Sri Sita (108) Ashtottara Shatanama stotram श्री सीता-अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

Sita Mata

Sri Sita Ashtottara Shatanama stotram श्री सीता-अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
 

॥ विनियोग ॥

अस्य श्रीसीतानामाष्टोत्तरमन्त्रस्य अगस्तिऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः । रमेति बीजम् । मातुलुङ्गीति शक्तिः। पद्माक्षजेति कीलकम्। अवनिजेत्यस्त्रम्। जनकजेति कवचम्। मूलकासुरमर्दिनीति परमो मन्त्रः। श्रीसीतारामचन्द्रप्रीत्यर्थ सकलकामनासिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः।

॥ करन्यास ॥

ॐ सीतायै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। ॐ रमायै तर्जनीभ्यां नमः। ॐ मातुलुङ्ग्यै मध्यमाभ्यां नमः। ॐ पद्माक्षजायै अनामिकाभ्यां नमः। ॐ अवनिजायै कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ जनकजायै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

॥ हृदयादिन्यास ॥

ॐ सीतायै हृदयाय नमः। ॐ रमायै शिरसे स्वाहा । ॐ मातुलुङ्ग्यै शिखायै वषट्। ॐ पद्माक्षजायै नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ जनकात्मजायै अस्त्राय फट्। ॐ मूलकासुरमर्दिन्यै इति दिग्बन्धः।

॥ ध्यान ॥

वामाङ्गे रघुनायकस्य रुचिरे या संस्थिता शोभना
या विप्राधिपयानरम्यनयना या विप्रपालानना।
विद्युत्पुञ्जविराजमानवसना भक्तार्तिसंखण्डना
श्रीमद्राघवपादपद्मयुगलन्यस्तेक्षणा सावतु॥

॥ स्तोत्र ॥

श्री सीता जानकी देवी वैदेही राघवप्रिया।
रमावनिसुता रामा राक्षसान्तप्रकारिणी॥१॥

रत्नगुप्ता मातुलुङ्गी मैथिली भक्ततोषदा।
पद्माक्षजा कञ्जनेत्रा स्मितास्या नूपुरस्वना॥२॥

वैकुण्ठनिलया मा श्रीर्मुक्तिदा कामपूरणी।
नृपात्मजा हेमवर्णा मृदुलाङ्गी सुभाषिणी॥३॥

कुशाम्बिका दिव्यदा च लवमाता मनोहरा।
हनुमद्वन्दितपदा मुग्धा केयूरधारिणी॥४॥

अशोकवनमध्यस्था रावणादिकमोहिनी।
विमानसंस्थिता सुभ्रूः सुकेशी रशनान्विता॥५॥

रजोरूपा सत्त्वरूपा तामसी वह्निवासिनी।
हेममृगासक्तचित्ता वाल्मीक्याश्रमवासिनी॥६॥

पतिव्रता महामाया पीतकौशेयवासिनी।
मृगनेत्रा च बिम्बोष्ठी धनुर्विद्याविशारदा॥७॥

सौम्यरुपा दशरथस्नुषा चामरवीजिता।
सुमेधादुहिता दिव्यरूप त्रैलोक्यपालिनी॥८॥

अन्नपूर्णा महालक्ष्मीर्धीर्लज्जा च सरस्वती।
शान्तिः पुष्टिः क्षमा गौरी प्रभायोध्यानिवासिनी॥९॥

वसन्तशीतला गौरी स्नानसन्तुष्टमानसा।
रमानामभद्रसंस्था हेमकुम्भपयोधरा॥१०॥

सुरार्चिता धृतिः कान्तिः स्मृतिर्मेधा विभावरी।
लघूदरा वरारोहा हेमकङ्कणमण्डिता॥११॥

द्विजपत्न्यर्पितनिजभूषा राघवतोषिणी।
श्रीरामसेवनरता रत्नताटङ्कधारिणी॥१२॥

रामवामाङ्गसंस्था च रामचन्द्रैकरञ्जनी।
सरयूजलसंक्रीडाकारिणी राममोहिनी॥१३॥

सुवर्णतुलिता पुण्या पुण्यकीर्तिः कलावती।
कलकण्ठा कम्बुकण्ठा रम्भोरुर्गजगामिनी॥१४॥

रामार्पितमना रामवन्दिता रामवल्लभा।
श्रीरामपदचिह्नाङ्का रामरामेतिभाषिणी॥१५॥

रामपर्यङ्कशयना रामाङ्घ्रिक्षालिनी वरा।
कामधेन्वन्नसन्तुष्टा मातुलुङ्गकरे धृता॥१६॥

दिव्यचन्दनसंस्था श्रीर्मूलकारसुरमर्दिनी।
एवमष्टोत्तरशतं सीतानाम्नां सुपुण्यदम्॥१७॥

ये पठन्ति नरा भूम्यां ते धन्याः स्वर्गगामिनः।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सीतायाः स्तोत्रमुत्तमम्॥१८॥

जपनीयं प्रयत्नेन सर्वदा भक्तिपूर्वकम्।
सति स्तोत्राण्यनेकानि पुण्यदानि महान्ति च॥१९॥

नानेन सदृशानीह तानि सर्वाणि भूसुर।
स्तोत्राणामुत्तमं चेदं भुक्तिमुक्तिप्रदं नृणाम्॥२०॥

एवं सुतीक्ष्ण ते प्रोक्तमष्टोत्तरशतं शुभम्।
सीतानाम्नां पुण्यदं च श्रवणान्मङ्गलप्रदम्॥२१॥

नरैः प्रातः समुत्थाय पठितव्यं प्रयत्नतः।
सीतापूजनकालेऽपि सर्ववाञ्छितदायकम्॥२२॥

॥ इति श्री आनन्दरामायणे श्री सीताष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Sri Sita (108 Naam) Ashtottara Shatanamavali -श्री सीता अष्टोत्तरशतनामावली

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