मासिक कालाष्टमी व्रत विधि | Masik Kala Ashtami Vrat Katha, Puja Vidhi

Kalashtami

Kalashtami

मासिक कालाष्टमी व्रत विधि | Masik Kala Ashtami Vrat Katha, Puja Vidhi

कालाष्टमी का अर्थ है :
कालाष्टमी = काल + अष्टमी

यह उपवास हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। कालभैरव (Kalbhairav) के भक्त साल की सभी मासिक कालाष्टमी (Masik Kalashtami) पर उनकी उनकी पूजा और उपवास करते हैं। काल भैरव की सवारी काले कुत्ते को इस दिन विशेष रूप से भोजन कराना चाहिए। भगवान शिव (Bhagwan Shiv) के 2 स्वरूप हैं। पहला बटुक भैरव, जिन्हें सौम्य माना जाता है और दूसरा स्वरूप है काल भैरव (Kaal Bhairav) का जो भगवान शिव का रौद्र रूप होता है।

कालभैरव (Kalbhairav) जयन्ती पर सबसे मुख्य कालाष्टमी (Kalashtami) मानी जाती है। इस दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। जिसे उत्तरी भारतीय पूर्णिमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में तथा दक्षिणी भारतीय अमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार कार्तिक के महीने में मनाते हैं। हालाँकि दोनों पञ्चाङ्ग में कालभैरव जयन्ती एक ही दिन देखी जाती है।

कालभैरव (Kalbhairav) जयन्ती को भैरव अष्टमी (Bhairav Ashtami) के नाम से भी जाना जाता है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि कालाष्टमी (Kalashtami) का व्रत सप्तमी तिथि के दिन भी हो सकता है। जिस दिन अष्टमी तिथि रात्रि के दौरान प्रबल होती है उस दिन व्रतराज कालाष्टमी (Kalashtami) का व्रत किया जाना चाहिए। अन्यथा कालाष्टमी (Kalashtami) पिछले दिन चली जाती है।

मासिक कालाष्टमी की पौराणिक कथा |  Masik Kalashtami Pauraanik Katha

कालाष्टमी (Kalashtami) की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा।

शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए।

भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए।
भैरव बाबा (Bhairav Baba) को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था।

मासिक कालाष्टमी का महत्व | Masik Kalashtami Mahatv

धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भगवान भैरव के भक्तों का अनिष्ट करता है, उसे तीनों लोकों में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है। कालाष्टमी (Kalashtami) के दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजन करने से जातक को भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान भैरव अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करते हैं। इनकी पूजा से शत्रु बाधा और रोगों से भी मुक्ति मिलती है। जो लोग आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं उनके लिए भगवान भैरव दंडनायक हैं और अपने भक्तों के लिए वे सौम्य और रक्षा करने वाले हैं।

श्री भैरव आरती | Bhairavji ki Aarti

सुनो जी भैरव लाड़िले,कर जोड़ कर विनती करूँ।
कृपा तुम्हारी चाहिए,मैं ध्यान तुम्हारा ही धरूँ।
मैं चरण छुता आपके,अर्जी मेरी सुन लीजिये॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

मैं हूँ मति का मन्द,मेरी कुछ मदद तो कीजिये।
महिमा तुम्हारी बहुत,कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूँ॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

करते सवारी स्वान की,चारों दिशा में राज्य है।
जितने भूत और प्रेत,सबके आप ही सरताज हैं॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

हथियार हैं जो आपके,उसका क्या वर्णन करूँ।
माता जी के सामने तुम,नृत्य भी करते सदा॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

गा गा के गुण अनुवाद से,उनको रिझाते हो सदा।
एक सांकली है आपकी,तारीफ उसकी क्या करूँ॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

बहुत सी महिमा तुम्हारी,मेंहदीपुर सरनाम है।
आते जगत के यात्री,बजरंग का स्थान है॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

श्री प्रेतराज सरकार के,मैं शीश चरणों में धरूँ।
निशदिन तुम्हारे खेल से,माताजी खुश रहें॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

सिर पर तुम्हारे हाथ रख कर,आशीर्वाद देती रहें।
कर जोड़ कर विनती करूँ,अरु शीश चरणों में धरूँ॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

Other Keywords:-
Masik Kala Ashtami Vrat Katha | Masik Kala Ashtami Vrat kab hai | Masik Kala Ashtami vrat ki katha | Masik Kala Ashtami vrat katha in hindi | Masik Kala Ashtami vrat ki vidhi | Masik Kala Ashtami vrat January | Masik Kala Ashtami vrat february | Masik Kala Ashtami vrat march | Masik Kala Ashtami vrat april | Masik Kala Ashtami vrat may | Masik Kala Ashtami vrat june | Masik Kala Ashtami vrat july | Masik Kala Ashtami vrat august | Masik Kala Ashtami vrat september | Masik Kala Ashtami vrat october | Masik Kala Ashtami vrat november | Masik Kala Ashtami vrat december | Masik Kala Ashtami vrat april mein kab hai | may mein kab hai| Masik Kala Ashtami vrat aaj | Today Masik Kala Ashtami vrat| Masik Kala Ashtami vrat chhut jaye to kya karen | Masik Kala Ashtami vrat calendar | Masik Kala Ashtami vrat katha| Masik Kala Ashtami vrat vidhi | Masik Kala Ashtami vrat for unmarried girl | Masik Kala Ashtami start and end time | Masik Kala Asthmi vrat list | Masik Kala Asthmi vrat katha | Masik Kala Vrat Khatha

मासिक शिवरात्रि व्रत विधि | Masik Shivratri Vrat Katha, Puja Vidhi

Shiva

Shiva

मासिक शिवरात्रि  व्रत विधि | Masik Shivratri Vrat Katha, Puja Vidhi

शिवरात्रि (Masik Shivratri) शिव और शक्ति के अभिसरण का विशेष पर्व है। हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) के नाम से जाना जाता है।

अमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ माह की मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) को महा शिवरात्रि कहते हैं। परन्तु पूर्णिमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह की मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) को महा शिवरात्रि (Shivratri) कहते हैं। हालाँकि दोनों, पूर्णिमान्त और अमान्त पञ्चाङ्ग एक ही दिन महा शिवरात्रि (Shivratri) के साथ सभी शिवरात्रियों को मानते हैं।

महा शिवरात्रि (Maha Shivratri) के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव (Bhagwan Shiv) लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महा शिवरात्रि (Maha Shivratri) को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं। शिवरात्रि (Shivratri) व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है।

जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) का व्रत करना चाहते है, वह इसे महा शिवरात्रि (Maha Shivratri) से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) के व्रत को करने से भगवान शिव (Bhagwan Shiv) की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते हैं। शिवरात्रि (Shivratri) मे रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करना चाहिए। अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए इस व्रत को करती है।

मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो वह बहुत ही शुभ होती है। शिवरात्रि (Shivratri) पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। मध्य रात्रि को निशिता काल के नाम से जाना जाता है और यह दो घटी के लिए प्रबल होती है।

शिव पुराण (Shiv Puran) के अनुसार मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) का व्रत रखने वाले स्‍त्री व पुरूष को मनचाहा वरदान मिलता है। कहा जाता है मासिक शिवरात्रि का व्रत भगवान भोलेनाथ को अति प्रिय है।

मासिक शिवरात्रि व्रत कथा | Masik Shivratri Vrat Katha Hindi

पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।

बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली- ‘मैं गर्भिणी हूं. शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।’’

शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया। कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- ‘हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।’

शिकारी हंसा और बोला- ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे।’

उत्तर में हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। हिरणी का दुखभरा स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई. उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- ‘ हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।’

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी. तब मृग ने कहा- ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार सुबह हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिवजी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जानकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

