कैसे करें पितृ दोष को दूर ? | Pitra Dosha Nivaran Upay Puja

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जिस प्रकार लोगों के मन में पित्र दोष को लेकर भ्रम बना रहता है। उसी प्रकार पितृदोष किस तरह दूर किया जाता है ? इस बात को लेकर भी बहुत सारे लोगों के मन में भ्रम बना रहता है। आपकी इसी जिज्ञासा को शांत करने के उद्देश्य से यह वीडियो बनाया गया है। इस वीडियो में आपको बताया गया है कि हमारे शास्त्रों में ऐसा कौन सा विधान है ? जिससे पितर जल्दी प्रसन्न होते हैं।

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पंचकों में कौन से 5 काम नहीं करने चाहिए ? Panchak Meaning

panchak me na kren ye kaam

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यूं तो हमारे सामाजिक जीवन में बहुत सारे भ्रम बने रहते हैं। इन्हीं भ्रमों में से एक भ्रम पंचकों को लेकर है। कोई भी बात आती है तो हमेशा यही बात निकल कर आती है कि

अभी पंचक लगे हुए हैं।

यह काम पंचकों में नहीं करते ?

फलाना काम पंचक में नहीं करते।

इस प्रकार के बहुत सारे वाक्य बहुत बार सुनने को आते हैं। जैसे कि अभी कुछ समय पहले ही नवरात्रि आरंभ हुए। और जिस दिन नवरात्र आरंभ हुआ उस दिन पंचक लगे हुए थे, तो एक व्यक्ति पंडित जी से पूछने के लिए गए की नवरात्रि कब से शुरू करने हैं, तो उन्होंने बताया कि 28 29 तारीख को पंचक लगे हुए हैं। आप ऐसा कीजिए 30 तारीख से नवरात्र शुरु कीजिए। हैरानी की बात है, कि पंचकों का और नवरात्रे शुरू होने का आपस में क्या लिंक है ?

पंडित जी ने जो मुहूर्त नवरात्रि शुरू करने के लिए बताया, वह नवरात्रों का तीसरा दिन था। अब वह व्यक्ति पहले ही कंफ्यूज था और वह और अधिक कंफ्यूज हो गया कि अब मैं क्या करूं ? अगर व्रत कम रखता हूं, तो भी मन में शंका है कि ऐसे तो मैं तो तृतीया से व्रत शुरू कर पाऊंगा। जब की व्रत शुरू प्रतिपदा से हो जाते हैं।

अब आप खुद सोचिए कि वह बेचारा क्या करे ? गया तो था बेचारा अपनी शंका का समाधान करने इसके बजाय मन में चार शंकाएं और ज्यादा घुसाकर आ गया।

तो चलिए देखते हैं कि हमारे शास्त्र क्या कहते हैं पंचको के बारे में, क्या है पंचक ?

जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में विचरण करते हुए धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्व भाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा और रेवती इन नक्षत्रों में से विचरण करता है। उन्हें पंचक कहा जाता है। क्योंकि एक नक्षत्र लगभग 24 घंटे चलता है। इसी प्रकार से 5 नक्षत्र लगभग 5 दिन चलते हैं और इन्हीं 5 दिनों में से चंद्रमा का गुजरना पंचक कहलाता है। आइए देखते हैं शास्त्र क्या कहते हैं ? इन पंचकों के बारे में, इन पंचकों में क्या नहीं करना चाहिए ?

हमारे शास्त्रों में पांच काम पंचकों में करने के लिए स्पष्ट रूप से मना किया गया है।

1    जिस समय पंचक लगे हुए हैं। उस समय में घास लकड़ी और इंधन आदि इकट्ठे नहीं करने चाहिए क्योंकि पंचकों में घास, लकड़ी आदि का संग्रह करने से आग लगने का भय बना रहता है।

2    पंचक के समय में घर पर छत अथवा लेंटर आदि नहीं डालना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार पंचकों में लेंटर अथवा छत डालने से उस घर में धन हानि और क्लेश बना रहता है व मकान आदि गिरने के योग बनते हैं। मकान मालिक उस मकान में सुखपूर्वक नहीं रह पाता।

3    पंचक के समय में पलंग, चारपाई, डबल बैड आदि कोई भी शयन से संबंधित वस्तुएं लाना, खरीदना खतरे को न्योता देने जैसा है। ऐसे बिस्तर पर सोने वाला इंसान हमेशा बीमार रहता है। उसके शरीर में दर्द, मानसिक पीड़ा, कलह क्लेश, मनमुटाव, चिड़चिड़ापन आदि बन जाता है।

4    पंचक के समय में दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है। पंचक के समय में दक्षिण दिशा में यात्रा करने से भयंकर दुर्घटना होने के आसार बनते हैं।

5    पंचक के समय में पांचवा और आख़िरी निषेध काम है। शव का अंतिम संस्कार करना। जी हां, पंचक के समय में यदि किसी की मृत्यु हो जाती है, तो शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता। अब चूंकि पंचक तो 5 दिन लगातार चलते हैं, तो 5 दिन तक तो हम शव को नहीं रख सकते, अतः उसके लिए हमारे शास्त्रों में पंचक शांति का विधान बताया गया है।

पंचक शांति में डॉभ यानी कुशा के पांच पुतले बनाकर शव के ऊपर एक छाती, दो हाथ और दो पैर के ऊपर रखकर विधि विधान से उनका पूजन करने के बाद ही शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति हमारे शास्त्रों की आज्ञा का उल्लंघन करके शव का अंतिम संस्कार बिना पंचक शांति कराए ही कर देता है, तो उसके परिवार, गांव, पड़ोस, मित्र, बंधु या जो भी उसके निकटतम व्यक्ति हैं। उनमें से किसी की भी पांच दिनों के अंदर पांच मृत्यु हो जाती हैं। इस प्रकार के घटित घटना मैंने स्वयं अपनी आंखों से कई बार देखी है, अतः हमारे शास्त्रों में बताई हुई सभी बातें पूर्णतः सत्य हैं।

आप भी हमारे धर्म शास्त्रों में लिखी हुई बातों का अपने जीवन में अनुसरण करके, लाभ उठाएं।

 

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गुरु की महिमा | Guru Mahima | Guru Purnima

Guru Purnima

Guru Purnima

‘गुरु’

‘गु’ माने अंधकार और रू माने प्रकाश । जो अज्ञान रुपी अंधकार को हटाकर ज्ञानरुपी प्रकाश प्रकट कर दे उन्हें गुरु कहा जाता है । हमारे शास्त्रों में गुरु पद की बहुत महिमा है । भगवान शंकर ने कहा है ।

गुरु बिनु भवनिधि तरइ कोई, जो बिरंचि संकर सम होई अर्थात गुरु के बिना कोई भी संसार सागर को पार नहीं कर सकता  फिर भले ही वह ब्रह्मा, विष्णु, महेश ही क्यों ना हो ?

