माँ बगलामुखी महाविद्या | Maa Bagalamukhi Mahavidya : The 10 (Ten) Mahavidyas

bagalamukhi devi

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बिंदु त्रिकोण षट्कोणव्रत्ताष्टदलमेव  च।
वृत्त च षोडशदलं यंत्र च भूपुरात्मकम्।।

व्यष्टिरूप में शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समष्टि रूप में परमात्मा की संहार-शक्ति ही वगला है। पीताम्बराविद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी (Bagalamukhi) की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाक्-सिद्धि के लिये की जाती है। इनकी उपासना में हरिद्रामाला, पीत-पुष्प एवं पीतवस्त्र का विधान है। महाविद्याओं में इनका आठवाँ स्थान है। इनके ध्यान में बताया गया है कि सुधासमुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मंडप में रत्न मय सिंहासन पर विराज रही हैं। ये पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले पुष्पों की माला धारण करती है। इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्रर है।

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स्वतंत्रतंत्र के अनुसार भगवती बगलामुखी (Bagalamukhi) के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है- सत्य युग में संपूर्ण जगत् को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियों के जीवन पर आये संकट को देखकर भगवान् महाविष्णु चिंतित हो गये। वे सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्रीविद्याने उस सरोवर से बगला मुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरंत स्तम्भन कर दिया। वगलामुखी महाविद्या भगवान् विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी हैं।

मंगलवारयुक्त चतुर्दशी अर्धरात्रि में इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इस विद्या का उपयोग दैवी प्रकोप की शान्ति, धन-धान्य के लिए पौष्टिक कर्म एवं आभिचारिक कर्म के लिए भी होता है। यह भेद केवल प्रधानता के अभिप्राय से है, अन्यथा इनकी उपासना भोग और मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिये की जाती है।

यजुर्वेद की काठकसंहिता के अनुसार दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, सुन्दर स्वरूप धारिणी विष्णु पत्नी त्रिलोक जगत की ईश्वरी मानोता कही जाती है। स्तम्भनकारिणी शक्ति व्यक्त और अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार पृथ्वी रूपा शक्ति है। बगला उसी स्तम्भनशक्ति की अधिष्ठात्री देवी है। शक्ति रूपा वगला की स्तंभन शक्ति से द्युलोक वृष्ठि प्रदान करता है। उसी से आदित्य मंडल ठहरा हुआ है उसी से स्वर्गलोग भी स्तम्भित है। भगवान श्रीकृष्ण भी गीता में कह कर उसी शक्ति का समर्थन किया तंत्र में वही सतवन शक्ति बगलामुखी के नाम से भी जानी जाती है श्री बगलामुखी ब्रह्मास्त्र ने भी गीता में विष्टभ्याहमिदं कृत्स्त्रमेकांशेन स्थितो जगत् कहकर उसी शक्ति का समर्थन किया हैं। तन्त्र में वही स्तम्भनशक्ति बगलामुखी (Bagalamukhi) के नाम से जानी जाती है। श्री बगलामुखी (Bagalamukhi) को ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता हैं। ऐहिक या पारलौकिक देश अथवा समाज में दुःखद अरिष्टों के दमन और शत्रुओं के शमन में बगलामुखी (Bagalamukhi) के समान कोई मंत्र नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रक लेते आ रहे हैं। इनके बडवामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमुखी पाँच मंत्र भेद है। कुण्डिकातंत्र में वगलामुखी के जप के विधान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। मुंडमाला तंत्र में तो यहाँ तक कहा गया है कि इन की सिद्धि के लिये नक्षत्रादि विचार और काल शोधन की भी आवश्यकता नहीं है।

बगला महाविद्या ऊधर्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं। इस आम्नाय में शक्ति केवल पूज्य मानी जाती है, भोग्य नहीं। श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना गुरु के सान्निध्य में रहकर सतर्कतापूर्वक सफलता की प्राप्ति होने तक करते रहना चाहिये। इसमें ब्रह्मचर्य का पालन और बाहर-भीतर की पवित्रता अनिवार्य है। सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने वगला महाविद्या की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने इस विद्या का उपदेश का सनकादिक मुनियों को किया। सनत्कुमार देवर्षि नारद को और नारद ने संख्यायन नामक परमहंस को इसका उपदेश किया। सांख्यायन ने छत्तीस पटलों में उपनिबद्ध बगला तंत्र का रचना की। बगला मुखी के दूसरे उपासक भगवान् विष्णु और तीसरे उपासक परशुराम हुए तथा परशुरामने यह विद्या विद्या आचार्य द्रोण को बतायी।

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माँ कमला महाविद्या | Maa Kamala Mahavidya : The 10 (Ten) Mahavidyas

Kamala Devi

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षट्कोणे  वसुपत्रं  च  कमलं भूपुरान्वितम्।
सम्प्रीक्तं कमलायन्त्रं श्रीबीजेन समन्वितम्॥

श्रीमद्भागवत के आठवें स्कन्ध के आठवें अध्याय में कमला के उद्भव की विस्तृत कथा आयी है। देवताओं एवं असुरों के द्वारा अमृत-प्राप्ति के उद्देश्य से किए गये समुद्र-मंथन के फलस्वरूप इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इन्होंने भगवान् विष्णु को पति रूप में वरण किया था। महाविद्याओं में ये दसवें स्थान पर परिगणित है। भगवती कमला (Kamala) वैष्णवी शक्ति है तथा भगवान् विष्णु की लीला-सहचरी है, अतः इनकी उपासना जगधार-शक्ति की उपासना है। ये एक रूप में समस्त भौतिक या प्राकृतिक संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी है और दूसरे रूप में सच्चिदानमयी लक्ष्मी है, जो भगवान विष्णु से अभिन्न है। देवता, मानव एवं दानव- सभी इनकी कृपा के बिना पङ्गु है। इसलिये आगम और निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, सिद्ध और गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायति रहते हैं।

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महाविद्या कमला (Kamala) के ध्यान में बताया गया है कि इनकी क्रांति सुवर्ण के समान है। हिमालय के सदृश श्वेत वर्ण के चार हाथी अपनी सूँड़ में चार सुवर्ण कलश लेकर इन्हें स्नान करा रहे हैं। ये अपनी दो भुजाओं में वर एवं अभय मुद्रा तथा दो भुजाओं में दो कमल पुष्प धारण की हैं। इनके सिर पर सुन्दर किरीट तथा तन पर रेशमी परिधान सुशोभित है। ये कमल के आसन सुन्दर पर आसीन है।