शिवजी की आरती | Shiv Aarti

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥

Other Keywords:-
Masik Shivratri Vrat Katha | Masik Shivratri Vrat kab hai | Masik Shivratri vrat ki katha | Masik Shivratri vrat katha in hindi | Masik Shivratri vrat ki vidhi | Masik Shivratri vrat January | Masik Shivratri vrat february | Masik Shivratri vrat march | Masik Shivratri vrat april | Masik Shivratri vrat may | Masik Shivratri vrat june | Masik Shivratri vrat july | Masik Shivratri vrat august | Masik Shivratri vrat september | Masik Shivratri vrat october | Masik Shivratri vrat november | Masik Shivratri vrat december | Masik Shivratri vrat april mein kab hai | may mein kab hai | Masik Shivratri vrat aaj | Today Masik Shivratri vrat| Masik Shivratri vrat chhut jaye to kya karen | Masik Shivratri vrat calendar | Masik Shivratri vrat katha| Masik Shivratri vrat vidhi | Masik Shivratri vrat for unmarried girl | Masik Shivratri start and end time| Masik Shivratri vrat list | Masik Shivratri vrat katha | Masik Shivratri Vrat Khatha

विनायक चतुर्थी व्रत विधि | Siddhi Vinayak Chaturthi Vrat Katha, Puja Vidhi

Vinayka

Vinayka

चतुर्थी व्रत विधि | Vinayak Chaturthi Vrat Katha, Puja Vidhi

चतुर्थी तिथि भगवान गणेश (Bhagwan Ganesh) की तिथि है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) कहते हैं और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।

भाद्रपद के दौरान पड़ने वाली विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) को वरद विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है। भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं। जो श्रद्धालु विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) का उपवास करते हैं भगवान गणेश उसे ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण है जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है।

विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi)के दिन गणेश पूजा दोपहर को मध्याह्न काल के दौरान की जाती है।विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) के लिए उपवास का दिन सूर्योदय और सूर्यास्त पर निर्भर करता है और जिस दिन मध्याह्न काल के दौरान चतुर्थी तिथि प्रबल होती है उस दिन विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) का व्रत किया जाता है। इसीलिए कभी कभी विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) का व्रत, चतुर्थी (Chaturthi) तिथि से एक दिन पूर्व, तृतीया तिथि के दिन पड़ जाता है।

श्री विनायक चतुर्थी की पौराणिक व्रत कथा  | Vinayak Chaturthi Pauraanik Vrat Katha

एक बार भगवान शिव (Bhagwan Shiv) तथा माता पार्वती (Maa Parvati) नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ खेलने को कहा।

शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’

उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया।
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- ‘यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।’ यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं।

एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेशजी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा।

उस पर उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।’

तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई।

चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।

तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

श्री गणेशजी की आरती  | Ganesh Aarti

जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

एकदन्त दयावन्त,चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे,मूसे की सवारी॥
(माथे पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी॥)

पान चढ़े फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।
(हार चढ़े, फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।)
लड्डुअन का भोग लगे,सन्त करें सेवा॥

जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

अँधे को आँख देत,कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥

‘सूर’ श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो,जग बलिहारी॥

जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

Other Keywords:- Vinayak Chaturthi Vrat Katha | Vinayak Chaturthi Vrat kab hai | Vinayak Chaturthi vrat ki katha | Vinayak Chaturthi vrat katha in hindi | Vinayak Chaturthi vrat ki vidhi | Vinayak Chaturthi vrat January | Vinayak Chaturthi vrat february | Vinayak Chaturthi vrat march | Vinayak Chaturthi vrat april | Vinayak Chaturthi vrat may | Vinayak Chaturthi vrat june | Vinayak Chaturthi vrat july | Vinayak Chaturthi vrat august | Vinayak Chaturthi vrat september | Vinayak Chaturthi vrat october | Vinayak Chaturthi vrat november | Vinayak Chaturthi vrat december | Vinayak Chaturthi vrat april mein kab hai | may mein kab hai | Vinayak Chaturthi vrat aaj | Today Vinayak Chaturthi vrat| Vinayak Chaturthi vrat chhut jaye to kya karen | Vinayak Chaturthi vrat calendar | Vinayak Chaturthi vrat katha | Vinayak Chaturthi vrat vidhi | Vinayak Chaturthi vrat for unmarried girl | Vinayak Chaturthi start and end time |

मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत विधि | Masik Shri Durga Ashtami Vrat Katha, Puja Vidhi

durga maa

durga maa

मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत विधि | Masik Shri Durga Ashtami Vrat Katha, Puja Vidhi

हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान दुर्गाष्टमी (Durga Ashtami) का उपवास किया जाता है। इस दिन श्रद्धालु दुर्गा माता की पूजा करते हैं और उनके लिए पूरे दिन का व्रत करते हैं।

मुख्य दुर्गाष्टमी (Durga Ashtami) जिसे महाष्टमी कहते हैं, अश्विन माह में नौ दिन के शारदीय नवरात्रि उत्सव के दौरान पड़ती है।

संस्कृत की भाषा में दुर्गा शब्द का अर्थ होता है अपराजित अर्थात जो किसी से भी कभी पराजित नहीं हो, और अष्टमी का अर्थ होता है आठवा दिन। इस अष्टमी के दिन महिषासुर नामक राक्षस पर देवी दुर्गा ने जीत हासिल की थी। इस दिन देवी ने अपने भयानक और रौद्र रूप को धारण किया था, इसलिए इस दिन को देवी भद्रकाली के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योकि इस दिन दुष्ट और क्रूर राक्षस को उन्होंने मार कर सारे ब्रह्माण्ड को भय मुक्त किया था।

इस दिन जो भी पूरी भक्ति और श्रधा से पूर्ण समर्पण के साथ दुर्गा अष्टमी (Durga Ashtami) का व्रत करता है उसके जीवन में खुशी और अच्छे भाग्य का आगमन होता है।

मासिक दुर्गा अष्टमी कथा | Masik Durga Ashtami Katha (Story) in Hindi

प्राचीन समय में दुर्गम नामक एक दुष्ट और क्रूर दानव रहता था। वह बहुत ही शक्तिशाली था। अपनी क्रूरता से उसने तीनों लोकों में अत्याचार कर रखा था। उसकी दुष्टता से पृथ्वी, आकाश और ब्रह्माण्ड तीनों जगह लोग पीड़ित थे। उसने ऐसा आतंक फैलाया था, कि आतंक के डर से सभी देवता कैलाश में चले गए, क्योंकि देवता उसे मार नहीं सकते थे, और न ही उसे सजा दे सकते थे। सभी देवता ने भगवान शिव जी से इस बारे में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया।

अंत में विष्णु, ब्रह्मा और सभी देवता के साथ मिलकर भगवान शंकर ने एक मार्ग निकाला और सबने अपनी ऊर्जाअर्थात अपनी शक्तियों को साझा करके संयुकत रूप से शुक्ल पक्ष अष्टमी को देवी दुर्गा को जन्म दिया। उसके बाद उन्होंने उन्हें सबसे शक्तिशाली हथियार को देकर दानव के साथ एक कठोर युद्ध को छेड़ दिया, फिर देवी दुर्गा ने उसको बिना किसी समय को लगाये तुरंत दानव का संहार कर दिया। वह दानव दुर्ग सेन के नाम से भी जाना जाता था। उसके बाद तीनों लोकों में खुशियों के साथ ही जयकारे लगने लगे, और इस दिन को ही दुर्गाष्टमी की उत्पति हुई। इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई।

मासिक दुर्गा अष्टमी पूजा विधि | Masik Durga Ashtami Puja Vidhi

देवी दुर्गा जी के नौ रूप है हर एक विशेष दिन देवी के एक विशेष रूप का पूजन किया जाता है जिनके नाम शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री है। मासिक दुर्गा अष्टमी (Masik Durga Ashtami) के दिन विशेष रूप से माँ दुर्गा (Maa Durga) के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है।

दुर्गा अष्टमी के दिन देवी दुर्गा के हथियारों की पूजा की जाती है और हथियारों के प्रदर्शन के कारण इस दिन को लोकप्रिय रूप से विराष्ट्मी के रूप में भी जाना जाता है।

