मंगल के रत्न मूंगा आदि धारण विधि, मुहूर्त | Coral Ratan Dharan Vidhi, Muhurat

moonga ratan dharan vidhi mantra

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आप शुद्ध तथा असली मूंगा अथवा इसके उपरत्न जो कि सस्ते भी होंगे और शुभ असर भी मूंगे जैसा ही देंगे जैसे लाल हकीक, तामड़ा, संगसितारा आदि तांबे की अंगूठी में बनवाकर नीचे बताए गए शुभ मुहूर्त में धारण करें। 

प्राण प्रतिष्ठा तथा रत्न धारण की विधि

मुहूर्त वाले दिन पूजा पाठ वाले स्थान पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर अपनी रत्न जड़ित अंगूठी रख दीजिए। जोतधूप जलाकर एक कटोरी में कच्ची लस्सी (दूध में पानी मिलाकर) और दूसरी कटोरी में थोड़ा गंगाजल रखिए। इसके बाद अपने आसन पर बैठकर मूंगे तथा इसके उपरत्नों में विशेष शक्ति उत्पन्न करने के लिए इस मंत्र का 108 बार जाप करें। 

ॐ क्राम् क्रीम् क्रौम् सः भौमाय नमः। 

 

 

मंत्र जाप पूरा होने के बाद नीचे लिखा हुआ प्राण प्रतिष्ठा मंत्र 3 बार बोलें।

आं ह्रीं कों यं रं लं वं शं सं षं हं सः

देवस्य प्राणाः इह प्राणाः पुनरूच्चार्य देवस्य सर्वेन्द्रियाणी इह।

पुनरूच्चार्य देवस्य त्वक्पाणि पाद पायु पस्थादीनि इहः।।

पुनरूच्चार्य देवस्य वाङमनश्चक्षुः क्षोत्रा घृणानि इहागत्य सुखेन चिरंतिष्ठतु स्वाहा।।

 

 

इसके बाद रतन को उठाकर सबसे पहले दूध मिले जल में धो लें। उसके बाद गंगाजल में धोकर तथा धूपदीप के ऊपर से सात बार सीधी तरफ (क्लॉक वाइज) घुमाकर ॐ क्राम् क्रीम् क्रौम् सः भौमाय नमः। मंत्र बोलते हुए जिस हाथ से आप काम करते हैं यानी आपका (एक्टिव हैंड) उस हाथ की अनामिका (छोटी अंगुली के पास वाली) अंगुली में धारण करें। 

नोट अपने आसन से उठने से पहले धरती पर हाथ लगाकर उसे माथे से लगाकर प्रणाम करें।

मंगल ग्रह के रत्न धारण करने के शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)

सन : 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
26 मार्च दोपहर 1:33 से 27 मार्च सूर्योदय तक
23 अप्रैल सूर्योदय से 23 अप्रैल रात्रि 10:32  तक
21 मई सूर्योदय से 21 मई सुबह 05:46 तक
25 जून दोपहर 02:32 से 26 जून सूर्योदय तक
23 जुलाई सूर्योदय से 23 जुलाई रात्रि 08:18 तक
27 अगस्त दोपहर 03:38 से 28 अगस्त सूर्योदय तक
24 सितंबर सूर्योदय से 24 सितंबर रात्रि 09:54 तक
22 अक्टूबर सूर्योदय से 22 अक्टूबर सुबह 05:51 तक
24 दिसंबर दोपहर 12:17 से 25 दिसंबर सूर्योदय तक

सन – 2025

21 जनवरी सूर्योदय से 21 जनवरी रात्रि 11:36 तक
18 फरवरी सूर्योदय से 18 फरवरी सुबह 07:35 तक
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श्रावण माह माहात्म्य नवाँ अध्याय | Chapter -9 Sawan Maas ki Katha (Kahani)

श्रावण माह माहात्म्य आठवाँ अध्याय | Chapter -8 Sawan Maas ki Katha (Kahani)

श्रावण माह माहात्म्य सातवाँ अध्याय | Chapter -7 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

श्रावण माह माहात्म्य छठवाँ अध्याय | Chapter -6 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

श्रावण माह माहात्म्य पाँचवाँ अध्याय | Chapter -5 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

श्रावण माह माहात्म्य चौथा अध्याय | Chapter -4 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

श्रावण माह माहात्म्य तीसरा अध्याय | Chapter -3 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

श्रावण माह माहात्म्य दूसरा अध्याय | Chapter -2 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

श्रावण माह माहात्म्य पहला अध्याय | Chapter -1 Shravan Maas ki Katha (Kahani)

श्री राहु-मंगल ग्रह स्तोत्र | Sri Rahu-Mangal Dev Stotram

श्री केतु-मंगल ग्रह स्तोत्र Sri Ketu-Mangal Dev Stotram

श्री केतु ग्रह पंचविंशति नाम स्तोत्र | Sri Ketu Dev Panchvivshati nam Stotram

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श्री सूर्याष्टक ग्रह स्तोत्र | Sri Surya Ashtakam Dev Stotram