समृद्धि की प्रतीक महाविद्या कमला की उपासना स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति तथा नारी-पुत्रादि के सौख्य के लिए की जाती है। कमला (Kamala) को लक्ष्मी तथा षोडशी भी कहा जाता है। भार्गवों के द्वारा पूजित होने के कारण इनका एक नाम भार्गवी है। इनकी कृपा से पृथ्वीपतित्व तथा पुरुषोत्तम दोनों की प्राप्ति हो जाती है। भगवान् आद्य शंकराचार्य द्वारा विरचित कनकधारा स्त्रोत्र और श्रीसूत्क का पाठ, कमल गट्टों की माला पर श्री मंत्र का जप, बिल्वपत्र तथा बिल्वफल के हवन से कमला की विशेष कृपा प्राप्त होती है। स्वतंत्रतंत्र में कोलासुर के वध के लिये इनका प्रादुर्भाव होना बताया गया है। वाराहीतन्त्र के अनुसार प्राचीन काल में ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव द्वारा पूजित होने के कारण कमला (Kamala) का एक नाम त्रिपुरा प्रसिद्ध हुआ। कालिकापुराण में कहा गया है कि त्रिपुरा शिव की भार्या होने से इन्हें त्रिपुरा कहा जाता है। शिव अपनी इच्छा से त्रिधा हो गये। उनका ऊर्ध्व भाग गौर वर्ण, चारभुजावाला, चतुर्मुख ब्रह्मरूप कहलाया। मध्य भाग नील वर्ण, एक मुख और चतुर्भुज विष्णु कहलाया तथा अधोभाग स्फटिक वर्ण, पंचमुख और चतुर्भुज शिव कहलाया। इन तीनों शरीरों के योग से शिव त्रिपुर और उनकी शक्ति त्रिपुरा कहीं जाती है। चिंतामणि गृह से इनका निवास है। भैरवयामल तथा शक्ति लहरी में इनके रूप तथा पूजा-विधान का विस्तृत वर्णन किया गया है। इनकी उपासना से समस्त सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

पुरुषसूक्त में श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्या कहकर कमला (Kamala) को परम पुरुष भगवान् विष्णु की पत्नी बतलाया गया है। अश्व, रथ, हस्ति के साथ उनका संबंध राज्य वैभव का सूचक है, पद्मस्थित होने तथा पद्मवर्णा होने का भी संकेत श्रुतिमें है। भगवच्छक्ति कमला के पाँच कार्य हैं – तिरोभाव, सृष्टि, स्थिति, संहार और अनुग्रह। भगवती कमला स्वयं कहती है कि नित्य निर्दोष परमात्मा नारायण के सब कार्य मैं स्वयं करती हूँ। इस प्रकार काली से लेकर कमला तक दशमहाविद्याएँ सृष्टि व्यष्टि, गति, स्थिति, विस्तार, भरण-पोषण, नियन्त्रण, जन्म-मरण, उन्नति-अवनति, बन्धन तथा मोक्ष की अवस्थाओं की प्रतीक हैं। ये अनेक होते हुए भी वस्तुतः परमात्मा की एक ही शक्ति है।

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माँ मातङ्गी महाविद्या | Maa Matangi Mahavidya : The 10 (Ten) Mahavidyas

Matangi Devi

Matangi Devi

षट्कोणाष्टदलं पदं लिखेद् यन्त्रं मनोरमम्।
भूपुरे-णापि संयुक्तं मातंगी प्रीति वर्धकम्।।

मतङ्ग शिव का नाम है, इनकी शक्ति मातङ्गी (Matangi) है। मातङ्गी (Matangi) के ध्यान में बताया गया है कि ये श्यामवर्णा हैं और चंद्रमा को मस्तक पर धारण किये हुए हैं। भगवती मातङ्गी (Matangi) त्रिनेत्रा, रक्तमय सिंहासन पर आसीन, नील कमल के समान क्रांतिवाली तथा राक्षस समूह रूप अरणय को भस्म करने में दावानल के समान है। इन्होंने अपनी चार भुजाओं में पाश, अङ्कश, खेटक और खड्ग धारण किया है। ये असुरों को मोहित करने वाली एवं भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ-जीवन को सुखी बनाने, पुरुषार्थ-सिद्धि और वाग्विलास में पारंगत होने के लिए मातङ्गी (Matangi) की साधना श्रेयस्कर है। महाविद्याओं में ये नवें स्थान पर परिगणित हैं।

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नारदपाञ्चरात्र के बारहवें अध्याय में शिव की चांडाल तथा शिवा को उच्छिष्ट चाण्डाली कहा गया है। इनका ही नाम मातङ्गी है। पुरा काल में मातङ्ग नामक मुनि में नाना वृक्षों से परिपूर्ण कदम्ब-वन में सभी जीवों को वश में करने के लिए भगवती त्रिपुरा की प्रसन्नताहेतु कठोर तपस्या की थी, उस समय त्रिपुरा के नेत्र से उत्पन्न तेज ने एक श्यामल नारी-विग्रह का रूप धारण कर लिया। इन्हें राजमातंगिनी कहा गया। यह दक्षिण तथा पश्चिमाम्राय की देवी है। राजमातङ्गी, सुमुखी, वश्यमातङ्गी तथा कर्णमातङ्गी इनके नामन्तर है। मातङ्गी के भैरव का नाम मातङ्ग है। ब्राह्मयामल इन्हें मातङ्ग मुनि की कन्या बताता है।
दशमहाविद्याओं में मातङ्गी की उपासना विशेषरूप से वाक्सिद्धि के लिये की जाती है। पुरश्चर्यार्णव में कहा गया है-

अक्षवक्ष्ये महादेवीं मातङ्गी सर्वसिद्धिदाम्।
अस्याः सेवनमात्रेण वाक्सिद्धिं लभते ध्रुवम्॥

मातङ्गी स्थूलरू`पात्मक प्रतीक विधान को देखने से यह भली-भांति ज्ञात हो जाता है कि ये पूर्णतया वाग्देवता की मूर्ति है। मातङ्गी (Matangi) का श्याम वर्ण परावाक् बिंदु है। उनका त्रिनयन सूर्य, सोम और अग्नि है। उनकी चार भुजाएँ चार वेद है। पाश अविद्या है, अंकुश विद्या है, कर्म राशि दण्ड है। शब्द-स्पर्शादि गुण कृपाण है अर्थात् पञ्चभूतात्मक सृष्टि के प्रतीक है। कदम्बवन ब्रह्मांड का प्रतीक है। योगराजोपनिषद् में ब्रह्मलोक को कदम्बगोलाकार कहा गया है-

कदम्बगोलाकारं ब्रह्मलोकं व्रजन्ति ते। भगवती मातङ्गी का सिंहासन शिवात्मक महामञ्च या त्रिकोण है। उनकी मूर्ति सूक्ष्म रूप में यंत्र तथा पर रूप में भावना मात्र है।

