Maa Durga 32 Naam Mantra | Shtru Vinashak Mantra | दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला

Maa Durga 32 naam

Maa Durga 32 naam

Maa Durga Mantra for Navratri. Know What is Shatru Vinashak Mantra. Learn Happy Navratri special maa durga mantra !

Maa Durga Battis Naamavali | श्री दुर्गा बत्तीस नामवली

देवताओ को परास्त करने के बाद असुरो का अत्याचार सम्पूर्ण संसार में होने लगा । तब देवताओ की स्तुति अराधना के  पश्चात मां भगवती ने अपनी शक्तियो के साथ मिलकर सभी असुरो का नाश किया । दानव महिषासुर व दुर्गम जैसे महादानवो का वध करने वाली माता से जब देवो ने ऐसे किसी अमोघ उपाय की याचना की, जो सरल हो और कठिन से कठिन विपत्ति से छुड़ाने वाला हो। जिसका स्मरण करने मात्र से सब कष्टो से निवृति हो जाये ।

देवताओं ने कहा, ” हे देवी! यदि वह उपाय गोपनीय हो तब भी कृपा कर हमें कहें।”

तब मां भगवती ने अपने ही बत्तीस नामों की माला के एक अद्भुत गोपनीय रहस्यमय चमत्कारी जप का उपदेश दिया

मां दुर्गा जी ने कहा, ”जो मनुष्य मुझ दुर्गा की इस नाम माला का पाठ करता है, वह निःसन्देह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जाएगा।”

‘कोई शत्रुओं से पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बंधन में पड़ा हो, इन बत्तीस नामों के पाठ मात्र से संकट से छुटकारा पा जाता है। इसमें तनिक भी संदेह के लिए स्थान नहीं है। यदि राजा क्रोध में भरकर वध के लिये अथवा और किसी कठोर दण्ड के लिये आज्ञा दे दे या युद्ध में शत्रुओं द्वारा मनुष्य घिर जाय अथवा वन में व्याघ्र आदि हिंसक जंतुओं के चंगुल में फँस जाय, तो इन बत्तीस नामों का एक सौ आठ बार पाठ मात्र करने से वह संपूर्ण भयों से मुक्त हो जाता है। विपत्ति के समय इसके समान भय नाशक उपाय दूसरा नहीं है। देवगण !   इस नाम माला का पाठ करने वाले मनुष्यों की कभी कोई हानि नहीं होती। अभक्त, नास्तिक और शठ मनुष्य को इसका उपदेश नहीं देना चाहिए। जो भारी विपत्ति में पड़ने पर भी इस नामावली का हजार, दस हजार अथवा लाख बार पाठ स्वयं करता या ब्राह्मणों से कराता है, वह सब प्रकार की आपत्तियों से मुक्त हो जाता है। सिद्ध अग्नि में मधु मिश्रित सफेद तिलों से इन नामों द्वारा लाख बार हवन करे तो मनुष्य सब विपत्तियों से छूट जाता है। इस नाम माला का पुरश्चरण तीस हजार का है। पुरश्चरण पूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा संपूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता है। मेरी सुंदर मिट्टी की अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आठों भुजाओं में क्रमशः गदा, खड्ग, त्रिशूल, बाण, धनुष, कमल, खेट (ढाल) और मुद्गर धारण करावे। मुर्ति के मस्तक में चंद्रमा का चिह्न हो, उसके तीन नेत्र हों, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हो, वह सिंह के कंधे पर सवार हो और शूल से महिषासुर का वध कर रही हो, इस प्रकार की प्रतिमा बनाकर नाना प्रकार की सामग्रियों से भक्ति पूर्वक मेरा पूजन करे। मेरे उत्तम नामों से लाल कनेर के फूल चढ़ाते हुए सौ बार पूजा करे और मंत्र-जाप करते हुए पूए से हवन करें। भाँति-भाँति के उत्तम पदार्थ भोग लगावे। इस प्रकार करने से मनुष्य और असाध्य कार्य को भी सिद्ध कर लेता है। जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता है, वह भी विपत्ति में नहीं पड़ता।’

देवताओं से ऐसा कहकर जगदंबा वहीं अंतर्धान हो गयीं। दुर्गा जी के इस उपाख्यान को जो सुनते हैं, उन पर कोई विपत्ति नहीं आती।

 

।। अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला ।।

दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।

दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी॥

दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा।

दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला॥

दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।

दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता॥

दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी।

दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी॥

दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी॥

दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी।

नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः॥

पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः॥

 