श्री ऋणमोचन मंगल ग्रह स्तोत्र | Sri Rin Mochan Mangal Dev Stotram

चंद्रमा के रत्न मोती आदि धारण विधि, मुहूर्त | Pearl Ratan Dharan Vidhi, Muhurat

pearl dharan krne ki vidhi

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आप शुद्ध तथा असली साउथ सी का सुच्चा मोती अथवा इसके उपरत्न जो कि सस्ते भी होंगे और शुभ असर भी मोती जैसा ही देंगे। जैसे – निमरू, मूनस्टोन, चंद्रमणि, सफेद पुखराज आदि चांदी की अंगूठी में बनवाकर नीचे बताए गए शुभ मुहूर्त में धारण करें।

प्राण प्रतिष्ठा तथा रत्न धारण की विधि

मुहूर्त वाले दिन पूजा पाठ वाले स्थान पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर अपनी रत्न जड़ित अंगूठी रख दीजिए। जोतधूप जलाकर एक कटोरी में कच्ची लस्सी (दूध में पानी मिलाकर) और दूसरी कटोरी में थोड़ा गंगाजल रखिए। इसके बाद अपने आसन पर बैठकर मोती तथा इसके उपरत्नों में विशेष शक्ति उत्पन्न करने के लिए इस मंत्र का 108 बार जाप करें। 

ॐ श्राम् श्रीम् श्रौम् सः चंद्रमसे नमः। 

 

 

मंत्र जाप पूरा होने के बाद नीचे लिखा हुआ प्राण प्रतिष्ठा मंत्र 3 बार बोलें।

आं ह्रीं कों यं रं लं वं शं सं षं हं सः

देवस्य प्राणाः इह प्राणाः पुनरूच्चार्य देवस्य सर्वेन्द्रियाणी इह।

पुनरूच्चार्य देवस्य त्वक्पाणि पाद पायु पस्थादीनि इहः।।

पुनरूच्चार्य देवस्य वाङमनश्चक्षुः क्षोत्रा घृणानि इहागत्य सुखेन चिरंतिष्ठतु स्वाहा।।

 

 

इसके बाद रतन को उठाकर सबसे पहले दूध मिले जल में धो लें। उसके बाद गंगाजल में धोकर तथा धूपदीप के ऊपर से सात बार सीधी तरफ (क्लॉक वाइज) घुमाकर ॐ श्राम् श्रीम् श्रौम् सः चंद्रमसे नमः। मंत्र बोलते हुए जिस हाथ से आप काम करते हैं यानी आपका (एक्टिव हैंड) उस हाथ की कनिष्ठिका (छोटी अंगुली) में धारण करें। 

नोट अपने आसन से उठने से पहले धरती पर हाथ लगाकर उसे माथे से लगाकर प्रणाम करें।

चंद्रमा ग्रह के रत्न धारण करने के शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)

सन:-2024-2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
25 मार्च प्रातः 10:35 से 26 मार्च सूर्योदय तक 
22 अप्रैल सूर्योदय से 22 अप्रैल रात्रि 07:59 तक
24 जून दोपहर 03:54 से 25 जून सूर्योदय तक
22 जुलाई सूर्योदय से 22 जुलाई रात्रि 10:21 तक
19 अगस्त सूर्योदय से 19 अगस्त सुबह 08:10 तक
26 अगस्त दोपहर 03:55 से 27 अगस्त सूर्योदय तक
23 सितंबर सूर्योदय से 23 सितंबर रात्रि 10:07 तक
21 अक्टूबर सूर्योदय से 21 अक्टूबर सुबह 06:50 तक
23 दिसंबर सुबह 09:09 से 24 दिसंबर सूर्योदय तक

सन – 2025

20 जनवरी सूर्योदय से 20 जनवरी रात्रि 08:30 तक 
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सूर्य के रत्न माणिक आदि धारण विधि, मुहूर्त | Ruby Ratan Dharan Vidhi, Muhurat

Sun ratna gemstone ruby dharan

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आप शुद्ध तथा असली माणिक्य अथवा इसके उपरत्न जो कि सस्ते भी होंगे और शुभ असर भी माणिक्य जैसा ही देंगे। जैसेलाल सुजलाइट, लाल तामड़ा महसूरी आदि सोने की अंगूठी में बनवाकर नीचे बताए गए शुभ मुहूर्त में धारण करें। 