दुर्गा सप्तशती (Durga Saptshati) के सातवें अध्याय में भगवती मातङ्गी के ध्यान का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे रत्नमय सिंहासन पर बैठकर पढ़ते हुए तोते का मधुर शब्द सुन रही है। उनके शरीर का वर्ण श्याम है। वे अपना एक पैर कमल पर रखी हुई है। अपने मस्तक पर अर्धचंद्र तथा गले में कल्हार पुष्पों की माला धारण करती है। वीणा बजाती हुई भगवती मातङ्गी (Matangi) के अङ्ग में कसी हुई चोली शोभा पा रही है। वे लाल रंग की साड़ी पहने तथा हाथ में शंखमय पात्र लिये हुए हैं। उनके वदन पर मधु का हल्का-हल्का प्रभाव जान पड़ता है और ललाट में विन्दी शोभा पा रही है। इनका वल्लकी धारण करना नाद का प्रतीक है। तोते का पढ़ना ह्री वर्ण का उच्चारण करना है, जो बीजाक्षर का प्रतीक है। कमल वर्णनात्मक सृष्टि का प्रतीक है। शंख पात्र ब्रह्मरन्ध्र तथा मधु अमृत का प्रतीक है। रक्तवस्त्र अग्नि का ज्ञान का प्रतीक है। वाग्देवी के अर्थ में मातङ्गी यदि व्याकरण रूपा है तो शुभ शिक्षा का प्रतीक है। चारभुजाएँ वेदचतुष्टय हैं। इस प्रकार तांत्रिकों की भगवती मातङ्गी (Matangi) महाविद्या वैदिको की सरस्वती ही है। तंत्रग्रन्थों में इनकी उपासना का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।

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Sri Matangi Ashtottara Shatanamavali | श्री मातङ्गी अष्टोत्तरशतनामावली

Maa Matangi

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Sri Matangi Ashtottara Shatanamavali – श्री मातङ्गी अष्टोत्तरशतनामावली

 
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नवरात्रि कैेलेंडर लिस्ट | Navratri Calender List
  1. ॐ महामत्तमातङ्गिन्यै नमः।
  2. ॐ सिद्धिरूपायै नमः।
  3. ॐ योगिन्यै नमः।
  4. ॐ भद्रकाल्यै नमः।
  5. ॐ रमायै नमः।
  6. ॐ भवान्यै नमः।
  7. ॐ भयप्रीतिदायै नमः।
  8. ॐ भूतियुक्तायै नमः।
  9. ॐ भवाराधितायै नमः।
  10. ॐ भूतिसम्पत्कर्यै नमः।
  11. ॐ जनाधीशमात्रे नमः।
  12. ॐ धनागारदृष्ट्यै नमः।
  13. ॐ धनेशार्चितायै नमः।
  14. ॐ धीरवास्यै नमः।
  15. ॐ वराङ्ग्यै नमः।
  16. ॐ प्रकृष्टायै नमः।
  17. ॐ प्रभारूपिण्यै नमः।
  18. ॐ कामरूपायै नमः।
  19. ॐ प्रहृष्टायै नमः।
  20. ॐ महाकीर्तिदायै नमः।
  21. ॐ कर्णनाल्यै नमः।
  22. ॐ काराल्यै नमः।
  23. ॐ भगायै नमः।
  24. ॐ घोररूपायै नमः।
  25. ॐ भगाङ्ग्यै नमः।
  26. ॐ भगाख्यायै नमः।
  27. ॐ भगप्रीतिदायै नमः।
  28. ॐ भीमरूपाभवान्यै नमः।
  29. ॐ महाकौशिक्यै नमः।
  30. ॐ कोशपूर्णायै नमः।
  31. ॐ किशोर्यै नमः।
  32. ॐ किशोरप्रियानन्दईहायै नमः।
  33. ॐ महाकारणायै नमः।
  34. ॐ अकारणायै नमः।
  35. ॐ कर्मशीलायै नमः।
  36. ॐ कपाल्यै नमः।
  37. ॐ प्रसिद्धायै नमः।
  38. ॐ महासिद्धखण्डायै नमः।
  39. ॐ मकारप्रियायै नमः।
  40. ॐ मानरूपायै नमः।
  41. ॐ महेश्यै नमः।
  42. ॐ महोल्लासिन्यै नमः।
  43. ॐ लास्यलीलालयाङ्ग्यै नमः।
  44. ॐ क्षमायै नमः।
  45. ॐ क्षेमशीलायै नमः।
  46. ॐ क्षपाकारिण्यै नमः।
  47. ॐ अक्षयप्रीतिदायै नमः।
  48. ॐ भूतियुक्ताभवान्यै नमः।
  49. ॐ भवाराधितायै नमः।
  50. ॐ भूतिसत्यात्मिकायै नमः।
  51. ॐ प्रभोद्भासितायै नमः।
  52. ॐ भानुभास्वत्करायै नमः।
  53. ॐ धराधीशमात्रे नमः।
  54. ॐ धनागारदृष्ट्यै नमः।
  55. ॐ धनेशार्चितायै नमः।
  56. ॐ धीवरायै नमः।
  57. ॐ धीवराङ्ग्यै नमः।
  58. ॐ प्रकृष्टायै नमः।
  59. ॐ प्रभारूपिण्यै नमः।
  60. ॐ प्राणरूप्यायै नमः।
  61. ॐ प्रकृष्टस्वरूपाय नमः।
  62. ॐ स्वरूपप्रियाय नमः।
  63. ॐ चलत्कुण्डलायै नमः।
  64. ॐ कामिनीकान्तयुक्तायै नमः।
  65. ॐ कपालायै नमः।
  66. ॐ अचलायै नमः।
  67. ॐ कालकोद्धारिण्यै नमः।
  68. ॐ कदम्बप्रियायै नमः।
  69. ॐ कोटर्यै नमः।
  70. ॐ कोटदेहायै नमः।
  71. ॐ क्रमायै नमः।
  72. ॐ कीर्तिदायै नमः।
  73. ॐ कर्णरूपायै नमः।
  74. ॐ लक्ष्म्यै नमः।
  75. ॐ क्षमाङ्ग्यै नमः।
  76. ॐ क्षयप्रेमरूपायै नमः।
  77. ॐ क्षपायै नमः।
  78. ॐ क्षयाक्षायै नमः।
  79. ॐ क्षयाख्यायै नमः।
  80. ॐ क्षयप्रान्तरायै नमः।
  81. ॐ क्षवत्कामिन्यै नमः।
  82. ॐ क्षारिण्यै नमः।
  83. ॐ क्षीरपूषायै नमः।
  84. ॐ शिवाङ्ग्यै नमः।
  85. ॐ शाकम्भर्यै नमः।
  86. ॐ शाकदेहायै नमः।
  87. ॐ महाशाकयज्ञायै नमः।
  88. ॐ फलप्राशकायै नमः।
  89. ॐ शकाह्वायै नमः।
  90. ॐ अशकाह्वायै नमः।
  91. ॐ शकाख्यायै नमः।
  92. ॐ शकायै नमः।
  93. ॐ शकाक्षान्तरोषायै नमः।
  94. ॐ सुरोषायै नमः।
  95. ॐ सुरेखायै नमः।
  96. ॐ महाशेषयज्ञोपवीतप्रियायै नमः।
  97. ॐ जयन्त्यै नमः।
  98. ॐ जयायै नमः।
  99. ॐ जाग्रत्यै नमः।
  100. ॐ योग्यरूपायै नमः।
  101. ॐ जयाङ्गायै नमः।
  102. ॐ जपध्यानसन्तुष्टसञ्ज्ञायै नमः।
  103. ॐ जयप्राणरूपायै नमः।
  104. ॐ जयस्वर्णदेहायै नमः।
  105. ॐ जयज्वालिन्यै नमः।
  106. ॐ यामिन्यै नमः।
  107. ॐ याम्यरूपायै नमः।
  108. ॐ जगन्मातृरूपायै नमः।

