सर्वप्रथम पुण्याहवाचन कराना चाहिए। इसके बाद मेरी प्रसन्नता के लिए धारण-पारण व्रत का संकल्प करना चाहिए। एक दिन धारण व्रत करें और दूसरे दिन पारण व्रत करें। धारण में उपवास तथा पारण में भोजन होता है। श्रावण मास (Shravan Maas) के समाप्त होने पर सबसे पहले पुण्याहवाचन कराना चाहिए। इसके बाद हे मानद ! आचार्य तथा अन्य ब्राह्मणों का वरन करना चाहिए। तत्पश्चात पार्वती तथा शिव (Lord Shiv) की स्वर्ण निर्मित प्रतिमा को जल से भरे हुए कुम्भ पर स्थापित कर रात में भक्तिपूर्वक पूजन करना चाहिए तथा पुराण-श्रवण आदि के साथ रात भर जागरण करना चाहिए।

प्रातःकाल अग्निस्थापन कर के विधिपूर्वक होम करना चाहिए। “त्र्यम्बक” इस मन्त्र से तिलमिश्रित भात की आहुति डालनी चाहिए। उसी प्रकार शिव (Lord Shiv) गायत्री मन्त्र से घृत मिश्रित भात की आहुति डाले और पुनः षडाक्षर मन्त्र से खीर की आहुति प्रदान करें। तदनन्तर पूर्णाहुति देकर होमशेष का समापन करना चाहिए। इसके बाद में ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा साथ ही आचार्य की पूजा करनी चाहिए। हे महाभाग ! इस प्रकार से उद्यापन संपन्न कर के मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पातकों से मुक्त हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। अतएव इस महाव्रत को अवश्य करना चाहिए।

हे मुने ! अब श्रावण में मास-उपवास की विधि को आदरपूर्वक सुनिए। प्रतिपदा के दिन प्रातःकाल इस व्रत का संकल्प करें। स्त्री हो या पुरुष मन तथा इन्द्रियों को नियंत्रित कर के इस व्रत को करें। अमावस्या तिथि को लोक का कल्याण करने वाले वृष ध्वज शंकर की अर्चना-पूजा षोडश उपचारों से करें। तदनन्तर अपनी सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र तथा अलंकार आदि से ब्राह्मणों का पूजन करें, उन्हें भोजन कराएं तथा प्रणाम कर के विदा करें। इस प्रकार से किया गया मास-उपवास व्रत मेरी प्रसन्नता कराने वाला होता है। हे सनत्कुमार ! मनुष्यों को सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाले लक्षसङ्ख्यापरिमित रुद्रवर्ती व्रत के विधान को सावधान होकर सुनिए।

अत्यंत आदरपूर्वक कपास के ग्यारह तंतुओं से बत्तियाँ बनानी चाहिए। वे रुद्रवर्ती नामवाली बत्तियाँ मुझे प्रसन्न करने वाली हैं। “मैं श्रावण मास (Shravan Maas) में भक्तिपूर्वक डिवॉन के देव गौरीपति महादेव का इन एक लक्ष संख्यावाली बत्तियों से नीराजन करूँगा” – इस प्रकार श्रावण मास (Shravan Maas) के प्रथम दिन विधिपूर्वक संकल्प कर के महीने भर प्रतिदिन शिवजी का पूजन कर एक हजार बत्तियों से नीराजन करें और अंतिम दिन इकहत्तर हजार बत्तियों से नीराजन करें अथवा प्रतिदिन तीन हजार बत्तियाँ आदरपूर्वक अर्पण करें और अंतिम दिन तेरह हजार बत्तियाँ समर्पित करें अथवा एक ही दिन सभी एक लाख बत्तियों को मेरे समक्ष जलाएं। प्रचुर मात्रा में घृत में भिगोई जो स्निग्ध बत्तियाँ होती हैं, वे मुझे प्रिय हैं। ततपश्चात मुझ विश्वेश्वर का पूजन कर के कथा-श्रवण करें।

सनत्कुमार बोले – हे देवदेव ! हे जगन्नाथ ! हे जगदानंदकारक ! कृपा करके आप मुझे इस व्रत का प्रबह्व बताएं। हे प्रभो ! इस व्रत को सर्वप्रथम किसने किया तथा इसके उद्यापन में क्या विधि होती है?

ईश्वर बोले – हे ब्रह्मपुत्र ! व्रतों में उत्तम इस रूद्र वर्ति व्रत के विषय में सावधान होकर सुनिए। यह व्रत महापुण्यप्रद, सभी उपद्रवों का नाश करने वाला, प्रीति तथा सौभाग्य देने वाला, पुत्र-पौत्र-समृद्धि प्रदान करने वाला, व्रत करने वाले के प्रति शंकर जी की प्रीति उत्पन्न करने वाला तथा परम पद शिवलोक को देने वाला है। तीनों लोकों में इस रुद्रवर्ती के सामान कोई उत्तम व्रत नहीं है। इस संबंध में लोग यह प्राचीन दृष्टांत देते हैं –क्षिप्रा नदी के रम्य तट पर उज्जयिनी नामक सुन्दर नगरी थी। उस नगरी में सुगंधा नामक एक परम सुंदरी वीरांगना थी। उसने अपने साथ संसर्ग के लिए अत्यंत दुःसह शुल्क निश्चित किया था। एक सौ स्वर्णमुद्रा देकर संसर्ग करने की शर्त राखी थी। उस सुगंधा ने युवकों तथा ब्राह्मणों को भ्रष्ट कर दिया था।. उसने राजाओं तथा राजकुमारों को नग्न कर के उनके आभूषण आदि लेकर उनका बहुत तिरस्कार किया था। इस प्रकार उस सुगंधा ने बहुत लोगों को लूटा था।