प्राण प्रतिष्ठा तथा रत्न धारण की विधि

मुहूर्त वाले दिन पूजा पाठ वाले स्थान पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर अपनी रत्न जड़ित अंगूठी रख दीजिए। जोतधूप जलाकर एक कटोरी में कच्ची लस्सी (दूध में पानी मिलाकर) और दूसरी कटोरी में थोड़ा गंगाजल रखिए। इसके बाद अपने आसन पर बैठकर माणिक्य तथा इसके उपरत्नों में विशेष शक्ति उत्पन्न करने के लिए इस मंत्र का 108 बार जाप करें। 

ह्राम् ह्रीम् ह्रौम् सः सूर्याय नमः।

 

मंत्र जाप पूरा होने के बाद नीचे लिखा हुआ प्राण प्रतिष्ठा मंत्र 3 बार बोलें।

आं ह्रीं कों यं रं लं वं शं सं षं हं सः

देवस्य प्राणाः इह प्राणाः पुनरूच्चार्य देवस्य सर्वेन्द्रियाणी इह।

पुनरूच्चार्य देवस्य त्वक्पाणि पाद पायु पस्थादीनि इहः।।

पुनरूच्चार्य देवस्य वाङमनश्चक्षुः क्षोत्रा घृणानि इहागत्य सुखेन चिरंतिष्ठतु स्वाहा।।

 

 

इसके बाद रतन को उठाकर सबसे पहले दूध मिले जल में धो लें। उसके बाद गंगाजल में धोकर तथा धूपदीप के ऊपर से सात बार सीधी तरफ (क्लॉक वाइज) घुमाकर ह्राम् ह्रीम् ह्रौम् सः सूर्याय नमः। मंत्र बोलते हुए जिस हाथ से आप काम करते हैं यानी आपका (एक्टिव हैंड) उस हाथ की अनामिका (छोटी अंगुली के पास वाली) अंगुली में धारण करें। 

नोट अपने आसन से उठने से पहले धरती पर हाथ लगाकर उसे माथे से लगाकर प्रणाम करें।

सूर्य ग्रह के रत्न धारण करने के शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)

सन : 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
24 मार्च प्रातः 07:33 से 25 मार्च सूर्योदय
21 अप्रैल  सूर्योदय से 21 अप्रैल शाम 05:08 तक
23 जून  शाम 05:03 से  24 जून  सूर्योदय तक
21 जुलाई  सूर्योदय से 22 जुलाई रात्रि 00:14 तक
18 अगस्त सूर्योदय से 18 अगस्त सुबह 10:15 तक
25 अगस्त शाम 04:45 से  26 अगस्त सूर्योदय तक
22 सितंबर सूर्योदय से 22 सितंबर रात्रि 11:02 तक
20 अक्टूबर सूर्योदय से 20 अक्टूबर सुबह 08:31 तक
24 नवंबर रात्रि 10:16 से 25 नवंबर सूर्योदय तक
22 दिसंबर सूर्योदय से 23 दिसंबर सूर्योदय तक

सन – 2025

19 जनवरी सूर्योदय से 19 जनवरी शाम 05:30 तक
रत्न धारण करने की अवधि और उसका महत्व क्या है?   Ruby dharan karne ki vidhi, Manik dharan karne ki vidhi, Manikya ratan dharan karne ki vidhi, ruby ratna kaise dharan karna chahiye, ruby stone kaise dharan karna chahiye , ratna dharan vidhi in hindi, Ratan dharan karne ka aaj ka shubh muhurt, kaun sa ratan dharan kare, Ruby ratna benefits in hindi, Ruby gemstone dharan karne ki vidhi, Ruby ratna or manik or Manikya ke sath konsa ratna pahne, manikya ratna pehne ki vidhi, manik ratna dharan karne ki vidhi in hindi, ruby dharan karne ka mantra, manikya dharan karne ka mantra, ruby dharan karne ka shubh muhurat

Muhurat for Gemstones | रत्न धारण मुहूर्त (सन् 2024-2025)

Gemstone Shubh muhurat

Gemstone Shubh muhurat

ओम नमः शिवाय

सज्जनों

जिस प्रकार पत्थर अपने आप में पत्थर ही होता है, परंतु वह शुभ मुहूर्त में अभिमंत्रित होकर देवत्व को प्राप्त होता है। ठीक उसी प्रकार मणि माणिक्य तथा रतन आदि भी पत्थर रूप ही होते हैं परंतु उनमें हमारे वैदिक मंत्रों के द्वारा विशेष प्राण प्रतिष्ठा करके विशेष शक्ति जागृत की जाती है। जिस समय में यह हमें लाभ पहुंचा सकती है उसे मुहूर्त कहा जाता है। नीचे नवग्रहों के 9 मुख्य रतन और उनके उप रतन को धारण करने की विधि तथा मुहूर्त बताया गया है। आप भी इस समय में बताए गए रत्नों को धारण करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

