Magh Shattila Ekadashi Vrat Katha hindi | माघ कृष्णा षटतिला एकादशी व्रत कथा

magh Shattila ekadashi vrat katha vidhi
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।। माघ कृष्ण एकादशी व्रत कथा ।। षटतिला एकादशी

Magh Shattila Ekadashi Vrat Katha

 
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षटतिला एकादशी की कथा सुनने के लिए
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एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि महाराज पृथ्वी लोक के मनुष्य ब्रह्म हत्या आदि महान पाप करते हैं, पराए धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति को देखकर ईर्ष्या करते हैं, साथ ही अनेक प्रकार के व्यसनों में फंसे रहते हैं। फिर भी उनको नरक प्राप्त नहीं होता। इसका क्या कारण है ? वह न जाने कौन सा दान पुण्य करते हैं जिससे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। यह सब कृपापूर्वक आप कहिए। पुलस्त्य मुनि कहने लगे कि हे महाभाग ! आपने मुझसे अत्यंत गंभीर प्रश्न पूछा है। इससे संसार के जीवो का अत्यंत भला होगा। इस भेद को ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तथा इंद्र आदि भी नहीं जानते परंतु मैं आपको यह गुप्त तत्व अवश्य बताऊँगा। माघ मास के लगते ही मनुष्य को स्नानादि करके शुद्ध रहना चाहिए और इंद्रियों को वश में करके तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाने चाहिए। उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए और उस दिन मूल नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करें। स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सब देवताओं के देव श्री भगवान का पूजन कर और एकादशी का व्रत धारण करें। रात्रि को जागरण करना चाहिए। उसके दूसरे दिन धूप – दीप, नैवेद्य आदि से भगवान का पूजन करके खिचड़ी का भोग लगावे तत्पश्चात पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी सहित अर्घ्य देकर स्तुति करनी चाहिए कि भगवान, आप दीनों को शरण देने वाले हैं। इस संसार सागर में फंसे हुओं का उद्धार करने वाले हैं। हे पुंडरीकाक्ष ! हे विश्वभावन ! हे सुब्रह्मण्य ! हे पूर्वज ! हे जगतपते ! आप लक्ष्मी सहित इस तुच्छ को ग्रहण करें। इसके पश्चात जल से भरा हुआ कुंभ (घड़ा) ब्राह्मण को दान करें तथा ब्राह्मण को श्याम गौ और तिल पात्र देना भी उत्तम है। तिल स्नान और भोजन दोनों ही श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार जो मनुष्य जितने तिलों का दान करता है। उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास करता है।
  1.  तिल स्नान
  2.  तिल का उबटन
  3.  तिल का हवन
  4.  तिल का तर्पण
  5.  तिल का भोजन और
  6.  तिलों का दान
यह तिल के छह प्रकार के प्रयोग होने के कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है। इस व्रत के करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इतनी कथा कहकर पुलस्त्य ऋषि कहने लगे कि अब मैं इस षटतिला एकादशी की कथा तुमसे कहता हूं। एक समय नारद जी ने भगवान श्री विष्णु से यही प्रश्न किया था और भगवान ने जो षटतिला एकादशी का महत्व नारदजी से कहा सो मैं तुमसे कहता हूं। नारद जी कहने लगे कि हे भगवन ! षटतिला एकादशी का क्या पुण्य होता है और इसकी क्या कथा है सो मुझसे कहिए। भगवान कहने लगे कि हे नारद ! मैं तुमसे आंखों देखी सत्य घटना कहता हूं, तुम ध्यानपूर्वक सुनो। प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही, इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है। अब इसको विष्णु लोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्नदान नहीं किया है। इससे इसकी तृप्ति होनी कठिन है। ऐसा विचार कर मैं एक भिखारी बनकर मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा मांगी। वह ब्राह्मणी बोली कि महाराज आप यहां किसलिए आए हैं ? मैंने कहा कि मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढे़ला मेरे भिक्षा पात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया। कुछ समय पश्चात वह ब्राह्मणी भी शरीर त्यागकर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया। घबरा कर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि हे भगवन ! मैंने अनेकों व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है ? मैंने कहा कि पहले तुम अपने घर जाओ, जब देव स्त्रियां तुम्हें देखने के लिए आएंगी तो पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लेना तब द्वार खोलना जब मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देव स्त्रियां आईं और द्वार खोलने के लिए कहा तो ब्राह्मणी बोली कि आप मुझे देखने के लिए आई है तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य कहिए। उनमें से एक देव स्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूं। जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तो फिर उसने द्वार खोला। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी और न आसुरी है वरन् पहले जैसी मानुषी है। तब ब्राह्मणी ने भी उनके कथन अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। अतः मनुष्य को मूर्खता त्यागकर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिल आदि का दान करना चाहिए। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक कष्ट दूर होकर उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है।