शास्त्रों में गुरु महिमा भगवान से भी बढ़कर बताई गई है।  स्वयं भगवान राम, भगवान श्री कृष्ण अवतार लेकर जब – जब धरती पर आए, उन्होंने भी गुरुओं की सेवा की, गुरुओं के चरणों में मत्था टेककर ज्ञान प्राप्त किया। वह तो साक्षात परमात्मा है फिर भी उन्होंने मनुष्य रूप लेकर संसार को समझाने के मकसद से स्वयम गुरुओं की सेवा की।

वैसे तो मनुष्य जन्म से ही किसी ने किसी को गुरु बनाता है। सबसे पहले गुरु माता-पिता होते हैं, जो व्यक्ति का लालन-पालन करके संसार की डगर में आगे बढ़ाते हैं। इसके बाद शिक्षा गुरु होते हैं जो व्यक्ति को तमाम सांसारिक ज्ञान का उपदेश करके उसे निखारते हैं। इसके बाद और अंत में आध्यात्मिक गुरु होते हैं जो व्यक्ति को इस संसार के दुख – सुख, हानि – लाभ तथा कर्मों के तूफान से बाहर निकालकर सुख – शांति – संतोष तथा अपने आत्मा में स्थित होना सिखाते हैं और दुनियावी कुचक्र से मुक्त कर देते हैं। हिसाब से देखें तो संसार में कोई भी काम करने से पहले उसे सीखना जरुरी होता है।

उदाहरण के तौर पर जिस प्रकार एक कन्या को रोटी बनाना सीखना होता है तो उसे मां का आश्रय लेना पड़ता है। मां उसे अपने सानिध्य में रखती है और रोटी बनाने व बेलने आदि की कला सिखाती है। तो जब संसार का छोटे से छोटा कार्य भी बिना गुरु के नहीं संभव के करना संभव नहीं हो पाता तो इस संसार के कुचक्र से निकलना कैसे संभव है ?

इस धरती पर जितने भी महान महापुरुष हुए हैं। उन सब ने किसी ने किसी गुरु का सानिध्य प्राप्त किया है, उनकी सेवा की है और उनकी कृपा को पचा कर संसार में अपना नाम रोशन किया है। सदा के लिए अमर हो गया है।

जिस बालक ध्रुव को उसके पिता की गोद नसीब नहीं होती थी। उसी बालक ध्रुव को जब नारद जी जैसे गुरु मिले और गुरु मंत्र का जाप किया तो उन्हें एक सांसारिक पिता की तो बात ही बहुत दूर है स्वयं परमात्मा की गोद में बैठना नसीब हुआ। स्वामी विवेकानंद जिनका बचपन का नाम नरेंद्र था। वह कई संस्थाओं में गए, कई व्यक्तियों से, कई अध्यात्मिक व्यक्तियों से मिले परंतु जब वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य बने तभी वह नरेंद्र से ‘स्वामी विवेकानंद’ बन पाए।

आज कौन नहीं जानता स्वामी विवेकानंद को ?

ईश कृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान।

ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गांवही वेद पुराण।

अर्थात भगवान की कृपा के बिना गुरू नहीं मिलते और गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता। ज्ञान के बिना अपने वास्तविक स्वरूप अमर आत्मा का पता नहीं चलता ऐसा हमारे वेद और पुराण बताते हैं। धन्य हैं ऐसे गुरु जिनके चरणों की सेवा करके अनेक सज्जनों का उद्धार हो गया। वास्तविकता देखी जाए तो जब – जब धरती पर भार बढ़ता है, पाप बढ़ता है, अनाचार और अत्याचार बढ़ता है, तभी कोई समर्थ सद्गुरु के रूप में भगवान स्वयं अवतरित होते हैं।

संत की आत्मा और भगवान की आत्मा एक ही है। संत श्री तुकाराम जी, श्री एकनाथ जी, ज्ञानेश्वर महाराज, राजा जनक, सुकदेव जी, दत्तात्रेय भगवान तथा शंकराचार्य आदि अनेक ऐसे महान आत्मा समर्थ सद्गुरु इस धरती पर आए और मनुष्य को जीवन जीने का सही तरीका सिखाया और जन्म-मरण रूपी कष्टों का नाश किया। जो सच्चा शिष्य अपने गुरु की शरण में रहकर उनकी आज्ञा का पालन करता है। उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता। गुरु ऐसी कला देते हैं की व्यक्ति की जन्म कुंडली के ग्रह व कर्मों का लेखा – जोखा बदलते हुए देर नहीं लगती। सच्चे गुरु की सेवा करने वाले व्यक्ति की तो रोज दिवाली होती है।

सिख समाज में तो गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है।

गुरु गोविंद दोनों खड़े काको लागे पाय,

बलिहारी गुरु गोविंद की जिसने प्रभु दियो मिलाय।

सिक्खों की गुरु भक्ति को मेरा प्रणाम है। ऐसे शिष्य जो गुरु को ही सर्वोपरि मानता है। गुरु के कहने में चलता है, गुरु के फेरे फिरता है, गुरु की वाणी का आदर करता है। धन्य है ऐसी गुरु भक्ति ।

व्यक्ति को सीखना चाहिए, अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए, अपने गुरु के कहने में चलना चाहिए। आज के समय में बहुत लोग हैं जो बहुत सारे गुरु बनाते हैं। हर किसी को गुरु जी, गुरु जी कहते रहते हैं। यह अच्छा नहीं है। वैसे तो गुरु की कोई पहचान नहीं, पर फिर भी आज कलयुग के समय को देखते हुए कुछ विचार किया जा सकता है।

मां-बाप तो देह में जन्म देते हैं। लेकिन सच्चा गुरु उस देह में रह रहे परब्रह्म परमात्मा का दीदार करवाकर परमात्मा में ही प्रतिष्ठित कर देते हैं। व्यक्ति को अंतर आत्मा की जागृति कर देते हैं। गुरु की महिमा अकथनीय है। बड़े-बड़े पाप का फल गुरु चुटकियों में निपटा देते हैं। जिस प्रकार एक शिष्य एक सच्चे सद्गुरु की तलाश करता है। उसी प्रकार एक सद्गुरु भी एक सत् शिष्य की तलाश करता है । उस पर अपनी पूर्ण कृपा उड़ेलना चाहता है, उसको भी गुरुपद में प्रतिष्ठित करना चाहता है। परंतु आज कलयुग के समय में ऐसा सच्चा सद्गुरु तो भले मिल जाए, पर सत् शिष्य नहीं मिलता। अधिकतर शिष्य सिर्फ दुनियावी मोह, माया प्राप्त करना चाहते हैं। गुरुजी मुझे मकान मिल जाए, गुरुजी मुझे दुकान मिल जाए, गुरुजी मुझे पत्नी मिल जाए यही चाहते हैं। धन-संपत्ति चाहते हैं। पर गुरु जो देना चाहते हैं वह शिक्षा लेना ही नहीं चाहता।

कलयुग का प्रभाव अधिक बढ़ता जा रहा है इसलिए सावधान रहना चाहिए

कपटी गुरु, लालची चेला,

दोनों नरक में ठेलम ठेला।

आजकल के गुरु चाहते हैं कि शिष्य की जेब काट ली जाए और शिष्य चाहता है की गुरु को ही ठग लिया जाए। गुरु और शिष्य का नाता तो पिता पुत्र के नाते से भी बढ़कर है। शास्त्रों में किस प्रकार गुरु अपने शिष्य के कर्म को चुटकियों में निपटा देते हैं। इसके कई उदाहरण है।

एक बार गुरु नानक देव जी घूमते-घूमते एक सेठ साहूकार के यहां पहुंचे। उस सेठ साहूकार ने नानक देव जी की बहुत सेवा की। अपने हाथों से गुरु जी के पैरों की चरण चंपी की। बड़े प्रेम से भोजन करवाया, पंखे से हवा की और बड़ा उत्साहित और प्रसन्न हुआ कि मेरे ऊपर भगवान की कितनी बड़ी कृपा है कि आज गुरु मेरे घर पर पधारे हैं। रात्रि होने पर सब विश्राम करने लगे। रात्रि में स्वपन के दौरान उसने अपने आप को बड़ा पीड़ित, असहाय और रोगी के रूप में देखा। वह सारी रात इस सपने को देखते हुए परेशानी में रहा। सुबह उठकर वह बड़ा विस्मित हुआ कि इतने बड़े ज्ञानी के दर्शन हुए इसके बावजूद भी मुझे ऐसा स्वप्न क्यों दिखा?