दुर्गा अष्टमी (Durga Ashtami) के दिन भक्त सुबह जल्दी से स्नान करके देवी दुर्गा से प्रार्थना करते है और पूजन के लिए लाल फूल, लाल चन्दन, दीया, धूप इत्यादि इन सामग्रियों से पूजा करते है, और देवी को अर्पण करने के लिए विशेष रूप से नैवेध को तैयार किया जाता है।

दुर्गा अष्टमी (Durga Ashtami) के दिन विशेष कर जो 6 वर्ष से 12 वर्ष के आयु वर्ग की कन्याओं के 5, 7, 9 और 11 के समूह को भोजन के लिए आमन्त्रित कर, उनके स्वागत में उनके पांव को पहले धोया जाता है, फिर उनका पूजन किया जाता है तत्पश्चात उन्हें भोजन में खीर, हलवा, पुड़ी, मिठाई इत्यादि खाद्य पदार्थ दिए जाते है और उसके बाद कुछ उपहार देकर उन्हें सम्मानित किया जाता है।

इन सारे विधि कार्यों को करने के बाद पूजा समाप्त हो जाती है और अंत में माता का आशीर्वाद आपको प्राप्त हो जाता है।

माँ दुर्गा आरती | Maa Durga Aarti

जय अम्बे गौरी,मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत,हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी॥

माँग सिन्दूर विराजत,टीको मृगमद को।
उज्जवल से दो‌उ नैना,चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी॥

कनक समान कलेवर,रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला,कण्ठन पर साजै॥
जय अम्बे गौरी॥

केहरि वाहन राजत,खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत,तिनके दुखहारी॥
जय अम्बे गौरी॥

कानन कुण्डल शोभित,नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर,सम राजत ज्योति॥
जय अम्बे गौरी॥

शुम्भ-निशुम्भ बिदारे,महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना,निशिदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी॥

चण्ड-मुण्ड संहारे,शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दो‌उ मारे,सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी॥

ब्रहमाणी रुद्राणीतुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी,तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत,नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा,अरु बाजत डमरु॥
जय अम्बे गौरी॥

तुम ही जग की माता,तुम ही हो भरता।
भक्‍तन की दु:ख हरता,सुख सम्पत्ति करता॥
जय अम्बे गौरी॥

भुजा चार अति शोभित,वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत,सेवत नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी॥

कन्चन थाल विराजत,अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत,कोटि रतन ज्योति॥
जय अम्बे गौरी॥

श्री अम्बेजी की आरती,जो को‌ई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी,सुख सम्पत्ति पावै॥
जय अम्बे गौरी॥

Other Keywords:- Masik Shri Durga Ashtami Vrat Katha | Masik Shri Durga Ashtami Vrat kab hai | Masik Shri Durga Ashtami vrat ki katha | Masik Shri Durga Ashtami vrat katha in hindi | Masik Shri Durga Ashtami vrat ki vidhi | Masik Shri Durga Ashtami vrat January | Masik Shri Durga Ashtami vrat february | Masik Shri Durga Ashtami vrat march | Masik Shri Durga Ashtami vrat april | Masik Shri Durga Ashtami vrat may | Masik Shri Durga Ashtami vrat june | Masik Shri Durga Ashtami vrat july | Masik Shri Durga Ashtami vrat august | Masik Shri Durga Ashtami vrat september | Masik Shri Durga Ashtami vrat october | Masik Shri Durga Ashtami vrat november | Masik Shri Durga Ashtami vrat december | Masik Shri Durga Ashtami vrat april mein kab hai | may mein kab hai | Masik Shri Durga Ashtami vrat aaj | Today Masik Shri Durga Ashtami vrat| Masik Shri Durga Ashtami vrat chhut jaye to kya karen | Masik Shri Durga Ashtami vrat calendar | Masik Shri Durga Ashtami vrat katha| Masik Shri Durga Ashtami vrat vidhi | Masik Shri Durga Ashtami vrat for unmarried girl | Masik Shri Durga Ashtami start and end time | Masik Durga Asthmi vrat list | Masik Durga Asthmi vrat katha | Masik Durga Maa Vrat Khatha

Skand Shashti Vrat Calendar List 2024-2025 | स्कंद षष्ठी व्रत लिस्ट

Skand Shishathi

Skand Shishathi

षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द को समर्पित हैं। शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन श्रद्धालु लोग उपवास करते हैं। षष्ठी तिथि जिस दिन पञ्चमी तिथि के साथ मिल जाती है उस दिन स्कन्द षष्ठी के व्रत को करने के लिए प्राथमिकता दी गयी है। इसीलिए स्कन्द षष्ठी का व्रत पञ्चमी तिथि के दिन भी हो सकता है।

स्कन्द षष्ठी को कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

स्कंद षष्ठी की सूची संवत 2081 सन 2024

मास (महीना)

तारीख

पौष मास शुक्ल पक्ष

16 जनवरी 2024

माघ मास शुक्ल पक्ष

14 फरवरी 2024

फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष

15 मार्च 2024

चैत्र मास शुक्ल पक्ष

13 अप्रैल 2024

वैशाख मास शुक्ल पक्ष

13 मई 2024

ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष

11 जून 2024

आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष

11 जुलाई 2024

श्रावण मास शुक्ल पक्ष

10 अगस्त 2024

भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष

09 सितंबर 2024

आश्विन मास शुक्ल पक्ष

08 अक्टूबर 2024

कार्तिक मास शुक्ल पक्ष

07 नवंबर 2024

मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष

06 दिसंबर 2024

स्कंद षष्ठी की सूची संवत 2081 सन 2025

मास (महीना)

तारीख

पौष मास शुक्ल पक्ष

05 जनवरी 2025

माघ मास शुक्ल पक्ष

03 फरवरी 2025

फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष

04 मार्च 2025

  

Other Keywords:-

Skand shishathi Vrat Katha | Skand shashthi Vrat Vidhi | Skand shishathi Vrat kab hai | Skand shishathi vrat ki katha | Skand shashthi vrat list | Skand shishathi vrat 2024-2025 | Skand shashthi vrat calendar | Skand shishathi vrat katha in hindi | Skand shishathi vrat ki vidhi | Skand shishathi vrat January 2025 | Skand shishathi vrat february 2025 | Skand shishathi vrat march 2025 | Skand shishathi vrat april 2024 | Skand shishathi vrat may 2024 | Skand shishathi vrat june 2024 | Skand shishathi vrat july 2024 | Skand shishathi vrat august 2024 | Skand shishathi vrat september 2024 | Skand shishathi vrat october 2024 | Skand shishathi vrat november 2024 | Skand shishathi vrat december 2024 | Skand shishathi vrat april mein kab hai | may mein kab hai | Skand shishathi vrat aaj | Today Skand shishathi vrat| Skand shishathi vrat chhut jaye to kya karen | Skand shishathi vrat calendar | Skand shishathi vrat dates | Skand shishathi vrat date list | Skand shishathi vrat for unmarried girl | Skand shishathi start and end time | Skand shashthi celebration | Kumar shashthi vrat vidhi | Kumar shashthi vrat katha | Kumar Sashti vrat | Skand shishathi vrat list | Skand shishathi vrat katha | Skand shishathi vrat | Skand shishathi vart | Skand shashthi brat | Skand shishathi bart | Kumar Sashti brat | Kumar Shashthi brat

स्कन्द षष्ठी व्रत विधि | Skand shishathi Vrat Katha, Puja Vidhi

Skand Shashthi

Skand Shashthi

स्कन्द षष्ठी व्रत विधि | Skand shishathi Vrat Katha, Puja Vidhi

षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द (Skand) को समर्पित हैं। शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन श्रद्धालु लोग उपवास करते हैं। षष्ठी तिथि जिस दिन पञ्चमी तिथि के साथ मिल जाती है उस दिन स्कन्द षष्ठी (Skand Shishathi) के व्रत को करने के लिए प्राथमिकता दी गयी है। इसीलिए स्कन्द षष्ठी (Skand Shishathi) का व्रत पञ्चमी तिथि के दिन भी हो सकता है।

