Mangalwari|Bhomvati Amavasya| पितरों की तंत्र बाधा से मुक्ति

Tantra pret badha dosh

तंत्र बाधा के क्या है लक्षण ? भौमवती अमावस्या पर करें, पितरों की तंत्र बाधा से मुक्ति व सद्गति

ओम नमः शिवाय, सज्जनों, आज के इस वीडियो में हम जानेंगे कि जिन पितरों के ऊपर तंत्र बाधा का प्रयोग किया गया होता है या जो पितर दुष्ट आत्माओं के साए में फंसे हुए होते हैं। वह अपने घर परिवार के लोगों पर किस प्रकार का प्रभाव डालते हैं ? उसके क्या लक्षण होते हैं ? इस प्रकार की तंत्र बाधा तथा अज्ञात शक्ति बाधा से अपने पितरों को किस मुहूर्त में मुक्त कराया जाता है ? ऐसा दिव्य योग जल्दी ही आने वाला है। आइए जानते हैं इसके बारे में संपूर्ण जानकारी।


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होलाष्टक क्या है ? होली मुहूर्त ? Holashtak | Holi Shubh Muhurat

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ओम नमः शिवाय, सज्जनों आज के इस वीडियो में आप जानेंगे कि होलाष्टक क्या है ? होली से पहले 8 दिनों में क्या करना चाहिए ? क्या नहीं करना चाहिए? उसका क्या अच्छा और बुरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है ? उस बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए हमें क्या करना है ? होली रंगों का त्योहार है किन रंगों के द्वारा होली खेलने से आयु तेज बल में वृद्धि होती है ? रोग-शोक का नाश होता है ? सन 2022 में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है ? आइए जानते हैं इन सब चीजों के बारे में बातों के बारे में।


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दीपावली पूजन मुहूर्त | Deepawali Puja shubh Muhurat

दीपावली पूजन मुहूर्त | Deepawali Puja shubh Muhurat 2017

मिथुन और कन्या राशि वाले इस मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी की पूजा

सिंह राशि वाले इस मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी की पूजा

कर्क राशि वाले इस मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी की पूजा

मकर और कुंभ राशि वाले इस मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी की पूजा

धनु और मीन राशि वाले इस मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी की पूजा

वृष और तुला राशि वाले इस मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी की पूजा

मेष और वृश्चिक राशि वाले इस मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी की पूजा


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दीपावली पर करें अखंड लक्ष्मी प्राप्ति का उपाय | Lakshmi Pujan Vidhi

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ओम नमः शिवाय आज के इस वीडियो में हम बताएंगे कि किस प्रकार दीपावली (Diwali | Deepawali) पर अखंड लक्ष्मी प्राप्ति की पूजा करें। हमारे शास्त्रों में पत्नी को लक्ष्मी जी का रूप माना गया है। और पत्नी की प्रसन्नता से लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं Ashta Lakshmi pooja Vidhanam means: yog lakshmi pooja vidhanam , bhog lakshmi pooja vidhanam , kaam lakshmi pooja vidhanam , lakshmi pooja vidhanam , aadya lakshmi pooja vidhanam , vidya lakshmi pooja vidhanam , sobhagya lakshmi pooja vidhanam , kamal lakshmi pooja vidhanam , satya lakshmi pooja vidhanam प्रतिदिन ज्योतिष से संबंधित नया वीडियो पाने के लिये हमारा यूट्यूब चैनल https://www.youtube.com/c/ASTRODISHA सबस्‍क्राइब करें। इसके अलावा यदि आप हमारी संस्था के सेवा कार्यों तथा प्रोडक्ट्स से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्‍त करना चाहते हैं तो आप हमारी बेवसाइट https://www.astrodisha.com/ पर जा सकते हैं और अगर आपको कुछ पूछना है तो आप हमें astrodisha111@gmail.com पर मेल कर सकते है।

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धन त्रयोदशी पर अकाल मृत्यु निवारक उपाय | Akaal Mrityu Nivaran

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Karwa Chauth | Karva Chauth | करक चतुर्थी पूजा विधि |Puja Vidhi

karwa chauth , karak chaturthi

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करवा चौथ के दिन पति – पत्नी दोनों सुबह स्नान आदि करके एक लोटे में जल तथा उसमें थोड़ा मीठा और साबुत चावल के कुछ दाने डालकर चंद्रमा को अर्घ देते समय नीचे दिया हुआ संकल्प पढ़ें।