मेरी सारी रात काली बीती है। इस बात में भी कोई न कोई रहस्य होगा? उन्होंने नानक देव जी से इसके बारे में पूछा कि गुरु जी आप जैसे महान आत्मा का दर्शन करने के बाद तो व्यक्ति का चित् प्रसन्न रहना चाहिए, व्यक्ति को शुभ स्वप्न देखने चाहिए। परंतु मेरे साथ तो उल्टा हुआ।

गुरु नानक देव जी ने कहा बेटा संतो की महिमा को पूरा कोई नहीं समझ सकता। तुमने स्वप्न में जो रोग, असहाय और पीड़ा देखी है। वह तुम्हारे कर्मों के कारण तुमने भोगनी थी। परंतु साधु की सेवा करने मात्र से तुम्हारे रोग के कई साल सिर्फ एक रात में कट गए और वह भी सिर्फ स्वप्न में ही दूर हो गए।

ईश्वर अपना अपमान तो सह लेते हैं, परंतु गुरु का अपमान कदापि नहीं सहते। एक बार देवर्षि नारद ने वैकुंठ में प्रवेश किया भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी उनका खूब आदर करने लगे। आदिनारायण ने नारद जी का हाथ पकड़ा और आराम करने को कहा। एक तरफ भगवान विष्णु नारद जी की चरण चंपी कर रहे हैं और दूसरी तरफ लक्ष्मी जी पंखा हांक रही हैं। नारद जी कहते हैं भगवान अब छोड़ो, यह लीला किस बात की?  हे नाथ, यह क्या राज है, समझाने की युक्ति है, आप मेरी चरण चंपी कर रहे हैं और माता जी पंखा झेल रही हैं। भगवान बोले नारद तू गुरुओं के लोक से आया है। महापुरुषों के लोक से आया है। यमपुरी में पाप भोगे जाते हैं, बैकुंठ में पुण्य का फल भोगा जाता है लेकिन मृत्यु लोक में सद्गुरु की प्राप्ति होती है और जीव सदा के लिए मुक्त हो जाता है। ऐसा लगता है तू किसी न किसी गुरु की शरण ग्रहण करके आया है। नारद जी को अपनी भूल महसूस कराने के लिए भगवान यह सब लीलाएं कर रहे थे। नारद जी ने कहा हे प्रभु मैं भक्त हूं लेकिन निगुरा हूं।

गुरु क्या देते हैं ? गुरु का महत्व में क्या होता है ? यह बताने की कृपा करो। भगवान बोले गुरु क्या देते हैं ? गुरु का क्या महत्व होता है ? अगर यह जानना हो तो जाओ। गुरु के पास जाओ। यह वैकुंठ है, खबरदार जैसे पुलिस अपराधियों को पकड़ती है। न्यायधीश उन्हें नहीं पकड़ पाते। ऐसे ही वह गुरु लोग हमारे दिल से हमारे मन के मैल, कुकर्मों के संस्कार, हमारे दिल के अपराध, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों को निकाल-निकालकर निर्विकार चैतन्य स्वरूप प्रभु परमात्मा की प्राप्ति में सहयोग देते हैं और शिष्य जब तक गुरु पद को प्राप्त नहीं कर लेता तब तक उस पर हर जन्म में निगरानी रखते रखते जीव को परब्रह्म की यात्रा कर आते रहते हैं।

हे नारद, जा तू किसी गुरू की शरण ले, बाद में इधर आना। देवर्षि नारद गुरु की खोज करने मृत्युलोक में आए सोचा कि मुझे प्रभात काल में जो सर्वप्रथम मिलेगा उसी को मैं अपना गुरु बना लूंगा। प्रातः काल में सरिता के तीर पर गए देखा तो एक आदमी शायद स्नान करके आ रहा था। हाथ में जलती अगरबत्ती है। नारदजी ने मन ही मन उनको गुरु मान लिया। नजदीक पहुंचे तो पता चला कि वह मच्छीमार है, हिंसक है, हालांकि आदिनारायण विष्णु ही वह रूप धारण करके आए थे। नारद जी ने अपना संकल्प बता दिया कि हमने तुमको गुरू मान लिया है।

नारद जी ने पैर पकड़ लिए, मल्लाह बोला छोड़ो मुझे। मल्लाह ने जान छुड़ाने के लिए कहा अच्छा स्वीकार है जा। नारदजी आए वैकुंठ में भगवान ने कहा नारद अब निगुरा तो नहीं है। नहीं भगवान में गुरु बना कर आया हूं । कैसे हैं तेरे गुरू ?

नारद जी बोले मैं जरा धोखा खा गया। वह कमबख्त तो मल्लाह मिल गया। अब क्या करें ? आपकी आज्ञा मानकर उसी को गुरु बना लिया। भगवान नाराज हो गए। तूने गुरु शब्द का अपमान किया है। न्यायधीश न्यायालय में कुर्सी पर तो बैठ सकता है, न्यायालय का उपयोग कर सकता है लेकिन न्यायालय का अपमान तो न्यायधीश भी नहीं कर सकता। सरकार भी न्यायालय का अपमान नहीं कर सकती। भगवान बोले तूने गुरु पद का अपमान किया है। जा तुझे 8400000 जन्मों तक माता के गर्भ में नरक भोगना पड़ेगाजा नारदजी बड़ा रोए, छटपटाए, भगवान ने कहा इसका इलाज यहां नहीं है। यह तो पुण्य का फल भोगने की जगह है, नरक पाप का फल भोगने की जगह है, कर्मों से छूटने की जगह तो धरती लोक है, मनुष्य लोक है। तू जा, उन गुरुओं के पास मृत्युलोक में वही तेरा उद्धार हो सकता है।

नारदजी वापस धरती लोक में आए। उस मल्लाह के पैर पकड़े और हाथ जोड़कर आंसू बहाते हुए कहा हे गुरुदेव उपाय बताओ मैं तो बड़ा फस गया हूं। चौरासी के चक्कर से छूटने का कोई उपाय बताओ। गुरूजी ने पहले पूरी बात समझी और फिर कुछ संकेत बता दिए। नारदजी फिर बैकुंठ में पहुंचे। भगवान को कहा मैं 84 लाख योनियां तो भोग लूंगा लेकिन कृपा करके उसका नक्शा तो बना दो जरा। दिखा तो दो नाथ कैसी होती है 84 लाख योनियां। भगवान ने तुरंत नक्शा बना दिया। नारद उसी नक्शे में लौटने लगे। अरे, यह क्या करते हो नारद। हे भगवान वह 84 भी आप की बनाई हुई है और यह 84 भी आपकी ही बनाई हुई है। मैं इसी में चक्कर लगाकर अपनी 84 पूरी कर रहा हूं। भगवान ने कहा, देखा नारद महापुरुषों के नुस्खे लाजवाब होते हैं। यह युक्ति भी तुझे उन्हीं गुरुजी से मिली है। नारद महापुरुषों के नुस्खे लेकर जीव अपने अतृप्त हृदय में तृप्ति पाता है। अशांत हृदय में परमात्मा शांति पाता है, अज्ञान से घिरे हुए हृदय में आत्मा का प्रकाश पाता है, जिन – जिन महापुरुषों के जीवन में गुरुओं का सच्चा प्रसाद आ गया। ऊंचे अनुभव को उचित शांति को प्राप्त हुए हैं। हमारी क्या शक्ति है कि उन महापुरुषों, उन गुरुओं का बयान करें। वह ज्ञानवान महापुरुष जिसके जीवन में निहार लेते हैं, जिसके जीवन पर जरा सी मीठी नजर डाल देते हैं, उसके जीवन में मधुरता का संचार हो जाता है।

