मासिक कालाष्टमी व्रत विधि | Masik Kala Ashtami Vrat Katha, Puja Vidhi

Kalashtami

मासिक कालाष्टमी व्रत विधि | Masik Kala Ashtami Vrat Katha, Puja Vidhi

कालाष्टमी का अर्थ है :
कालाष्टमी = काल + अष्टमी

यह उपवास हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। कालभैरव (Kalbhairav) के भक्त साल की सभी मासिक कालाष्टमी (Masik Kalashtami) पर उनकी उनकी पूजा और उपवास करते हैं। काल भैरव की सवारी काले कुत्ते को इस दिन विशेष रूप से भोजन कराना चाहिए। भगवान शिव (Bhagwan Shiv) के 2 स्वरूप हैं। पहला बटुक भैरव, जिन्हें सौम्य माना जाता है और दूसरा स्वरूप है काल भैरव (Kaal Bhairav) का जो भगवान शिव का रौद्र रूप होता है।

कालभैरव (Kalbhairav) जयन्ती पर सबसे मुख्य कालाष्टमी (Kalashtami) मानी जाती है। इस दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। जिसे उत्तरी भारतीय पूर्णिमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में तथा दक्षिणी भारतीय अमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार कार्तिक के महीने में मनाते हैं। हालाँकि दोनों पञ्चाङ्ग में कालभैरव जयन्ती एक ही दिन देखी जाती है।

कालभैरव (Kalbhairav) जयन्ती को भैरव अष्टमी (Bhairav Ashtami) के नाम से भी जाना जाता है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि कालाष्टमी (Kalashtami) का व्रत सप्तमी तिथि के दिन भी हो सकता है। जिस दिन अष्टमी तिथि रात्रि के दौरान प्रबल होती है उस दिन व्रतराज कालाष्टमी (Kalashtami) का व्रत किया जाना चाहिए। अन्यथा कालाष्टमी (Kalashtami) पिछले दिन चली जाती है।

मासिक कालाष्टमी की पौराणिक कथा |  Masik Kalashtami Pauraanik Katha

कालाष्टमी (Kalashtami) की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा।

शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए।

भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए।
भैरव बाबा (Bhairav Baba) को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था।

मासिक कालाष्टमी का महत्व | Masik Kalashtami Mahatv

धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भगवान भैरव के भक्तों का अनिष्ट करता है, उसे तीनों लोकों में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है। कालाष्टमी (Kalashtami) के दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजन करने से जातक को भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान भैरव अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करते हैं। इनकी पूजा से शत्रु बाधा और रोगों से भी मुक्ति मिलती है। जो लोग आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं उनके लिए भगवान भैरव दंडनायक हैं और अपने भक्तों के लिए वे सौम्य और रक्षा करने वाले हैं।

श्री भैरव आरती | Bhairavji ki Aarti

सुनो जी भैरव लाड़िले,कर जोड़ कर विनती करूँ।
कृपा तुम्हारी चाहिए,मैं ध्यान तुम्हारा ही धरूँ।
मैं चरण छुता आपके,अर्जी मेरी सुन लीजिये॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

मैं हूँ मति का मन्द,मेरी कुछ मदद तो कीजिये।
महिमा तुम्हारी बहुत,कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूँ॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

करते सवारी स्वान की,चारों दिशा में राज्य है।
जितने भूत और प्रेत,सबके आप ही सरताज हैं॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

हथियार हैं जो आपके,उसका क्या वर्णन करूँ।
माता जी के सामने तुम,नृत्य भी करते सदा॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

गा गा के गुण अनुवाद से,उनको रिझाते हो सदा।
एक सांकली है आपकी,तारीफ उसकी क्या करूँ॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

बहुत सी महिमा तुम्हारी,मेंहदीपुर सरनाम है।
आते जगत के यात्री,बजरंग का स्थान है॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

श्री प्रेतराज सरकार के,मैं शीश चरणों में धरूँ।
निशदिन तुम्हारे खेल से,माताजी खुश रहें॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

सिर पर तुम्हारे हाथ रख कर,आशीर्वाद देती रहें।
कर जोड़ कर विनती करूँ,अरु शीश चरणों में धरूँ॥
सुनो जी भैरव लाड़िले॥

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