मां दुर्गा के 32 नाम| Maa Durga 32 Naam in Hindi

1 दुर्गा, 2 दुर्गार्तिशमनी, 3  दुर्गापद्विनिवारिणी, 4 दुर्ग मच्छेदिनी, 5 दुर्गसाधिनी, 6 दुर्गनाशिनी,  7 दुर्गतोद्धारिणी, 8 दुर्गनिहन्त्री, 9 दुर्गमापहा, 10 दुर्गमज्ञानदा, 11 दुर्गदैत्यलोकदवानला,  12 दुर्गमा, 13 दुर्गमालोका, 14 दुर्गमात्मस्वरूपिणी, 15 दुर्गमार्गप्रदा,  16 दुर्गमविद्या, 17 दुर्गमाश्रिता, 18 दुर्गमज्ञानसंस्थाना, 19 दुर्गमध्यानभासिनी, 20 दुर्गमोहा, 21 दुर्गमगा, 22 दुर्गमार्थस्वरूपिणी, 23 दुर्गमासुरसंहन्त्री, 24 दुर्गमायुधधारिणी, 25 दुर्गमाङ्गी, 26 दुर्गमता, 27 दुर्गम्या, 28 दुर्गमेश्वरी, 29 दुर्गभीमा, 30 दुर्गभामा, 31 दुर्गभा, 32 दुर्गदारिणी

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Muhurat for Gemstones | रत्न धारण मुहूर्त (सन् 2024-2025)

Gemstone Shubh muhurat

Gemstone Shubh muhurat

ओम नमः शिवाय

सज्जनों

जिस प्रकार पत्थर अपने आप में पत्थर ही होता है, परंतु वह शुभ मुहूर्त में अभिमंत्रित होकर देवत्व को प्राप्त होता है। ठीक उसी प्रकार मणि माणिक्य तथा रतन आदि भी पत्थर रूप ही होते हैं परंतु उनमें हमारे वैदिक मंत्रों के द्वारा विशेष प्राण प्रतिष्ठा करके विशेष शक्ति जागृत की जाती है। जिस समय में यह हमें लाभ पहुंचा सकती है उसे मुहूर्त कहा जाता है। नीचे नवग्रहों के 9 मुख्य रतन और उनके उप रतन को धारण करने की विधि तथा मुहूर्त बताया गया है। आप भी इस समय में बताए गए रत्नों को धारण करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

रतन धारण मुहूर्तों की विशेषता

वैसे तो साधारण अवस्था में किसी भी रत्न को उसके स्वामी के वार वाले दिन धारण कर लिया जाता है। जैसे सूर्य ग्रह का वार रविवार है इसीलिए सूर्य ग्रह का रत्न कोई भी व्यक्ति रविवार को धारण कर लेता है। परंतु शास्त्रों में लिखा है कि यदि उस वार का नक्षत्र भी उस दिन आ जावे तो रत्न को सिद्ध करने की शक्ति कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है। इसलिए हमारे द्वारा नीचे जो मुहूर्त दिए गए हैं। यह जिस रत्न को आप धारण करना चाहते हैं। उसके स्वामी के वार वाले दिन उस ग्रह के नक्षत्र का भी समावेश है अर्थात रत्न धारण करने के लिए डबल मुहूर्त निकाला गया है। इसके लिए वहां पर मुहूर्त का विशेष समय भी दिया गया है क्योंकि उस वार में ग्रह का नक्षत्र जितने समय तक रहेगा। उतने समय तक डबल मुहूर्त प्राप्त हो सकता है। अतः आप सभी सज्जन इन मुहूर्तों का लाभ उठा सकते हैं। यदि आप नीचे बताए गए मुहूर्त में रत्न को सिद्ध करते हैं तो रत्न का मालिक ग्रह अपने रत्न में अधिक ऊर्जा का संचार करेगा।

 

 

नोट – यदि आपको किसी ग्रह का तुलादान अथवा साधारण दान करना है तो भी आप उस ग्रह से संबंधित मुहूर्त वाले दिन तुला दान अथवा साधारण दान भी कर सकते हैं क्योंकि उस दिन उस ग्रह का नक्षत्र और वार तीनों ही उपस्थित होंगे। इसलिए दान करने के लिए भी यह मुहूर्त श्रेष्ठ फलदायक सिद्ध होंगे।

 

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Gandmool | गंडमूल (सन् 2024-2025)

gandmool today

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गंडमूल [Gandmool]  (सन् 2024-2025)