उसके शरीर की सुगंध से कोस भर का स्थान सुगन्धित रहता था। वह पृथ्वी तल पर रूप-लावण्य और कांति की मानो निवास स्थली थी। वह छह रागों और छत्तीस रागिनियों के गायन में तथा उनके अन्य बहुत से भेदों की भी गान क्रिया में अत्यंत कुशल थी। वह नृत्य में रम्भा आदि देवांगनाओं को भी तिरस्कृत कर देती थी और अपने एक-एक पग पर अपनी गति से हाथियों तथा हंसों का उपहास करती थी। किसी दिन वह सुगंधा कटाक्षों तथा भौंह चालान के द्वारा काम बाणों को छोड़ती हुई क्रीड़ा करने के विचार से क्षिप्रा नदी के तट पर गई। उसने ऋषियों के द्वारा सेवित मनोरम नदी को देखा। वहां कई विप्र ध्यान में लगे हुए थे तथा कई जप में लीन थे। कई शिवार्चन में रत थे तथा कई विष्णु के पूजन में तल्लीन थे। हे महामुने ! उसने उन ऋषियों के बीच विराजमान मुनि वशिष्ठ को देखा।

उनके दर्शन के प्रभाव से उसकी बुद्धि धर्म में प्रवृत्त हो गई. जीवन तथा विशेष रूप से विषयों से उसकी विरक्ति हो गई।वह अपना सिर झुकाकर बार-बार मुनि को प्रणाम कर के अपने पाऊँ की निवृत्ति के लिए मुनिश्रेष्ठ वशिष्ठ जी से कहने लगी –

सुगंधा बोली – हे अनाथनाथ ! हे विप्रेन्द्र ! हे सर्वविद्याविशारद ! हे योगीश ! मैनें बहुत-से पाप किए हैं, अतः हे प्रभो ! उन समस्त पापों के नाश के लिए मुझे उपाय बताइए।

ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! उस सुगंधा के इस प्रकार कहने पर वे दीन वत्सल मुनि वशिष्ठ अपनी ज्ञान दृष्टि से उसके कर्मों को जानकर आदरपूर्वक कहने लगे।

वशिष्ठ बोले – तुम सावधान होकर सुनो ! जिस पुण्य से तुम्हारे पाप का पूर्ण रूप से नाश हो जाएगा, वह सब मैं तुम से अब कह रहा हूँ। हे भद्रे ! तीनों लोकों में विख्यात वाराणसी में जाओ, वहां जाकर तीनों लोकों में दुर्लभ, महान पुण्य देने वाले तथा शिव (Lord Shiv) के लिए अत्यंत प्रीतिकर रुद्रवर्ती नामक व्रत को उस क्षेत्र में करो। हे भद्रे ! इस व्रत को कर के तुम परमगति प्राप्त करोगी।

ईश्वर बोले – तब उसने अपना धन लेकर सेवक तथा मित्र सहित काशी में जाकर वशिष्ठ के द्वारा बताए गए विधान के अनुसार व्रत किया। इस प्रकार उस व्रत के प्रभाव से वह सशरीर उस शिवलिंग में विलीन हो गई। हे सनत्कुमार ! इस प्रकार जो स्त्री इस परम दुर्लभ व्रत को करती है, वह जिस-जिस अभीष्ट पदार्थ की इच्छा करती है, उसे निःसंदेह प्राप्त करती है।
हे सुव्रत ! अब आप माणिक्यवर्तियों का माहात्म्य सुनिए ! हे विपेन्द्र ! उन माणिक्यवर्तियों के व्रत से स्त्री मेरे अर्ध आसन की अधिकारिणी हो जाती है और महाप्रलयपर्यन्त वह मेरे लिए प्रिय रहती है। अब मैं इस व्रत की सम्पूर्णता के लिए उद्यापन का विधान बताऊँगा। चांदी की बनी हुई नंदीश्वर की मूर्ति पर आसीन सुवर्णमय भगवान् शिव (Lord Shiv)की पार्वती सहित प्रतिमा को कलश पर स्थापित करना चाहिए और विधि के साथ पूजन कर के रात्रि में जागरण करना चाहिए।

इसके बाद प्रातःकाल नदी में निर्मल जल में विधिपूर्वक स्नान कर के ग्यारह ब्राह्मणों सहित आचार्य का वरण करना चाहिए। तत्पश्चात रुद्रसूक्त से अथवा गायत्री से अथवा मूल मन्त्र से घृत, खीर तथा बिल्वपत्रों का होम करना चाहिए। इसके बाद पूर्णाहुति होम कर के आचार्य आदि की विधिवत पूजा करनी चाहिए तथा सपत्नीक ग्यारह उत्तम विप्रों को भोजन कराना चाहिए।

हे सनत्कुमार ! जो स्त्री इस प्रकार से व्रत करती हैं, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाती हैं। ततपश्चात विधानपूर्वक कथा सुनकर स्थापित की गई समस्त सामग्री ब्राह्मण को दे देनी चाहिए। इससे निश्चित रूप से हजार अश्वमेघ यज्ञों का फल प्राप्त होता है।

॥ इस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वरसनत्कुमारसंवाद में श्रावणमास माहात्म्य में “धारणापारणामासोपवास-रुद्रवर्तीकथन” नामक चौथा अध्याय पूर्ण हुआ ॥

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श्रावण माह माहात्म्य तीसरा अध्याय | Chapter -3 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

Shravan Mass 03 Adhyay

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श्रावण माह माहात्म्य तीसरा अध्याय
Chapter -3

 

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श्रावण माह में की जाने वाली भगवान् शिव (Lord Shiv) की लक्ष पूजा का वर्णन

सनत्कुमार बोले – हे भगवन ! आपने श्रावण मासों का संक्षिप्त वर्णन किया है। हे स्वामिन ! इससे हमारी तृप्ति नहीं हो रही है, अतः आप कृपा कर के विस्तार से वर्णन करें। जिसे सुनकर हे सुरेश्वर ! मैं कृतकृत्य हो जाऊँगा।