मम सुख-सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि, सुस्थिर लक्ष्मी प्राप्तये, करक चतुर्थी व्रतम् अहम करिष्ये।

इस दिन भगवान शिव जी तथा उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए इसके लिए

ओम नमः शिवायै शवारण्यै सौभाग्यं संततिं शुभाम्। प्रयास भक्ति युक्तानाम् नारीणाम् हरवल्लभे।।

इस मंत्र का 7 बार जप करके

इन ओम नमः शिवाय तथा ओम षण मुखाय नमः । दोनों मंत्रों का श्रद्धा अनुसार जाप करें।

इस दिन व्रत रखने वाली स्त्रियों के द्वारा नैवेद्य के 13 कर्वे या लड्डू , एक लोटा, वस्त्र और एक विशेष करवा अपने पति की माता को को देकर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए।


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नवरात्रि व्रत कब से शुरू करें ? Navratri Puja aur Vrat

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गुरु की महिमा | Guru Mahima | Guru Purnima

Guru Purnima

Guru Purnima

‘गुरु’

‘गु’ माने अंधकार और रू माने प्रकाश । जो अज्ञान रुपी अंधकार को हटाकर ज्ञानरुपी प्रकाश प्रकट कर दे उन्हें गुरु कहा जाता है । हमारे शास्त्रों में गुरु पद की बहुत महिमा है । भगवान शंकर ने कहा है ।

गुरु बिनु भवनिधि तरइ कोई, जो बिरंचि संकर सम होई अर्थात गुरु के बिना कोई भी संसार सागर को पार नहीं कर सकता  फिर भले ही वह ब्रह्मा, विष्णु, महेश ही क्यों ना हो ?

शास्त्रों में गुरु महिमा भगवान से भी बढ़कर बताई गई है।  स्वयं भगवान राम, भगवान श्री कृष्ण अवतार लेकर जब – जब धरती पर आए, उन्होंने भी गुरुओं की सेवा की, गुरुओं के चरणों में मत्था टेककर ज्ञान प्राप्त किया। वह तो साक्षात परमात्मा है फिर भी उन्होंने मनुष्य रूप लेकर संसार को समझाने के मकसद से स्वयम गुरुओं की सेवा की।

वैसे तो मनुष्य जन्म से ही किसी ने किसी को गुरु बनाता है। सबसे पहले गुरु माता-पिता होते हैं, जो व्यक्ति का लालन-पालन करके संसार की डगर में आगे बढ़ाते हैं। इसके बाद शिक्षा गुरु होते हैं जो व्यक्ति को तमाम सांसारिक ज्ञान का उपदेश करके उसे निखारते हैं। इसके बाद और अंत में आध्यात्मिक गुरु होते हैं जो व्यक्ति को इस संसार के दुख – सुख, हानि – लाभ तथा कर्मों के तूफान से बाहर निकालकर सुख – शांति – संतोष तथा अपने आत्मा में स्थित होना सिखाते हैं और दुनियावी कुचक्र से मुक्त कर देते हैं। हिसाब से देखें तो संसार में कोई भी काम करने से पहले उसे सीखना जरुरी होता है।

उदाहरण के तौर पर जिस प्रकार एक कन्या को रोटी बनाना सीखना होता है तो उसे मां का आश्रय लेना पड़ता है। मां उसे अपने सानिध्य में रखती है और रोटी बनाने व बेलने आदि की कला सिखाती है। तो जब संसार का छोटे से छोटा कार्य भी बिना गुरु के नहीं संभव के करना संभव नहीं हो पाता तो इस संसार के कुचक्र से निकलना कैसे संभव है ?

इस धरती पर जितने भी महान महापुरुष हुए हैं। उन सब ने किसी ने किसी गुरु का सानिध्य प्राप्त किया है, उनकी सेवा की है और उनकी कृपा को पचा कर संसार में अपना नाम रोशन किया है। सदा के लिए अमर हो गया है।

जिस बालक ध्रुव को उसके पिता की गोद नसीब नहीं होती थी। उसी बालक ध्रुव को जब नारद जी जैसे गुरु मिले और गुरु मंत्र का जाप किया तो उन्हें एक सांसारिक पिता की तो बात ही बहुत दूर है स्वयं परमात्मा की गोद में बैठना नसीब हुआ। स्वामी विवेकानंद जिनका बचपन का नाम नरेंद्र था। वह कई संस्थाओं में गए, कई व्यक्तियों से, कई अध्यात्मिक व्यक्तियों से मिले परंतु जब वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य बने तभी वह नरेंद्र से ‘स्वामी विवेकानंद’ बन पाए।

आज कौन नहीं जानता स्वामी विवेकानंद को ?

