Magh Shattila Ekadashi Vrat Katha hindi | माघ कृष्णा षटतिला एकादशी व्रत कथा

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।। माघ कृष्ण एकादशी व्रत कथा ।। षटतिला एकादशी

Magh Shattila Ekadashi Vrat Katha

 
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षटतिला एकादशी की कथा सुनने के लिए
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एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि महाराज पृथ्वी लोक के मनुष्य ब्रह्म हत्या आदि महान पाप करते हैं, पराए धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति को देखकर ईर्ष्या करते हैं, साथ ही अनेक प्रकार के व्यसनों में फंसे रहते हैं। फिर भी उनको नरक प्राप्त नहीं होता। इसका क्या कारण है ? वह न जाने कौन सा दान पुण्य करते हैं जिससे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। यह सब कृपापूर्वक आप कहिए। पुलस्त्य मुनि कहने लगे कि हे महाभाग ! आपने मुझसे अत्यंत गंभीर प्रश्न पूछा है। इससे संसार के जीवो का अत्यंत भला होगा। इस भेद को ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तथा इंद्र आदि भी नहीं जानते परंतु मैं आपको यह गुप्त तत्व अवश्य बताऊँगा। माघ मास के लगते ही मनुष्य को स्नानादि करके शुद्ध रहना चाहिए और इंद्रियों को वश में करके तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाने चाहिए। उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए और उस दिन मूल नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करें। स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सब देवताओं के देव श्री भगवान का पूजन कर और एकादशी का व्रत धारण करें। रात्रि को जागरण करना चाहिए। उसके दूसरे दिन धूप – दीप, नैवेद्य आदि से भगवान का पूजन करके खिचड़ी का भोग लगावे तत्पश्चात पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी सहित अर्घ्य देकर स्तुति करनी चाहिए कि भगवान, आप दीनों को शरण देने वाले हैं। इस संसार सागर में फंसे हुओं का उद्धार करने वाले हैं। हे पुंडरीकाक्ष ! हे विश्वभावन ! हे सुब्रह्मण्य ! हे पूर्वज ! हे जगतपते ! आप लक्ष्मी सहित इस तुच्छ को ग्रहण करें। इसके पश्चात जल से भरा हुआ कुंभ (घड़ा) ब्राह्मण को दान करें तथा ब्राह्मण को श्याम गौ और तिल पात्र देना भी उत्तम है। तिल स्नान और भोजन दोनों ही श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार जो मनुष्य जितने तिलों का दान करता है। उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास करता है।
  1.  तिल स्नान
  2.  तिल का उबटन
  3.  तिल का हवन
  4.  तिल का तर्पण
  5.  तिल का भोजन और
  6.  तिलों का दान
यह तिल के छह प्रकार के प्रयोग होने के कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है। इस व्रत के करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इतनी कथा कहकर पुलस्त्य ऋषि कहने लगे कि अब मैं इस षटतिला एकादशी की कथा तुमसे कहता हूं। एक समय नारद जी ने भगवान श्री विष्णु से यही प्रश्न किया था और भगवान ने जो षटतिला एकादशी का महत्व नारदजी से कहा सो मैं तुमसे कहता हूं। नारद जी कहने लगे कि हे भगवन ! षटतिला एकादशी का क्या पुण्य होता है और इसकी क्या कथा है सो मुझसे कहिए। भगवान कहने लगे कि हे नारद ! मैं तुमसे आंखों देखी सत्य घटना कहता हूं, तुम ध्यानपूर्वक सुनो। प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही, इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है। अब इसको विष्णु लोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्नदान नहीं किया है। इससे इसकी तृप्ति होनी कठिन है। ऐसा विचार कर मैं एक भिखारी बनकर मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा मांगी। वह ब्राह्मणी बोली कि महाराज आप यहां किसलिए आए हैं ? मैंने कहा कि मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढे़ला मेरे भिक्षा पात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया। कुछ समय पश्चात वह ब्राह्मणी भी शरीर त्यागकर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया। घबरा कर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि हे भगवन ! मैंने अनेकों व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है ? मैंने कहा कि पहले तुम अपने घर जाओ, जब देव स्त्रियां तुम्हें देखने के लिए आएंगी तो पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लेना तब द्वार खोलना जब मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देव स्त्रियां आईं और द्वार खोलने के लिए कहा तो ब्राह्मणी बोली कि आप मुझे देखने के लिए आई है तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य कहिए। उनमें से एक देव स्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूं। जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तो फिर उसने द्वार खोला। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी और न आसुरी है वरन् पहले जैसी मानुषी है। तब ब्राह्मणी ने भी उनके कथन अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। अतः मनुष्य को मूर्खता त्यागकर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिल आदि का दान करना चाहिए। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक कष्ट दूर होकर उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है।

।। बोलिए श्री विष्णु भगवान की जय ।।

।। श्री एकादशी मैया की जय ।।

 

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