ईश्वर बोले – हे योगीश ! जो बुद्धिमान नक्तव्रत के द्वारा श्रावण मास (Shravan Maas) को व्यतीत करता है, वह बारहों महीने में नक्तव्रत करने के फल का भागी होता है। नक्तव्रत में दिन की समाप्ति के पूर्व सन्यासियों के लिए एवं रात्रि में गृहस्थों के लिए भोजन का विधान है। उसमें सूर्यास्त के बाद की तीन घड़ियों को छोड़कर नक्तभोजन का समय होता है। सूर्य के अस्त होने के पश्चात तीन घडी संध्या काल होता है। संध्या वेला में आहार, मैथुन, निद्रा और चौथा स्वाध्याय – इन चारों कर्मों का त्याग कर देना चाहिए। गृहस्थ और यति के भेद से उनकी व्यवस्था के विषय में मुझसे सुनिए। सूर्य के मंद पड़ जाने पर जब अपनी छाया अपने शरीर से दुगुनी हो जाए, उस समय के भोजन को यति के लिए नक्त भोजन कहा गया है। रात्रि भोजन उनके लिए नक्त भोजन नहीं होता है।

तारों के दृष्टिगत होने पर विद्वानों ने गृहस्थ के लिए नक्त कहा है। यति के लिए दिन के आठवें भाग के शेष रहने पर भोजन का विधान है, उसके लिए रात्रि में भोजन का निषेध किया गया है। गृहस्थ को चाहिए कि वह विधिपूर्वक रात्रि में नक्त भोजन करे और यति, विधवा तथा विधुर व्यक्ति सूर्य के रहते नक्तव्रत करें। विधुर व्यक्ति यदि पुत्रवान हो तब उसे भी रात्रि में ही नक्तव्रत करना चाहिए। अनाश्रमी हो अथवा आश्रमी हो अथवा पत्नीरहित हो अथवा पुत्रवान हो – उन्हें रात्रि में नक्तव्रत करना चाहिए।

इस प्रकार बुद्धिमान मनुष्य को अपने अधिकार के अनुसार नक्तव्रत करना चाहिए। इस मास में नक्तव्रत करने वाला व्यक्ति परम गति प्राप्त करता है। “मैं प्रातःकाल स्नान करूँगा, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगा, नक्तभोजन करूँगा, पृथ्वी पर सोऊँगा और प्राणियों पर दया करूँगा। हे देव ! इस व्रत को प्रारम्भ करने पर यदि मैं मर जाऊँ तो हे जगत्पते ! आपकी कृपा से मेरा व्रत पूर्ण हो” – ऐसा संकल्प करके बुद्धिमान व्यक्ति को श्रावण मास (Shravan Maas) में प्रतिदिन नक्तव्रत करना चाहिए। इस प्रकार नक्तव्रत करने वाला मुझे अत्यंत प्रिय होता है।

ब्राह्मण के द्वारा अथवा स्वयं ही अतिरुद्र, महारुद्र अथवा रुद्रमंत्र से महीने भर प्रतिदिन अभिषेक करना चाहिए। हे वत्स ! मैं उस व्यक्ति पर प्रसन्न हो जाता हूँ, क्योंकि मैं जलधारा से अत्यंत प्रीति रखने वाला हूँ अथवा रुद्रमंत्र के द्वारा मेरे लिए अत्यंत प्रीतिकर होम प्रतिदिन करना चाहिए। अपने लिए जो भी भोज्य पदार्थ अथवा सुखोपभोग की वस्तु अतिप्रिय हो, संकल्प करके उन्हें श्रेष्ठ ब्राह्मण को प्रदान करके स्वयं महीने भर उन पदार्थों का त्याग करना चाहिए।

हे मुने! अब इसके बाद उत्तम लक्षपूजाविधि को सुनिए। लक्ष्मी चाहने वाले अथवा शान्ति की इच्छा वाले मनुष्य को लक्ष विल्वपत्रों या लक्ष दूर्वादलों से शिव (Lord Shiv) की पूजा करनी चाहिए। आयु की कामना करने वाले को चम्पा के लक्ष पुष्पों तथा विद्या चाहने वाले व्यक्ति को मल्लिका या चमेली के लक्ष पुष्पों से श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। शिव (Lord Shiv)तथा विष्णु की प्रसन्नता तुलसी के दलों से सिद्ध होती है। पुत्र की कामना करने वाले को कटेरी के दलों से शिव (Lord Shiv) तथा विष्णु का पूजन करना चाहिए।

बुरे स्वप्न की शान्ति के लिए धान्य से पूजन करना प्रशस्त होता है। देव के समक्ष निर्मित किए गए रंगवल्ली आदि से विभिन्न रंगों से रचित पद्म, स्वस्तिक और चक्र आदि से प्रभु की पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार सभी मनोरथों की सिद्धि के लिए सभी प्रकार के पुष्पों से यदि मनुष्य लक्ष पूजा करे तो शिवजी प्रसन्न होंगे। तत्पश्चात उद्यापन करना चाहिए। मंडप निर्माण करना चाहिए और मंडप के त्रिभाग परिमाण में वेदिका बनानी चाहिए। तदनन्तर पुण्याहवाचन कर के आचार्य का वरण करना चाहिए और उस मंडप में प्रविष्ट होकर गीत तथा वाद्य के शब्दों और तीव्र वेदध्वनि से रात्रि में जागरण करना चाहिए।

वेदिका के ऊपर उत्तम लिंगतोभद्र बनाना चाहिए और उसके बीच में चावलों से सुन्दर कैलाश का निर्माण करना चाहिए। उसके ऊपर तांबे का अत्यंत चमकीला तथा पंचपल्लवयुक्त कलश स्थापित करना चाहिए और उसे रेशमी वस्त्र से वेष्टित कर देना चाहिए। उसके ऊपर पार्वती पति शिव (Lord Shiv) की सुवर्णमय प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। तत्पश्चात पंचामृतपूर्वक धूप, दीप तथा नैवेद्य से उस प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए और गीत, वाद्य, नृत्य तथा वेद, शास्त्र तथा पुराणों के पाठ के द्वारा रात्रि में जागरण करना चाहिए।