।। बोलिए श्री विष्णु भगवान की जय ।।

।। श्री एकादशी मैया की जय ।।

 

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Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha hindi | पौष शुक्ला पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

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।। पौष शुक्ला एकादशी व्रत कथा ।।
पुत्रदा एकादशी

Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha

 

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पुत्रदा एकादशी की कथा सुनने के लिए
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युधिष्ठिर ने पूछा कि हे भगवन ! आपने सफला एकादशी का माहात्म्य विधिवत् बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइये कि पौष शुक्ला एकादशी का क्या नाम है उसकी विधि क्या है और इसमें कौन से देवता की पूजा की जाती है ?

श्रीकृष्ण बोले हे राजन् ! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इसमें भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। इसकी मैं एक कथा कहता हूं सो तुम ध्यान से सुनो।

भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सब में से किसी चीज से भी संतोष नहीं होता था। इसका एकमात्र कारण पुत्र का ना होना था। वह सदैव यही विचार किया करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंड दान देगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा। जिस घर में पुत्र ना हो उसमें सदैव ही अंधेरा रहता है। इसलिए मुझे पुत्र की उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।

एक समय राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का विचार किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया और पक्षियों व वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच में घूम रहा है। इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार उसको दो पहर बीत गए। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए फिर भी मुझ को यह दुख क्यों प्राप्त हुआ ?

राजा प्यास के मारे अत्यंत दुखी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूर पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिल रहे थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उस समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे।

राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत करके उनके सामने बैठ गया।

राजा को देखकर मुनियों ने कहा कि हे राजन् ! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न है, तुम्हारी क्या इच्छा है सो कहो।

राजा ने उनसे पूछा कि महाराज आप कौन हैं और किस लिए यहां आए हैं सो कहिए ?

मुनि कहने लगे कि हे राजन् ! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर पर स्नान करने के लिए आए हैं।

इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो तो एक पुत्र का वरदान दीजिए।

मुनि बोले कि हे राजन् ! आज पुत्रदा एकादशी है आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके पुत्र होगा।

मुनि के वचन के अनुसार राजा ने उस दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके राजा अपने महल में वापस आ गया।

कुछ समय के बाद रानी ने गर्भधारण किया और नौ महीने के पश्चात उसके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।

श्री कृष्ण भगवान बोले कि हे राजन् ! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए! जो मनुष्य इस माहात्म्य में को पढ़ता या सुनता है, उसको अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

।। बोलिए श्री विष्णु भगवान की जय ।।

।। श्री एकादशी मैया की जय ।।

 

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रत्न या उपरत्न कितने रत्ती अथवा कैरेट का धारण करें | Carat / Ratti For Gemstone

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बहुत सारे व्यक्तियों के मन में एक शंका रहती है कि रत्न कितने वजन का धारण करना चाहिए। मेरा ऐसा मानना है कि जो आप से अधिक शक्ति की चीज होगी तो उसकी पावर आपको आसानी से मिल पाएगी और यदि उसकी शक्ति आप से भी कम है तो उस शक्ति का आपको कोई विशेष फायदा नहीं है।