राजा परीक्षित को जब पता चला कि 7 दिन में ही उनकी मृत्यु हो जाएगी तो सुकदेव महाराज जैसे सदगुरु ने ही उनको मृत्यु रूपी अजगर से बचाया। राजा परीक्षित जब अपने सद्गुरु सुकदेव जी महाराज की शरण में गए तभी उनके जीवन से मृत्यु का भय दूर हो पाया। वैसे तो व्यक्ति अपनी जन्म कुंडली को सुधारने के लिए अनेक उपाय करता रहता है, अनेक प्रकार के मंत्रों का जाप तथा अनेक विधि अपनाता है, परंतु जिस व्यक्ति ने सद्गुरु से दीक्षा ली है सद्गुरु के अनुसार जीवन जीता है, उनकी आज्ञा में चलता है, ऐसा व्यक्ति सहज ही कर्मों तथा ग्रहों की चाल से निकल जाता है।

दुखी व्यक्ति जब मंदिर में जाकर भगवान से अपने दुख, अपनी पीड़ा को बताता है तो भगवान उसे उस दुख और पीड़ा से निकलने का रास्ता नहीं बताते। परंतु गुरु तो साक्षात ऐसे व्यक्ति की दुख, पीड़ा सुनता भी है और उसे दूर करने का निवारण और उपाय भी बताता है और कई बार तो अपनी साधना के द्वारा उस व्यक्ति के पाप को भस्म भी कर देते हैं। आप सभी साधकों को, सत शिष्यों को, गुरु पूर्णिमा की लाख-लाख बधाई। मैंने भी मेरे जीवन में, जो जितनी भी ऊंचाई पाई है, जो कुछ भी सीखा है और जो भी आज के समय में आप लोगों को बांट रहा हूं। वह सिर्फ और सिर्फ मेरे गुरुदेव के आशीर्वाद के कारण ही बांट पा रहा हूं। अगर मैं सही शब्दों में कहूं तो मेरी कोई औकात नहीं कि मैं किसी के कष्ट दूर कर पाता, किसी के दर्द दुख को सुन पाता, किसी के जीवन में खुशियां ला पाता। यह जो भी प्रसाद, जो भी प्रसन्नता, जो मधुरता आप लोगों के जीवन में मेरी वाणी सुनकर, उपाय अथवा मंत्र जाप आदि करके आ रहा है। उसका सारा श्रेय मेरे गुरुदेव को जाता है। अंत में मैं हाथ जोड़कर गुरु महाराज के चरणों में प्रणाम करके, उनके नाम का जयकारा लगाकर प्रार्थना करता हूं कि हे गुरुदेव जो भी आपकी शरण में आया है अथवा आएगा ? आप कृपया उन सबके कष्टों का निवारण करें, उनको जीवन में वह सब मिले जिसके वह हकदार हैं, उनके पाप कर्म कट जाएं और उनके पुण्यों में अभिवृद्धि हो जाए।

सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित् दुख भाग भवेत।।

ओम नमः शिवाय, शिव सदा सहाय।

बाबा महाराज आपका कल्याण करें। आपकी रक्षा करें।

पंडित सुनील वत्स

 

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Amrit Siddhi Muhurat | अमृत सिद्धि योग (सन् 2024-2025)

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शास्त्रों में “अमृत सिद्धि योग” को अमृत के समान फल देने वाला कहा गया है। ध्यान रहे मंगलवार वाले अमृत सिद्धि योग के समय नए घर में प्रवेश करना तथा शनिवार वाले अमृत सिद्धि योग के समय यात्रा नहीं करनी चाहिए। बाकी सभी कामों के लिए निसंकोच आप इन्हें प्रयोग में ला सकते हैं।

अमृत सिद्धि योग सन 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
16 मार्चसूर्योदय से16 मार्चशाम 04:05 तक
09 अप्रैलसुबह 07:33 से10 अप्रैलप्रातः 05:06 तक
21 अप्रैल शाम 05:09 से22 अप्रैलसूर्योदय तक
07 मईसूर्योदय से 07 मई दोपहर  03:32 तक
19 मई सूर्योदय से20 मई प्रातः 03:16 तक
16 जूनसूर्योदय से16 जूनसुबह 11:12 तक
19 जूनशाम 05:24 से20 जूनसूर्योदय तक
17 जुलाईसूर्योदय से18 जुलाईप्रातः 03:12 तक
26 जुलाईदोपहर  02:31 से 27 जुलाईसूर्योदय तक
14 अगस्तसूर्योदय से14 अगस्तदोपहर 12:12 तक
23 अगस्तसूर्योदय से23 अगस्तरात्रि 07:24 तक 
23 सितंबररात्रि 10:08 से24 सितंबरसूर्योदय तक
26 सितंबररात्रि 11:34 से27 सितंबरसूर्योदय तक
21 अक्टूबरसुबह 06:51 से22 अक्टूबररात्रि 02:29 तक
24 अक्टूबरसूर्योदय से25 अक्टूबररात्रि 01:58 तक
16 नवंबररात्रि 07:29 से17 नवंबरसूर्योदय तक
18 नवंबरसूर्योदय से18 नवंबरदोपहर    03:48 तक
21 नवंबरसूर्योदय से21 नवंबरदोपहर    03:35 तक
14 दिसंबरसूर्योदय से15 दिसंबररात्रि 03:54 तक

सन – 2025

07 जनवरीदोपहर 03:51 से08 जनवरीसूर्योदय तक
11 जनवरीसूर्योदय से11 जनवरीदोपहर  12:29 तक
19 जनवरीशाम 05:31 से20 जनवरीसूर्योदय तक
04 फरवरीसूर्योदय से04 फरवरीरात्रि 09:50 तक
16 फरवरीसूर्योदय से17 फरवरीरात्रि 02:16 तक
16 मार्चसूर्योदय से16 मार्चसुबह 11:45 तक
19 मार्चरात्रि 08:51 से20 मार्चसूर्योदय तक

 

 

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नवरात्रि कब से ?

नवरात्रि कब से ?

विश्व में एकमात्र भारत ही ऐसा देश है। जहां लगभग हर दूसरे दिन कोई-न-कोई व्रत, कोई न कोई पर्व, कोई न कोई त्यौहार व उत्सव आदि होता है। क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने एक ऐसी पद्धति बनाई है कि जिससे व्यक्ति खुश रह सके।

व्रत करने से व्यक्ति को खुशी मिलती है। त्यौहार मनाने से व्यक्ति को खुशी मिलती है। कोई न कोई उत्सव होता है। कोई न कोई जागरण होता है। भक्ति की धाराएं बहती हैं। व्यक्ति आनंदित प्रसन्न और खुश रहता है। ‘त्यौहार’ शब्द सुनकर ही लगता है कि कुछ खुशी का मौका है।

जैसा की आप सभी जानते हैं हमारा भारत अनेक धर्मों का संगम है। अनेक प्रकार का रहन-सहन, बोलचाल, धर्म-संप्रदाय, रीती-रिवाज व रुढ़िवादिता के कारण अनेक प्रकार के भ्रम पैदा हो जाते हैं।

इसी भ्रम के कारण हम कई बार दो-दो त्यौहार मनाते हैं। कुछ लोग कल दिवाली मना रहे थे और कुछ आज मना रहे हैं। कुछ लोग कल जन्माष्टमी का व्रत रखे हुए थे। कुछ ने आज रख रखा है। कुछ ने कल एकादशी का व्रत रखा था। कुछ ने आज रखा हुआ है।

आखिर यह मत अंतर क्यों ?