इसके बाद प्रातःकाल भली भाँति स्नान कर के पवित्र हो जाना चाहिए और अपनी शाखा में निर्दिष्ट विधान के अनुसार वेदिका निर्माण करना चाहिए। तत्पश्चात मूल मन्त्र से या गायत्री मन्त्र से या शिव (Lord Shiv) के सहस्त्रनामों के द्वारा तिल तथा घृतमिश्रित खीर से होम कराना चाहिए अथवा जिस मन्त्र से पूजा की गई है, उसी से होम करके पूर्णाहुति डालनी चाहिए। इसके बाद वस्त्र, अलंकार तथा भूषणों से भली-भाँति आचार्य का पूजन करना चाहिए।

तत्पश्चात अन्य ब्राह्मणों का पूजन करना चाहिए और उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए। जिस-जिस वस्तु से उमापति शिव (Lord Shiv) की लक्षपूजा की हो उसका दान करना चाहिए। स्वर्णमयी मूर्त्ति बनाकर शिव (Lord Shiv) की पूजा करनी चाहिए। यदि दीपकर्म किया हो तो उस दीपक का दान करना चाहिए। चांदी का दीपक और स्वर्ण की वर्तिका अर्थात बत्ती बनाकर उसे गोघृत से भर कर सभी कामनाओं और अर्थ की सिद्धि के लिए उसका दान करना चाहिए। इसके बाद प्रभु से क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए और अंत में एक सौ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। हे मुने ! जो व्यक्ति इस प्रकार पूजा करता है, मैं उस पर प्रसन्न होता हूँ। उसमें भी जो श्रावण मास (Shravan Maas) में पूजा करता है, उसका अनंत फल मिलता है।

यदि अपने लिए अत्यंत प्रिय कोई वस्तु मुझे अर्पण करने के विचार से इस मास में कोई त्यागता है तो अब उसका फल सुनिए। इस लोक में तथा परलोक में उसकी प्राप्ति लाख गुना अधिक होती है। सकाम करने से अभिलषित सिद्धि होती है और निष्काम करने से परम गति मिलती है। इस मास में रुद्राभिषेक करने वाला मनुष्य उसके पाठ की अक्षर-संख्या से एक-एक अक्षर के लिए करोड़-करोड़ वर्षों तक रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। पंचामृत का अभिषेक करने से मनुष्य अमरत्व प्राप्त करता है।

इस मास में जो मनुष्य भूमि पर शयन करता है, उसका फल भी मुझसे सुनिए। हे द्विजश्रेष्ठ ! वह मनुष्य नौ प्रकार के रत्नों से जड़ी हुई, सुन्दर वस्त्र से आच्छादित, बिछे हुए कोमल गद्दे से सुशोभित, देश तकियों से युक्त, रम्य स्त्रियों से विभूषित, रत्ननिर्मित दीपों से मंडित तथा अत्यंत मृदु और गरुडाकार प्रवालमणिनिर्मित अथवा हाथी दाँत की बनी हुई अथवा चन्दन की बनी हुई उत्तम तथा शुभ शय्या प्राप्त करता है। इस मास में ब्रह्मचर्य का पालन करने से वीर्य की दृढ पुष्टि होती है। ओज, बल, शरीर की दृढ़ता और जो भी धर्म के विषय में उपकारक होते हैं – वह सब उसे प्राप्त हो जाता है। निष्काम ब्रह्मचर्य व्रती को साक्षात ब्रह्मप्राप्ति होती है और सकाम को स्वर्ग तथा सुन्दर देवांगनाओं की प्राप्ति होती है।

इस मास में दिन-रात अथवा केवल दिन में अथवा भोजन के समय मौनव्रत धारण करने वाला भी महान वक्ता हो जाता है। व्रत के अंत में घंटा और पुस्तक का दान करना चाहिए। मौनव्रत के माहात्म्य से मनुष्य सभी शास्त्रों में कुशल तथा वेद-वेदांग में पारंगत हो जाता है तथा बुद्धि में बृहस्पति के समान हो जाता है। मौन धारण करने वाले का किसी से कलह नहीं होता अतः मौनव्रत अत्यंत उत्कृष्ट है।

॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अंतर्गत ईश्वरसानत्कुमार संवाद में श्रावण मास (Shravan Maas) माहात्म्य में “नक्तव्रतलक्षपूजा-भूमिशयनमौनादिव्रतकथन” नामक तीसरा अध्याय पूर्ण हुआ ॥

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श्रावण माह माहात्म्य दूसरा अध्याय | Chapter -2 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

Shravan Mass 02 Adhyay

Shravan Mass 02 Adhyay

श्रावण माह माहात्म्य दूसरा अध्याय
Chapter -2

 

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श्रावण मास में विहित कार्य

ईश्वर बोले – हे महाभाग ! आपने उचित बात कही है। हे ब्रह्मपुत्र ! आप विनम्र, गुणी, श्रद्धालु तथा भक्तिसंपन्न श्रोता हैं. हे अनघ ! आपने श्रावण मास (Shravan Mass) के विषय में विनम्रतापूर्वक जो पूछा है, उसे तथा जो नहीं भी पूछा है – वह सब अत्यंत हर्ष तथा प्रेम के साथ मैं आपको बताऊँगा। द्वेष ना करने वाला सबका प्रिय होता है और आप उसी प्रकार के विनम्र हैं क्योंकि मैंने आपके अभिमानी पिता ब्रह्मा (Lord Brahma) का पाँचवाँ मस्तक काट दिया था तो भी आप उस द्वेष भाव का त्याग कर मेरी शरण को प्राप्त हुए हैं। अतः हे तात ! मैं आपको सब कुछ बताऊँगा, आप एकाग्रचित्त होकर सुनिए।