इसलिए जितना व्यक्ति का वजन है। यदि वह कोई मुख्य रत्न धारण कर रहा है। जैसे सूर्य का रत्न माणिक्य तो उसे अपने वजन से लगभग 3 कैरेट या 3 रत्ती अधिक वजन में माणिक्य धारण करना चाहिए और यदि वह सूर्य का मुख्य रत्न माणिक्य धारण ना करके उपरत्न धारण करना चाहता है तो उस व्यक्ति को अपने से लगभग दोगुने वजन का उपरत्न धारण करना चाहिए। ऐसा करने से उपरत्न भी व्यक्ति को मुख्य रत्न जितना ही लाभ दे पाएगा।

यदि हम अपने से कम वजन का रत्न धारण करते हैं तो उसकी शक्ति का शुभ अवसर हमें विशेष तौर पर प्राप्त नहीं हो पाता है। उसका असर केवल साधारण ही रहता है।

इसलिए आपकी आपकी शंका के समाधान के लिए मैं यहां बता रहा हूं कि मान लीजिए यदि किसी व्यक्ति का वजन 55 किलो है तो उसका चार – पांच किलो वजन ऊपर और नीचे हो सकता है। क्योंकि वजन हमेशा एक जैसा नहीं रहता। वह कुछ ना कुछ घटता और बढ़ता रहता है। इसलिए उस व्यक्ति का वजन हम 50 और 60 में से 60 किलो मान लेते हैं। अब 60 किलो में से जीरो को हटा देंगे तो 6 का अंक बचता हैं। अब 6 आपका वजन हुआ और उसमें 3 रत्ती या 3 कैरेट ज्यादा वजन का रतन धारण करना है इसलिए तीन और जोड़ देते हैं तो 9 बनता है अर्थात उस व्यक्ति को 9 रत्ती या कैरेट का वजन धारण करना चाहिए।अब यदि वह व्यक्ति मुख्य रत्न धारण न करके उपरत्न धारण करता है तो उसे 6 में 6 और जोड़ देना चाहिए अर्थात 12 यानी कि उस व्यक्ति को लगभग 11 से 12 कैरेट अथवा रत्ती का उपरत्न धारण करना चाहिए।

क्लिक करें : रत्न धारण मुहूर्त की विशेषताएं

इस प्रकार से रत्न व उपरत्न धारण करने से वह रत्न उस व्यक्ति को पूर्ण लाभ व पूर्ण शक्ति प्रदान कर पाएगा।

हर – हर महादेव

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Vaishakh Varuthini Ekadashi Vrat Katha hindi | वैशाख कृष्णा वरुथिनी एकादशी

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।। वैशाख कृष्णा एकादशी व्रत कथा ।।
वरुथिनी एकादशी

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वरूथिनी एकादशी की कथा सुनने के लिए
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धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन् ! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उसकी क्या विधि है तथा उसके करने से क्या फल मिलता होता है ? आप विस्तार पूर्वक मुझसे कहिए, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

श्री कृष्ण कहने लगे कि हे राजेश्वर ! इस एकादशी का नाम वरुथिनी है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है। इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करें तो उसको सौभाग्य मिलता है। इसी वरुथिनी एकादशी के प्रभाव से राजा मांधाता स्वर्ग को गया था। वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय एक मन स्वर्ण दान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है।

वरुथिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोग कर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं। अन्न दान से देवता, पितर, और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में इसको कन्यादान के बराबर माना जाता है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्न दान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। जो मनुष्य लोग के वश होकर कन्या का धन लेते हैं वे प्रलय काल तक नरक में वास करते हैं या उनको अगले जन्म में बिलाव का जन्म लेना पड़ता है। जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं। उनके पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हैं। जो मनुष्य इस वरुथिनी एकादशी का व्रत करते हैं। उनको कन्यादान का फल मिलता है।
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने वालों को दशमी के दिन निम्नलिखित वस्तुओं को त्याग देना चाहिए।

