माँ बगलामुखी महाविद्या | Maa Bagalamukhi Mahavidya : The 10 (Ten) Mahavidyas

bagalamukhi devi

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बिंदु त्रिकोण षट्कोणव्रत्ताष्टदलमेव  च।
वृत्त च षोडशदलं यंत्र च भूपुरात्मकम्।।

व्यष्टिरूप में शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समष्टि रूप में परमात्मा की संहार-शक्ति ही वगला है। पीताम्बराविद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी (Bagalamukhi) की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाक्-सिद्धि के लिये की जाती है। इनकी उपासना में हरिद्रामाला, पीत-पुष्प एवं पीतवस्त्र का विधान है। महाविद्याओं में इनका आठवाँ स्थान है। इनके ध्यान में बताया गया है कि सुधासमुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मंडप में रत्न मय सिंहासन पर विराज रही हैं। ये पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले पुष्पों की माला धारण करती है। इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्रर है।

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स्वतंत्रतंत्र के अनुसार भगवती बगलामुखी (Bagalamukhi) के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है- सत्य युग में संपूर्ण जगत् को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियों के जीवन पर आये संकट को देखकर भगवान् महाविष्णु चिंतित हो गये। वे सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्रीविद्याने उस सरोवर से बगला मुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरंत स्तम्भन कर दिया। वगलामुखी महाविद्या भगवान् विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी हैं।

मंगलवारयुक्त चतुर्दशी अर्धरात्रि में इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इस विद्या का उपयोग दैवी प्रकोप की शान्ति, धन-धान्य के लिए पौष्टिक कर्म एवं आभिचारिक कर्म के लिए भी होता है। यह भेद केवल प्रधानता के अभिप्राय से है, अन्यथा इनकी उपासना भोग और मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिये की जाती है।

यजुर्वेद की काठकसंहिता के अनुसार दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, सुन्दर स्वरूप धारिणी विष्णु पत्नी त्रिलोक जगत की ईश्वरी मानोता कही जाती है। स्तम्भनकारिणी शक्ति व्यक्त और अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार पृथ्वी रूपा शक्ति है। बगला उसी स्तम्भनशक्ति की अधिष्ठात्री देवी है। शक्ति रूपा वगला की स्तंभन शक्ति से द्युलोक वृष्ठि प्रदान करता है। उसी से आदित्य मंडल ठहरा हुआ है उसी से स्वर्गलोग भी स्तम्भित है। भगवान श्रीकृष्ण भी गीता में कह कर उसी शक्ति का समर्थन किया तंत्र में वही सतवन शक्ति बगलामुखी के नाम से भी जानी जाती है श्री बगलामुखी ब्रह्मास्त्र ने भी गीता में विष्टभ्याहमिदं कृत्स्त्रमेकांशेन स्थितो जगत् कहकर उसी शक्ति का समर्थन किया हैं। तन्त्र में वही स्तम्भनशक्ति बगलामुखी (Bagalamukhi) के नाम से जानी जाती है। श्री बगलामुखी (Bagalamukhi) को ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता हैं। ऐहिक या पारलौकिक देश अथवा समाज में दुःखद अरिष्टों के दमन और शत्रुओं के शमन में बगलामुखी (Bagalamukhi) के समान कोई मंत्र नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रक लेते आ रहे हैं। इनके बडवामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमुखी पाँच मंत्र भेद है। कुण्डिकातंत्र में वगलामुखी के जप के विधान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। मुंडमाला तंत्र में तो यहाँ तक कहा गया है कि इन की सिद्धि के लिये नक्षत्रादि विचार और काल शोधन की भी आवश्यकता नहीं है।

बगला महाविद्या ऊधर्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं। इस आम्नाय में शक्ति केवल पूज्य मानी जाती है, भोग्य नहीं। श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना गुरु के सान्निध्य में रहकर सतर्कतापूर्वक सफलता की प्राप्ति होने तक करते रहना चाहिये। इसमें ब्रह्मचर्य का पालन और बाहर-भीतर की पवित्रता अनिवार्य है। सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने वगला महाविद्या की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने इस विद्या का उपदेश का सनकादिक मुनियों को किया। सनत्कुमार देवर्षि नारद को और नारद ने संख्यायन नामक परमहंस को इसका उपदेश किया। सांख्यायन ने छत्तीस पटलों में उपनिबद्ध बगला तंत्र का रचना की। बगला मुखी के दूसरे उपासक भगवान् विष्णु और तीसरे उपासक परशुराम हुए तथा परशुरामने यह विद्या विद्या आचार्य द्रोण को बतायी।

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