हे योगिन ! मनुष्य को चाहिए कि श्रावण मास (Sawan Mass) में नियमपूर्वक नक्तव्रत करे और पूरे महीने भर प्रतिदिन रुद्राभिषेक करे। अपनी प्रत्येक प्रिय वस्तु का इस मास में त्याग कर देना चाहिए। पुष्पों, फलों, दांतों, तुलसी की मंजरी तथा तुलसी दलों और बिल्वपत्रों से शिव जी की लक्ष पूजा करनी चाहिए, एक करोड़ शिवलिंग बनाना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। महीने भर धारण-पारण व्रत अथवा उपवास करना चाहिए। इस मास में मेरे लिए अत्यंत प्रीतिकर पंचामृताभिषेक करना चाहिए।

इस मास में जो-जो शुभ कर्म किया जाता है वह अनंत फल देने वाला होता है। हे मुने ! इस माह में भूमि पर सोये, ब्रह्मचारी रहें और सत्य वचन बोले। इस मास को बिना व्रत के कभी व्यतीत नहीं करना चाहिए। फलाहार अथवा हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिए। पत्ते पर भोजन करना चाहिए। व्रत करने वाले को चाहिए कि इस मास में शाक का पूर्ण रूप से परित्याग कर दे। हे मुनिश्रेष्ठ ! इस मास में भक्तियुक्त होकर मनुष्य को किसी ना किसी व्रत को अवश्य करना चाहिए।

सदाचारपरायण, भूमि पर शयन करने वाला, प्रातः स्नान करने वाला और जितेन्द्रिय होकर मनुष्य को एकाग्र किए गए मन से प्रतिदिन मेरी पूजा करनी चाहिए। इस मास में किया गया पुरश्चरण निश्चित रूप से मन्त्रों की सिद्धि करने वाला होता है। इस मास में शिव (Lord Shiv) के षडाक्षर मन्त्र का जप अथवा गायत्री मन्त्र का जप करना चाहिए और शिवजी की प्रदक्षिणा, नमस्कार तथा वेदपारायण करना चाहिए।

पुरुषसूक्त का पाठ अधिक फल देने वाला होता है। इस मास में किया गया ग्रह यज्ञ, कोटि होम, लक्ष होम तथा अयुत होम शीघ्र ही फलीभूत होता है और अभीष्ट फल प्रदान करता है। जो मनुष्य इस मास में एक भी दिन व्रतहीन व्यतीत करता है, वह महाप्रलय पर्यन्त घोर नरक में वास करता है। यह मास मुझे जितना प्रिय है, उतना कोई अन्य मास प्रिय नहीं है। यह मास सकाम व्यक्ति को अभीष्ट फल देने वाला तथा निष्काम व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करने वाला है।

हे सत्तम ! इस मास के जो व्रत तथा धर्म हैं, उन्हें मुझ से सुनिए। रविवार को सूर्यव्रत तथा सोमवार को मेरी पूजा व नक्त भोजन करना चाहिए। श्रावण मास (Sawan Mass)  के पहले सोमवार से आरम्भ कर के साढ़े तीन महीने का “रोटक” नामक व्रत किया जाता है. यह व्रत सभी वांछित फल प्रदान करने वाला है। मंगलवार को मंगल गौरी (Mangal Gori) का व्रत, बुधवार व बृहस्पतिवार के दिन इन दोनों वारों का व्रत, शुक्रवार को जीवंतिका व्रत और शनिवार को हनुमान (Lord Hanuman) तथा नृसिंह (Lord Narasimha) का व्रत करना बताया गया है। हे मुने ! अब तिथियों में किये जाने वाले व्रतों का श्रवण करें। श्रावण के शुक्ल पक्ष की द्वित्तीया तिथि को औदुम्बर नामक व्रत होता है। श्रावण के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गौरी व्रत होता है। इसी प्रकार शुक्ल की चतुर्थी तिथि को दूर्वागणपति नामक व्रत किया जाता है। हे मुने ! उसी चतुर्थी का दूसरा नाम विनायकी चतुर्थी भी है। शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि नागों के पूजन के लिए प्रशस्त होती है।

हे मुनिश्रेष्ठ ! इस पंचमी को ‘रौरवकल्पादि’ नाम से जानिए। षष्ठी तिथि को सुपौदन व्रत और सप्तमी तिथि को शीतला व्रत होता है। अष्टमी अथवा चतुर्दशी तिथि को देवी का पवित्रारोपण व्रत होता है। इस माह के शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की दोनों नवमी तिथियों को नक्तव्रत करना बताया गया है। शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ‘आशा’ नामक व्रत होता है। इस मास में दोनों पक्षों में दोनों एकादशी तिथियों को इस व्रत की कुछ और विशेषता मानी गई है। श्रावण मास (Sharavan Mass) के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को श्रीविष्णु (Lord Vishnu) का पवित्रारोपण व्रत बताया गया है। इस द्वादशी तिथि में भगवान् श्रीधर की पूजा कर के मनुष्य परम गति प्राप्त करता है।

उत्सर्जन, उपाकर्म, सभादीप, सभा में उपाकर्म, इसके बाद रक्षाबंधन, पुनः श्रवणाकर्म, सर्पबलि और हयग्रीव (Hayagriva) का अवतार – ये सात कर्म पूर्णमासी तिथि को करने हेतु बताए गए हैं। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि को ‘संकष्टचतुर्थी’ व्रत कहा गया है और श्रावण मास (Sawan Mass) के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि के दिन ‘मानवकल्पादि’ नामक व्रत को जानना चाहिए। हे द्विजोत्तम ! कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण (Lord Krishana) का पूर्णावतार हुआ, इस दिन उनका अवतार हुआ, अतः महान उत्सव के साथ इस दिन व्रत करना चाहिए। हे मुनिश्रेष्ठ ! इस अष्टमी को मन्वादि तिथि जानना चाहिए।