रतन धारण मुहूर्तों की विशेषता

वैसे तो साधारण अवस्था में किसी भी रत्न को उसके स्वामी के वार वाले दिन धारण कर लिया जाता है। जैसे सूर्य ग्रह का वार रविवार है इसीलिए सूर्य ग्रह का रत्न कोई भी व्यक्ति रविवार को धारण कर लेता है। परंतु शास्त्रों में लिखा है कि यदि उस वार का नक्षत्र भी उस दिन आ जावे तो रत्न को सिद्ध करने की शक्ति कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है। इसलिए हमारे द्वारा नीचे जो मुहूर्त दिए गए हैं। यह जिस रत्न को आप धारण करना चाहते हैं। उसके स्वामी के वार वाले दिन उस ग्रह के नक्षत्र का भी समावेश है अर्थात रत्न धारण करने के लिए डबल मुहूर्त निकाला गया है। इसके लिए वहां पर मुहूर्त का विशेष समय भी दिया गया है क्योंकि उस वार में ग्रह का नक्षत्र जितने समय तक रहेगा। उतने समय तक डबल मुहूर्त प्राप्त हो सकता है। अतः आप सभी सज्जन इन मुहूर्तों का लाभ उठा सकते हैं। यदि आप नीचे बताए गए मुहूर्त में रत्न को सिद्ध करते हैं तो रत्न का मालिक ग्रह अपने रत्न में अधिक ऊर्जा का संचार करेगा।

 

 

नोट – यदि आपको किसी ग्रह का तुलादान अथवा साधारण दान करना है तो भी आप उस ग्रह से संबंधित मुहूर्त वाले दिन तुला दान अथवा साधारण दान भी कर सकते हैं क्योंकि उस दिन उस ग्रह का नक्षत्र और वार तीनों ही उपस्थित होंगे। इसलिए दान करने के लिए भी यह मुहूर्त श्रेष्ठ फलदायक सिद्ध होंगे।

 

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gemstones | Shubh muhurat for gemstones | Ratna Shubh muhurat | Ruby , sapphire , amethyst , opal, moonstone , garnet , pukhraj , moti wearing muhurat

Gandmool | गंडमूल (सन् 2024-2025)

gandmool today

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गंडमूल [Gandmool]  (सन् 2024-2025)