  1.  कांसे के बर्तन में भोजन करना
  2.  माँस (उड़द की दाल)
  3.  मसूर की दाल
  4.  चने का शाक
  5.  कोदों का शाक
  6.  मधु (शहद)
  7.  दूसरे का अन्न
  8. दूसरी बार भोजन करना
  9.  स्त्री प्रसंग।

व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए तथा शयन भी नहीं करना चाहिए। उस दिन पान खाना, दातुन करना, दूसरे की निंदा करना तथा चुगली करना एवं पापी मनुष्यों के साथ बातचीत सब त्याग देना चाहिए। उस दिन क्रोध, मिथ्या भाषण का त्याग करना चाहिए। इस व्रत में नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित है। हे राजन् ! जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी को करते हैं उनको स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। अतः मनुष्य को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के माहात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान दान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है।

।। बोलिए श्री विष्णु भगवान की जय श्री एकादशी माता की जय ।।

 

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क्या आपको भी बिजनेस शुरू करने में आ रही है दिक्कत ? Business Careers

Vyapar kundli

ओम नमः शिवाय

सज्जनों जैसा कि पिछले वीडियो में हमने जाना था कि किस प्रकार की ग्रह चाल हो तो वह व्यक्ति बिजनेस में बहुत अधिक मात्रा में सफल होता है और किस प्रकार की ग्रह चाल होने से बिजनेस (Business) में नुकसान का सामना करना पड़ता है । सज्जनों आज के इस वीडियो में हम प्रत्येक ग्रह के अनुसार से यह जानेंगे कि यदि सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु यदि सातवें घर के अधिपति हो अथवा सातवें घर में बहुत अच्छे, शुभ अवस्था में बैठे हुए हो तो व्यक्ति को कौन-कौन से बिजनेस करने चाहिए आइए देखते हैं, आज के वीडियो में ।

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क्या बिजनेस में आपके भी हैं करोड़पति बनने के योग- Business Yog In Kundli Hindi

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ओम नमः शिवाय सज्जनों जैसा कि पिछले एपिसोड में हमने नौकरी के योग के बारे में बताया था कि सरकारी नौकरी के योग किस प्रकार से बनते हैं ? प्राइवेट नौकरी के योग किस प्रकार से बनते हैं तथा किस तरह की ग्रह चाल हो तो व्यक्ति को नौकरी में परेशानी का सामना करना पड़ता है ? उस व्यक्ति को नौकरी नहीं मिल पाती है। आज के इस एपिसोड में हम बिजनेस के बारे में चर्चा करेंगे। बिजनेस का भाव कौन सा होता है ? कुंडली में कौन-कौन से ग्रह यदि कुंडली में बैठ जाते हैं तो वह किस प्रकार का अच्छा और बुरा फल देते हैं ? किस प्रकार की ग्रह चाल हो तो व्यक्ति बिजनेस में पूर्णत सफल होता है और किस प्रकार की ग्रह चाल में व्यक्ति को बिजनेस में नुकसान, कर्जे का सामना करना पड़ता है और किस व्यक्ति को भूलकर भी बिजनेस नहीं करना चाहिए ?

सज्जनों देखते हैं आज के इस वीडियो में – प्रतिदिन ज्योतिष से संबंधित नया वीडियो पाने के लिये हमारा यूट्यूब चैनल https://www.youtube.com/c/ASTRODISHA सबस्क्राइब करें। इसके अलावा यदि आप हमारी संस्था के सेवा कार्यों तथा प्रोडक्ट्स से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप हमारी बेवसाइट https://www.astrodisha.com/ पर जा सकते हैं और अगर आपको कुछ पूछना है तो आप हमें help@astrodisha.com पर मेल कर सकते है। Contact – +91-7838813444, +91-7838813555, +91-7838813666, +91-7838813777 Whats app – +91-7838813444 Email – help@astrodisha.com Website – https://www.astrodisha.com Facebook – https://www.facebook.com/AstroDishaPtSunilVats