आखिर इन सब में भेद क्यों ?

इसका क्या कारण है ?

आज मैं इसका कारण आपको बताना चाहता हूं। इसका कारण है। अधूरा – अधकचरा ज्ञान।

कुछ तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने शास्त्रों में बताए गए विधि – विधान को हटाकर अपना ज्ञान लोगों के दिमाग में डाल दिया है। जिस कारण से एक ही स्थान में, एक ही गांव में, एक ही घर में रहने के बावजूद भी लोग अलग-अलग तिथियों में तीज त्यौहार मना रहे होते हैं।

ऐसा ही एक भ्रम हमारे सामने आया है सन 2017 में चैत्र नवरात्रों का :-

कुछ लोग इसे 28 मार्च अमावस्या वाले दिन बता रहे हैं और कुछ लोग 29 मार्च को प्रतिपदा वाले दिन बता रहे हैं। किस दिन हमें व्रत रखना है ?

किस दिन हमें कलश स्थापना करनी है ? किस दिन से नवरात्रि शुरु हो रहे हैं ? यह मैं आपको धर्म शास्त्रों के प्रूफ दे कर बता रहा हूं।

वैदिक शास्त्रों के अनुसार तिथि और वार सुबह सूर्योदय से शुरू होती हैं । जबकि हम आज के समय में सब चीजें अंग्रेजी तारीखों के अनुसार देखते हैं। अंग्रेजी तारीखों के अनुसार 24 घंटे रात 12:00 बजे से लेकर अगले दिन के रात 12:00 बजे तक चलता है। परंतु हमारी तिथियां सुबह सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक चलती हैं।

सन 2017 में 28 मार्च के दिन सुबह 8:00 बज कर 27 मिनट तक अमावस्या तिथि रहेगी इसलिए जो व्यक्ति अपने पितरों का तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करते हैं, वह 27 तारीख दोपहर को अथवा 28 तारीख सुबह 8:27 से पहले कर सकते हैं।

इसके तुरंत बाद प्रतिपदा तिथि शुरू हो जाएगी और नवरात्रि आरंभ माने जाएंगे। अगले दिन 29 मार्च को सुबह 5:45 पर प्रतिपदा खत्म हो जाएगी। यानी सूर्योदय होने से पहले ही तिथि चली गई इसलिए 29 तारीख को तो प्रतिपदा होगी ही नहीं। शास्त्रों में लिखा है जिस दिन प्रतिपदा कम से कम एक मुहूर्त तक रहेगी उसी दिन नवरात्रि आरंभ माने जाएंगे। यही कारण है कि नवरात्र 28 तारीख को सुबह 08:27 के बाद प्रारंभ माने जाएंगे और इसी दिन से कलश स्थापना और दुर्गा जी के व्रत आराधना उपासना शुरू करनी है।

इस बारे में हमारे धर्म शास्त्र देवी पुराण का वाक्य है।

‘अमायुक्ता न कर्तव्या प्रतिपच्चण्डिकार्चने। मुहूर्त मात्रा कर्तव्या द्वितीयायां गुणान्विता।।

अर्थ :- यदि प्रतिपदा का क्षय हो जाए तो भी पहले ही दिन अम्मा युक्ता प्रतिपदा में ही नवरात्र आरंभ करने का शास्त्र वाक्य है।

हमारे एक और धर्मशास्त्र निर्णय सिंधु में यही बात कही गई है।

‘परदिने प्रतिपदोत्यन्तासत्तवे तु दर्शयुता पूर्वैव ग्राह्या।

इसीलिए आप सब लोगों की भलाई के लिए आप 28 मार्च 2017 मंगलवार के दिन ही दुर्गा देवी के नवरात्रों का आरंभ कीजिए। माता की आराधना उपासना कीजिए और अपने जीवन में आ रहे व आने वाले संकटों के नाश की प्रार्थना कीजिए।

हां एक और जरूरी बात यहां मैं बताना चाहता हूं। जो भी शक्ति के उपासक हैं। उन्हें यह जरूर जानना चाहिए कि दुर्गा जी और गायत्री जी के जितने भी मंत्र हैं वह सभी श्रापित हैं । इसीलिए व्यक्ति को मंत्र जाप का फल नहीं मिल पाता। आप सभी सज्जन जो भी व्रत उपवास करेंगे। वह सब आराधना करने से पहले कृपया श्राप विमोचन जरुर कर लीजिएगा।

जिससे अतिशीघ्र आप सब की मनोकामना पूर्ण हो। मां जगदंबा आपके ऊपर रहमत करें। अपनी कृपा बरसाए।

ओम नमः शिवाय

“पंडित सुनील वत्स”

 

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Ravi Yog (Shubh Muhurat) | रवि योग (सन् 2024-2025)

Shubh muhurat

Shubh muhurat

रवि योग भी सर्वार्थसिद्धि योग की तरह सभी कार्यों के लिए शुभ (Shubh Muhurat) माने जाते हैं। रवि योग सभी बुरे अशुभ योगों को नष्ट करने की अद्भुत शक्ति रखता है। :- “कुयोग विध्वंस कराः शुभेषु’

रवि योग सन् 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
17 मार्चशाम 04:48 से17 मार्चरात्रि 08:54 तक
18 मार्चशाम 06:11 से20 मार्चरात्रि 10:38 तक
23 मार्चप्रातः 04:28 से24 मार्चप्रातः 07:33 तक
30 मार्चरात्रि 10:04 से31 मार्चप्रातः 07:48 तक
31 मार्चरात्रि 10:57 से01 अप्रैलदोपहर 01:12 तक
11 अप्रैलरात्रि 03:06 से12 अप्रैलरात्रि 01:38 तक
13 अप्रैलरात्रि 00:41 से13 अप्रैलरात्रि 09:03 तक
14 अप्रैलरात्रि 00:50 से15 अप्रैलरात्रि 01:34 तक
17 अप्रैलप्रातः 05:16 से19 अप्रैलसुबह 10:56 तक
21 अप्रैलशाम 05:09 से22 अप्रैलरात्रि 07:59 तक
30 अप्रैलप्रातः 04:43 से01 मईप्रातः 04:09 तक
10 मईसुबह 10:47 से11 मईसुबह 07:01 तक
11 मईसुबह 10:16 से12 मईसुबह 10:26 तक
13 मईसुबह 11:24 से14 मईदोपहर 01:05 तक
16 मईशाम 06:13 से19 मईरात्रि 00:23 तक
21 मईप्रातः 05:47 से22 मईसुबह 07:46 तक
29 मईसुबह 08:39 से30 मईसुबह 07:31 तक
09 जूनरात्रि 08:21 से10 जूनरात्रि 09:39 तक
11 जूनरात्रि 11:39 से13 जूनरात्रि 02:12 तक
15 जूनसुबह 08:14 से17 जूनदोपहर 01:50 तक
19 जूनशाम 05:24 से 20 जूनशाम 06:10 तक
27 जूनसुबह 11:37 से28 जूनसुबह 10:10 तक
09 जुलाईसुबह 07:53 से10 जुलाईसुबह 10:15 तक
11 जुलाईदोपहर 01:05 से12 जुलाईशाम 04:08 तक
14 जुलाईरात्रि 11:07 से17 जुलाईरात्रि 02:13 तक
19 जुलाईरात्रि 03:26 से19 जुलाईरात्रि 11:10 तक
20 जुलाईरात्रि 02:56 से21 जुलाईरात्रि 01:48 तक
26 जुलाईदोपहर 02:31 से27 जुलाईदोपहर 12:59 तक
07 अगस्तरात्रि 08:31 से08 अगस्तशाम 04:34 तक
10 अगस्तरात्रि 02:45 से11 अगस्तप्रातः 05:48 तक
13 अगस्तसुबह 10:45 से15 अगस्तदोपहर 12:52 तक
18 अगस्तसुबह 10:16 से19 अगस्तसुबह 08:10 तक
24 अगस्तशाम 06:06 से 25 अगस्तशाम 04:45 तक
06 सितंबरसुबह 09:26 से07 सितंबरदोपहर 12:35 तक
08 सितंबरदोपहर 03:31 से09 सितंबरशाम 06:04 तक
11 सितंबररात्रि 09:22 से14 सितंबरसुबह 10:32 तक
16 सितंबरशाम 04:34 से17 सितंबरदोपहर 01:53 तक
22 सितंबररात्रि 11:03 से23 सितंबररात्रि 10:07 तक
05 अक्टूबररात्रि 09:34 से07 अक्टूबररात्रि 00:11 तक
08 अक्टूबररात्रि 02:26 से09 अक्टूबरप्रातः 04:08 तक
12 अक्टूबरप्रातः 05:26 से14 अक्टूबररात्रि 02:51 तक
15 अक्टूबररात्रि 10:09 से16 अक्टूबररात्रि 07:17 तक
22 अक्टूबरप्रातः 05:52 से23 अक्टूबरप्रातः 05:38 तक
24 अक्टूबररात्रि 00:42 से24 अक्टूबरसुबह 06:15 तक
04 नवंबरसुबह 08:04 से05 नवंबरसुबह 09:45 तक
07 नवंबरसुबह 11:48 से08 नवंबरदोपहर 12:03 तक
10 नवंबरसुबह 11:00 से12 नवंबरसुबह 07:52 तक
14 नवंबररात्रि 03:12 से15 नवंबररात्रि 00:33 तक
21 नवंबरदोपहर 03:36 से22 नवंबरशाम 05:09 तक
04 दिसंबरशाम 05:15 से05 दिसंबरशाम 05:26 तक
06 दिसंबरशाम 05:19 से07 दिसंबरशाम 04:50 तक
09 दिसंबरदोपहर 02:57 से11 दिसंबरसुबह 11:47 तक
13 दिसंबरसुबह 07:51 से14 दिसंबरप्रातः 05:47 तक
21 दिसंबररात्रि 03:48 से22 दिसंबरसुबह 06:14 तक