गंडमूल सन् 2024

नक्षत्र प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
रेवती 08 अप्रैल सुबह 10:12 से 09 अप्रैल सुबह 07:32 तक
अश्विनी 09 अप्रैल सुबह 07:32 से 10 अप्रैल प्रातः 05:06 तक
आश्लेषा 17 अप्रैल प्रातः 05:15 से 18 अप्रैल सुबह 07:56 तक
मघा 18 अप्रैल सुबह 07:56 से 19 अप्रैल सुबह 10:56 तक
जयेष्ठा 27 अप्रैल रात्रि 03:39 से 28 अप्रैल प्रातः 04:28 तक
मूल 28 अप्रैल प्रातः 04:28 से 29 अप्रैल प्रातः 04:49 तक
रेवती 05 मई रात्रि 07:57 से 06 मई  शाम 05:43 तक
अश्विनी 06 मई शाम 05:43 से 07 मई  दोपहर 03:32 तक
आश्लेषा 14 मई  दोपहर 01:05 से 15 मई  दोपहर 03:25 तक
मघा 15 मई दोपहर 03:25 से 16 मई शाम 06:14 तक
जयेष्ठा 24 मई सुबह 10:10 से 25 मई सुबह 10:36 तक
मूल 25 मई सुबह 10:36 से 26 मई सुबह 10:35 तक
रेवती 2 जून रात्रि 03:16 से 03 जून रात्रि 01:40 तक
अश्विनी 03 जून रात्रि 01:40 से 04 जून रात्रि 00:05 तक
आश्लेषा 10 जून रात्रि 09:39 से 11 जून रात्रि 11:38 तक
मघा 11 जून रात्रि 11:38 से 13 जून रात्रि 02:12 तक
जयेष्ठा 20 जून शाम 06:10 से 21 जून शाम 06:18 तक
मूल 21 जून शाम 06:18 से 22 जून शाम 05:54 तक
रेवती 29 जून सुबह 08:49 से 30 जून सुबह 07:34 तक
अश्विनी 30 जून सुबह 07:34 से 01 जुलाई सुबह 06:26 तक
आश्लेषा 08 जुलाई सुबह 06:02 से 09 जुलाई सुबह 07:52 तक
मघा 09 जुलाई सुबह 07:52 से 10 जुलाई सुबह 10:15 तक
जयेष्ठा 18 जुलाई रात्रि 03:12 से 19 जुलाई रात्रि 03:25 तक
मूल 19 जुलाई रात्रि 03:25 से 20 जुलाई रात्रि 02:55 तक
रेवती 26 जुलाई दोपहर 02:30 से 27 जुलाई दोपहर 12:59 तक
अश्विनी 27 जुलाई दोपहर 12:59 से 28 जुलाई सुबह 11:47 तक
आश्लेषा 04 अगस्त दोपहर 01:26 से 05 अगस्त दोपहर 03:21 तक
मघा 05 अगस्त दोपहर 03:21 से 06 अगस्त शाम 05:44 तक
जयेष्ठा 14 अगस्त दोपहर 12:12 से 15 अगस्त दोपहर 12:52 तक
मूल 15 अगस्त दोपहर 12:52 से 16 अगस्त दोपहर 12:43 तक
रेवती 22 अगस्त रात्रि 10:05 से 23 अगस्त रात्रि  07:54 तक
अश्विनी 24 अगस्त रात्रि  07:54 से 24 अगस्त शाम 06:05 तक
आश्लेषा 31 अगस्त रात्रि 07:39 से 01 सितंबर रात्रि 09:48 तक
मघा 01 सितंबर रात्रि 09:48 से 03 सितंबर रात्रि 00:20 तक
जयेष्ठा 10 सितंबर रात्रि 08:04 से 11 सितंबर रात्रि 09:21 तक
मूल 11 सितंबर रात्रि 09:21 से 12 सितंबर रात्रि 09:52 तक
रेवती 19 सितंबर सुबह 08:04 से 20 सितंबर प्रातः 05:15 तक
अश्विनी 20 सितंबर प्रातः 05:15 से 21 सितंबर रात्रि 02:42 तक
आश्लेषा 28 सितंबर रात्रि 01:20 से 28 सितंबर रात्रि 03:37 तक
मघा 28 सितंबर रात्रि 03:37 से 30 सितंबर सुबह 06:18 तक
जयेष्ठा 08 अक्टूबर रात्रि 02:25 से 08 अक्टूबर प्रातः 04:08 तक
मूल 08 अक्टूबर  प्रातः 04:08 से 10 अक्टूबर प्रातः 05:15 तक
रेवती 16 अक्टूबर रात्रि 07:17 से 17 अक्टूबर शाम 04:20 तक
अश्विनी 17 अक्टूबर  शाम 04:20 से 18 अक्टूबर  दोपहर 01:26 तक
आश्लेषा 25 अक्टूबर सुबह 07:39 से 26 अक्टूबर सुबह 09:45 तक
मघा 26 अक्टूबर सुबह 09:45 से 27 अक्टूबर दोपहर 12:24 तक
जयेष्ठा 04 नवंबर सुबह 08:03 से 05 नवंबर सुबह 09:45 तक
मूल 05 नवंबर सुबह 09:45 से 06 नवंबर सुबह 11:00 तक
रेवती 13 नवंबर प्रातः 05:40 से 14 नवंबर रात्रि 03:11 तक
अश्विनी 15 नवंबर रात्रि 03:11 से 15 नवंबर रात्रि 00:33 तक
आश्लेषा 21 नवंबर दोपहर 03:35 से 22 नवंबर शाम 05:09 तक
मघा 22 नवंबर शाम 05:09 से 23 नवंबर रात्रि 07:27 तक
जयेष्ठा 01 दिसंबर दोपहर 02:23 से 02 दिसंबर दोपहर 03:45 तक
मूल 02 दिसंबर दोपहर 03:45 से 03 दिसंबर शाम 04:41 तक
रेवती 10 दिसंबर दोपहर 01:30 से 11 दिसंबर सुबह 11:47 तक
अश्विनी 11 दिसंबर सुबह 11:47 तक 12 दिसंबर सुबह 09:52 तक
आश्लेषा 19 दिसंबर रात्रि 00:58 से 20 दिसंबर रात्रि 01:59 तक
मघा 20 दिसंबर रात्रि 01:59 से 21 दिसंबर रात्रि 03:47 तक
जयेष्ठा 28 दिसंबर रात्रि 10:13 से 29 दिसंबर रात्रि 11:22 तक
मूल 29 दिसंबर रात्रि 11:22 से 30 दिसंबर रात्रि 11:57 तक