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मकान, दुकान आदि की नींव रखने के मुहूर्त | Bhumi Pujan ke shubh muhurat

bhumi pujan shubh muhurat

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मकान बनाने के लिए पृथ्वी की शुभाशुभ परीक्षाः-मकान की नींव को इतना गहरा खोदें कि जल दीखने लगे अथवा दूसरी मिट्टी जब तक निकले अथवा साढे तीन हाथ गहरी खोदें अर्थात् मनुष्य के बराबर खोदें। खोदते समय यदि जमीन में पत्थर निकले तो धन-आयु की वृद्धि हो, अगर गुठली निकले तो धननाश हो अगर अस्थि, राख, बाल निकले तो मकान बनाने वाले को व्याधि-पीड़ा हो।

गृहारंभ मुहूर्त सन्:- 2024

प्रारंभ काल – तारीख

मुहूर्त का समय – घं.मि.

*(11 जुलाई)दोपहर 01:04 के बाद
*(12 जुलाई)सुबह 07:09 के बाद,
विशेष:- सुबह 08:13 से सुबह 10:33 तक, अभिजित्
17 जुलाईसुबह 07:53 से सुबह 10:13 तक,
दोपहर 12:31 से दोपहर 02:52 तक, मृत्युबाण 
*(26 जुलाई)दोपहर 02:30 के बाद
*(27 जुलाई)सुबह 10:25 से दोपहर 12:59 तक, मृत्युबाण परिहार
*(31 जुलाई)सूर्योदय से सुबह 10:12 तक (भौमयुति परिहार)
सुबह 10:12 से दोपहर 02:13 तक, 
शाम 05:49 के बाद
*(01 अगस्त)सूर्योदय सेसुबह 10:24 तक
19 अगस्तसुबह 08:10 के बाद, 
विशेष:- सुबह 10:21 से दोपहर 03:03 तक, अभिजित्
*(28 अगस्त)सुबह 09:46 से दोपहर 02:27 तक 
*(04 सितंबर)सुबह 09:18 से दोपहर 12:00 तक 
14 सितंबरसुबह 08:35 से दोपहर 01:17 तक, अभिजित्, भद्रा परिहार 
18 अक्टूबरसुबह 06:25 से दोपहर 01:11 तक, अभिजित्
*(21 अक्टूबर)सूर्योदय से सुबह 06:50 तक
*(24 अक्टूबर)पूरा दिन
*(04 नवंबर)सूर्योदय से सुबह 08:03 तक
*(07 नवंबर)सुबह 11:51 के बाद
*(08 नवंबर)सूर्योदय से सुबह 08:27 तक, 
सुबह 10:51 से दोपहर 12:03 तक
*(18 नवंबर)सुबह 09:05 से दोपहर 12:50 तक, अभिजित्
*(25 नवंबर)सूर्योदय से सुबह 11:41 तक, (केतुयुति परिहार)
विशेष:- सुबह 08:37 से दोपहर 12:33 तक, अभिजित् 
*(27 नवंबर)सुबह 08:30 से दोपहर 12:15 तक
*(05 दिसंबर)दोपहर 12:49 के बाद
*(07 दिसंबर)सूर्योदय से शाम 04:50 तक, 
सुबह 07:50 से सुबह 11:36 तक
11 दिसंबरसुबह 11:48 के बाद
12 दिसंबरसुबह 07:31 से सुबह 11:16 तक

गृहारंभ मुहूर्त सन्:-2025

प्रारंभ काल – तारीख

मुहूर्त का समय – घं.मि.

15 जनवरीसुबह 09:01 से सुबह 10:28 तक
*(22 जनवरी)सूर्योदय से दोपहर 03:18 तक
*(31 जनवरी)सूर्योदय से दोपहर 03:32 तक
विशेष:-  सुबह 07:51 से सुबह 09:24 तक, सुबह 10:46 से दोपहर 12:29 तक, अभिजित्  
15 फरवरीसुबह 09:47 से दोपहर 01:15 तक, अभिजित्
*(19 फरवरी)सूर्योदय से सुबह 10:40 तक
*(20 फरवरी)दोपहर 03:09 के बाद
*(21 फरवरी)सुबह 09:23 से दोपहर 12:51 तक 