स्कन्द षष्ठी (Skand Shishathi) को कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

स्कन्द देव (Skand Dev)भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र और भगवान गणेश के छोटे भाई हैं। भगवान स्कन्द को मुरुगन, कार्तिकेय और सुब्रहमन्य के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान कार्तिकेय को मुरुगन के नाम से जाना जाता है क्योंकि इनका वाहन मोर है।

मां दुर्गा के 5वें स्वरूप स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है। नवरात्रि के 5 वें दिन स्कंदमाता (Skand Mata) का पूजन करने का विधान है। इसके अलावा इस षष्ठी को चम्पा षष्ठी भी कहते हैं, क्योंकि भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम भी पुकारते हैं और उनका प्रिय पुष्प चम्पा है। भगवान स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं। भगवान कार्तिकेय के पराक्रम को देखकर उन्हें देवताओं का सेनापति बना दिया गया। इस पर्व पर भगवान मुरुगन की आराधना से मान-सम्मान, शौर्य-यश और विजय की प्राप्ति होती है। इस शुभ अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का भी विधान है। 

स्कंद षष्ठी की पहली कथा | Skand Shishathi Katha

जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी ‘सती’ कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है। देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा।

इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर ‘पार्वती’ के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।

स्कंद षष्ठी की दूसरी कथा | Story of Skand Shishathi Vrat

स्कंद पुराण के अनुसार, सुरपद्मा, सिंहमुख और तारकासुर के नेतृत्व में राक्षसों ने देवताओं को हराया और पृथ्वी पर कब्जा कर लिया। उन्हें देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार करना अच्छा लगता था। उन्होंने वह सब कुछ नष्ट कर दिया जो देवों और मनुष्यों का था। सुरपद्मा को वरदान मिला था कि केवल भगवान शिव का एक पुत्र ही उसे मार सकता है। दानव का मानना ​​​​था कि देवी सती की मृत्यु के बाद गहरे ध्यान में चले गए भगवान शिव कभी भी सांसारिक जीवन में वापस नहीं आएंगे। देवों ने अपनी दुर्दशा भगवान शिव को बताई, लेकिन वे गहरे ध्यान में थे। भगवान ब्रह्मा ने देवताओं को कामदेव की मदद लेने की सलाह दी। उन्होंने भगवान शिव में यौन इच्छा को उकसाया। लेकिन क्रोधित भगवान शिव ने उसे जलाकर भस्म कर दिया।

भगवान शिव से निकला वीर्य छह भागों में बंट गया और गंगा में जमा हो गया। देवी गंगा ने छह भागों को एक जंगल में छिपा दिया। इसने छह बच्चों का रूप धारण किया। छह कार्तिकाई सितारों द्वारा बच्चों की देखभाल की गई। बाद में, देवी पार्वती ने छह बच्चों को एक में मिला दिया।

स्कंद षष्ठी पूजा विधि | Skand Shishathi Puja Vidhi

इस तिथि पर विधिपूर्वक व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और रोग, दुख, दरिद्रता से भी मुक्ति मिलती है। विधिपूर्वक व्रत करने के लिए सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि के बाद नए वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात् भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा की स्थापना करें और दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजन करें। पूजा सामग्री में घी और दही को अवश्य शामिल करें। इसके बाद भगवान मुरुगन की आराधना के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप करें।

“ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात”।।
या
“ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते” ।।

व्रती को मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन का परित्याग कर देना चाहिए। ब्राह्मी का रस और घी का सेवन कर सकते हैं और रात्रि को जमीन पर सोना चाहिए।

Other Keywords:-
Skand shishathi Vrat Katha | Skand shishathi Vrat kab hai | Skand shishathi vrat ki katha | Skand shishathi vrat katha in hindi | Skand shishathi vrat ki vidhi | Skand shishathi vrat January | Skand shishathi vrat february | Skand shishathi vrat march | Skand shishathi vrat april | Skand shishathi vrat may | Skand shishathi vrat june | Skand shishathi vrat july | Skand shishathi vrat august | Skand shishathi vrat september | Skand shishathi vrat october | Skand shishathi vrat november | Skand shishathi vrat december | Skand shishathi vrat april mein kab hai | may mein kab hai | Skand shishathi vrat aaj | Today Skand shishathi vrat| Skand shishathi vrat chhut jaye to kya karen | Skand shishathi vrat calendar | Skand shishathi vrat katha | Skand shishathi vrat vidhi | Skand shishathi vrat for unmarried girl | Skand shishathi start and end time |

संकष्टी चतुर्थी व्रत विधि | Sankashti Chaturthi Vrat Katha, Puja Vidhi

ganesha

ganesha

संकष्टी चतुर्थी व्रत विधि | Sankashti Chaturthi Vrat Katha, Puja Vidhi

पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।

संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) का व्रत हर महीने में होता है लेकिन सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी पूर्णिमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है और अमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार पौष के महीने में पड़ती है।

संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं और इसे बहुत ही शुभ माना जाता है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत | Sankashti Chaturthi Vrat

संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी (Sankashti)कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi Vrat) का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।

संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi Vrat) का उपवास कठोर होता है जिसमे केवल फलों, जड़ों (जमीन के अन्दर पौधों का भाग) और वनस्पति उत्पादों का ही सेवन किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) व्रत के दौरान साबूदाना खिचड़ी, आलू और मूँगफली का मुख्य आहार होता है। श्रद्धालु लोग चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास को तोड़ते हैं।

उत्तरी भारत में माघ माह के दौरान पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) को सकट चौथ (Sakat Chouth) के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही भाद्रपद माह के दौरान पड़ने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) के लिए उपवास का दिन चन्द्रोदय पर निर्धारित होता है। जिस दिन चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र उदय होता है उस दिन ही संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) का व्रत रखा जाता है। इसीलिए कभी कभी संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) का व्रत, चतुर्थी तिथि से एक दिन पूर्व, तृतीया तिथि के दिन पड़ जाता है।

गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Sankashti Chaturthi Story)

एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जाती हैं। तब वे अपने शरीर के मेल को इक्कट्ठा कर एक पुतला बनाती हैं और उसमे जान डालकर एक बालक को जन्म देती हैं। स्नान के लिए जाने से पूर्व माता पार्वती बालक को कार्य सौंपती हैं कि वे कुंड के भीतर नहाने जा रही हैं। अतः वे किसी को भी भीतर ना आने दे। उनके जाते ही बालक पहरेदारी के लिए खड़ा हो जाता हैं। कुछ देर बार भगवान शिव वहाँ आते हैं और अंदर जाने लगते हैं। तब वह बालक उन्हें रोक देता हैं। जिससे भगवान शिव क्रोधित हो उठते हैं और अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट देते हैं। जैसे ही माता पार्वती कुंड से बाहर निकलती हैं। अपने पुत्र के कटे सिर को देख विलाप करने लगती हैं। क्रोधित होकर पुरे ब्रह्मांड को हिला देती हैं। सभी देवता एवम नारायण सहित ब्रह्मा जी वहाँ आकर माता पार्वती को समझाने का प्रयास करते हैं पर वे एक नहीं सुनती।

तब ब्रह्मा जी शिव वाहक को आदेश देते हैं कि पृथ्वी लोक में जाकर एक सबसे पहले दिखने वाले किसी भी जीव बच्चे का मस्तक काट कर लाओं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई हो। नंदी खोज में निकलते हैं तब उन्हें एक हाथी दिखाई देता हैं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई होती हैं। नंदी उसका सिर काटकर लाते हैं और वही सिर बालक पर जोड़कर उसे पुन: जीवित किया जाता हैं. इसके बाद भगवान शिव उन्हें अपने सभी गणों के स्वामी होने का आशीर्वाद देकर उनका नाम गणपति रखते हैं। अन्य सभी भगवान एवम देवता गणेश जी को अग्रणी देवता अर्थात देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद देते हैं। तब से ही किसी भी पूजा के पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं।