गंडमूल सन् 2025

नक्षत्र प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
रेवती 06 जनवरी रात्रि 07:06 से 07 जनवरी शाम 05:50 तक
अश्विनी 07 जनवरी शाम 05:50 से 08 जनवरी शाम 04:29 तक
आश्लेषा 15 जनवरी सुबह 10:28 से 16 जनवरी सुबह 11:16 तक
मघा 16 जनवरी सुबह 11:16 से 17 जनवरी दोपहर 12:44 तक
जयेष्ठा 25 जनवरी सुबह 07:07 से 26 जनवरी सुबह 08:26 तक
मूल 26 जनवरी सुबह 08:26 से 27 जनवरी सुबह 09:02 तक
रेवती 03 फरवरी रात्रि 00:52 से 03 फरवरी रात्रि 11:16 तक
अश्विनी 03 फरवरी रात्रि 11:16 से 04 फरवरी रात्रि 09:49 तक
आश्लेषा 11 फरवरी शाम 06:34 से 12 फरवरी रात्रि 07:35 तक
मघा 12 फरवरी रात्रि 07:35 से 13 फरवरी रात्रि 09:07 तक
जयेष्ठा 21 फरवरी दोपहर 03:54 से 22 फरवरी शाम 05:40 तक
मूल 22 फरवरी शाम 05:40 से 23 फरवरी शाम 06:42 तक
रेवती 02 मार्च सुबह 08:59 से 03 मार्च सुबह 06:39 तक
अश्विनी 03 मार्च सुबह 06:39 से 04 मार्च प्रातः 04:29 तक
आश्लेषा 11 मार्च रात्रि 00:51 से 12 मार्च रात्रि 02:15 तक
मघा 12 मार्च रात्रि 02:15 से 13 मार्च प्रातः 04:05 तक
जयेष्ठा  20 मार्च रात्रि 11:31 से 22 मार्च रात्रि 01:45 तक
मूल  22 मार्च रात्रि 01:45 से 23 मार्च रात्रि 03:23 तक
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Panchak | पंचक (सन् 2024-2025)

panchak today
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पंचकों का प्रारंभ एवं समाप्ति काल सन् 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
05 अप्रैल सुबह 07:12 से 09 अप्रैल सुबह 07ः32 तक
02 मई दोपहर 02:32 से 06 मई शाम 05:43 तक
29 मई रात्रि 08:06 से 03 जून रात्रि 01:40 तक
26 जून रात्रि 01:49 से 30 जून सुबह 07:34 तक
23 जुलाई सुबह 09:20 से 27 जुलाई दोपहर 12:59 तक
19 अगस्त शाम 06:59 से 23 अगस्त रात्रि 07:54 तक
16 सितंबर प्रातः 05:44 से 20 सितंबर प्रातः 05:15 तक
13 अक्टूबर दोपहर 03:44 से 17 अक्टूबर शाम 04:20 तक
09 नवंबर रात्रि 11:27 से 14 नवंबर रात्रि 03:11 तक
07 दिसंबर प्रातः 05:06 से 11 दिसंबर सुबह 11:47 तक

सन् – 2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
03 जनवरी सुबह 10:47 से 07 जनवरी शाम 05:50 तक
30 जनवरी शाम 06:45 से 03 फरवरी रात्रि 11:16 तक
27 फरवरी प्रातः 04:37 से 03 मार्च सुबह 06:39 तक
26 मार्च दोपहर 03:14 से 30 मार्च शाम 04:35 तक

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Siddhi Yog Shubh Muhurat | सिद्धि योग (सन् 2024-2025)

special shubh muhurat

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मुहूर्त ग्रंथों में सिद्धि योग भी सर्वार्थसिद्धि और रवि योग की तरह ही प्रत्येक कार्य के लिए महत्वपूर्ण माने गए हैं। सिद्धि योग में काम आरंभ करने से यम घंटक व विष आदि का दोषों प्रभाव समाप्त हो जाता है। ऐसा शास्त्रों का वचन है।

सिद्धि योग सन् 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
31 मार्चरात्रि 10:57 से22 मार्चसूर्योदय तक
11 अप्रैलरात्रि 03:06 से11 अप्रैलसूर्योदय तक
19 अप्रैलसुबह 10:57 से20 अप्रैलसूर्योदय तक
28 अप्रैलसूर्योदय से29 अप्रैलप्रातः 04:49 तक
08 मईदोपहर 01:34 से09 मईसूर्योदय तक
17 मईसूर्योदय से17 मई रात्रि 09:18 तक
26 मईसूर्योदय से26 मईसुबह 10:35 तक
05 जूनसूर्योदय से05 जूनरात्रि 09:16 तक
24 जूनदोपहर 03:55 से25 जूनसूर्योदय तक
22 जुलाईसूर्योदय से22 जुलाईरात्रि 10:21 तक
11 अगस्तप्रातः 05:49 से11 अगस्तसूर्योदय तक
19 अगस्तसूर्योदय से19 अगस्तसुबह 08:10 तक
29 अगस्तशाम 04:40 से30 अगस्तसूर्योदय तक
07 सितंबरदोपहर 12:35 से08 सितंबरसूर्योदय तक
26 सितंबरसूर्योदय से26 सितंबररात्रि 11:33 तक
05 अक्टूबरसूर्योदय से05 अक्टूबररात्रि 09:33 तक
15 अक्टूबररात्रि 10:09 से16 अक्टूबरसूर्योदय तक
12 नवंबरसुबह 07:53 से13 नवंबरप्रातः 05:40 तक
10 दिसंबरसूर्योदय से10 दिसंबरदोपहर 01:30 तक
21 दिसंबररात्रि 03:48 से21 दिसंबरसूर्योदय तक
29 दिसंबररात्रि 11:23 से30 दिसंबरसूर्योदय तक