गंडमूल सन् 2024

नक्षत्र प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
रेवती 08 अप्रैल सुबह 10:12 से 09 अप्रैल सुबह 07:32 तक
अश्विनी 09 अप्रैल सुबह 07:32 से 10 अप्रैल प्रातः 05:06 तक
आश्लेषा 17 अप्रैल प्रातः 05:15 से 18 अप्रैल सुबह 07:56 तक
मघा 18 अप्रैल सुबह 07:56 से 19 अप्रैल सुबह 10:56 तक
जयेष्ठा 27 अप्रैल रात्रि 03:39 से 28 अप्रैल प्रातः 04:28 तक
मूल 28 अप्रैल प्रातः 04:28 से 29 अप्रैल प्रातः 04:49 तक
रेवती 05 मई रात्रि 07:57 से 06 मई  शाम 05:43 तक
अश्विनी 06 मई शाम 05:43 से 07 मई  दोपहर 03:32 तक
आश्लेषा 14 मई  दोपहर 01:05 से 15 मई  दोपहर 03:25 तक
मघा 15 मई दोपहर 03:25 से 16 मई शाम 06:14 तक
जयेष्ठा 24 मई सुबह 10:10 से 25 मई सुबह 10:36 तक
मूल 25 मई सुबह 10:36 से 26 मई सुबह 10:35 तक
रेवती 2 जून रात्रि 03:16 से 03 जून रात्रि 01:40 तक
अश्विनी 03 जून रात्रि 01:40 से 04 जून रात्रि 00:05 तक
आश्लेषा 10 जून रात्रि 09:39 से 11 जून रात्रि 11:38 तक
मघा 11 जून रात्रि 11:38 से 13 जून रात्रि 02:12 तक
जयेष्ठा 20 जून शाम 06:10 से 21 जून शाम 06:18 तक
मूल 21 जून शाम 06:18 से 22 जून शाम 05:54 तक
रेवती 29 जून सुबह 08:49 से 30 जून सुबह 07:34 तक
अश्विनी 30 जून सुबह 07:34 से 01 जुलाई सुबह 06:26 तक
आश्लेषा 08 जुलाई सुबह 06:02 से 09 जुलाई सुबह 07:52 तक
मघा 09 जुलाई सुबह 07:52 से 10 जुलाई सुबह 10:15 तक
जयेष्ठा 18 जुलाई रात्रि 03:12 से 19 जुलाई रात्रि 03:25 तक
मूल 19 जुलाई रात्रि 03:25 से 20 जुलाई रात्रि 02:55 तक
रेवती 26 जुलाई दोपहर 02:30 से 27 जुलाई दोपहर 12:59 तक
अश्विनी 27 जुलाई दोपहर 12:59 से 28 जुलाई सुबह 11:47 तक
आश्लेषा 04 अगस्त दोपहर 01:26 से 05 अगस्त दोपहर 03:21 तक
मघा 05 अगस्त दोपहर 03:21 से 06 अगस्त शाम 05:44 तक
जयेष्ठा 14 अगस्त दोपहर 12:12 से 15 अगस्त दोपहर 12:52 तक
मूल 15 अगस्त दोपहर 12:52 से 16 अगस्त दोपहर 12:43 तक
रेवती 22 अगस्त रात्रि 10:05 से 23 अगस्त रात्रि  07:54 तक
अश्विनी 24 अगस्त रात्रि  07:54 से 24 अगस्त शाम 06:05 तक
आश्लेषा 31 अगस्त रात्रि 07:39 से 01 सितंबर रात्रि 09:48 तक
मघा 01 सितंबर रात्रि 09:48 से 03 सितंबर रात्रि 00:20 तक
जयेष्ठा 10 सितंबर रात्रि 08:04 से 11 सितंबर रात्रि 09:21 तक
मूल 11 सितंबर रात्रि 09:21 से 12 सितंबर रात्रि 09:52 तक
रेवती 19 सितंबर सुबह 08:04 से 20 सितंबर प्रातः 05:15 तक
अश्विनी 20 सितंबर प्रातः 05:15 से 21 सितंबर रात्रि 02:42 तक
आश्लेषा 28 सितंबर रात्रि 01:20 से 28 सितंबर रात्रि 03:37 तक
मघा 28 सितंबर रात्रि 03:37 से 30 सितंबर सुबह 06:18 तक
जयेष्ठा 08 अक्टूबर रात्रि 02:25 से 08 अक्टूबर प्रातः 04:08 तक
मूल 08 अक्टूबर  प्रातः 04:08 से 10 अक्टूबर प्रातः 05:15 तक
रेवती 16 अक्टूबर रात्रि 07:17 से 17 अक्टूबर शाम 04:20 तक
अश्विनी 17 अक्टूबर  शाम 04:20 से 18 अक्टूबर  दोपहर 01:26 तक
आश्लेषा 25 अक्टूबर सुबह 07:39 से 26 अक्टूबर सुबह 09:45 तक
मघा 26 अक्टूबर सुबह 09:45 से 27 अक्टूबर दोपहर 12:24 तक
जयेष्ठा 04 नवंबर सुबह 08:03 से 05 नवंबर सुबह 09:45 तक
मूल 05 नवंबर सुबह 09:45 से 06 नवंबर सुबह 11:00 तक
रेवती 13 नवंबर प्रातः 05:40 से 14 नवंबर रात्रि 03:11 तक
अश्विनी 15 नवंबर रात्रि 03:11 से 15 नवंबर रात्रि 00:33 तक
आश्लेषा 21 नवंबर दोपहर 03:35 से 22 नवंबर शाम 05:09 तक
मघा 22 नवंबर शाम 05:09 से 23 नवंबर रात्रि 07:27 तक
जयेष्ठा 01 दिसंबर दोपहर 02:23 से 02 दिसंबर दोपहर 03:45 तक
मूल 02 दिसंबर दोपहर 03:45 से 03 दिसंबर शाम 04:41 तक
रेवती 10 दिसंबर दोपहर 01:30 से 11 दिसंबर सुबह 11:47 तक
अश्विनी 11 दिसंबर सुबह 11:47 तक 12 दिसंबर सुबह 09:52 तक
आश्लेषा 19 दिसंबर रात्रि 00:58 से 20 दिसंबर रात्रि 01:59 तक
मघा 20 दिसंबर रात्रि 01:59 से 21 दिसंबर रात्रि 03:47 तक
जयेष्ठा 28 दिसंबर रात्रि 10:13 से 29 दिसंबर रात्रि 11:22 तक
मूल 29 दिसंबर रात्रि 11:22 से 30 दिसंबर रात्रि 11:57 तक