श्री गणेशजी की आरती | Shri Ganesh Ji Ki Aarti

जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

एकदन्त दयावन्त,चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे,मूसे की सवारी॥
(माथे पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी॥)

पान चढ़े फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।
(हार चढ़े, फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।)
लड्डुअन का भोग लगे,सन्त करें सेवा॥

जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

अँधे को आँख देत,कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥

‘सूर’ श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो,जग बलिहारी॥

जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

Other Keywords:-
Sankashti Chaturthi Vrat Katha | Sankashti Chaturthi Vrat kab hai | Sankashti Chaturthi vrat ki katha | Sankashti Chaturthi vrat katha in hindi | Sankashti Chaturthi vrat ki vidhi | Sankashti Chaturthi vrat January | Sankashti Chaturthi vrat february | Sankashti Chaturthi vrat march | Sankashti Chaturthi vrat april | Sankashti Chaturthi vrat may | Sankashti Chaturthi vrat june | Sankashti Chaturthi vrat july | Sankashti Chaturthi vrat august | Sankashti Chaturthi vrat september | Sankashti Chaturthi vrat october | Sankashti Chaturthi vrat november | Sankashti Chaturthi vrat december | Sankashti Chaturthi vrat april mein kab hai | may mein kab hai | Sankashti Chaturthi vrat aaj | Today Sankashti Chaturthi vrat| Sankashti Chaturthi vrat chhut jaye to kya karen | Sankashti Chaturthi vrat calendar | Sankashti Chaturthi vrat katha| Sankashti Chaturthi vrat vidhi | Sankashti Chaturthi vrat for unmarried girl | Sankashti Chaturthi Ashtami start and end time

राहु केतु ग्रह शान्ति व्रत | Rahu-Ketu Grah Vrat Vidhi aur udyapan Vidhi

Rahu Ketu

Rahu Ketu

राहु केतु ग्रह शान्ति व्रत | Rahu-Ketu Grah Vrat Vidhi aur udyapan Vidhi

राहु-केतु (Rahu-Ketu) छाया ग्रह है, जिसका अपना कोई वास्तविक रूप नहीं है। कुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में है तो  व्यक्ति को आसानी से सफलता नहीं मिलती है। यदि कुंडली में केतु की स्थिति कमजोर होती है तो यह जिंदगी को बदतर बना देता है। जीवन में कलह बना रहता है।

राहु-केतु के व्रत की विधि | Rahu-Ketu Vrat Vidhi

शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) शनिवार से ही यह व्रत शुरू करना चाहिए। यह व्रत 18 की संख्या में करने चाहिए। राहु केतु के व्रत के लिए काला वस्त्र धारण करके 18 या 3 माला बीज मंत्र की जपनी चाहिए। तदनन्तर एक बर्तन में जल, दूर्वा और कुशा लेकर, पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी, भूग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। इस व्रत से शत्रुभय दूर होता है तथा राज पक्ष से विजय मिलती है।

राहु-केतु (Rahu-Ketu) के व्रत के दिन अपने मस्तक पर काला तिलक करें। राहु-केतु (Rahu-Ketu) की प्रतिमा अथवा राहु-केतु (Rahu-Ketu) ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पत्र, रजतपत्र, ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति राहु-केतु (Rahu-Ketu) के मंत्र का जाप करना चाहिए।

राहु ग्रह का मंत्र ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः ।’

केतु ग्रह का मंत्र ‘ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः ।’

राहु के व्रत उद्यापन की विधि | Rahu Vrat Udyaapan Vidhi

राहु (Rahu) के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव राहु ग्रह (Rahu Grah) का दान जैसे गोमेद, सुवर्ण, सीसा, तिल, सरसों, तिल, नीलवस्त्र, खड्ग, कृष्णपुष्प, कंबल, घोड़ा, शूर्प आदि करना चाहिए। राहु ग्रह (Rahu Grah) से संबंधित दान के लिए रात्रि का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। यह दान ब्राह्मण के स्थान पर भड्डरी को दिया जाता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा। राहु ग्रह के मंत्र ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’ का कम से कम 18000 की संख्या में जाप तथा राहु ग्रह (Rahu Grah) की हवनसमिधा दूर्वा से राहु ग्रह के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए

केतु के व्रत उद्यापन की विधि | Ketu Vrat Udyaapan Vidhi

केतु (Ketu) के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव केतु ग्रह का दान जैसे लहसुनिया, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, धूम्रवस्त्र, नारियल, धूम्रपुष्प, कंबल, बकरा, शस्त्र आदि करना चाहिए। केतु ग्रह (Ketu Grah) से संबंधित दान के लिए रात्रि का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। यह दान ब्राह्मण के स्थान पर भड्डरी को दिया जाता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा। केतु ग्रह के मंत्र ‘ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः’ का कम से कम 17000 की संख्या में जाप तथा केतु ग्रह (Ketu Grah) की हवनसमिधा कुशा से केतु ग्रह (Ketu Grah) के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए

राहु-केतु ग्रह शांति का सरल उपचारः- नीला रुमाल, नीला घड़ी का पट्टा, नीला पैन, लोहे की अंगूठी पहनें।

Other Keywords:-
Rahu grah vrat vidhi, Ket grah vrat vidhi, Navgrah vrat, Rahu grah ke upay, Rahu grah ka daan vidhi, Rahu grah ki shanti, ketu grah ke upay, ketu grah ka daan vidhi, ketu grah ki shanti

Sunday Fast – जानिए रविवार व्रत कैसे करें, सम्पूर्ण कथा पूजन और उद्यापन विधि

Surya Dev

Surya Dev

रविवार व्रत (Sunday Fast)  का माहत्म्य एवं विधि-विधान, व्रत कथा

सूर्य देव (Surya Dev) भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) के स्थूल रूप तथा तथा पांच प्रमुख देवों में से एक हैं। भगवान भास्कर सभी ग्रहों के केंद्र बिंदु और अपरमित ज्योति के पुंज भी हैं। सूर्य देव हमारी पृथ्वी सहित सभी ग्रहों के केंद्र, संचालक और नियंत्रणकर्त्ता हैं। यही कारण है कि जब सूर्य देव हमसे प्रसन्न एवं संतुष्ट होते हैं तब हमें संसार के सभी ऐश्वर्य तो प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत भगवान भास्कर के कुपित हो जाने पर हमारा जीवन अनेक परेशानियों, रोग-शोक तथा अपयश के जाल में घिर जाता है।

परम शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी इतने दयालु हैं कि नित्य प्रातः सामान्य जल के अर्ध्य एवं रविवार के व्रत से ही परम प्रसन्न होकर भक्त की सभी मनोकामनाओं की आपूर्ति कर देते हैं।

यदि जातक की जन्म कुंडली में सूर्य ग्रह पीड़ित अवस्था में हो अथवा नीच, वक्री या शत्रु ग्रह के साथ योग बनाए हुए हो तो, जब जब सूर्य ग्रह की महादशा, दशा अथवा अंतर्दशा आती है, तो वह जातक को सूर्य ग्रह से संबंधित अशुभ फल प्रधान करती है। सूर्य पिता का कारक भी होता है। जिससे पिता तथा तथा पैतृक धन परिवार से भी जातक को अशुभ फल मिलता है। सूर्य देव (Surya Dev) को प्रसन्न करने के लिए तथा सूर्य ग्रह के अशुभ प्रभाव को शुभ बनाने के लिए रविवार (Ravivar) की व्रत करना शुभ फलदाई रहता है।

सूर्य शांति का सरल उपचारः– लाल वस्तुओं का विशेष उपयोग करें- जैसे- लाल चादर, परना तथा तांबे की अंगूठी का पहनना।