*(तारा) अंकित मुहूर्त्तों में केवल ‘वृष-वास्तुचक्र-शुद्धि’ नहीं है, अन्यथा ये मुहूर्त्त सर्वथा शुद्ध हैं।

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Bhumi Pujan ke shubh muhurat
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Bhumi Pujan Ke Shubh Muhurat
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हमारे द्वारा यहां कुछ विशेष मुहूर्त दिए गए हैं यदि आप स्वयं के लिए किसी विशेष दिन का मुहूर्त चाहते हैं तो संपर्क करें

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नये गृह में प्रवेश करने का मुहूर्त | Best Griha Pravesh Shubh Muhurat 2024-2025

nav griha pravesh dates

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नए घर में प्रवेश करने का मुहूर्त सन्:- 2024

प्रारंभ काल – तारीखमुहूर्त का समय – घं.मि.
15 अप्रैल सुबह 07:28 से सुबह 11:37 तक, अभिजित्
11 जुलाईदोपहर 01:04 के बाद
12 जुलाईसुबह 07:13 से सुबह 10:33 तक, अभिजित्
18 अक्टूबरसुबह से दोपहर 01:11 तक, अभिजित्, मृत्युबाण परिहार
*(21 अक्टूबर)सूर्योदय से सुबह 11:11 तक
*(23 अक्टूबर)सुबह 07:27 से दोपहर 12:52 तक, भौमयुति परिहार
*(24 अक्टूबर)सुबह 08:26 से दोपहर 12:48 तक, अभिजित्
28 अक्टूबरदोपहर 03:23 के बाद
*(04 नवंबर)सूर्योदय से सुबह 08:03 तक
07 नवंबरसुबह 11:51 के बाद
08 नवंबरसूर्योदय से सुबह 08:27 तक, 
सुबह 10:51 से दोपहर 12:03 तक
09 नवंबरसुबह 07:20 से सुबह 11:45 तक, अभिजित्
13 नवंबरपूरा दिन
*(18 नवंबर)सूर्योदय से सुबह 08:01 तक, 
सुबह 09:05 से दोपहर 12:50 तक, अभिजित्  
20 नवंबरसुबह 08:57 से दोपहर 12:43 तक 
25 नवंबरसुबह 08:37 से दोपहर 12:23 तक, अभिजित्, भद्रा परिहार, केतुयुति परिहार
27 नवंबरपूरा दिन
*(05 दिसंबर)दोपहर 12:41 के बाद, मृत्युबाण परिहार
*(06 दिसंबर)सूर्योदय से सुबह 10:43 तक
07 दिसंबरसुबह 07:50 से सुबह 11:36 तक, अभिजित्
11 दिसंबरसुबह 11:48 के बाद, भद्रा-परिहार
12 दिसंबरसूर्योदय से सुबह 09:53 तक

नए घर में प्रवेश करने का मुहूर्त सन्:-2025

प्रारंभ काल – तारीख

मुहूर्त का समय – घं.मि.

*(15 जनवरी)सुबह 09:01 से सुबह 10:28 तक, 
सुबह 11:49 से दोपहर 01:22 तक 
*(18 जनवरी)दोपहर 02:51 के बाद, केतुयुति परिहार
22 जनवरीसुबह 07:34 से 09:59 तक
सुबह 11:21 से दोपहर 12:54 तक
24 जनवरीसुबह 07:26 से सुबह 09:51 तक
सुबह 11:15 से दोपहर 12:46 तक, अभिजित्, भद्रा परिहार, मृत्युबाण परिहार
*(31 जनवरी)सुबह 07:51 से सुबह 09:24 तक,
सुबह 10:46 से दोपहर 12:29 तक, अभिजित्
07 फरवरीसूर्योदय से शाम 04:16 तक
विशेष:- सुबह 07:31 से सुबह 08:56 तक, सुबह 10:19 से सुबह 11:51 तक, अभिजित् 
10 फरवरीसुबह 07:19 से सुबह 08:44 तक
सुबह 10:07 से सुबह 11:39 तक, अभिजित्
*(15 फरवरी)सुबह 09:47 से दोपहर 01:15 तक, अभिजित्
*(19 फरवरी)सुबह 09:31 से सुबह 11:04 तक, बुधपादवेधऽभावः
*(21 फरवरी)सुबह 09:23 से दोपहर 12:51 तक, अभिजित्
06 मार्चसुबह 08:32 से दोपहर 12:00 तक, अभिजित्