॥ इति श्री मातङ्गी अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Chinnamasta Ashtottara Shatanamavali | श्री छिन्नमस्तादेवि अष्टोत्तरशतनामावली

Maa Chinnamasta

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Sri Chinnamasta Ashtottara Shatanamavali – श्री छिन्नमस्तादेवि अष्टोत्तरशतनामावली

 

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नवरात्रि कैेलेंडर लिस्ट | Navratri Calender List
  1. ॐ छिन्नमस्तायै नमः।
  2. ॐ महाविद्यायै नमः।
  3. ॐ महाभीमायै नमः।
  4. ॐ महोदर्यै नमः।
  5. ॐ चण्डेश्वर्यै नमः।
  6. ॐ चण्डमात्रे नमः।
  7. ॐ चण्डमुण्डप्रभञ्जिन्यै नमः।
  8. ॐ महाचण्डायै नमः।
  9. ॐ चण्डरूपायै नमः।
  10. ॐ चण्डिकायै नमः।
  11. ॐ चण्डखण्डिन्यै नमः।
  12. ॐ क्रोधिन्यै नमः।
  13. ॐ क्रोधजनन्यै नमः।
  14. ॐ क्रोधरूपायै नमः।
  15. ॐ कुह्वे नमः।
  16. ॐ कलायै नमः।
  17. ॐ कोपातुरायै नमः।
  18. ॐ कोपयुतायै नमः।
  19. ॐ कोपसंहारकारिण्यै नमः।
  20. ॐ वज्रवैरोचन्यै नमः।
  21. ॐ वज्रायै नमः।
  22. ॐ वज्रकल्पायै नमः।
  23. ॐ डाकिन्यै नमः।
  24. ॐ डाकिनीकर्मनिरतायै नमः।
  25. ॐ डाकिनीकर्मपूजितायै नमः।
  26. ॐ डाकिनीसङ्गनिरतायै नमः।
  27. ॐ डाकिनीप्रेमपूरितायै नमः।
  28. ॐ खट्वाङ्गधारिण्यै नमः।
  29. ॐ खर्वायै नमः।
  30. ॐ खड्गखर्परधारिण्यै नमः।
  31. ॐ प्रेतासनायै नमः।
  32. ॐ प्रेतयुतायै नमः।
  33. ॐ प्रेतसङ्गविहारिण्यै नमः।
  34. ॐ छिन्नमुण्डधरायै नमः।
  35. ॐ छिन्नचण्डविद्यायै नमः।
  36. ॐ चित्रिण्यै नमः।
  37. ॐ घोररूपायै नमः।
  38. ॐ घोरदृष्ट्यै नमः।
  39. ॐ घोररावायै नमः।
  40. ॐ घनोदर्यै नमः।
  41. ॐ योगिन्यै नमः।
  42. ॐ योगनिरतायै नमः।
  43. ॐ जपयज्ञपरायणायै नमः।
  44. ॐ योनिचक्रमय्यै नमः।
  45. ॐ योनये नमः।
  46. ॐ योनिचक्रप्रवर्तिन्यै नमः।
  47. ॐ योनिमुद्रायै नमः।
  48. ॐ योनिगम्यायै नमः।
  49. ॐ योनियन्त्रनिवासिन्यै नमः।
  50. ॐ यन्त्ररूपायै नमः।
  51. ॐ यन्त्रमय्यै नमः।
  52. ॐ यन्त्रेश्यै नमः।
  53. ॐ यन्त्रपूजितायै नमः।
  54. ॐ कीर्त्यायै नमः।
  55. ॐ कपर्दिन्यै नमः।
  56. ॐ काल्यै नमः।
  57. ॐ कङ्काल्यै नमः।
  58. ॐ कलकारिण्यै नमः।
  59. ॐ आरक्तायै नमः।
  60. ॐ रक्तनयनायै नमः।
  61. ॐ रक्तपानपरायणायै नमः।
  62. ॐ भवान्यै नमः।
  63. ॐ भूतिदायै नमः।
  64. ॐ भूत्यै नमः।
  65. ॐ भूतिदात्र्यै नमः।
  66. ॐ भैरव्यै नमः।
  67. ॐ भैरवाचारनिरतायै नमः।
  68. ॐ भूतभैरवसेवितायै नमः।
  69. ॐ भीमायै नमः।
  70. ॐ भीमेश्वर्यै नमः।
  71. ॐ देव्यै नमः।
  72. ॐ भीमनादपरायणायै नमः।
  73. ॐ भवाराध्यायै नमः।
  74. ॐ भवनुतायै नमः।
  75. ॐ भवसागरतारिण्यै नमः।
  76. ॐ भद्रकाल्यै नमः।
  77. ॐ भद्रतनवे नमः।
  78. ॐ भद्ररूपायै नमः।
  79. ॐ भद्रिकायै नमः।
  80. ॐ भद्ररूपायै नमः।
  81. ॐ महाभद्रायै नमः।
  82. ॐ सुभद्रायै नमः।
  83. ॐ भद्रपालिन्यै नमः।
  84. ॐ सुभव्यायै नमः।
  85. ॐ भव्यवदनायै नमः।
  86. ॐ सुमुख्यै नमः।
  87. ॐ सिद्धसेवितायै नमः।
  88. ॐ सिद्धिदायै नमः।
  89. ॐ सिद्धिनिवहायै नमः।
  90. ॐ सिद्धायै नमः।
  91. ॐ सिद्धनिषेवितायै नमः।
  92. ॐ शुभदायै नमः।
  93. ॐ शुभगायै नमः।
  94. ॐ शुद्धायै नमः।
  95. ॐ शुद्धसत्त्वायै नमः।
  96. ॐ शुभावहायै नमः।
  97. ॐ श्रेष्ठायै नमः।
  98. ॐ दृष्टिमयीदेव्यै नमः।
  99. ॐ दृष्टिसंहारकारिण्यै नमः।
  100. ॐ शर्वाण्यै नमः।
  101. ॐ सर्वगायै नमः।
  102. ॐ सर्वायै नमः।
  103. ॐ सर्वमङ्गलकारिण्यै नमः।
  104. ॐ शिवायै नमः।
  105. ॐ शान्तायै नमः।
  106. ॐ शान्तिरूपायै नमः।
  107. ॐ मृडान्यै नमः।
  108. ॐ मदनातुरायै नमः।