सन् – 2025

02 जनवरीरात्रि 11:11 से03 जनवरीरात्रि 10:21 तक
04 जनवरीरात्रि 09:24 से05 जनवरीरात्रि 08:17 तक
07 जनवरीशाम 05:51 से09 जनवरीदोपहर 03:07 तक
12 जनवरीसुबह 11:25 से13 जनवरीसुबह 10:38 तक
19 जनवरीशाम 05:31 से20 जनवरीरात्रि 08:30 तक
01 फरवरीसुबह 04:15 से02 फरवरीरात्रि 02:33 तक
03 फरवरीरात्रि 00:53 से03 फरवरीरात्रि 11:16 तक
05 फरवरीरात्रि 08:34 से06 फरवरीसुबह 07:48 तक
06 फरवरीरात्रि 07:30 से08 फरवरीशाम 06:07 तक
10 फरवरीशाम 06:01 से11 फरवरीशाम 06:34 तक
18 फरवरीसुबह 07:36 से19 फरवरीसुबह 10:40 तक
19 फरवरीदोपहर 12:26 से20 फरवरीदोपहर 01:30 तक
02 मार्चसुबह 09:00 से03 मार्चसुबह 06:39 तक
04 मार्चप्रातः 04:30 से04 मार्चशाम 06:39 तक
05 मार्चरात्रि 02:38 से06 मार्चरात्रि 01:08 तक
07 मार्चरात्रि 11:33 से09 मार्चरात्रि 11:55 तक
12 मार्चरात्रि 02:16 से13 मार्चप्रातः 04:05 तक
20 मार्च रात्रि 11:32 से22 मार्चरात्रि 01:45 तक

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Sarvarth Siddhi Muhurat | सर्वार्थ सिद्धि योग (सन् 2024-2025)