श्रावण मास (Shravan Mass) की अमावस्या तिथि को पिठोराव्रत कहा जाता है। इस तिथि में कुशों का ग्रहण और वृषभों का पूजन किया जाता है। इस मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर सब तिथियों के पृथक-पृथक देवता हैं। प्रतिपदा तिथि के देवता अग्नि, द्वितीया तिथि के देवता ब्रह्मा, तृतीया तिथि की गौरी और चतुर्थी के देवता गणपति हैं। पंचमी के देवता नाग हैं और षष्ठी तिथि के देवता कार्तिकेय (Lord Kartikeya) हैं। सप्तमी के देवता सूर्य(Lord Surya) और अष्टमी के देवता शिव (Lord Shiv) हैं।

नवमी की देवी दुर्गा(Lord Durga), दशमी के देवता यम (Lord Yam) और एकादशी (Ekadshi) तिथि के देवता विश्वेदेव कहे गए हैं। द्वादशी के विष्णु (Lord Vishnu) तथा त्रयोदशी के देवता कामदेव हैं। चतुर्दशी के देवता शिव(Lord Shiv), पूर्णिमा के देवता चन्द्रमा और अमावस्या के देवता पितर हैं। ये सब तिथियों के देवता कहे गए हैं। जिस देवता की जो तिथि हो उस देवता की उसी तिथि में पूजा करनी चाहिए। प्रायः इसी मास में ‘अगस्त्य’ का उदय होता है। हे मुने ! मैं उस काल को बता रहा हूँ, आप एकाग्रचित्त होकर सुनिए।

सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश करने के दिन से जब बारह अंश चालीस घडी व्यतीत हो जाती है तब अगस्त्य का उदय होता है। उसके सात दिन पूर्व से अगस्त्य को अर्ध्य प्रदान करना चाहिए। बारहों मासों में सूर्य पृथक-पृथक नामों से जाने जाते हैं। उनमें से श्रावण मास (Sawan Mass) में सूर्य ‘गभस्ति’ नाम वाला होकर तपता है। इस मास में मनुष्यों को भक्ति संपन्न होकर सूर्य की पूजा करनी चाहिए। हे सत्तम ! चार मासों में जो वस्तुएं वर्जित हैं, उन्हें सुनिए। श्रावण मास में शाक तथा भाद्रपद में दही का त्याग कर देना चाहिए। इसी प्रकार आश्विन में दूध तथा कार्तिक में दाल का परित्याग कर देना चाहिए।

यदि इन मासों में इन वस्तुओं का त्याग नहीं कर सके तो केवल श्रावण मास (Shravan Mass) में ही उक्त वस्तुओं का त्याग करने से मानव उसी फल को प्राप्त कर लेता है। हे मानद ! यह बात मैंने आपसे संक्षेप में कही है, हे मुनिश्रेष्ठ! इस मास के व्रतों और धर्मों के विस्तार को सैकड़ों वर्षों में भी कोई नहीं कह सकता। मेरी अथवा विष्णु की प्रसन्नता के लिए सम्पूर्ण रूप से व्रत करना चाहिए। परमार्थ की दृष्टि से हम दोनों में भेद नहीं है। जो लोग भेद करते हैं, वे नरकगामी होते हैं। अतः हे सनत्कुमार ! आप श्रावण मास में धर्म का आचरण कीजिए।

||इस प्रकार ईश्वरसनत्कुमार संवाद के अंतर्गत “श्रावणव्रतोंद्देशकथन” नामक दुसरा अध्याय पूर्ण हुआ||

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श्रावण माह माहात्म्य पहला अध्याय | Chapter -1 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

Shravan Mass 01 Adhyay

Shravan Mass 01 Adhyay

श्रावण माह माहात्म्य पहला अध्याय
Chapter -1

 

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शौनक बोले – हे सूत ! हे सूत ! हे महाभाग ! हे व्यासशिष्य ! हे अकल्मष ! आपके मुख कमल से अनेक आख्यानों को सुनते हुए हम लोगों की तृप्ति नहीं होती है, अपितु बार-बारे सुनाने की इच्छा बढ़ती जा रही है। तुला राशि में स्थित सूर्य में कार्तिक मास (Kartik Mass) का माहात्म्य, मकर राशि में माघ मास का माहात्म्य और मेष राशि में स्थित सूर्य में वैशाख मास (Veshakh Mass) का माहात्म्य और इसके साथ उन-उन मासों के जो भी धर्म हैं, उन्हें आपने भली-भाँति कह दिया, यदि आप के मत में इनसे भी अधिक महिमामय कोई मास हो तथा भगवत्प्रिय कोई धर्म हो तो आप उसे अवश्य कहिये, जिसे सुनकर कुछ अन्य सुन ने की हमारी इच्छा न हो। वक्ता को श्रद्धालु श्रोता के समक्ष कुछ भी छिपाना नहीं चाहिए।

सूत जी बोले – हे मुनियों ! आप सभी लोग सुनें, मैं आप लोगों के वाक्य गौरव से अत्यंत संतुष्ट हूँ, आप लोगों के समक्ष मेरे लिए कुछ भी गोपनीय नहीं है। दम्भ रहित होना, आस्तिकता, शठता का परित्याग, उत्तम भक्ति, सुनने की इच्छा, विनम्रता, ब्राह्मणों के प्रति भक्ति परायणता, सुशीलता, मन की स्थिरता, पवित्रता, तपस्विता और अनसूया – ये श्रोता के बारह गुण बताये गए हैं। ये सभी आप लोगों में विद्यमान हैं, अतः मैं आप लोगों पर प्रसन्न होकर उस तत्त्व का वर्णन करता हूँ।

एक समय प्रतिभाशाली सनत्कुमार ने धर्म को जानने की इच्छा से परम भक्ति से युक्त होकर विनम्रतापूर्वक ईश्वर – भगवान शिव (Lord Shiv) – से पूछा।