॥ इति श्री छिन्नमस्तादेवि अष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Bagalamukhi Ashtottara Shatanamavali | श्री बगलाष्टोत्तरशतनामावली

Maa Bagalamukhi

Maa Bagalamukhi

 

Sri Bagalamukhi Ashtottara Shatanamavali – श्री बगलाष्टोत्तरशतनामावली

 

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नवरात्रि कैेलेंडर लिस्ट | Navratri Calender List
  1. ॐ बगलायै नमः।
  2. ॐ विष्णुवनितायै नमः।
  3. ॐ विष्णुशङ्करभामिन्यै नमः।
  4. ॐ बहुलायै नमः।
  5. ॐ देवमात्रे नमः।
  6. ॐ महाविष्णुप्रस्वै नमः।
  7. ॐ महामत्स्यायै नमः।
  8. ॐ महाकूर्मायै नमः।
  9. ॐ महावाराहरूपिण्यै नमः।
  10. ॐ नरसिंहप्रियायै नमः।
  11. ॐ रम्यायै नमः।
  12. ॐ वामनायै नमः।
  13. ॐ वटुरूपिण्यै नमः।
  14. ॐ जामदग्न्यस्वरूपायै नमः।
  15. ॐ रामायै नमः।
  16. ॐ रामप्रपूजितायै नमः।
  17. ॐ कृष्णायै नमः।
  18. ॐ कपर्दिन्यै नमः।
  19. ॐ कृत्यायै नमः।
  20. ॐ कलहायै नमः।
  21. ॐ विकारिण्यै नमः।
  22. ॐ बुद्धिरूपायै नमः।
  23. ॐ बुद्धभार्यायै नमः।
  24. ॐ बौद्धपाषण्डखण्डिन्यै नमः।
  25. ॐ कल्किरूपायै नमः।
  26. ॐ कलिहरायै नमः।
  27. ॐ कलिदुर्गतिनाशिन्यै नमः।
  28. ॐ कोटिसूर्यप्रतीकाशायै नमः।
  29. ॐ कोटिकन्दर्पमोहिन्यै नमः।
  30. ॐ केवलायै नमः।
  31. ॐ कठिनायै नमः।
  32. ॐ काल्यै नमः।
  33. ॐ कलायै नमः।
  34. ॐ कैवल्यदायिन्यै नमः।
  35. ॐ केशव्यै नमः।
  36. ॐ केशवाराध्यायै नमः।
  37. ॐ किशोर्यै नमः।
  38. ॐ केशवस्तुतायै नमः।
  39. ॐ रुद्ररूपायै नमः।
  40. ॐ रुद्रमूर्त्यै नमः।
  41. ॐ रुद्राण्यै नमः।
  42. ॐ रुद्रदेवतायै नमः।
  43. ॐ नक्षत्ररूपायै नमः।
  44. ॐ नक्षत्रायै नमः।
  45. ॐ नक्षत्रेशप्रपूजितायै नमः।
  46. ॐ नक्षत्रेशप्रियायै नमः।
  47. ॐ नित्यायै नमः।
  48. ॐ नक्षत्रपतिवन्दितायै नमः।
  49. ॐ नागिन्यै नमः।
  50. ॐ नागजनन्यै नमः।
  51. ॐ नागराजप्रवन्दितायै नमः।
  52. ॐ नागेश्वर्यै नमः।
  53. ॐ नागकन्यायै नमः।
  54. ॐ नागर्यै नमः।
  55. ॐ नगात्मजायै नमः।
  56. ॐ नगाधिराजतनयायै नमः।
  57. ॐ नगराजप्रपूजितायै नमः।
  58. ॐ नवीनायै नमः।
  59. ॐ नीरदायै नमः।
  60. ॐ पीतायै नमः।
  61. ॐ श्यामायै नमः।
  62. ॐ सौन्दर्यकारिण्यै नमः।
  63. ॐ रक्तायै नमः।
  64. ॐ नीलायै नमः।
  65. ॐ घनायै नमः।
  66. ॐ शुभ्रायै नमः।
  67. ॐ श्वेतायै नमः।
  68. ॐ सौभाग्यदायिन्यै नमः।
  69. ॐ सुन्दर्यै नमः।
  70. ॐ सौभगायै नमः।
  71. ॐ सौम्यायै नमः।
  72. ॐ स्वर्णाभायै नमः।
  73. ॐ स्वर्गतिप्रदायै नमः।
  74. ॐ रिपुत्रासकर्यै नमः।
  75. ॐ रेखायै नमः।
  76. ॐ शत्रुसंहारकारिण्यै नमः।
  77. ॐ भामिन्यै नमः।
  78. ॐ मायायै नमः।
  79. ॐ स्तम्भिन्यै नमः।
  80. ॐ मोहिन्यै नमः।
  81. ॐ शुभायै नमः।
  82. ॐ रागद्वेषकर्यै नमः।
  83. ॐ रात्र्यै नमः।
  84. ॐ रौरवध्वंसकारिण्यै नमः।
  85. ॐ यक्षिण्यै नमः।
  86. ॐ सिद्धनिवहायै नमः।
  87. ॐ सिद्धेशायै नमः।
  88. ॐ सिद्धिरूपिण्यै नमः।
  89. ॐ लङ्कापतिध्वंसकर्यै नमः।
  90. ॐ लङ्केशरिपुवन्दितायै नमः।
  91. ॐ लङ्कानाथकुलहरायै नमः।
  92. ॐ महारावणहारिण्यै नमः।
  93. ॐ देवदानवसिद्धौघपूजितायै नमः।
  94. ॐ परमेश्वर्यै नमः।
  95. ॐ पराणुरूपायै नमः।
  96. ॐ परमायै नमः।
  97. ॐ परतन्त्रविनाशिन्यै नमः।
  98. ॐ वरदायै नमः।
  99. ॐ वरदाराध्यायै नमः।
  100. ॐ वरदानपरायणायै नमः।
  101. ॐ वरदेशप्रियायै नमः।
  102. ॐ वीरायै नमः।
  103. ॐ वीरभूषणभूषितायै नमः।
  104. ॐ वसुदायै नमः।
  105. ॐ बहुदायै नमः।
  106. ॐ वाण्यै नमः।
  107. ॐ ब्रह्मरूपायै नमः।
  108. ॐ वराननायै नमः।