गंडमूल सन् 2025

नक्षत्र प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
रेवती 06 जनवरी रात्रि 07:06 से 07 जनवरी शाम 05:50 तक
अश्विनी 07 जनवरी शाम 05:50 से 08 जनवरी शाम 04:29 तक
आश्लेषा 15 जनवरी सुबह 10:28 से 16 जनवरी सुबह 11:16 तक
मघा 16 जनवरी सुबह 11:16 से 17 जनवरी दोपहर 12:44 तक
जयेष्ठा 25 जनवरी सुबह 07:07 से 26 जनवरी सुबह 08:26 तक
मूल 26 जनवरी सुबह 08:26 से 27 जनवरी सुबह 09:02 तक
रेवती 03 फरवरी रात्रि 00:52 से 03 फरवरी रात्रि 11:16 तक
अश्विनी 03 फरवरी रात्रि 11:16 से 04 फरवरी रात्रि 09:49 तक
आश्लेषा 11 फरवरी शाम 06:34 से 12 फरवरी रात्रि 07:35 तक
मघा 12 फरवरी रात्रि 07:35 से 13 फरवरी रात्रि 09:07 तक
जयेष्ठा 21 फरवरी दोपहर 03:54 से 22 फरवरी शाम 05:40 तक
मूल 22 फरवरी शाम 05:40 से 23 फरवरी शाम 06:42 तक
रेवती 02 मार्च सुबह 08:59 से 03 मार्च सुबह 06:39 तक
अश्विनी 03 मार्च सुबह 06:39 से 04 मार्च प्रातः 04:29 तक
आश्लेषा 11 मार्च रात्रि 00:51 से 12 मार्च रात्रि 02:15 तक
मघा 12 मार्च रात्रि 02:15 से 13 मार्च प्रातः 04:05 तक
जयेष्ठा  20 मार्च रात्रि 11:31 से 22 मार्च रात्रि 01:45 तक
मूल  22 मार्च रात्रि 01:45 से 23 मार्च रात्रि 03:23 तक
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Panchak | पंचक (सन् 2024-2025)

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पंचकों का प्रारंभ एवं समाप्ति काल सन् 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
05 अप्रैल सुबह 07:12 से 09 अप्रैल सुबह 07ः32 तक
02 मई दोपहर 02:32 से 06 मई शाम 05:43 तक
29 मई रात्रि 08:06 से 03 जून रात्रि 01:40 तक
26 जून रात्रि 01:49 से 30 जून सुबह 07:34 तक
23 जुलाई सुबह 09:20 से 27 जुलाई दोपहर 12:59 तक
19 अगस्त शाम 06:59 से 23 अगस्त रात्रि 07:54 तक
16 सितंबर प्रातः 05:44 से 20 सितंबर प्रातः 05:15 तक
13 अक्टूबर दोपहर 03:44 से 17 अक्टूबर शाम 04:20 तक
09 नवंबर रात्रि 11:27 से 14 नवंबर रात्रि 03:11 तक
07 दिसंबर प्रातः 05:06 से 11 दिसंबर सुबह 11:47 तक

सन् – 2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
03 जनवरी सुबह 10:47 से 07 जनवरी शाम 05:50 तक
30 जनवरी शाम 06:45 से 03 फरवरी रात्रि 11:16 तक
27 फरवरी प्रातः 04:37 से 03 मार्च सुबह 06:39 तक
26 मार्च दोपहर 03:14 से 30 मार्च शाम 04:35 तक