shubh muhurat
Sarvarth siddhi yog muhurat ‘सर्वार्थ सिद्धि योग’ – नाम से ही एहसास हो जाता है कि यह सभी काम सिद्ध करने के योग के बारे में है। आज के समय में एक अच्छा मुहूर्त निकालना बड़ा ही दुसाध्य काम है। यदि सही समय पर सही विद्वान न मिले तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जिसका बाद में खामियाजा भुगतना पड़ता है। लोक व्यवहार की बोलचाल में कहा भी गया है। :- कि अच्छे समय में यदि कोई बुरा काम भी कर लेता है, तो भी व्यक्ति को वाहवाही मिल जाती है क्योंकि समय अच्छा है। पर यदि बुरे समय अर्थार्थ बुरे मुहूर्त में किया गया शुभ काम भी नुकसान दे जाता है। आप सबकी इन्हीं परेशानियों को ध्यान में रखते हुए यह मुहूर्त नाम से कॉलम बनाया गया है। इस कॉलम में आपको इस साल के सभी शुभ मुहूर्त मिल जाएंगे। कई बार गुरु और शुक्र अस्त चल रहा हो तो उस समय में पंडित जन मुहूर्त बंद बताते हैं क्योंकि शास्त्रों में बताया गया है कि जब भी गुरु और शुक्र अस्त हो जाते हैं। तब सभी शुभ काम बंद हो जाते हैं। संसार में ऐसे बहुत सारे काम होते हैं, जिन्हें करना अनिवार्य होता है और उनके लिए रुकना संभव नहीं हो पाता। इसीलिए शास्त्रों में इसका भी समाधान सर्वार्थ सिद्धि योग आदि मुहूर्तों के द्वारा किया जाता है। यदि किसी काम को जल्दी करने की स्थिति में कोई आवश्यक मुहूर्त नहीं मिल पा रहा हो तो व्यक्ति आंख बंद करके सर्वार्थ सिद्धि आदि योगों में अपना काम आरंभ कर सकता है। इन मुहूर्तों में गुरु – शुक्र अस्त, पंचक, भद्रा आदि किसी भी चीज का विचार करने की आवश्यकता नहीं है। यह अपने आप में ही सिद्ध मुहूर्त होते हैं। जो सभी कुयोगों को समाप्त करने की शक्ति रखते हैं। जैसे कि इनके नाम से ही स्पष्ट है। इन योगों के समय में कोई भी शुभ काम किया जाए तो वह सफल होता है। जैसे :- कहीं यात्रा पर जाना हो, गृह प्रवेश करना हो, कोई नया काम शुरू करना हो तो व्यक्ति इन मुहूर्तों में कर सकता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग सन् 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
31 मार्च रात्रि 10:57 से 01 अप्रैल सूर्योदय तक
07 अप्रैल दोपहर 12:59 से 08 अप्रैल सूर्योदय तक
07 अप्रैल दोपहर 12:58 से 08 अप्रैल सूर्योदय तक
( 09 अप्रैल सुबह 07:33 से 10 अप्रैल सुबह 05:06 तक) मंगलवार
11 अप्रैल रात्रि 03:06 से 11 अप्रैल सूर्योदय तक
16 अप्रैल रात्रि 03:06 से 16 अप्रैल सूर्योदय तक
17 अप्रैल प्रातः 05:16 से 17 अप्रैल सूर्योदय तक
19 अप्रैल सुबह 10:57 से 20 अप्रैल सूर्योदय तक
21 अप्रैल सूर्योदय से 22 अप्रैल सूर्योदय तक ) रविवार
25 अप्रैल रात्रि 02:24 से 27 अप्रैल रात्रि 03:40 तक
28 अप्रैल सूर्योदय से 29 अप्रैल प्रातः 04:49 तक
05 मई सूर्योदय से 05 मई रात्रि 07:57 तक
( 07 मई सूर्योदय से 07 मई दोपहर 03:32 तक) मंगलवार
08 मई दोपहर 01:34 से 09 मई सूर्योदय तक
13 मई सुबह 11:24 से 14 मई सूर्योदय तक
14 मई दोपहर 01:06 से 15 मई सूर्योदय तक
17 मई सूर्योदय से 17 मई रात्रि 09:18 तक
19 मई सूर्योदय से 20 मई रात्रि 03:16 तक) रविवार
23 मई सुबह 09:15 से 24 मई सूर्योदय तक
26 मई सूर्योदय से 26 मई सुबह 10:35 तक
03 जून रात्रि 01:41 से 03 जून सूर्योदय तक
04 जून रात्रि 10:35 से 06 जून सूर्योदय तक
09 जून रात्रि 08:21 से 10 जून रात्रि 09:39 तक
11 जून सूर्योदय से 11 जून रात्रि 11:38 तक
( 16 जून सूर्योदय से 16 जून सुबह 11:12 तक) रविवार
19 जून शाम 05:24 से 20 जून शाम 06:10 तक
23 जून शाम 05:04 से 24 जून सूर्योदय तक
24 जून दोपहर 03:55 से 25 जून सूर्योदय तक
30 जून सुबह 07:35 से 01 जुलाई सूर्योदय तक
02 जुलाई सूर्योदय से 03 जुलाई प्रातः 04:40 तक
03 जुलाई सूर्योदय से 04 जुलाई प्रातः 04:07 तक
06 जुलाई प्रातः 04:07 से 06 जुलाई सूर्योदय तक
07 जुलाई सूर्योदय से 08 जुलाई सुबह 06:02 तक
09 जुलाई सूर्योदय से 09 जुलाई सुबह 07:52 तक
( 17 जुलाई सूर्योदय से 18 जुलाई रात्रि 03:12 तक) बुधवार
21 जुलाई सूर्योदय से 22 जुलाई रात्रि 00:14 तक
22 जुलाई सूर्योदय से 22 जुलाई रात्रि 10:21 तक
( 26 जुलाई दोपहर 02:31 से 27 जुलाई सूर्योदय तक ) शुक्रवार
28 जुलाई सूर्योदय से 28 जुलाई सुबह 11:45 तक
30 जुलाई सूर्योदय से 30 जुलाई सुबह 10:23 तक
31 जुलाई सूर्योदय से 01 अगस्त सूर्योदय तक
02 अगस्त सुबह 10:59 से 03 अगस्त सूर्योदय तक
04 अगस्त सूर्योदय से 04 अगस्त दोपहर 01:26 तक
11 अगस्त प्रातः 05:49 से 11 अगस्त सूर्योदय तक
( 14 अगस्त सूर्योदय से 14 अगस्त दोपहर 12:12 तक) बुधवार
18 अगस्त सूर्योदय से 18 अगस्त सुबह 10:15 तक
19 अगस्त सूर्योदय से 19 अगस्त सुबह 08:10 तक
22 अगस्त रात्रि 10:06 से 23 अगस्त रात्रि 07:54 तक) शुक्रवार
26 अगस्त दोपहर 03:56 से 27 अगस्त सूर्योदय तक
28 अगस्त सूर्योदय से 28 अगस्त दोपहर 03:53 तक
29 अगस्त शाम 04:40 से 30 अगस्त शाम 05:55 तक
07 सितंबर दोपहर 12:35 से 08 सितंबर सूर्योदय तक
09 सितंबर शाम 06:05 से 10 सितंबर सूर्योदय तक
14 सितंबर रात्रि 08:33 से 15 सितंबर सूर्योदय तक
19 सितंबर सुबह 08:05 से 21 सितंबर रात्रि 02:42 तक
23 सितंबर सूर्योदय से 24 सितंबर सूर्योदय तक) सोमवार
26 सितंबर सूर्योदय से 27 सितंबर सूर्योदय तक) गुरुवार
02 अक्टूबर दोपहर 12:23 से 03 अक्टूबर सूर्योदय तक
05 अक्टूबर सूर्योदय से 05 अक्टूबर रात्रि 09:33 तक
07 अक्टूबर सूर्योदय से 08 अक्टूबर रात्रि 02:25 तक
12 अक्टूबर प्रातः 05:26 से 13 अक्टूबर प्रातः 04:27 तक
15 अक्टूबर रात्रि 10:09 से 16 अक्टूबर सूर्योदय तक
17 अक्टूबर सूर्योदय से 18 अक्टूबर दोपहर 01:26 तक
21 अक्टूबर सूर्योदय से 22 अक्टूबर प्रातः 05:51 तक
24 अक्टूबर सूर्योदय से 25 अक्टूबर सूर्योदय तक
30 अक्टूबर सूर्योदय से 30 अक्टूबर रात्रि 09:43 तक
04 नवंबर सूर्योदय से 04 नवंबर सुबह 08:04 तक
08 नवंबर दोपहर 12:04 से 09 नवंबर सुबह 11:47 तक
12 नवंबर सुबह 07:56 से 13 नवंबर प्रातः 05:40 तक
14 नवंबर सूर्योदय से 15 नवंबर रात्रि 00:33 तक
( 16 नवंबर रात्रि 07:29 से 17 नवंबर सूर्योदय तक ) शनिवार
( 18 नवंबर सूर्योदय से 18 नवंबर दोपहर 03:48 तक ) सोमवार
( 21 नवंबर सूर्योदय से 21 नवंबर दोपहर 03:35 तक ) गुरुवार
24 नवंबर रात्रि 10:17 से 25 नवंबर सूर्योदय तक
06 दिसंबर सूर्योदय से 06 दिसंबर शाम 05:18 तक
10 दिसंबर सूर्योदय से 10 दिसंबर दोपहर 01:30 तक
12 दिसंबर सूर्योदय से 12 दिसंबर सुबह 09:52 तक
( 14 दिसंबर सूर्योदय से 15 दिसंबर रात्रि 03:54 तक ) शनिवार
21 दिसंबर रात्रि 03:58 से 21 दिसंबर सूर्योदय तक
22 दिसंबर सूर्योदय से 23 दिसंबर सूर्योदय तक
29 दिसंबर रात्रि 11:23 से 30 दिसंबर सूर्योदय तक