॥ इति श्री बगलाष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Dhumavati Ashtottara Shatanamavali | श्री धूमावत्यष्टोत्तरशतनामावली

Maa Dhumavati

Maa Dhumavati

 

Sri Dhumavati Ashtottara Shatanamavali – श्री धूमावत्यष्टोत्तरशतनामावली

 

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नवरात्रि कैेलेंडर लिस्ट | Navratri Calender List
  1. ॐ धूमावत्यै नमः।
  2. ॐ धूम्रवर्णायै नमः।
  3. ॐ धूम्रपानपरायणायै नमः।
  4. ॐ धूम्राक्षमथिन्यै नमः।
  5. ॐ धन्यायै नमः।
  6. ॐ धन्यस्थाननिवासिन्यै नमः।
  7. ॐ अघोराचारसन्तुष्टायै नमः।
  8. ॐ अघोराचारमण्डितायै नमः।
  9. ॐ अघोरमन्त्रसम्प्रीतायै नमः।
  10. ॐ अघोरमन्त्रपूजितायै नमः।
  11. ॐ अट्टाट्टहासनिरतायै नमः।
  12. ॐ मलिनाम्बरधारिण्यै नमः।
  13. ॐ वृद्धायै नमः।
  14. ॐ विरूपायै नमः।
  15. ॐ विधवायै नमः।
  16. ॐ विद्यायै नमः।
  17. ॐ विरलाद्विजायै नमः।
  18. ॐ प्रवृद्धघोणायै नमः।
  19. ॐ कुमुख्यै नमः।
  20. ॐ कुटिलायै नमः।
  21. ॐ कुटिलेक्षणायै नमः।
  22. ॐ कराल्यै नमः।
  23. ॐ करालास्यायै नमः।
  24. ॐ कङ्काल्यै नमः।
  25. ॐ शूर्पधारिण्यै नमः।
  26. ॐ काकध्वजरथारूढायै नमः।
  27. ॐ केवलायै नमः।
  28. ॐ कठिनायै नमः।
  29. ॐ कुह्वे नमः।
  30. ॐ क्षुत्पिपासार्दितायै नमः।
  31. ॐ नित्यायै नमः।
  32. ॐ ललज्जिह्वायै नमः।
  33. ॐ दिगम्बर्यै नमः।
  34. ॐ दीर्घोदर्यै नमः।
  35. ॐ दीर्घरवायै नमः।
  36. ॐ दीर्घाङ्ग्यै नमः।
  37. ॐ दीर्घमस्तकायै नमः।
  38. ॐ विमुक्तकुन्तलायै नमः।
  39. ॐ कीर्त्यायै नमः।
  40. ॐ कैलासस्थानवासिन्यै नमः।
  41. ॐ क्रूरायै नमः।
  42. ॐ कालस्वरूपायै नमः।
  43. ॐ कालचक्रप्रवर्तिन्यै नमः।
  44. ॐ विवर्णायै नमः।
  45. ॐ चञ्चलायै नमः।
  46. ॐ दुष्टायै नमः।
  47. ॐ दुष्टविध्वंसकारिण्यै नमः।
  48. ॐ चण्ड्यै नमः।
  49. ॐ चण्डस्वरूपायै नमः।
  50. ॐ चामुण्डायै नमः।
  51. ॐ चण्डनिःस्वनायै नमः।
  52. ॐ चण्डवेगायै नमः।
  53. ॐ चण्डगत्यै नमः।
  54. ॐ चण्डविनाशिन्यै नमः।
  55. ॐ मुण्डविनाशिन्यै नमः।
  56. ॐ चाण्डालिन्यै नमः।
  57. ॐ चित्ररेखायै नमः।
  58. ॐ चित्राङ्ग्यै नमः।
  59. ॐ चित्ररूपिण्यै नमः।
  60. ॐ कृष्णायै नमः।
  61. ॐ कपर्दिन्यै नमः।
  62. ॐ कुल्लायै नमः।
  63. ॐ कृष्णरूपायै नमः।
  64. ॐ क्रियावत्यै नमः।
  65. ॐ कुम्भस्तन्यै नमः।
  66. ॐ महोन्मत्तायै नमः।
  67. ॐ मदिरापानविह्वलायै नमः।
  68. ॐ चतुर्भुजायै नमः।
  69. ॐ ललज्जिह्वायै नमः।
  70. ॐ शत्रुसंहारकारिण्यै नमः।
  71. ॐ शवारूढायै नमः।
  72. ॐ शवगतायै नमः।
  73. ॐ श्मशानस्थानवासिन्यै नमः।
  74. ॐ दुराराध्यायै नमः।
  75. ॐ दुराचारायै नमः।
  76. ॐ दुर्जनप्रीतिदायिन्यै नमः।
  77. ॐ निर्मांसायै नमः।
  78. ॐ निराकारायै नमः।
  79. ॐ धूमहस्तायै नमः।
  80. ॐ वरान्वितायै नमः।
  81. ॐ कलहायै नमः।
  82. ॐ कलिप्रीतायै नमः।
  83. ॐ कलिकल्मषनाशिन्यै नमः।
  84. ॐ महाकालस्वरूपायै नमः।
  85. ॐ महाकालप्रपूजितायै नमः।
  86. ॐ महादेवप्रियायै नमः।
  87. ॐ मेधायै नमः।
  88. ॐ महासङ्कटनाशिन्यै नमः।
  89. ॐ भक्तप्रियायै नमः।
  90. ॐ भक्तगत्यै नमः।
  91. ॐ भक्तशत्रुविनाशिन्यै नमः।
  92. ॐ भैरव्यै नमः।
  93. ॐ भुवनायै नमः।
  94. ॐ भीमायै नमः।
  95. ॐ भारत्यै नमः।
  96. ॐ भुवनात्मिकायै नमः।
  97. ॐ भेरुण्डायै नमः।
  98. ॐ भीमनयनायै नमः।
  99. ॐ त्रिनेत्रायै नमः।
  100. ॐ बहुरूपिण्यै नमः।
  101. ॐ त्रिलोकेश्यै नमः।
  102. ॐ त्रिकालज्ञायै नमः।
  103. ॐ त्रिस्वरूपायै नमः।
  104. ॐ त्रयीतनवे नमः।
  105. ॐ त्रिमूर्त्यै नमः।
  106. ॐ तन्व्यै नमः।
  107. ॐ त्रिशक्तये नमः।
  108. ॐ त्रिशूलिन्यै नमः।

॥ इति श्री धूमावत्यष्टोत्तरशतनामावली ॥

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Sri Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram | श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

Maa Bhuvaneshwari

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Sri Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram – श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

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नवरात्रि कैेलेंडर लिस्ट | Navratri Calender List

।। ध्यान ।।

बालरविद्युतिमिन्दुकिरीटां तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्ताम् ।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ।।