रविवार व्रत विधि | Ravivar Vrat Vidhi

सूर्य (Surya) का व्रत रविवार (Ravivar) को करें। यह व्रत शुक्ल पक्ष के पहले (जेठे) रविवार से आरंभ करके तीस या कम से कम 12 व्रत करें। उस रोज केवल गेहूं की रोटी, घी और लालखाण्ड के साथ या गेहूं का गुड़ से बना दलिया या हलवा इलायची डाल कर दान करें। इसमें सूर्यास्त के पूर्व केवल एक बार भोजन किया जाता है। नमक, खटाई, सभी प्रकार के क्षार और खट्टे फल आप इस व्रत में वर्जित हैं, परंतु दही का प्रयोग कर सकते हैं।

रविवार (Ravivar Vrat)के व्रत के दिन अपने मस्तक में लालचन्दन का तिलक करें। सूर्य को गन्धाक्षत, रक्त पुष्प, दूर्वायुक्त अर्घ्य प्रदान करें तथा अष्टदल कमल बना कर उस पर सूर्य देव की प्रतिमा रखकर अथवा सूर्य ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पात्र रजत पात्र ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति सूर्य देव के मंत्र का जाप करना चाहिए।

स्कन्दपुराण के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के अंतिम रविवार (Ravivar) से व्रत प्रारम्भ करनाअधिक फलप्रद रहता है। माघ मास की सप्तमी तिथि को उसे रथ सप्तमी भी कहते हैं इस व्रत का उद्यापन करना श्रेष्ठ रहता है।

रविवार व्रत उद्यापन विधि | Ravivar Vrat Udyaapan  Vidhi

रविवार (Ravivar Vrat) के व्रत के उद्यापन के लिए यथा संभव सूर्य ग्रह का दान जैसे माणिक, सुवर्ण, ताम्र, गेहूं, गुड़, घी, रक्तवस्त्र, केसर, रक्तपुष्प, मूंग, रक्तगाय, रक्तचन्दन आदि करना चाहिए। सूर्य ग्रह से संबंधित दान के लिए सूर्य उदय का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा। सूर्य ग्रह के मंत्र ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का कम से कम सात हजार की संख्या में जाप तथा सूर्य ग्रह की लकड़ी अर्क से सूर्य ग्रह के बीच मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए।

हवन पूर्णाहुति के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। ऐसा करने से सूर्य का अशुभ फल शुभ फल के परिणत हो जाएगा। तेजस्विता बढ़ेगी। नेत्र रोग, चर्म रोग एवं अन्य शारीरिक रोग भी शांत होंगे।

देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।

रविवार (इतवार) व्रत कथा | Ravivar Vrat Katha

एक बुढ़िया थी। उसका नियम था कि प्रत्येक रविवार को सवेरे ही स्नान आदि करके और घर को गोबर से लीपकर फिर भोजन तैयार कर, भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करती थी। ऐसा व्रत करने से उसका घर अनेक प्रकार के धन-धान्य से पूर्ण था। भगवान भास्कर की कृपा से घर में किसी प्रकार का विध्न या दुःख नहीं था, सब प्रकार से घर में आनंद रहता था। इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर उसकी एक पड़ोसन जिसकी गौ का गोबर वह लाया करती थी विचार करने लगी, यह वृद्धा सर्वदा मेरी गौ का गोबर ले जाती है इसलिए अपने गौ को अपने घर के भीतर बांधने लग गई। इस कारण बुढ़िया गोबर न मिलने के कारण रविवार के दिन अपने घर को न लीप सकी। तब उसने न तो भोजन बनाया और न ही भगवान को भोग लगाया तथा स्वयं भी उसने भोजन नहीं किया। इस प्रकार उसे निराहार व्रत किये रात्रि हो गयी और वह भूखी-प्यासी ही सो गई।

रात्रि में सूर्यदेव ने उसे स्वपन दिया और भोजन न बनाने और भोग न लगाने का कारण पूछा। वृद्धा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया। तब भगवान ने कहा कि माता, हम तुमको ऐसी गौ देते हैं जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो, इससे मैं खुश होकर तुमको यह वरदान देता हूं। ऐसा करने से मैं अत्यंत संतुष्ट होता हूं और निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर उनके दुःखों को दूर करता हूं तथा अंत समय में मोक्ष देता हूं।

स्वपन में ऐसा वरदान देकर भगवान को अन्तर्ध्यान हो गए, जब वृद्धा की आंख खुली तो वह क्या देखती है कि आंगन में एक अति सुंदर गाय और बछड़ा बंधे हुए हैं। वह गौ और बछड़े को देखकर अति प्रसन्न हुई और उनको घर के बाहर बांध दिया और वही खाने को चारा डाल दिया।

सुबह बुढ़िया की पड़ोसिन ने देखा की बुढ़िया की गाय ने सोने का गोबर किया है, तब वह उस गोबर को तो ले गई और अपनी गौ का गोबर उसकी जगह रख गई। वह प्रतिदिन ऐसा ही करती रही और सीधी-सादी बुढ़िया को इसकी खबर नहीं होने दी। तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसिन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही है तो भगवान ने संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर से आंधी चला दी। इससे बुढ़िया ने अंधेरे के भय से अपने गौ और बछड़े को घर के भीतर बांध लिया। प्रातःकाल उठकर जब वृद्धा ने देखा कि गाय ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गौ को घर के भीतर ही बांधने लगी।

उधर पड़ोसिन ने देखा कि गौ घर के भीतर बंधने लगी है और उसका सोने का गोबर उठाने का दांव नहीं चलता। वह ईर्ष्या और डाह से जल उठी। कुछ और उपाय न देख पड़ोसिन ने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा-महाराज! मेरे पड़ोस में वृद्धा के पास ऐसी गऊ है जो आप जैसे राजाओं के योग्य है। वह नित्य सोने का गोबर देती है। आप उस सोने से प्रजा का पालन करिए। राजा ने यह बात सुन अपने दूतों को वृद्धा के घर में गऊ लाने की आज्ञा दी। वृद्धा प्रातः ईश्वर को भोग लगा भोजन करने ही जा रही थी कि राजा के कर्मचारी गऊ खोल कर ले गए। वृद्धा काफी रोई चिल्लाई किंतु राज्य कर्मचारियों के समक्ष वह क्या कर सकती थी? उस दिन वृद्धा गऊ के वियोग में भोजन न खा सकी। रात को रो-रो कर ईश्वर से गऊ को पुनः पाने के लिए प्रार्थना करती रही। उधर राजा गऊ को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। लेकिन सुबह जैसे ही सो कर उठा तो सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा। राजा यह देखकर घबरा गया। रात्रि में राजा को स्वप्न में भगवान ने कहा-हे राजन! यह गाय वृद्धा को लौटाने में ही तेरा भला है। उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी हैं। प्रातः होते ही राजा ने वृद्धा को बुला बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गऊ-बछड़ा लौटा दिये। उसकी पड़ोसिन दुष्ट बुढ़िया को बुलाकर उचित दंड दिया। तब जाकर राजा के महल से गंदगी दूर हुई। उसी राजा ने नगर निवासियों को आदेश-दिया कि राज्य में सभी स्त्री-पुरुष अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत किया करें। व्रत करने से सारी प्रजा सुखी जीवन व्यतीत करने लगी।

सूर्य देव की मधुर आरती | Surya Dev Aarti

ॐ जय सूर्य देवा, स्वामी जय सूर्य देवा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, संत करे सेवा।।

दुःख हरता सुख करता, जय आनन्द कारी।
वेद पुराण बखानत, भय पातक हारी।।

स्वर्ण सिंहासन बिस्तर, ज्योति तेरी सारी।
प्रेम भाव से पूजें, सब जग के नर नारी।।

दीनदयाल दयानिधि, भव बंधन हारी।
शरणागत प्रतिपालक, भक्तन हितकारी।।

जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
धन-संपत्ति और लक्ष्मी, सहजे सो पावे।।