ईश कृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान।

ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गांवही वेद पुराण।

अर्थात भगवान की कृपा के बिना गुरू नहीं मिलते और गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता। ज्ञान के बिना अपने वास्तविक स्वरूप अमर आत्मा का पता नहीं चलता ऐसा हमारे वेद और पुराण बताते हैं। धन्य हैं ऐसे गुरु जिनके चरणों की सेवा करके अनेक सज्जनों का उद्धार हो गया। वास्तविकता देखी जाए तो जब – जब धरती पर भार बढ़ता है, पाप बढ़ता है, अनाचार और अत्याचार बढ़ता है, तभी कोई समर्थ सद्गुरु के रूप में भगवान स्वयं अवतरित होते हैं।

संत की आत्मा और भगवान की आत्मा एक ही है। संत श्री तुकाराम जी, श्री एकनाथ जी, ज्ञानेश्वर महाराज, राजा जनक, सुकदेव जी, दत्तात्रेय भगवान तथा शंकराचार्य आदि अनेक ऐसे महान आत्मा समर्थ सद्गुरु इस धरती पर आए और मनुष्य को जीवन जीने का सही तरीका सिखाया और जन्म-मरण रूपी कष्टों का नाश किया। जो सच्चा शिष्य अपने गुरु की शरण में रहकर उनकी आज्ञा का पालन करता है। उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता। गुरु ऐसी कला देते हैं की व्यक्ति की जन्म कुंडली के ग्रह व कर्मों का लेखा – जोखा बदलते हुए देर नहीं लगती। सच्चे गुरु की सेवा करने वाले व्यक्ति की तो रोज दिवाली होती है।

सिख समाज में तो गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है।

गुरु गोविंद दोनों खड़े काको लागे पाय,

बलिहारी गुरु गोविंद की जिसने प्रभु दियो मिलाय।

सिक्खों की गुरु भक्ति को मेरा प्रणाम है। ऐसे शिष्य जो गुरु को ही सर्वोपरि मानता है। गुरु के कहने में चलता है, गुरु के फेरे फिरता है, गुरु की वाणी का आदर करता है। धन्य है ऐसी गुरु भक्ति ।

व्यक्ति को सीखना चाहिए, अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए, अपने गुरु के कहने में चलना चाहिए। आज के समय में बहुत लोग हैं जो बहुत सारे गुरु बनाते हैं। हर किसी को गुरु जी, गुरु जी कहते रहते हैं। यह अच्छा नहीं है। वैसे तो गुरु की कोई पहचान नहीं, पर फिर भी आज कलयुग के समय को देखते हुए कुछ विचार किया जा सकता है।

मां-बाप तो देह में जन्म देते हैं। लेकिन सच्चा गुरु उस देह में रह रहे परब्रह्म परमात्मा का दीदार करवाकर परमात्मा में ही प्रतिष्ठित कर देते हैं। व्यक्ति को अंतर आत्मा की जागृति कर देते हैं। गुरु की महिमा अकथनीय है। बड़े-बड़े पाप का फल गुरु चुटकियों में निपटा देते हैं। जिस प्रकार एक शिष्य एक सच्चे सद्गुरु की तलाश करता है। उसी प्रकार एक सद्गुरु भी एक सत् शिष्य की तलाश करता है । उस पर अपनी पूर्ण कृपा उड़ेलना चाहता है, उसको भी गुरुपद में प्रतिष्ठित करना चाहता है। परंतु आज कलयुग के समय में ऐसा सच्चा सद्गुरु तो भले मिल जाए, पर सत् शिष्य नहीं मिलता। अधिकतर शिष्य सिर्फ दुनियावी मोह, माया प्राप्त करना चाहते हैं। गुरुजी मुझे मकान मिल जाए, गुरुजी मुझे दुकान मिल जाए, गुरुजी मुझे पत्नी मिल जाए यही चाहते हैं। धन-संपत्ति चाहते हैं। पर गुरु जो देना चाहते हैं वह शिक्षा लेना ही नहीं चाहता।

कलयुग का प्रभाव अधिक बढ़ता जा रहा है इसलिए सावधान रहना चाहिए

कपटी गुरु, लालची चेला,

दोनों नरक में ठेलम ठेला।

आजकल के गुरु चाहते हैं कि शिष्य की जेब काट ली जाए और शिष्य चाहता है की गुरु को ही ठग लिया जाए। गुरु और शिष्य का नाता तो पिता पुत्र के नाते से भी बढ़कर है। शास्त्रों में किस प्रकार गुरु अपने शिष्य के कर्म को चुटकियों में निपटा देते हैं। इसके कई उदाहरण है।