सन् – 2025

17 जनवरीदोपहर 12:45 से18 जनवरीसूर्योदय तक
26 जनवरीसुबह 08:27 से27 जनवरीसूर्योदय तक
05 फरवरीरात्रि 08:34 से06 फरवरीसूर्योदय तक
14 फरवरीसूर्योदय से14 फरवरीरात्रि 11:09 तक
23  फरवरीसूर्योदय से23 फरवरीशाम 06:42 तक
05 मार्चसूर्योदय से06 मार्चरात्रि 01:08 तक
25 मार्चप्रातः 04:27 से25 मार्चसूर्योदय तक

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Siddhi Yog shubh muhurat | Today’s Shubh muhurat | Shubh muhurat Online

Dwipushkar yog shubh muhurat | द्विपुष्कर योग (सन् 2024-2025)

shubh muhurat pushkar yog

shubh muhurat pushkar yog

‘द्विपुष्कर योग’ जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि दोगुना। ‘जी हां’  द्विपुष्कर योग में यदि किसी व्यक्ति को लाभ होता है तो है दोगुना होता है और यदि किसी कारणवश हानि हो जाती है तो वह भी 2 गुना ही होती है। अतः जितने भी हमारे शास्त्रों में अच्छे मुहूर्त और योग बताए गए हैं उनको दोगुना करने वाला योग द्विपुष्कर योग कहलाता है। इस युग में शुभ काम करने पर यह दोगुना लाभ प्रदान करता है।                                  

द्विपुष्कर योग सन् 204-2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
16 मार्चशाम 04:06 से16 मार्चरात्रि 09:38 तक
26 मार्चदोपहर 02:57 से27 मार्चसूर्योदय तक
20 मईरात्रि 03:17 से20 मईसूर्योदय तक
23 जुलाईसूर्योदय से23 जुलाईसुबह 10:23 तक
11 अगस्तप्रातः 05:46  से 11 अगस्तप्रातः 05:49 तक
24 सितंबरसूर्योदय से24 सितंबरदोपहर 12:39 तक
17 नवंबरशाम 05:23 से17 नवंबररात्रि 09:06 तक
27 नवंबरप्रातः 04:35 से29 नवंबरसूर्योदय तक
07 दिसंबर  सुबह 11:07 से07 दिसंबरशाम 04:50 तक

सन – 2025

21 जनवरीसूर्योदय से21 जनवरीदोपहर 12:40 तक
16 मार्चसुबह 11:46 से16 मार्चशाम 04:58 तक
26 मार्चप्रातः 03:50 से26 मार्चसूर्योदय तक

 

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Tripushkar Yog | त्रिपुष्कर योग (सन् 2024-2025)

shubh muhurat teen guna labh dene wala yog
shubh muhurat teen guna labh dene wala yog ‘त्रिपुष्कर योग’ जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि तिगुना। ‘जी हां’  त्रिपुष्कर योग में यदि किसी व्यक्ति को लाभ होता है तो है तिगुना होता है और यदि किसी कारणवश हानि हो जाती है तो वह भी 3 गुना ही होती है। अतः जितने भी हमारे शास्त्रों में अच्छे मुहूर्त और योग बताए गए हैं उनको दोगुना करने वाला योग त्रिपुष्कर योग कहलाता है। इस युग में शुभ काम करने पर यह तिगुना लाभ प्रदान करता है।    

त्रिपुष्कर योग सन् 2024-2025

प्रारंभ काल – तारीख प्रारंभ काल – घं.मि. तारीख – समाप्ति काल समाप्ति काल – घं.मि.
14 अप्रैल रात्रि 01:35 से 15 अप्रैल सूर्योदय तक
20 अप्रैल दोपहर 02:05 से 20 अप्रैल रात्रि 10:42 तक
30 अप्रैल सुबह 07:06 से 01 मई प्रातः 04:09 तक
04 मई रात्रि 08:40 से 04 मई रात्रि 10:07 तक
18 जून दोपहर 03:57 से 19 जून सूर्योदय तक
23 जून शाम 05:04 से 24 जून रात्रि 03:26 तक
02 जुलाई सुबह 08:43 से 03 जुलाई प्रातः 04:40 तक
07 जुलाई प्रातः 04:27 से 07 जुलाई प्रातः 04:47 तक
21 अगस्त रात्रि 03:10 से 21 अगस्त सूर्योदय तक
25 अगस्त शाम 04:46 से 26 अगस्त सूर्योदय तक
23 अक्टूबर प्रातः 05:39 से 23 अक्टूबर सूर्योदय तक
29 अक्टूबर सूर्योदय से 29 अक्टूबर सुबह 10:32 तक
02 नवंबर रात्रि 08:23 से 03 नवंबर प्रातः 05:58 तक
17 दिसंबर सूर्योदय से 17 दिसंबर सुबह 10:56 तक
22 दिसंबर सुबह 06:15 से 22 दिसंबर दोपहर 02:32 तक