।। विनियोग ।।

ॐ अस्य श्रीभुवनेश्वर्यष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रस्य शक्ति ऋषिर्गायत्री च्छन्दो भुवनेश्वरी देवता चतुर्वर्गसाधने जपे विनियोगः।

कैलासशिखरे रम्ये नानारत्नोपशोभिते ।
नरनारीहितार्थाय शिवं पप्रच्छ पार्वती ॥ १ ॥

॥ देव्युवाच ॥

भुवनेश्वरी महाविद्यानाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
कथयस्व महादेव यद्यहं तव वल्लभा ॥ २ ॥

॥ ईश्वर उवाच॥

श्रृणु देवि महाभागे स्तवराजमिदं शुभम् ।
सहस्रनाम्नामधिकं सिद्धिदं मोक्षहेतुकम् ॥ ३ ॥

शुचिभिः प्रातरुत्थाय पठितव्यं समाहितैः ।
त्रिकालं श्रद्धया युक्तैः सर्वकामफलप्रदम् ॥ ४ ॥

॥ स्तोत्रम् ॥

महामाया महाविद्या महायोगा महोत्कटा ।
माहेश्वरी कुमारी च ब्रह्माणी ब्रह्मरूपिणी ॥ ५ ॥

वागीश्वरी योगरूपा योगिनी कोटिसेविता ।
जया च विजया चैव कौमारी सर्वमङ्गला ॥ ६ ॥

हिङ्गला च विलासी च ज्वालिनी ज्वालरूपिणी ।
ईश्वरी क्रूरसंहारी कुलमार्गप्रदायिनी ॥ ७ ॥

वैष्णवी सुभगाकारा सुकुल्या कुलपूजिता ।
वामाङ्गा वामचारा च वामदेवप्रिया तथा ॥ ८ ॥

डाकिनी योगिनीरूपा भूतेशी भूतनायिका ।
पद्मावती पद्मनेत्रा प्रबुद्धा च सरस्वती ॥ ९ ॥

भूचरी खेचरी माया मातङ्गी भुवनेश्वरी ।
कान्ता पतिव्रता साक्षी सुचक्षुः कुण्डवासिनी ॥ १० ॥

उमा कुमारी लोकेशी सुकेशी पद्मरागिणी ।
इन्द्राणी ब्रह्मचाण्डाली चण्डिका वायुवल्लभा ॥ ११ ॥

सर्वधातुमयी-मूर्ति-र्जलरूपा जलोदरी ।
आकाशी रणगा चैव नृकपालविभूषणा ॥ १२ ॥

नर्मदा मोक्षदा चैव कामधर्मार्थदायिनी ।
गायत्री चाऽथ सावित्री त्रिसन्ध्या तीर्थगामिनी ॥ १३ ॥

अष्टमी नवमी चैव दशम्येकादशी तथा ।
पौर्णमासी कुहूरूपा तिथिमूर्तिस्वरूपिणी ॥ १४ ॥

सुरारिनाशकारी च उग्ररूपा च वत्सला ।
अनला अर्धमात्रा च अरुणा पीतलोचना ॥ १५ ॥

लज्जा सरस्वती विद्या भवानी पापनाशिनी ।
नागपाशधरा मूर्ति-रगाधा धृतकुण्डला ॥ १६ ॥

क्षत्ररूपी क्षयकरी तेजस्विनी शुचिस्मिता ।
अव्यक्ता-व्यक्तलोका च शम्भुरूपा मनस्विनी ॥ १७ ॥

मातङ्गी मत्तमातङ्गी महादेवप्रिया सदा ।
दैत्यहा चैव वाराही सर्वशास्त्रमयी शुभा ॥ १८ ॥

य इदं पठते भक्त्या शृणुयाद्वा समाहितः ।
अपुत्रो लभते पुत्रान् निर्धनो धनवान् भवेत् ॥ १९ ॥

मूर्खोऽपि लभते शास्त्रं चौरोऽपि लभते गतिम् ।
वेदानां पाठको विप्रः क्षत्रियो विजयी भवेत् ॥ २० ॥

वैश्यस्तु धनवान्भूयाच्छूद्रस्तु सुखमेधते ।
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः ॥ २१ ॥

ये पठन्ति सदा भक्त्या न ते वै दुःखभागिनः ।
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा चतुर्थकम् ॥ २२ ॥

ये पठन्ति सदा भक्त्या स्वर्गलोके च पूजिताः।
रुद्रं दृष्ट्वा यथा देवाः पन्नगा गरुडं यथा ।
शत्रवः प्रपलायन्ते तस्य वक्त्रविलोकनात् ॥ २३ ॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले देवीशङ्करसंवादे श्रीभुवनेश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

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Sri Dhumavati Ashtottara Shatanama Stotram | श्री धूमावती अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

Maa Dhumavati

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Sri Dhumavati Ashtottara Shatanama Stotram – श्री धूमावती अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

 

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।। ध्यान ।।
धूम्राभां धूम्रवस्त्रां प्रकटितदशनां मुक्तबालाम्बराढ्यां
काकाङ्कस्यन्दनस्थां धवलकरयुगां शूर्पहस्तातिरूक्षाम् ।
नित्यं क्षुत्क्षान्तदेहां मुहुरतिकुटिलां वारिवाञ्छाविचित्तां
ध्यायेद् धूमावतीं वामनयनयुगलां भीतिदां भीषणास्याम् ।।

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।। स्तोत्र ।।

॥ ईश्वर उवाच ॥

ॐ धूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपानपरायणा ।
धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थाननिवासिनी ॥ १ ॥

अघोराचारसन्तुष्टा अघोराचारमण्डिता ।
अघोरमन्त्रसम्प्रीता अघोरमन्त्रपूजिता ॥ २ ॥

अट्टाट्टहासनिरता मलिनाम्बरधारिणी ।
वृद्धा विरूपा विधवा विद्या च विरलद्विजा ॥ ३ ॥

प्रवृद्धघोणा कुमुखी कुटिला कुटिलेक्षणा ।
कराली च करालास्या कङ्काली शूर्पधारिणी ॥ ४ ॥

काकध्वजरथारूढा केवला कठिना कुहूः ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्या ललज्जिह्वा दिगम्बरी ॥ ५ ॥

दीर्घोदरी दीर्घरवा दीर्घाङ्गी दीर्घमस्तका ।
विमुक्तकुन्तला कीर्त्या कैलासस्थानवासिनी ॥ ६ ॥

क्रूरा कालस्वरूपा च कालचक्रप्रवर्तिनी ।
विवर्णा चञ्चला दुष्टा दुष्टविध्वंसकारिणी ॥ ७ ॥

चण्डी चण्डस्वरूपा च चामुण्डा चण्डनिःस्वना ।
चण्डवेगा चण्डगतिश्चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ ८ ॥