सनत्कुमार बोले – योगियों के द्वारा आराधनीय चरणकमल वाले हे देवदेव ! हे महाभाग ! हमने आप से अनेक व्रतों तथा बहुत प्रकार के धर्मों का श्रवण किया फिर भी हम लोगों के मन में सुनने की अभिलाषा है। बारहों मासों में जो मास सबसे श्रेष्ठ, आपकी अत्यंत प्रीति कराने वाला, सभी कर्मों की सिद्धि देने वाला हो और अन्य मास में किया गया कर्म यदि इस मास में किया जाए तो वह अनंत फल प्रदान कराने वाला हो – हे देव ! उस मास को बताने की कृपा कीजिए, साथ ही लोकानुग्रह की कामना से उस मास के सभी धर्मों का भी वर्णन कीजिए।

ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! मैं अत्यंत गोपनीय भी आपको बताऊंगा ! हे सुव्रत ! हे विधिनन्दन ! मैं आपकी श्रवणेच्छा तथा भक्ति से प्रसन्न हूँ। बारहों मासों में श्रावण मास (Shravan Mass)  मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है, अतः इसे श्रावण (Sawan Mass) कहा गया है। इस मास में श्रवण-नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होती है, इस कारण से भी इसे श्रावण (Sharavan) कहा गया है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है। निर्मलता गुण के कारण यह आकाश के सदृश है इसलिए ‘नभा’ कहा गया है।

इस श्रावण मास (Sawan Mass) के धर्मों की गणना करने में इस पृथ्वीलोक में कौन समर्थ हो सकता है, जिसके फल का सम्पूर्ण रूप से वर्णन करने के लिए ब्रह्माजी चार मुख वाले हुए, जिसके फल की महिमा को देखने के लिए इंद्र हजार नेत्रों से युक्त हुए और जिसके फल को कहने के लिए शेषनाग दो हजार जिह्वाओं से सम्पन्न हुए। अधिक कहने से क्या प्रयोजन, इसके माहात्म्य को देखने और कहने में कोई भी समर्थ नहीं है। हे मुने ! अन्य मास इसकी एक कला को भी नहीं प्राप्त होते हैं। यह सभी व्रतों तथा धर्मों से युक्त है। इस महीने में एक भी दिन ऐसा नहीं है जो व्रत से रहित दिखाई देता हो। इस माह में प्रायः सभी तिथियां व्रतयुक्त हैं।

इसके माहात्म्य के सन्दर्भ में मैंने जो कहा है, वह केवल प्रशंसा मात्र नहीं है। आर्तों, जिज्ञासुओं, भक्तों, अर्थ की कामना करने वाले, मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले और अपने-अपने अभीष्ट की आकांक्षा रखने वाले चारों प्रकार के लोगों – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास आश्रम वाले – को इस श्रावण मास (Shravan Mass) में व्रतानुष्ठान करना चाहिए।

सनत्कुमार बोले – हे भगवन ! हे सत्तम ! आपने जो कहा कि इस मास में सभी दिन एवं तिथियां व्रत रहित नहीं हैं तो आप उन्हें मुझे बताएं किस तिथि में और किस दिन में कौन-सा व्रत होता है, उस व्रत का अधिकारी कौन है, उस व्रत का फल क्या है, किस-किस ने उस व्रत को किया, उसके उद्यापन की विधि क्या है, प्रधान पूजन कहाँ हो और जागरण करने की क्या विधि है, उसका देवता कौन है, उस देवता की पूजा कहाँ होनी चाहिए, पूजन सामग्री क्या-क्या होनी चाहिए और किस व्रत का कौन-सा समय होना चाहिए, हे प्रभो ! वह सब आप मुझे बताएं।

यह मास आपको प्रिय क्यों है, किस कारण यह पवित्र है, इस मास में भगवान का कौन-सा अवतार हुआ, यह सभी मासों से श्रेष्ठ कैसे हुआ और इस मास में कौन-कौन धर्म अनुष्ठान के योग्य हैं, हे प्रभो ! यह सब बताएं। आपके समक्ष मुझ अज्ञानी का प्रश्न करने में कितना ज्ञान हो सकता है, अतः आप सम्पूर्ण रूप से बताएं. हे कृपालों ! मेरे पूछने के अतिरिक्त भी जो जो शेष रह गया हो उसे भी लोगों के उद्धार के लिए कृपा कर के बताएं।

रविवार, सोमवार, भौमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार के दिन जो करना चाहिए, हे विभो ! वह सब मुझे बताइए। आप सबके आदि में आविर्भूत हुए हैं, अतः आपको आदि देव कहा गया है। जैसे एक की विधि बाधा से अन्य की विधि-बाधा होती है, वैसे ही अन्य देवताओं के अल्प देवत्व के कारण आपको महादेव माना गया है। तीनों देवताओं के निवास स्थान पीपल वृक्ष में सबसे ऊपर आपकी स्थिति है।

कल्याण रूप होने के कारण आप शिव (Shiv) हैं और पापसमूह को हरने के कारण आप हर हैं. आपके आदि देव होने में आपका शुक्ल वर्ण प्रमाण है क्योंकि प्रकृति में शुक्ल वर्ण ही प्रधान है, अन्य वर्ण विकृत है। आप कर्पूर के समान गौर वर्ण के है, अतः आप आदि देव हैं। गणपति के अधिष्ठान रूप चार दल वाले मूलाधार नामक चक्र से, ब्रह्माजी के अधिष्ठान रूप छ: दल वाले स्वाधिष्ठान नामक चक्र से और विष्णु के अधिष्ठान रूप दस दल वाले मणिपुर नामक चक्र से भी ऊपर आप के अधिष्ठित होने के कारण आप ब्रह्मा (Lord Brahma) तथा विष्णु (Lord Vishnu) के ऊपर स्थित हैं – यह आपकी प्रधानता को व्यक्त करता है। हे देव ! एकमात्र आपकी ही पूजा से पंचायतन पूजा हो जाती है जो की दूसरे देवता की पूजा से किसी भी तरह संभव नहीं है।