एक बार गुरु नानक देव जी घूमते-घूमते एक सेठ साहूकार के यहां पहुंचे। उस सेठ साहूकार ने नानक देव जी की बहुत सेवा की। अपने हाथों से गुरु जी के पैरों की चरण चंपी की। बड़े प्रेम से भोजन करवाया, पंखे से हवा की और बड़ा उत्साहित और प्रसन्न हुआ कि मेरे ऊपर भगवान की कितनी बड़ी कृपा है कि आज गुरु मेरे घर पर पधारे हैं। रात्रि होने पर सब विश्राम करने लगे। रात्रि में स्वपन के दौरान उसने अपने आप को बड़ा पीड़ित, असहाय और रोगी के रूप में देखा। वह सारी रात इस सपने को देखते हुए परेशानी में रहा। सुबह उठकर वह बड़ा विस्मित हुआ कि इतने बड़े ज्ञानी के दर्शन हुए इसके बावजूद भी मुझे ऐसा स्वप्न क्यों दिखा?

मेरी सारी रात काली बीती है। इस बात में भी कोई न कोई रहस्य होगा? उन्होंने नानक देव जी से इसके बारे में पूछा कि गुरु जी आप जैसे महान आत्मा का दर्शन करने के बाद तो व्यक्ति का चित् प्रसन्न रहना चाहिए, व्यक्ति को शुभ स्वप्न देखने चाहिए। परंतु मेरे साथ तो उल्टा हुआ।

गुरु नानक देव जी ने कहा बेटा संतो की महिमा को पूरा कोई नहीं समझ सकता। तुमने स्वप्न में जो रोग, असहाय और पीड़ा देखी है। वह तुम्हारे कर्मों के कारण तुमने भोगनी थी। परंतु साधु की सेवा करने मात्र से तुम्हारे रोग के कई साल सिर्फ एक रात में कट गए और वह भी सिर्फ स्वप्न में ही दूर हो गए।

ईश्वर अपना अपमान तो सह लेते हैं, परंतु गुरु का अपमान कदापि नहीं सहते। एक बार देवर्षि नारद ने वैकुंठ में प्रवेश किया भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी उनका खूब आदर करने लगे। आदिनारायण ने नारद जी का हाथ पकड़ा और आराम करने को कहा। एक तरफ भगवान विष्णु नारद जी की चरण चंपी कर रहे हैं और दूसरी तरफ लक्ष्मी जी पंखा हांक रही हैं। नारद जी कहते हैं भगवान अब छोड़ो, यह लीला किस बात की?  हे नाथ, यह क्या राज है, समझाने की युक्ति है, आप मेरी चरण चंपी कर रहे हैं और माता जी पंखा झेल रही हैं। भगवान बोले नारद तू गुरुओं के लोक से आया है। महापुरुषों के लोक से आया है। यमपुरी में पाप भोगे जाते हैं, बैकुंठ में पुण्य का फल भोगा जाता है लेकिन मृत्यु लोक में सद्गुरु की प्राप्ति होती है और जीव सदा के लिए मुक्त हो जाता है। ऐसा लगता है तू किसी न किसी गुरु की शरण ग्रहण करके आया है। नारद जी को अपनी भूल महसूस कराने के लिए भगवान यह सब लीलाएं कर रहे थे। नारद जी ने कहा हे प्रभु मैं भक्त हूं लेकिन निगुरा हूं।

गुरु क्या देते हैं ? गुरु का महत्व में क्या होता है ? यह बताने की कृपा करो। भगवान बोले गुरु क्या देते हैं ? गुरु का क्या महत्व होता है ? अगर यह जानना हो तो जाओ। गुरु के पास जाओ। यह वैकुंठ है, खबरदार जैसे पुलिस अपराधियों को पकड़ती है। न्यायधीश उन्हें नहीं पकड़ पाते। ऐसे ही वह गुरु लोग हमारे दिल से हमारे मन के मैल, कुकर्मों के संस्कार, हमारे दिल के अपराध, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों को निकाल-निकालकर निर्विकार चैतन्य स्वरूप प्रभु परमात्मा की प्राप्ति में सहयोग देते हैं और शिष्य जब तक गुरु पद को प्राप्त नहीं कर लेता तब तक उस पर हर जन्म में निगरानी रखते रखते जीव को परब्रह्म की यात्रा कर आते रहते हैं।