* (तारा) अंकित मुहूर्तों में केवल कलशचक्र-शुद्धि नहीं है, अन्यथा ये मुहूर्त्त सर्वथा शुद्ध हैं।

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Griha Pravesh Shubh Muhurat
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Griha Pravesh Shubh Muhurat
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हमारे द्वारा यहां कुछ विशेष मुहूर्त दिए गए हैं यदि आप स्वयं के लिए किसी विशेष दिन का मुहूर्त चाहते हैं तो संपर्क करें

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केतु के रत्न लहसुनिया धारण विधि, मुहूर्त | Cats Eye Ratan Dharan Vidhi, Muhurat

lehsuniya ratan dharan karne ka mantra vidhi

lehsuniya ratan dharan karne ka mantra vidhi

आप शुद्ध तथा असली लहसुनिया अथवा इसके उपरत्न जो कि सस्ते भी होंगे और शुभ असर भी लहसुनिया जैसा ही देंगे। जैसे वैदूर्य, कैट्स आई, गोदंती, संगी, अलेक्जेंड्राइट चांदी की अंगूठी में बनवाकर नीचे बताए गए शुभ मुहूर्त में धारण करें। 

प्राण प्रतिष्ठा तथा रत्न धारण की विधि

मुहूर्त वाले दिन पूजा पाठ वाले स्थान पर काले  – सफेद अथवा चितकबरे रंग का कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर अपनी रत्न जड़ित अंगूठी रख दीजिए। जोतधूप जलाकर एक कटोरी में कच्ची लस्सी (दूध में पानी मिलाकर) और दूसरी कटोरी में थोड़ा गंगाजल रखिए। इसके बाद अपने आसन पर बैठकर लहसुनिया तथा इसके उपरत्नों में विशेष शक्ति उत्पन्न करने के लिए इस मंत्र का 108 बार जाप करें। 

ॐ स्त्राम् स्त्रीम् स्त्रौम् सः केतवे नमः। 

मंत्र जाप पूरा होने के बाद नीचे लिखा हुआ प्राण प्रतिष्ठा मंत्र 3 बार बोलें। 

आं ह्रीं कों यं रं लं वं शं सं षं हं सः

देवस्य प्राणाः इह प्राणाः पुनरूच्चार्य देवस्य सर्वेन्द्रियाणी इह।

पुनरूच्चार्य देवस्य त्वक्पाणि पाद पायु पस्थादीनि इहः।।

पुनरूच्चार्य देवस्य वाङमनश्चक्षुः क्षोत्रा घृणानि इहागत्य सुखेन चिरंतिष्ठतु स्वाहा।।

इसके बाद रतन को उठाकर सबसे पहले दूध मिले जल में धो लें। उसके बाद गंगाजल में धोकर तथा धूपदीप के ऊपर से सात बार सीधी तरफ (क्लॉक वाइज) घुमाकर ॐ स्त्राम् स्त्रीम् स्त्रौम् सः केतवे नमः। मंत्र बोलते हुए जिस हाथ से आप काम करते हैं यानी आपका (एक्टिव हैंड) उस हाथ की अनामिका (छोटी अंगुली के पास वाली अंगुली) में धारण करें। 

नोट अपने आसन से उठने से पहले धरती पर हाथ लगाकर उसे माथे से लगाकर प्रणाम करें।

केतु ग्रह के रत्न धारण करने के शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)