सफल मनोरथ दायक, निर्गुण सुख राशि।
विश्व चराचर पालक, ईश्वर अविनाशी।।

योगीजन हृदय में, तेरा ध्यान धरें।
सब जग के नर नारी, पूजा पाठ करें।।

सूर्य देव वंदना | Prayer To God Surya

जय कश्यप-नंदन, ॐ जय अदिति-नंदन।
त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चंदन।। जय।।

सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्र धारी।
दुःख हारी, सुख कारी मानस-मल हारी।। जय।।

सुर-मुनि-भूसर वन्दित विमल विभवसाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर दिव्य किरण माली।। जय।।

सकल सुकर्म प्रसविता सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन भव बंधन हारी।। जय।।

कमल समूह विकाशक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत मनसिज सन्तापा।। जय।।

नेत्र व्याधिहर सुखर भू पीड़ा हारी।
सृष्टि विलोचन स्वामी परहित व्रतधारी।। जय।।

सूर्यदेव करूणाकर अब करूणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब तत्व ज्ञान दीजै।। जय।।

सूर्य नमस्कार | Prayer To Surya

नमो भास्करम् विश्व पालं दयालम्।
नमो मार्तण्डम्, नमामी कृपालम्।।

नमो अर्क पूषा तपन चित्र भानु।
नमो हे दिनेशं तिमिर हर प्रकाशम्।।

नमो विघ्नहर्ता, नमो विश्व तारण।
नमो रक्त चंदन दिपै नाथ भालम्।।

नमो द्युतिमणि स्वामी प्रभाकर दिवाकर।
नमो रवि विरोचन विकर्तन विशालम्।।

नमो सूर्य सविता अहस का पतंगा।
नमो मित्र गृहपति अरूण दैत्य द्यालम्।।

नमो हंस हरि दृश्य भास्वान तापन।
नमो अर्हपति विभावसु त्रिकालम्।।

नमो सहस्त्रासु मिहिर उष्ण रस्मिन्।
नमो तरणि तप्ताश्व करिये निहालम्।

नमो नाभ विवस्वान बन्दौ त्विषापति।
नमो नाथ अस्तुति करति भक्त आपम्।।

रवि देव की आरती | Aarti  To God Ravi Dev

जय जय श्रीरविदेव, जय जय श्री रवि देव।।

रजनी पति मदहारी शतदल जीवनदाता।

षटपद मन मुदकारी हे दिमणि ताता।

जग के हे पालन कर्ता जय जय श्री रवि देव।

नम मंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।

निज जनहित सुख रासी, हम करें तिहारी सेवा।

करते हैं आपकी सेवा, जय जय श्री रवि देव।

कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।

निज मंडल में मंडित, रुचिर, प्रभा प्यारी।

हे सुरवर श्री रवि देव, जय जय श्री रवि देव।

Other Keywords:-

ravivar vrat, sunday fast, saptvar vrat katha, ravivar vrat katha, ravivar vrat katha in hindi, raviki katha, Surya dev vrat katha, sunday vrat katha, ravivar ki vrat katha, ravivar vrat vidhi, sunday fast katha, ravivar ki katha, raviwar ka vrat, ravivar katha, ravivar vrat ki vidhi, sunday fast benefits, ravivar ke vrat ki katha, ravivar pradosh vrat katha, sunday vrat katha in hindi, ravivar vrat katha hindi, surya dev vrat, regular sunday fast sunday vrat, surya dev ji ki vrat katha, sunday vrat vidhi, sunday fast benefits in hindi, ravivar ke vrat ki vidhi, sunday ki katha, raviwar ke vrat katha, ravivar ni varta, surya dev ki vrat katha, surya dev vrat vidhi, raviwar ke upay, ravivar ke upay, sunday ke upay, surya dev ke upay, surya grah ke upay, surya grah shanti

Tuesday Fast – जानिए मंगलवार व्रत कैसे करें, सम्पूर्ण कथा पूजन और उद्यापन विधि

Mangalvar Vrat

Mangalvar Vrat

 

मंगलवार व्रत (Tuesday fast) का माहत्मय एवं विधि-विधान, व्रत कथा

यदि जातक की जन्म कुंडली में मंगल ग्रह अशुभ स्थिति में हो और मंगल ग्रह की अशुभ दशा चल रही हो उस समय मंगल ग्रह के व्रत करके मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव को शांत किया जा सकता है। मंगल देव (Mangal Dev) की शांति के लिए लगातार 21 मंगलवार तक रखना चाहिए। हनुमान (Hanuman) जी के भक्त मंगलवार (Mangalvar) का यह व्रत जीवन भर करते रहते हैं।

मंगलवार व्रत विधि | Mangalvar Vrat Vidhi

यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) मंगलवार (Mangalvar) से प्रारम्भ करके 21 या 45 व्रत करने चाहिए। हो सके तो यह व्रत आजीवन रखें। बिना सिला हुआ लाल वस्त्र धारण करके बीज मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ की 1, 5, या 7 माला जप करें। इस व्रत में नमक का सेवन वर्जित है। उस दिन गुड़ से बने हलवे का या लड्डूओं का दान करें और स्वयं भी खाएं। गुड़ से बना कुछ हलवा आदि बैल को भी खिलाएं।

मंगलवार (Tuesday) के व्रत के दिन अपने मस्तक में लालचन्दन का तिलक करें। मंगल देव (Mangal Dev) की प्रतिमा अथवा मंगल ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पात्र रजत पात्र ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति मंगल देव के मंत्र का जाप करना चाहिए।

मंगल शान्ति का सरल उपचारः- लालरंग की वस्तुओं का उपयोग, रात को लाल वस्त्र पहनें, तांबे के बर्तनों का प्रयोग, तांबे की अंगूठी पहनना।

मंगलवार व्रत उद्यापन विधि | Mangalvar Vrat udyaapan Vidhi

मंगलवार (Mangalvar) के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव मंगल ग्रह का दान जैसे मूंगा, सुवर्ण, ताम्र, मसूर, गुड़, घी, रक्तवस्त्र, केसर, रक्तकनेर, कस्तूरी, रक्तबैल, रक्तचन्दनआदि करना चाहिए मंगल ग्रह से संबंधित दान के लिए घटी 2 शेषदिन का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा।

मंगल ग्रह के मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ का कम से कम 10000 की संख्या में जाप तथा मंगल ग्रह की लकड़ी खदिर से मंगल ग्रह के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए।

हवन पूर्णाहुति करके लाल वस्त्र, तांबा, मसूर, गुड़, गेहूं तथा नारियल का दान करें। ब्राह्मणों तथा बच्चों को मीठा भोजन कराएं। मंगलवार (Mangalvar) का व्रत ऋणहर्ता तथा सन्तति-सुख प्रद है।

देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।

मंगलवार व्रत कथा | Mangalvar Vrat Vidhi

एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। वह मंगल देवता (Mangal Devta) को अपना इष्ट देवता मानकर सदैव मंगलवार (Mangalvar) को व्रत रखती और मंगल देव (Mangal Dev) का पूजन किया करती थी। उसका एक पुत्र था जो मंगलवार (Mangalvar) को उत्पन्न हुआ था। इस कारण उसको मंगलिया के नाम से पुकारा करती थी। मंगलवार (Mangalvar) के दिन वह न तो घर को लीपती और न ही पृथ्वी ही खोदती थी। एक दिवस मंगल देवता उसकी श्रद्धा को देखने के लिए उसके घर में साधु का रूप बनाकर आए और द्वार पर आवाज दी। बुढ़िया ने कहा-महाराज क्या आज्ञा है। साधु कहने लगा, बहुत भूख लगी है भोजन बनाना हैं। इसके लिए तू थोड़ी सी पृथ्वी लीप दे तो तेरा पुण्य होगा। यह सुनकर बुढ़िया ने कहा-महाराज, आज मंगलवार (Mangalvar) की व्रती हूँ इसलिए मैं चौका नहीं लगा सकती। कहो तो जल का छिड़काव कर दूं। उस जगह भोजन बना लेना, या फिर मैं आपके लिए भोजन बना देती हूं।