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Siddhi Yog Shubh Muhurat | सिद्धि योग (सन् 2024-2025)

special shubh muhurat

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मुहूर्त ग्रंथों में सिद्धि योग भी सर्वार्थसिद्धि और रवि योग की तरह ही प्रत्येक कार्य के लिए महत्वपूर्ण माने गए हैं। सिद्धि योग में काम आरंभ करने से यम घंटक व विष आदि का दोषों प्रभाव समाप्त हो जाता है। ऐसा शास्त्रों का वचन है।

सिद्धि योग सन् 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
31 मार्चरात्रि 10:57 से22 मार्चसूर्योदय तक
11 अप्रैलरात्रि 03:06 से11 अप्रैलसूर्योदय तक
19 अप्रैलसुबह 10:57 से20 अप्रैलसूर्योदय तक
28 अप्रैलसूर्योदय से29 अप्रैलप्रातः 04:49 तक
08 मईदोपहर 01:34 से09 मईसूर्योदय तक
17 मईसूर्योदय से17 मई रात्रि 09:18 तक
26 मईसूर्योदय से26 मईसुबह 10:35 तक
05 जूनसूर्योदय से05 जूनरात्रि 09:16 तक
24 जूनदोपहर 03:55 से25 जूनसूर्योदय तक
22 जुलाईसूर्योदय से22 जुलाईरात्रि 10:21 तक
11 अगस्तप्रातः 05:49 से11 अगस्तसूर्योदय तक
19 अगस्तसूर्योदय से19 अगस्तसुबह 08:10 तक
29 अगस्तशाम 04:40 से30 अगस्तसूर्योदय तक
07 सितंबरदोपहर 12:35 से08 सितंबरसूर्योदय तक
26 सितंबरसूर्योदय से26 सितंबररात्रि 11:33 तक
05 अक्टूबरसूर्योदय से05 अक्टूबररात्रि 09:33 तक
15 अक्टूबररात्रि 10:09 से16 अक्टूबरसूर्योदय तक
12 नवंबरसुबह 07:53 से13 नवंबरप्रातः 05:40 तक
10 दिसंबरसूर्योदय से10 दिसंबरदोपहर 01:30 तक
21 दिसंबररात्रि 03:48 से21 दिसंबरसूर्योदय तक
29 दिसंबररात्रि 11:23 से30 दिसंबरसूर्योदय तक

सन् – 2025

17 जनवरीदोपहर 12:45 से18 जनवरीसूर्योदय तक
26 जनवरीसुबह 08:27 से27 जनवरीसूर्योदय तक
05 फरवरीरात्रि 08:34 से06 फरवरीसूर्योदय तक
14 फरवरीसूर्योदय से14 फरवरीरात्रि 11:09 तक
23  फरवरीसूर्योदय से23 फरवरीशाम 06:42 तक
05 मार्चसूर्योदय से06 मार्चरात्रि 01:08 तक
25 मार्चप्रातः 04:27 से25 मार्चसूर्योदय तक

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Siddhi Yog shubh muhurat | Today’s Shubh muhurat | Shubh muhurat Online

Dwipushkar yog shubh muhurat | द्विपुष्कर योग (सन् 2024-2025)

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‘द्विपुष्कर योग’ जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि दोगुना। ‘जी हां’  द्विपुष्कर योग में यदि किसी व्यक्ति को लाभ होता है तो है दोगुना होता है और यदि किसी कारणवश हानि हो जाती है तो वह भी 2 गुना ही होती है। अतः जितने भी हमारे शास्त्रों में अच्छे मुहूर्त और योग बताए गए हैं उनको दोगुना करने वाला योग द्विपुष्कर योग कहलाता है। इस युग में शुभ काम करने पर यह दोगुना लाभ प्रदान करता है।                                  

द्विपुष्कर योग सन् 204-2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
16 मार्चशाम 04:06 से16 मार्चरात्रि 09:38 तक
26 मार्चदोपहर 02:57 से27 मार्चसूर्योदय तक
20 मईरात्रि 03:17 से20 मईसूर्योदय तक
23 जुलाईसूर्योदय से23 जुलाईसुबह 10:23 तक
11 अगस्तप्रातः 05:46  से 11 अगस्तप्रातः 05:49 तक
24 सितंबरसूर्योदय से24 सितंबरदोपहर 12:39 तक
17 नवंबरशाम 05:23 से17 नवंबररात्रि 09:06 तक
27 नवंबरप्रातः 04:35 से29 नवंबरसूर्योदय तक
07 दिसंबर  सुबह 11:07 से07 दिसंबरशाम 04:50 तक

सन – 2025

21 जनवरीसूर्योदय से21 जनवरीदोपहर 12:40 तक
16 मार्चसुबह 11:46 से16 मार्चशाम 04:58 तक
26 मार्चप्रातः 03:50 से26 मार्चसूर्योदय तक

 

