सम्पूर्ण माघ मास पुराण कथा और माहात्म्य | Sampuran Magha Maas Mahatmya

Magh Mass Mahatmaya

Magh Mass Mahatmaya

माघ, कार्तिक और वैशाख महापुनीत महीने माने गए हैं। इसमें तीर्थस्नानादि पर या स्वदेश में रहकर नित्यप्रति स्नान-दानादि करने से अनंत फल होता है। स्नान सूर्योदय के समय श्रेष्ठ है। उसके बाद जितना विलंब हो उतना ही निष्फल होता है। स्नान के लिए काशी, प्रयाग आदि तीर्थ उत्तम माने गए  है। वहां न जा सके तो जहां भी स्नान करें, वही उनका स्मरण करें अथवा  

पुष्करादीनि  तीर्थानि गंगाद्याः  सरितस्तथा । 

आगच्छन्तु पवित्राणि स्नान काले सदा मम ।।

हरिद्वारे कुशावर्ते बिलव के नीलपर्वते । 

स्नात्वा कनखले तीर्थे पुनर्जन्म न विद्यते ।।

अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका । 

पुरी द्वारावती ज्ञेयाः सप्तैता मोक्षदायिकाः ।।

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।  

नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरू ।।

का उच्चारण करें। अथवा वेग से बहने वाली किसी भी नदी के जल में स्नान करें अथवा रात भर छत पर रखे हुए जल पूर्ण घट से स्नान करें अथवा दिनभर सूर्य किरणों से तपे हुए जल से स्नान करें। 

स्नान के आरंभ में  

आपस्त्वमसि देवेश  ज्योतिषां पतिरेव च । 

पापं नाशय मे देव वाङ्मनः कर्मभिः कृतम् ।।

से जल की ओर 

दु:खदारिद्रयनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च ।

प्रात: स्नानं करोम्यद्य माघे पापविनाशनम् ।।

से ईश्वर की प्रार्थना करें और स्नान करने के पश्चात  

सवित्रे प्रसवित्रे च परं धाम जले मम ।  

त्वत्तेजसा परिभ्रष्टं पापं यातु सहस्त्रधा ।।

से सूर्य को अर्घ्य  देकर हरि का पूजन या स्मरण करे। 

माघस्नान के लिये ब्रह्मचारी, गृहस्थ, संन्यासी और वनवासी- चारों आश्रमों के; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र; चारों वर्णों के; बाल, युवा और वृद्ध- तीनों अवस्थाओं के; स्त्री, पुरुष या नपुंसक जो भी हो, सबको आज्ञा है, सभी यथा नियम नित्यप्रति माघ स्नान कर सकते हैं। 

स्नान की अवधि

स्नान की अवधि या तो पौष शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल एकादशी तक या पौष शुक्ल पूर्णिमा से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक अथवा मकरार्क में (मकर राशि पर सूर्य आए, उस दिन से कुंभ राशि पर जाने तक) नित्य स्नान करें और उसके अनन्तर यथावकाश मौन रहें। भगवान का भजन या यजन करें। 

ब्राह्मणों को अवारित (बिना रोक) नित्य भोजन कराएं। कंबल, मृगचर्म, रत्न, कपड़े (कुर्ता, चादर, रुमाल, कमीज, टोपी), उपानह्  (जूते), धोती और पगड़ी आदि दें। एक या एकाधिक ३० द्विजदम्पती  (ब्राह्मण-ब्राह्मणी)- के जोड़े को षट्रस भोजन करवाकर 

‘सूर्यो मे प्रीयतां देवो विष्णुमूर्तिनिरंजन:।‘  

से सूर्य की प्रार्थना करें। 

इसके बाद उनको अच्छे वस्त्र, सप्तधान्य और 30 मोदक दे। स्वयं निराहार, शाकाहार, फलाहार या दुग्धाहार व्रत अथवा एकभुक्त व्रत करें। इस प्रकार काम, क्रोध, मद, मोहादि त्याग कर भक्ति, श्रद्धा, विनय- नम्रता, स्वार्थत्याग और विश्वास- भाव के साथ स्नान करें तो अश्वमेधादि के समान फल होता है और सब प्रकार के पाप-ताप तथा दुख दूर हो जाते हैं।

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