साधु कहने लगा-मैं गोबर से लीपे चौके पर ही खाना बनाता हूं। बुढ़िया ने कहा-पृथ्वी लीपने के सिवाय और कोई सेवा हो तो मैं सब-कुछ करने के लिए तैयार हूं परंतु गोबर से लीपुंगी नहीं। तब साधु ने कहा कि सोच-समझकर उत्तर दो, जो कुछ भी मैं कहूंगा, वह तुमको करना होगा। बुढ़िया कहने लगी-महाराज ! पृथ्वी लीपने के अलावा जो भी आज्ञा करेंगे उसका पालन अवश्य करूंगी। बुढ़िया ने ऐसा तीन बार वचन दे दिया। तब साधु कहने लगा-तू अपने लड़के को बुलाकर औंधा लिटा दे मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊंगा। साधु की बात सुनकर बुढ़िया चुप हो गई। तब साधु ने कहा- बुलाले लड़के को, अब सोच-विचार क्या करती है? बुढ़िया मंगलिया, मंगलिया कहकर पुकारने लगी। थोड़ी देर बाद लड़का आ गया। बुढ़िया ने कहा जा-बेटे तुझको बाबाजी बुलाते हैं। लड़के ने बाबाजी से जाकर पूछा कि क्या आज्ञा है महाराज? बाबा जी ने कहा-जाओ और अपनी माताजी को बुला लाओ। जब माता आ गई तो साधु ने कहा-तू ही इसको लिटा दे। बुढ़िया ने मंगल देवता (Mangal Dev) का स्मरण करते हुए अपने लड़के को औंधा लिटा दिया और उसकी पीठ पर अंगीठी रख दी।

बुढ़िया कहने लगी-हे महाराज ! अब जो कुछ आपको करना है कीजिए। मैं जाकर अपना काम करती हूं। साधु ने लड़के की पीठ पर रखी हुई अंगीठी में आग जलाई और उस पर भोजन बनाया। जब भोजन बन चुका तो साधु ने बुढ़िया से कहा-अब अपने लड़के को बुलाओ वह भी आकर ले जाए। बुढ़िया कहने लगी-यह कैसे आश्चर्य की बात है कि उसकी पीठ पर आपने आग जलाई और उसे ही प्रसाद के लिए बुलाते हैं। क्या यह संभव है। क्या अब भी आप उसको जीवित समझते हैं। आप कृपा करके उसका स्मरण भी मुझको न कराइये और भोग लगाकर जहां जाना हो जाइये। साधु के अत्यंत आग्रह करने पर बुढ़िया ने ज्यों ही मंगलिया कहकर आवाज लगाई त्यों ही लड़का एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया। साधु ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा कि माई, तेरा व्रत सफल हो गया। तेरे हृदय में दया है और अपने इष्ट-देव में अटल श्रद्धा हैं। इसके कारण तुमको कोई भी कष्ट नहीं पहुंचेगा।

मंगलवार व्रत की दूसरी कथा | Mangalvar Vrat Katha

एक ब्राह्मण दम्पत्ति के कोई संतान न थी। इसके कारण पति-पत्नी दुःखी रहते थे। वह ब्राह्मण हनुमान (Hanuman) जी की पूजा के हेतु वन में चला गया। वह पूजा के साथ महावीर जी के 1 पुत्र की कामना किया करता था। घर पर उसकी पत्नी मंगलवार (Mangalvar) का व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिए किया करती थी। मंगल के दिन व्रत के अंत में भोजन बनाकर हनुमान जी (Hanuman) का भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। एक बार कुटुंब में विवाह के कारण ब्रह्मणी भोजन न बना सकी, अतः हनुमान जी का भोग भी नहीं लगा। वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार (Mangalvar) को हनुमान जी (Hanuman) का भोग लगाकर ही अन्न-पानी ग्रहण करूंगी। वह भूखी-प्यासी 6 दिन रही। मंगलवार के दिन तो उसे मूर्छा ही आ गई। तब हनुमान जी (Hanuman) उसकी लगन और निष्ठा को देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे दर्शन दे सचेत किया और कहा-मैं तेरे से अति प्रसन्न हूं, मैं तुझको एक सुंदर बालक देता हूं जो तेरी बहुत सेवा करेगा।

हनुमान जी (Hanuman) द्वारा दिया गया सुंदर बालक पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई। ब्राह्मणी ने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय पश्चात ब्राह्मण वन से लौटकर आया। प्रसन्नचित्त सुंदर बालक को घर में क्रीड़ा करते देखकर वह ब्राह्मण पत्नी से बोला-यह बालक कौन है पत्नी ने कहा-मंगलवार (Mangalvar) के व्रत से प्रसन्न हो हनुमान जी (Hanuman) ने दर्शन देकर मुझे यह बालक दिया है। पत्नी की बात छल से भरी जान उसने सोचा, यह कुलटा, व्यभिचारिणी अपनी कलुषता छुपाने के लिए बात बना रही है। एक दिन उसका पति कुएं पर पानी भरने चला तो पत्नी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ। वह मंगल को साथ ले गया। बालक को कुएं में डाल कर वापस पानी भरकर घर आया तो पत्नी ने पूछा कि मंगल कहां है? तभी मंगल मुस्कुराता हुआ घर आ गया। उसको देख ब्राहमण आश्चर्यचकित रह गया। रात्रि में उस ब्राह्मण से हनुमान जी (Hanuman) ने स्वप्न में कहा-यह बालक मैंने दिया है। पति यह जानकर हर्षित हुआ। वे पत्नी-पति मंगलवार (Mangalvar) का व्रत करते हुए और अपने जीवन को आनन्दपूर्वक व्यतीत करते हुए अंत में मोक्ष को प्रप्त हुए।

मंगल वार की पावन आरती | Mangalvar Aarti

मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता।
हाथ वज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे।

शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन।
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना।

काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी।
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।

महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे।

शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै।

सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना।
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा।

रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा।
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता।

हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए।
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुख दरिद्र बंधन प्रकटाने।

तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा।
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुख स्वप्न विनाशा।

शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे।
विपति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा।

मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी।

श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई।
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई।

मंगल देव की सुगम आरती | Mangal Dev Aarti

ॐ जय मंगल देवा, स्वामी जय मंगल देवा।
भक्त आरती गावें, करें विविध भांती सेवा।।

हठी मेष है वाहन आपका, पृथ्वी है माता।
सुख समृद्धि के नायक, अतुल शांति दाता।।

जब होता है कोप आपका, सब कुछ छीन जाता।
जिस पर कृपा करो तुम स्वामी, सब कुछ है पाता।

मंगल देव की आरती, जो सच्चे मन से गावे।
रोग-शोक मिट जावे, अति सुख-वैभव पावे।।

Other Keywords:-

mangalvar vrat, tuesday fast, saptvar vrat katha, mangalvar vrat katha, mangalvar vrat katha in hindi, mangalvar vrat katha in hindi, mangalwar ki katha, hanuman vrat katha, tuesday vrat katha, mangalvar ki vrat katha, mangalvar vrat vidhi, tuesday fast katha, mangalvar ki katha, mangalwar ka vrat, mangalvar katha, mangalvar vrat ki vidhi, tuesday fast benefits, mangalvar ke vrat ki katha, mangalvar pradosh vrat katha, tuesday vrat katha in hindi, mangalvar vrat katha hindi, hanuman vrat, regular tuesday fast, tuesday vrat, hanuman ji ki vrat katha, tuesday vrat vidhi, tuesday fast benefits in hindi, mangalvar ke vrat ki vidhi, tuesday ki katha, mangalwar ke vrat katha, mangalvar ni varta, hanuman ki vrat katha, hanuman vrat vidhi, Mangalwar ke upay, Mangalvar ke upay, Tuesday ke upay, Mangal grah ke upay, Mangal grah shanti