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Tripushkar Yog | त्रिपुष्कर योग (सन् 2024-2025)

shubh muhurat teen guna labh dene wala yog
shubh muhurat teen guna labh dene wala yog ‘त्रिपुष्कर योग’ जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि तिगुना। ‘जी हां’  त्रिपुष्कर योग में यदि किसी व्यक्ति को लाभ होता है तो है तिगुना होता है और यदि किसी कारणवश हानि हो जाती है तो वह भी 3 गुना ही होती है। अतः जितने भी हमारे शास्त्रों में अच्छे मुहूर्त और योग बताए गए हैं उनको दोगुना करने वाला योग त्रिपुष्कर योग कहलाता है। इस युग में शुभ काम करने पर यह तिगुना लाभ प्रदान करता है।    

त्रिपुष्कर योग सन् 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
14 अप्रैल रात्रि 01:35 से 15 अप्रैल सूर्योदय तक
20 अप्रैल दोपहर 02:05 से 20 अप्रैल रात्रि 10:42 तक
30 अप्रैल सुबह 07:06 से 01 मई प्रातः 04:09 तक
04 मई रात्रि 08:40 से 04 मई रात्रि 10:07 तक
18 जून दोपहर 03:57 से 19 जून सूर्योदय तक
23 जून शाम 05:04 से 24 जून रात्रि 03:26 तक
02 जुलाई सुबह 08:43 से 03 जुलाई प्रातः 04:40 तक
07 जुलाई प्रातः 04:27 से 07 जुलाई प्रातः 04:47 तक
21 अगस्त रात्रि 03:10 से 21 अगस्त सूर्योदय तक
25 अगस्त शाम 04:46 से 26 अगस्त सूर्योदय तक
23 अक्टूबर प्रातः 05:39 से 23 अक्टूबर सूर्योदय तक
29 अक्टूबर सूर्योदय से 29 अक्टूबर सुबह 10:32 तक
02 नवंबर रात्रि 08:23 से 03 नवंबर प्रातः 05:58 तक
17 दिसंबर सूर्योदय से 17 दिसंबर सुबह 10:56 तक
22 दिसंबर सुबह 06:15 से 22 दिसंबर दोपहर 02:32 तक

सन – 2025

 
01 जनवरी रात्रि 03:23 से 01 जनवरी सूर्योदय तक
05 जनवरी रात्रि 08:16 से 05 जनवरी रात्रि 08:18 तक
09 फरवरी शाम 05:54 से 09 फरवरी रात्रि 07:25 तक
25 फरवरी सूर्योदय से 21 फरवरी दोपहर 12:48 तक
01 मार्च सूर्योदय से 01 मार्च सुबह  11:22 तक

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होली पर्व विशेष, होलिका दहन पूजा विधि तथा शुभ मुहूर्त | Holi Muhurat