आप स्वयं शिव (Lord Shiv) हैं। आपकी बाईं जाँघ पर शक्ति स्वरूपा दुर्गा(Lord Durga), दाहिनी जाँघ पर गणपति(Lord Ganpati), आपके नेत्र में सूर्य तथा ह्रदय में भक्तराज भगवान् श्रीहरि (Lord Shri Hari) विराजमान हैं। अन्न के ब्रह्मारूप होने तथा रास के विष्णु (Lord Vishnu) रूप होने और आपके उसका भोक्ता होने के कारण हे ईशान ! आपके श्रेष्ठत्व में किसे संदेह हो सकता है। सबको विरक्ति की शिक्षा देने हेतु आप श्मशान में तथा पर्वत पर निवास करते हैं।

पुरुषसूक्त में “उतामृतत्वस्येशानो०” इस मन्त्र के द्वारा प्रतिपादन के योग्य हैं – ऐसा महर्षियों ने कहा है। जगत का संहार करने वाले हालाहल को गले में किसने धारण किया ! महाप्रलय की कालाग्नि को अपने मस्तक पर धारण करने में कौन समर्थ था ! संसार रूप अंधकूप में पतन के हेतु कामदेव को किसने भस्म किया ! आप ऐसे हैं कि आपकी महिमा का वर्णन करने में कौन समर्थ है ! एक तुच्छ प्राणी मैं करोड़ों जन्मों में भी आपके प्रभाव का वर्णन नहीं कर सकता। अतः आप मेरे ऊपर कृपा कर के मेरे प्रश्नों को बताएं।

|| इस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में पहला अध्याय पूर्ण हुआ ||

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श्री राहु-मंगल ग्रह स्तोत्र | Sri Rahu-Mangal Dev Stotram

Rahu Dev | Mangal Dev

Rahu Dev | Mangal Dev

श्री राहु-मंगल स्तोत्र | Sri Rahu-Mangal Stotam

राहुः सिंहल देश जश्च निऋति: कृष्णांग शूर्पासनो ।
यः पैठीनसि गोत्र सम्भव समिद् दूर्वामुखो दक्षिणः ।

यः सर्पाद्यधि दैवेते च निऋतिः प्रत्याधि देवः सदा ।
षट् त्रिंस्थ शुभकृत् च , सिंहिक सुतः कुर्यात् सदा मंगलम् ।।

॥ इति श्री राहु-मंगल स्तोत्रम् ॥

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श्री केतु-मंगल ग्रह स्तोत्र Sri Ketu-Mangal Dev Stotram

Ketu | Managal

Ketu | Managal

श्री केतु-मंगल स्तोत्र  Sri Ketu-Mangal Stotram

केतुः जैमिनि गोत्रजः कुश समिद् वायव्य कोणे स्थितः ।
चित्रांङ्गः ध्वज लांछनो हिम गुहो यो दक्षिणा शा मुखः ।

ब्रह्मा चैव सचित्र चित्र सहितः प्रत्याधि देवः सदा ।
षट् त्रिंस्थः शुभ कृच्च बर्बर पतिः कुर्यात् सदा मंगलम् ।।

॥ इति केतु-मंगल स्तोत्रम् ॥

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श्री केतु ग्रह पंचविंशति नाम स्तोत्र | Sri Ketu Dev Panchvivshati nam Stotram

Ketu Dev

Ketu Dev

श्री केतु ग्रह पंचविंशति नाम स्तोत्र | Sri Ketu Dev Panchvivshati nam Stotram

केतुः कालः कलयिता धूम्र केतुः विवर्णकः ।
लोक केतुः महा केतुः सर्व केतुः भयप्रदः ।।

रौद्रः रुद्र प्रियः रूद्रः क्रूर कर्मा सुगन्ध धृक् ।
पलाश धूम संकाशः चित्र यज्ञोपवीत धृक् ।।

तारागण विमर्दी च जैमिनेयः महाधिपः ।
पंच विंशति नामानि केतोः यः सततम् पठेत् ।।

तस्य नश्यति बाधा च सर्व केतु प्रसादतः ।
धन धान्य पशूनाम् च भवेत् वृद्धिः न संशय ।।

॥ इति केतु पंचविंशति नाम स्तोत्रम् ॥

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श्री राहु ग्रह स्तोत्र | Sri Rahu Dev Stotram [Download Free PDF]

Rahu Dev

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श्री राहु ग्रह स्तोत्र | Sri Rahu Dev Stotram

राहुः दानव मन्त्री च सिंहिका चित्त नन्दनः ।
अर्ध कायः सदा क्रोधी चन्द्र – आदित्य – विमर्दनः ।।

रौद्रः , रुद्र प्रियः दैत्यः स्वर् – भानुः – भानु भीतिदः ।
ग्रहराजः सुधा पायी , राकातिथ्य – अभिलाषुकः ।।

काल दृष्टिः काल रूपः श्री कण्ठ ह्रदय – आश्रयः ।
विधुन्तुदः , सैहिकेयः , घोर रूपः महाबलः ।।

ग्रहपीड़ा करः दंष्ट्री रक्त नेत्रः महोदरः ।
पंच विंशति नामानि स्मृत्वा राहुम् सदा नरः ।

यः पठेत् महतीम् पीड़ाम् तस्य नश्यति केवलम् ।
आरोग्यम् पुत्रम् , अतुलाम् , श्रियम् , धान्यम् , पशून् – तथा ।।

ददाति राहुः तस्तै यः पठते स्तोत्रम् – उतमम् ।
सततम् पठेत यः तु जीवेत् वर्षशतम् नरः ।।

॥ इति श्री राहु स्तोत्रम् ॥

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