सन – 2025

 
01 जनवरी रात्रि 03:23 से 01 जनवरी सूर्योदय तक
05 जनवरी रात्रि 08:16 से 05 जनवरी रात्रि 08:18 तक
09 फरवरी शाम 05:54 से 09 फरवरी रात्रि 07:25 तक
25 फरवरी सूर्योदय से 21 फरवरी दोपहर 12:48 तक
01 मार्च सूर्योदय से 01 मार्च सुबह  11:22 तक

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Jwalamukhi yoga / ज्वालामुखी योग – Inauspicious Yoga 2024-2025

inauspicious day

inauspicious day

सज्जनों आज हम ऐसे योग के बारे में बात करेंगे। जिसमें कोई भी कार्य आरंभ करने का मतलब है की कार्य का विनाश करना। यह बहुत ही अशुभ (Inauspicious) योग माना गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में।

What is Jwalamukhi Yoga ? ज्वालामुखी योग क्या है ?

ज्वालामुखी योग (Jwalamukhi yoga) का फल अशुभ (Inauspicious) माना गया है। इस योग में आरंभ किया हुआ कार्य पूर्णतया सिद्ध नहीं हो पाता अथवा बार-बार विघ्न-बाधाएं होती हैं। इस योग में भूलकर भी शुभ कार्य आरंभ नहीं करने चाहिए। इस मुहूर्त में सिर्फ शत्रु को प्रताड़ित व परेशान करने के लिए उपाय किए जा सकते हैं बाकी अन्य किसी भी शुभ कार्य में इस मुहूर्त का प्रयोग नहीं किया जाता है। जब प्रतिपदा को मूल नक्षत्र, पंचमी को भरणी, अष्टमी को कृतिका, नवमी को रोहिणी अथवा दशमी को अश्लेषा नक्षत्र आता है, तो ज्वालामुखी योग (Jwalamukhi yoga) बनता है। इस प्रकार 5 नक्षत्रों एवं 5 तिथियों के सहयोग से ज्वालामुखी योग बनता है। इस योग में हम पर कितना अशुभ प्रभाव पड़ता है। इसके बारे में शास्त्र वचन नीचे दिया गया है।

जन्मे तो जीवे नही, बसे तो उजड़े गांव,

नारी पहने चूड़ियां, पुरुष विहिनी होय ।

बोवो तो काटे नहीं, कुएं उपजे ना नीर।।

अर्थात- इस योग में अगर बच्चे का जन्म हो जाए तो वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। इस योग में अगर कोई व्यक्ति अपना घर बसाता है तो वह उजड़ जाता है। इस योग में अगर कोई स्त्री चूड़ियां पहनती हैं तो वह विधवा होती है। इस योग में अगर कोई व्यक्ति खेत में अन्न बोता है तो फसल का नाश होता है तथा अगर इस योग में कोई व्यक्ति कुएं आदि की खुदाई करता है तो उसमें से पानी नहीं निकलता है। इस प्रकार से यह बहुत ही अशुभ योग कहा जाता है। ज्वालामुखी योग के बारे में कहा गया है कि यदि कोई इस योग में रिश्ता पक्का हो जाता है अथवा इस योग में किसी व्यक्ति का विवाह हो जाता है तो उसे वैधव्य का दुख झेलना पड़ता है। इस योग में अगर कोई व्यक्ति बीमार हो जाए तो वह जल्दी से ठीक नहीं हो पाता। इस प्रकार से अनगिनत बहुत सारे अशुभ फल प्राप्त होते हैं अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस ज्वालामुखी योग में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।

साल 2024-2025 में ज्वालामुखी योग बनने की तिथियाँ

सन्: 2024- 2025

प्रारंभ काल – तारीखप्रारंभ काल – घं.मि.तारीख – समाप्ति कालसमाप्ति काल – घं.मि.
17 अप्रैलदोपहर 03:15 से18 अप्रैलसुबह 07:57 तक
22 जूनसुबह 06:38 से22 जूनशाम 05:54 तक
26 अगस्तरात्रि 03:40 से26 अगस्तदोपहर 03:55 तक
26 अगस्तरात्रि 02:20 से27 अगस्तदोपहर 03:38 तक
21 सितंबरशाम 06:14 से21 सितंबररात्रि 12:36 तक
26 अक्टूबररात्रि 03:23 से26 अक्टूबरसुबह 09:46 तक

सन्: 2025

05 फरवरी

रात्रि 08:33 से

05 फरवरी

रात्रि 12:36 तक

06 फरवरी

रात्रि 07:30 से

06 फरवरी

रात्रि 10:54 तक

04 मार्च

सुबह 04:30 से

04 मार्च

दोपहर  03:17 तक

ओम नमः शिवाय

पंडित सुनील वत्स

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