चाण्डालिनी चित्ररेखा चित्राङ्गी चित्ररूपिणी ।
कृष्णा कपर्दिनी कुल्ला कृष्णारूपा क्रियावती ॥ ९ ॥

कुम्भस्तनी महोन्मत्ता मदिरापानविह्वला ।
चतुर्भुजा ललज्जिह्वा शत्रुसंहारकारिणी ॥ १० ॥

शवारूढा शवगता श्मशानस्थानवासिनी ।
दुराराध्या दुराचारा दुर्जनप्रीतिदायिनी ॥ ११ ॥

निर्मांसा च निराकारा धूमहस्ता वरान्विता ।
कलहा च कलिप्रीता कलिकल्मषनाशिनी ॥ १२ ॥

महाकालस्वरूपा च महाकालप्रपूजिता ।
महादेवप्रिया मेधा महासङ्कटनाशिनी ॥ १३ ॥

भक्तप्रिया भक्तगतिर्भक्तशत्रुविनाशिनी ।
भैरवी भुवना भीमा भारती भुवनात्मिका ॥ १४ ॥

भेरुण्डा भीमनयना त्रिनेत्रा बहुरूपिणी ।
त्रिलोकेशी त्रिकालज्ञा त्रिस्वरूपा त्रयीतनुः ॥ १५ ॥

त्रिमूर्तिश्च तथा तन्वी त्रिशक्तिश्च त्रिशूलिनी ।
इति धूमामहत् स्तोत्रं नाम्नामष्टशतात्मकम् ॥ १६ ॥

मया ते कथितं देवि शत्रुसङ्घविनाशनम् ।
कारागारे रिपुग्रस्ते महोत्पाते महाभये ॥ १७ ॥

इदं स्तोत्रं पठेन्मर्त्यो मुच्यते सर्वसङ्कटैः ।
गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ॥ १८ ॥

चतुष्पदार्थदं नॄणां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥ १९ ॥

॥ इति शाक्तप्रमोदे श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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Sri Bagalamukhi Ashtottara Shatanama Stotram | श्री बगलामुखी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

Maa Baglamukhi

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Sri Bagalamukhi Ashtottara Shatanama Stotram – श्री बगलामुखी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

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नवरात्रि कैेलेंडर लिस्ट | Navratri Calender List

।। ध्यान ।।

सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पतांशुकोल्लासिनीं
हेमाभाङ्गरूचिं शशाङ्कमुकुटां सच्चम्पकस्त्रग्युताम् ।
हस्तैर्मुद्गरपाशवज्ररसनाः सम्बिभ्रतीं भूषणैः
व्याप्ताङ्गी बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत् ।।

।। विनियोग ।।

ॐ अस्य श्रीपीताम्बर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य सदाशिव ऋषिरनुष्टुप्छन्दः श्रीपीताम्बरी देवता श्रीपीताम्बरी प्रीतये जपे विनियोगः ।।

॥ नारद उवाच ॥

भगवन् देवदेवेश सृष्टिस्थितिलयात्मक ।
शतमष्टोत्तरं नाम्नां बगलाया वदाधुना ॥ १ ॥

॥ श्री भगवानुवाच ॥

शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
पीताम्बर्या महादेव्याः स्तोत्रं पापप्रणाशनम् ॥ २ ॥

यस्य प्रपठनात्सद्यो वादी मूकोभवेत् क्षणात् ।
रिपूणां स्तम्भनं याति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ ३ ॥

।। स्तोत्र ।।

ॐ बगला विष्णुवनिता विष्णुशङ्करभामिनी ।
बहुला वेदमाता च महाविष्णुप्रसूरपि ॥ ४ ॥

महामत्स्या महाकूर्मा महावाराहरूपिणी ।
नरसिंहप्रिया रम्या वामना बटुरूपिणी ॥ ५ ॥

जामदग्न्यस्वरूपा च रामा रामप्रपूजिता ।
कृष्णा कपर्दिनी कृत्या कलहा कलकारिणी ॥ ६ ॥

बुद्धिरूपा बुद्धभार्या बौद्धपाखण्डखण्डिनी ।
कल्किरूपा कलिहरा कलिदुर्गतिनाशिनी ॥ ७ ॥

कोटिसूर्यप्रतीकाशा कोटिकन्दर्पमोहिनी ।
केवला कठिना काली कला कैवल्यदायिनी ॥ ८ ॥

केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता ।
रुद्ररूपा रुद्रमूर्ती रुद्राणी रुद्रदेवता ॥ ९ ॥

नक्षत्ररूपा नक्षत्रा नक्षत्रेशप्रपूजिता ।
नक्षत्रेशप्रिया नित्या नक्षत्रपतिवन्दिता ॥ १० ॥

नागिनी नागजननी नागराजप्रवन्दिता ।
नागेश्वरी नागकन्या नागरी च नगात्मजा ॥ ११ ॥

नगाधिराजतनया नगराजप्रपूजिता ।
नवीननीरदा पीता श्यामा सौन्दर्यकारिणी ॥ १२ ॥

रक्ता नीला घना शुभ्रा श्वेता सौभाग्यदायिनी ।
सुन्दरी सौभगा सौम्या स्वर्णाभा स्वर्गतिप्रदा ॥ १३ ॥

रिपुत्रासकरी रेखा शत्रुसंहारकारिणी ।
भामिनी च तथा माया स्तम्भिनी मोहिनी शुभा ॥ १४ ॥

रागद्वेषकरी रात्री रौरवध्वंसकारिणी ।
यक्षिणी सिद्धनिवहा सिद्धेशा सिद्धिरूपिणी ॥ १५ ॥

लङ्कापतिध्वंसकरी लङ्केशरिपुवन्दिता ।
लङ्कानाथकुलहरा महारावणहारिणी ॥ १६ ॥

देवदानवसिद्धौघपूजिता परमेश्वरी ।
पराणुरूपा परमा परतन्त्रविनाशिनी ॥ १७ ॥

वरदा वरदाराध्या वरदानपरायणा ।
वरदेशप्रिया वीरा वीरभूषणभूषिता ॥ १८ ॥

वसुदा बहुदा वाणी ब्रह्मरूपा वरानना ।
बलदा पीतवसना पीतभूषणभूषिता ॥ १९ ॥

पीतपुष्पप्रिया पीतहारा पीतस्वरूपिणी ।
इति ते कथितं विप्र नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ २० ॥

यः पठेत्पाठयेद्वापि शृणुयाद्वा समाहितः ।
तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो याति नैवात्र संशयः ॥ २१ ॥

प्रभातकाले प्रयतो मनुष्यः पठेत्सुभक्त्या परिचिन्त्य पीताम् ।
द्रुवं भवेत्तस्य समस्तवृद्धि- र्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः ॥ २२ ॥

॥ इति श्रीविष्णुयामले नारदविष्णुसंवादे श्रीबगलाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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