सन – 2025

05 जनवरी रात्रि 08:18 से 06 जनवरी सूर्योदय तक
( 07 जनवरी शाम 05:51 से 08 जनवरी सूर्योदय तक ) मंगलवार
( 11 जनवरी सूर्योदय से 11 जनवरी दोपहर 12:29 तक ) शनिवार
17 जनवरी दोपहर 12:45 से 18 जनवरी सूर्योदय तक
19 जनवरी सूर्योदय से 20 जनवरी सूर्योदय तक 
24 जनवरी प्रातः 05:09 से 24 जनवरी सूर्योदय तक
26 जनवरी सुबह 08:27 से 27 जनवरी सूर्योदय तक
02 फरवरी सूर्योदय से 03 फरवरी रात्रि 00:52 तक
04 फरवरी सूर्योदय से 04 फरवरी रात्रि 09:49 तक
05 फरवरी रात्रि 08:34 से 06 फरवरी सूर्योदय तक
10 फरवरी शाम 06:01 से 11 फरवरी सूर्योदय तक
11 फरवरी शाम 06:35 से 12 फरवरी सूर्योदय तक
14 फरवरी सूर्योदय से 14 फरवरी रात्रि 11:09 तक
(16 फरवरी सूर्योदय से 17 फरवरी प्रातः 04:31 तक) रविवार
20 फरवरी दोपहर 01:31 से 21 फरवरी सूर्योदय तक
23 फरवरी सूर्योदय से 23 फरवरी शाम 06:42 तक
02 मार्च सूर्योदय से 02 मार्च सुबह 08:59 तक
03 मार्च प्रातः 06:40 से 03 मार्च सूर्योदय तक
05 मार्च रात्रि 02:38 से 06 मार्च सूर्योदय तक
09 मार्च रात्रि 11:56 से 11 मार्च रात्रि 00:51 तक
11 मार्च सूर्योदय से 12 मार्च रात्रि 02:15 तक
( 16 मार्च सूर्योदय से 16 मार्च सुबह 11:45 तक ) रविवार
( 19 मार्च रात्रि 08:51 से 20 मार्च सूर्योदय तक ) बुधवार
20 मार्च सूर्योदय से 20 अप्रैल रात्रि 11:31 तक
24 मार्च प्रातः 04:19 से 24 मार्च सूर्योदय तक
25 मार्च प्रातः 04:27 से 25 मार्च सूर्योदय तक
Sarvaarth Siddhi Yog / सर्वार्थ सिद्धि योग के बारे में यह artical यदि आपको पसंद आया हो, तो इसे like और दूसरों को share करें, ताकि यह जानकारी और लोगों तक भी पहुंच सके। आप Comment box में Comment जरुर करें। इस subject से जुड़े प्रश्न आप नीचे Comment section में पूछ सकते हैं।

दुश्मन विनाश के लिए मंत्र | Destroy Enemy Mantra | Durga mantra

destroy enemy

destroy enemy

एक समय की बात है ब्रह्मा आदि देवताओं ने पुष्पों तथा अनेक उपचारों से महेश्वरी भगवती दुर्गा जी का पूजन किया। इससे प्रसन्न होकर दुष्टों का नाश करने वाली दुर्गा जी ने कहा –

‘हे ! देवताओं,  मैं तुम्हारे पूजन से संतुष्ट हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो, मांग लो,  मैं तुम्हें दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करूंगी।

दुर्गा जी का यह वचन सुनकर देवता बोले हे ! देवी, हमारे जितने भी शत्रु थे, उन सबको आप ने मार डाला। यह जो एक से एक महान बलशाली जैसे महिसासुर, चंड – मुंड, धूम्र विलोचन, रक्तबीज, शुंभ – निशुंभ आदि सब राक्षसों को आपने मार डाला, इससे संपूर्ण जगत निर्भय हो गया है। सबके भीतर का डर खत्म हो गया है।

आपकी ही कृपा से हमें दोबारा अपने – अपने पद की प्राप्ति हुई है। आप भक्तों के लिए कल्प वृक्ष के समान हैं। हे ! माता’ हम आप की शरण में आए हैं, अतः अब हमारे मन में कुछ भी पाने की इच्छा बाकी नहीं है।

आपने हमें बिना मांगे ही सब कुछ दे दिया है। हमारे मन में इस समूचे जगत की रक्षा के लिए एक प्रश्न हैं। वह प्रश्न हम आप से पूछना चाहते हैं।

हे ! भद्रकाली’ कौन सा ऐसा उपाय है ? जिससे जल्दी प्रसन्न होकर आप संकट में पड़े हुए प्राणी की तुरंत रक्षा करती हैं। हे ! देवेश्वरी’ यह बात यदि सर्वथा गोपनीय हो तो भी आप हम पर कृपा करके हमें अवश्य बताएं।

देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर दयामयी दुर्गा देवी ने कहा-

‘हे ! देवगण’ सुनो जो रहस्य मैं आप लोगों को बता रही हूं, यह रहस्य संपूर्ण जगत में अत्यंत दुर्लभ और गोपनीय है। जो व्यक्ति संकट में पड़ा होने पर, मेरे बत्तीस नामों की माला का जाप करता है, उसके ऊपर आई हुई आपत्ति और विपत्ति का तुरंत नाश हो जाता है।

हे ! देवताओं, तीनों लोकों में इन बत्तीस नामों की स्तुति के समान कोई दूसरी स्तुति नहीं है। यह स्तुति बहुत ही रहस्यमयी है, फिर भी तुम पर कृपा करते हुए मैं इसे बतलाती हूं, ध्यान से सुनो –

1   दुर्गा                                             2  दुर्गार्तिशमनी                                            3  दुर्गापद्विनिवारिणी

4   दुर्गमच्छेदिनी                              5   दुर्गसाधिनी                                               6  दुर्गनाशिनी

7   दुर्गतो धारिणी                             8  दुर्गनिहन्त्री                                                9   दुर्गमापहा

10  दुर्गमज्ञानदा                               11  दुर्ग दत्य लोक दवानला                             12  दुर्गमा

13  दुर्गमालोका                               14  दुर्गम आत्म स्वरूपिणी                            15  दुर्गमार्गप्रदा

16  दुर्गमविद्या                                  17   दुर्गमाश्रिता                                            18  दुर्गम ज्ञान संस्थाना

19  दुर्गम ध्यान भासिनी                    20   दुर्गमोहा                                                21  दुर्गमगा

22  दुर्गमार्थस्वरूपिणी                     23   दुर्गमासुरसंहन्त्री                                   24  दुर्गमायुधधारिणी

25  दुर्गमांगी                                     26    दुर्गमता                                              27   दुर्गम्या

28   दुर्गमेश्वरी                                  29    दुर्गभीमा                                               30   दुर्गभामा

31   दुर्गभा                                        32    दुर्गदारिणी

हे ! देवताओं, जो मनुष्य मेरे इन बत्तीस नामों की नाम माला का पाठ करता है, वह निसंदेह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है।

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भय विनाश के लिए मंत्र | Durga Saptshati Mantra

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ज्वाला-कराल-मृत्युग्रम-शेषासुर-सूदनम् ।

त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकाली नमोस्तुते ।। (दुर्गा सप्तशती)

यदि किसी व्यक्ति के जीवन में किसी दुश्मन के कारण से डर हो। अचानक कोई विपत्ति आ पड़ी हो, तो इस मंत्र का की एक माला या श्रद्धा अनुसार नित्य जाप करना चाहिए।

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विपत्ति विनाश के लिए मंत्र | Mantra to Destroy Disaster

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शरणागत दीनार्त, परित्राण परायणे ।

सर्वस्यार्तिहरे देवी, नारायणि नमोस्तुते ।। (दुर्गा सप्तशती)

जब चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। दानवों और राक्षसों ने तपस्या के बल पर स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। अच्छे और सज्जन लोगों पर को दुख दिया जाता था और प्रताड़ित किया जाता था।

जब किसी को कुछ नहीं सोच रहा था। यहां तक की सभी देवी देवता भी राक्षसों के भय से आतंकित थे, तो सबने मिलकर शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा का आवाहन किया और उनसे अपने प्राण बचाने का निवेदन किया।

तब मां दुर्गा ने ही इस समस्त ब्रह्मांड को संपूर्ण भयों से मुक्त किया था। आज भी जो भक्तगण श्रद्धा और विश्वास के साथ मां शक्ति की पूजा – उपासना करते हैं। उन सब का अनुभव है कि माता अपने भक्तों की संपूर्ण विपत्तियों का अंत कर देती हैं।

इसलिए जीवन में आ रहे संकटों के नाश व मां भगवती की कृपा प्राप्ति के लिए इस मंत्र का श्रद्धा अनुसार जाप करना चाहिए।

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