Holi shubh muhurat

Holi shubh muhurat

होलिका पर्व विशेष

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई है इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है होलिका और प्रह्लाद की है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे। अहंकार में आकर उसने जनता पर जुल्म करने आरम्भ कर दिए… यहाँ तक कि उसने लोगो को परमात्मा की जगह अपना नाम जपने का हुकम दे दिया। कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप के घर में एक बेटे का जन्म हुआ. उसका नाम प्रह्लाद रखा गया प्रह्लाद कुछ बड़ा हुआ तो, उसको पाठशाला में पढने के लिए भेजा गया पाठशाला के गुरु ने प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप का नाम जपने की शिक्षा दी पर प्रह्लाद हिरण्यकश्यप के स्थान पर भगवान विष्णु का नाम जपता था वह भगवान विष्णु को हिरण्यकश्यप से बड़ा समझता था। गुरु ने प्रह्लाद की हिरण्यकश्यप से शिकायत कर दी हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बुला कर पूछा कि वह उसका नाम जपने के जगह पर विष्णु का नाम क्यों जपता है प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “ईश्वर सर्व शक्तिमान है, उसने ही सारी सृष्टि को रचा है.” अपने पुत्र का उत्तर सुनकर हिरण्यकश्यप को गुस्सा आ गया उसको खतरा पैदा हो गया कि कही बाकि जनता भी प्रह्लाद की बात ना मानने लगे उसने आदेश दिया कहा, “मैं ही सबसे अधिक शक्तिशाली हूं, मुझे कोई नहीं मर सकता मैं तुझे अब खत्म कर सकता हूँ” उसकी आवाज सुनकर प्रह्लाद की माता भी वहां आ गई उसने हिरण्यकश्यप का विनती करते हुए कहा, “आप इसको ना मारो, मैं इसे समझाने का यतन करती हूं” वे प्रह्लाद को अपने पास बिठाकर कहने लगी, “तेरे पिता जी इस धरती पर सबसे शक्तिशाली है उनको अमर रहने का वर मिला हुआ है इनकी बात मान ले ”प्रहलद बोला, “माता जी मैं मानता हूं कि मेरे पिता जी बहुत ताकतवर है पर सबसे अधिक बलवान भगवान विष्णु हैं जिसने हम सभी को बनाया है पिता जो को भी उसने ही बनाया है प्रह्लाद का ये उत्तर सुन कर उसकी मां बेबस हो गयी प्रहलद अपने विश्वास पर आडिग था ये देख हिरण्यकश्यप को और गुस्सा आ गया उसने अपने सिपाहियों को हुकम दिया कि वो प्रह्लाद को सागर में डूबा कर मार दें सिपाही प्रह्लाद को सागर में फेंकने के लिए ले गये और पहाड़ से सागर में फैंक दिया लेकिन भगवान के चमत्कार से सागर की एक लहर ने प्रह्लाद को किनारे पर फैंक दिया सिपाहियों ने प्रह्लाद को फिर सागर में फेंका… प्रह्लाद फिर बहार आ गया सिपाहियों ने आकर हिरण्यकश्यप को बताया फिर हिरण्यकश्यप बोला उसको किसी ऊंचे पर्वत से नीचे फेंक कर मार दो सिपाहियों ने प्रह्लाद को जैसे ही पर्वत से फेंका प्रह्लाद एक घने वृक्ष पर गिरा जिस कारण उसको कोई चोट नहीं लगी हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को एक पागल हाथी के आगे फैंका तो जो हाथी उसको अपने पैरों के नीचे कुचल दे पर हाथी ने प्रह्लाद को कुछ नहीं कहा लगता था जैसे सारी कुदरत प्रह्लाद की मदद कर रही हो। हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था होलिका अपने भाई हिरण्यकश्यप की परेशानी दूर करना चाहती थी होलिका को वरदान था कि उसको आग जला नहीं सकती उसने अपने भाई को कहा कि वो प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ जाएगी वरदान के कारण वो खुद आग में जलने से बच जाएगी पर प्रह्लाद जल जायेगा लेकिन हुआ इसका उलट और आग में होलिका जल गयी पर प्रह्लाद बच गया होलिका ने जब वरदान में मिली शक्ति का दुरूपयोग किया, तो वो वरदान उसके लिए श्राप बन गया रंगों वाली होली (धुलंडी) के एक दिन पूर्व होलिका दहन होता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है, परंतु यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार की धरती पर हुआ था। जनश्रुति के मुताबिक तभी से प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई। मान्यता है कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में ही वह जगह है, जहां होलिका भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर दहकती आग के बीच बैठी थी।इसी दौरान भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था, जिन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिकलीगढ़ में हिरण्यकश्य का किला था।यहीं भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए एक खंभे से भगवान नरसिंह अवतार लिए थे। भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है। कहा जाता है कि इसे कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया। यह स्तंभ झुक तो गया, पर टूटा नहीं। अन्य कथा के अनुसार वैदिक काल में इस होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। पुराणों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से होली का प्रचलन हु‌आ। होलिका दहन की रात्रि को तंत्र साधना की दृष्टि से हमारे शास्त्रों में महत्वपूर्ण माना गया है | और यह रात्रि तंत्र साधना व लक्ष्मी प्राप्ति के साथ खुद पर किये गए तंत्र मंत्र के प्रतिरक्षण हेतु सबसे उपयुक्त मानी गई है| तंत्र शास्त्र के अनुसार होली के दिन कुछ खास उपाय करने से मनचाहा काम हो जाता है। तंत्र क्रियाओं की प्रमुख चार रात्रियों में से एक रात ये भी है। मान्यता है कि होलिका दहन के समय उसकी उठती हुई लौ से कई संकेत मिलते हैं। होलिका की अग्नि की लौ का पूर्व दिशा ओर उठना कल्याणकारी होता है, दक्षिण की ओर पशु पीड़ा, पश्चिम की ओर सामान्य और उत्तर की ओर लौ उठने से बारिश होने की संभावना रहती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में दहन किया जाता है। होलिका दहन में आहुतियाँ देना बहुत ही जरुरी माना गया है, होलिका में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर. आदि की आहुति दी जाती है है|

सावधानी

होलिका दहन की रात्रि तंत्र साधना की रात्रि होने के कारण इस रात्रि आपको कुछ सावधानियां रखनी चाहियें सफेद खाद्य पदार्थो के सेवन से बचें । होलिका दहन वाले दिन टोने-टोटके के लिए सफेद खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जाता है। इसलिए इस दिन सफेद खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये। सिर को ढक कर रखें । उतार और टोटके का प्रयोग सिर पर जल्दी होता है, इसलिए सिर को टोपी आदि से ढके रहें। कपड़ों का विशेष ध्यान रखें । टोने-टोटके में व्यक्ति के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है, इसलिए अपने कपड़ों का ध्यान रखें। विशेष । होली पर पूरे दिन अपनी जेब में काले कपड़े में बांधकर काले तिल रखें। रात को जलती होली में उन्हें डाल दें। यदि पहले से ही कोई टोटका होगा तो वह भी खत्म हो जाएगा।