सन : 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
21 मार्चरात्रि 01:26 से मार्चसूर्योदय तक 
18 अप्रैलसुबह 07:56 से19 अप्रैलसूर्योदय तक
16 मईसूर्योदय से16 मईशाम 06:14 तक
19 जुलाईरात्रि 03:25 से19 जुलाईसूर्योदय तक
15 अगस्तदोपहर 12:52 से16 अगस्तसूर्योदय तक
12 सितंबरसूर्योदय से12 सितंबररात्रि 09:52 तक
17 अक्टूबरशाम 04:20 से18 अक्टूबर सूर्योदय तक
14 नवंबरसूर्योदय से15 नवंबररात्रि 00:33 तक
12 दिसंबरसूर्योदय से12 दिसंबरसुबह 09:52 तक 
20 दिसंबररात्रि 01:59 से20 दिसंबरसूर्योदय तक

सन – 2025

16 जनवरीसुबह 11:16 से17 जनवरीसूर्योदय तक
13 फरवरीसूर्योदय से13 फरवरीरात्रि 09:07 तक

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राहू के रत्न गोमेद आदि धारण विधि, मुहूर्त | Gomed Ratan Dharan Vidhi, Muhurat

gomed ratan dharan karne ka mantra vidhi

gomed ratan dharan karne ka mantra vidhi

आप शुद्ध तथा असली गोमेद अथवा इसके उपरत्न जो कि सस्ते भी होंगे और शुभ असर भी गोमेद जैसा ही देंगे। जैसे तुरसा, साफा आदि अष्टधातु अथवा चांदी की अंगूठी में बनवाकर नीचे बताए गए शुभ मुहूर्त में धारण करें। 

प्राण प्रतिष्ठा तथा रत्न धारण की विधि

मुहूर्त वाले दिन पूजा पाठ वाले स्थान पर नीले रंग का कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर अपनी रत्न जड़ित अंगूठी रख दीजिए। जोतधूप जलाकर एक कटोरी में कच्ची लस्सी (दूध में पानी मिलाकर) और दूसरी कटोरी में थोड़ा गंगाजल रखिए। इसके बाद अपने आसन पर बैठकर गोमेद तथा इसके उपरत्नों में विशेष शक्ति उत्पन्न करने के लिए इस मंत्र का 108 बार जाप करें। 

ॐ भ्राम् भ्रीम् भ्रौम् सः राहवे नमः। 

 

 

मंत्र जाप पूरा होने के बाद नीचे लिखा हुआ प्राण प्रतिष्ठा मंत्र 3 बार बोलें। 

आं ह्रीं कों यं रं लं वं शं सं षं हं सः

देवस्य प्राणाः इह प्राणाः पुनरूच्चार्य देवस्य सर्वेन्द्रियाणी इह।

पुनरूच्चार्य देवस्य त्वक्पाणि पाद पायु पस्थादीनि इहः।।

पुनरूच्चार्य देवस्य वाङमनश्चक्षुः क्षोत्रा घृणानि इहागत्य सुखेन चिरंतिष्ठतु स्वाहा।।

 

इसके बाद रतन को उठाकर सबसे पहले दूध मिले जल में धो लें। उसके बाद गंगाजल में धोकर तथा धूपदीप के ऊपर से सात बार सीधी तरफ (क्लॉक वाइज) घुमाकर ॐ भ्राम् भ्रीम् भ्रौम् सः राहवे नमः। मंत्र बोलते हुए जिस हाथ से आप काम करते हैं यानी आपका (एक्टिव हैंड) उस हाथ की मध्यमा (सबसे बड़ी अंगुली में) धारण करें। 

नोट अपने आसन से उठने से पहले धरती पर हाथ लगाकर उसे माथे से लगाकर प्रणाम करें।

 राहू ग्रह के रत्न धारण करने के शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)

सन : 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
24 अप्रैलसूर्योदय से25 अप्रैलरात्रि 00:41 तक
22 मईसूर्योदय से22 मईसुबह 07:46 तक
26 जूनदोपहर 01:05 से27 जूनसूर्योदय तक
24 जुलाईसूर्योदय से24 जुलाईशाम 06:14 तक
28 अगस्तदोपहर 03:53 से29 अगस्तसूर्योदय तक
25 सितंबरसूर्योदय से25 सितंबररात्रि 11:23 तक

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