होलिका दहन पूजा विधि

हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन, जिसे होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, करना चाहिये। होली से ठीक एक माह पूर्व अर्थात् माघ पूर्णिमा को ‘एरंड’ या ‘गूलर’ वृक्ष की टहनी को गाँव के बाहर किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है, और उस पर लकड़ियाँ, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाता है। पूजन करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में हो। सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में सही मुहर्त पर अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी जाती है। अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है। यह डंडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक है। इसके पश्चात नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें। इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें। होलिका धहन से पहले होलिका के चारो तरफ तीन या सात परिक्रमा करे और साथ में कच्चे सूत को लपेटे। होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। “अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:” इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए। इसके पश्चात् हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं। विधि पंचोपचार की हो तो सबसे अच्छी है। पूजा में सप्तधान्य की पूजा की जाती है जो की गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। होलिका के समय गेंहू एवं चने की नयी फसले आने लग जाती है अत: इन्हे भी पूजन में विशेष स्थान दिया जाता है। होलिका की लपटों से इसे सेक कर घर के सदस्य खाते है और धन धन और समृधि की विनती की जाती है।

होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए –

    1.   पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।

    2.   दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।

सज्जनों वैसे तो होलिका दहन भद्रा मुक्त अवस्था में किया जाता है। परंतु इस बार भद्रा दोपहर 1:30 से रात्रि 1:08 तक रहेगी। इसके पश्चात होलिका दहन करना शुभ रहेगा। हालांकि रात्रि 9:06 से 10:16 की अवधि जो कि लगभग 1 घंटा 10 मिनट का समय होगा। यह पूछ भद्रा का समय है। इस समय में भी अति आवश्यकता में होलिका दहन किया जा सकता है।

होलिका दहन शुभ मुहूर्त

होलिका दहन मंगलवार, 07 मार्च 2023 को

होलिका दहन मुहूर्त – रात्रि 06:24 से रात्रि 08:51 तक

अवधि – 02 घण्टे 27 मिनट्स

भद्रा पूँछ – दोपहर 12:43 से दोपहर 02:01 तक

भद्रा मुख – दोपहर 02:01 से शाम 04:11 तक

होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के बिना

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 06 मार्च 2023 को शाम 04:17 बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त – 07 मार्च 2023 को रात्रि 06:09 बजे

रंगवाली होली (धुलंडी) – 08 मार्च 2023

कुंडली में संपातक दोष | ग्रहण दोष के लक्षण और उपाय | Solar Eclipse

ओम नमः शिवाय,

सज्जनों,

ग्रहण दोष अथवा संपातक दोष क्या होता है ? इस दोष के क्या लक्षण है और इस दोष का उपाय कब करना चाहिए ? इस दोष के कारण से व्यक्ति के जीवन में क्या-क्या प्रभाव आते हैं ? आइए जानते हैं आज के एपिसोड में।

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26 Dec Surya Grahan | Solar Eclipse | सूर्य ग्रहण ‘षडग्रही योग’

26 December Surya Grahan | Solar Eclipse | सूर्य ग्रहण पर बन रहा है ‘षडग्रही योग’ ओम नमः शिवाय, सज्जनों, आज के इस एपिसोड में हम जानेंगे कि 26 दिसंबर 2019 को सूर्य ग्रहण (Surya Grahan | Solar Eclipse) आ रहा है। इस ग्रहण का आरंभ सुबह 8:16 से है तथा मध्य काल 9:30 पर और ग्रहण का समाप्ति काल 10:57 पर होगा। सज्जनों यह सूर्यग्रहण (Surya Grahan | Solar Eclipse) कुल मिलाकर 2 घंटे लगभग 28 मिनट तक रहेगा। ग्रहण का सूतक 1 दिन पहले अर्थात 25 दिसंबर को रात्रि 8:00 बजे आरंभ हो जाएगा। यह सूर्य ग्रहण (Surya Grahan | Solar Eclipse) मूल नक्षत्र तथा धनु राशि में घटित होगा। इस कारण से यह मूल नक्षत्र में जन्मे हुए जातकों व धनु राशि या धनु लग्न में उत्पन्न हुए जातकों के लिए विशेष तौर पर अशुभ फलप्रद रहेगा। इस ग्रहण का समाज के ऊपर किस किस प्रकार का शुभ अथवा अशुभ असर पड़ेगा। इस ग्रहण दोष के निवारण के लिए कौन-कौन से उपाय करने श्रेष्ठ रहेंगे। आइए जानते हैं इसके बारे में।

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