हे नारद, जा तू किसी गुरू की शरण ले, बाद में इधर आना। देवर्षि नारद गुरु की खोज करने मृत्युलोक में आए सोचा कि मुझे प्रभात काल में जो सर्वप्रथम मिलेगा उसी को मैं अपना गुरु बना लूंगा। प्रातः काल में सरिता के तीर पर गए देखा तो एक आदमी शायद स्नान करके आ रहा था। हाथ में जलती अगरबत्ती है। नारदजी ने मन ही मन उनको गुरु मान लिया। नजदीक पहुंचे तो पता चला कि वह मच्छीमार है, हिंसक है, हालांकि आदिनारायण विष्णु ही वह रूप धारण करके आए थे। नारद जी ने अपना संकल्प बता दिया कि हमने तुमको गुरू मान लिया है।

नारद जी ने पैर पकड़ लिए, मल्लाह बोला छोड़ो मुझे। मल्लाह ने जान छुड़ाने के लिए कहा अच्छा स्वीकार है जा। नारदजी आए वैकुंठ में भगवान ने कहा नारद अब निगुरा तो नहीं है। नहीं भगवान में गुरु बना कर आया हूं । कैसे हैं तेरे गुरू ?

नारद जी बोले मैं जरा धोखा खा गया। वह कमबख्त तो मल्लाह मिल गया। अब क्या करें ? आपकी आज्ञा मानकर उसी को गुरु बना लिया। भगवान नाराज हो गए। तूने गुरु शब्द का अपमान किया है। न्यायधीश न्यायालय में कुर्सी पर तो बैठ सकता है, न्यायालय का उपयोग कर सकता है लेकिन न्यायालय का अपमान तो न्यायधीश भी नहीं कर सकता। सरकार भी न्यायालय का अपमान नहीं कर सकती। भगवान बोले तूने गुरु पद का अपमान किया है। जा तुझे 8400000 जन्मों तक माता के गर्भ में नरक भोगना पड़ेगाजा नारदजी बड़ा रोए, छटपटाए, भगवान ने कहा इसका इलाज यहां नहीं है। यह तो पुण्य का फल भोगने की जगह है, नरक पाप का फल भोगने की जगह है, कर्मों से छूटने की जगह तो धरती लोक है, मनुष्य लोक है। तू जा, उन गुरुओं के पास मृत्युलोक में वही तेरा उद्धार हो सकता है।

नारदजी वापस धरती लोक में आए। उस मल्लाह के पैर पकड़े और हाथ जोड़कर आंसू बहाते हुए कहा हे गुरुदेव उपाय बताओ मैं तो बड़ा फस गया हूं। चौरासी के चक्कर से छूटने का कोई उपाय बताओ। गुरूजी ने पहले पूरी बात समझी और फिर कुछ संकेत बता दिए। नारदजी फिर बैकुंठ में पहुंचे। भगवान को कहा मैं 84 लाख योनियां तो भोग लूंगा लेकिन कृपा करके उसका नक्शा तो बना दो जरा। दिखा तो दो नाथ कैसी होती है 84 लाख योनियां। भगवान ने तुरंत नक्शा बना दिया। नारद उसी नक्शे में लौटने लगे। अरे, यह क्या करते हो नारद। हे भगवान वह 84 भी आप की बनाई हुई है और यह 84 भी आपकी ही बनाई हुई है। मैं इसी में चक्कर लगाकर अपनी 84 पूरी कर रहा हूं। भगवान ने कहा, देखा नारद महापुरुषों के नुस्खे लाजवाब होते हैं। यह युक्ति भी तुझे उन्हीं गुरुजी से मिली है। नारद महापुरुषों के नुस्खे लेकर जीव अपने अतृप्त हृदय में तृप्ति पाता है। अशांत हृदय में परमात्मा शांति पाता है, अज्ञान से घिरे हुए हृदय में आत्मा का प्रकाश पाता है, जिन – जिन महापुरुषों के जीवन में गुरुओं का सच्चा प्रसाद आ गया। ऊंचे अनुभव को उचित शांति को प्राप्त हुए हैं। हमारी क्या शक्ति है कि उन महापुरुषों, उन गुरुओं का बयान करें। वह ज्ञानवान महापुरुष जिसके जीवन में निहार लेते हैं, जिसके जीवन पर जरा सी मीठी नजर डाल देते हैं, उसके जीवन में मधुरता का संचार हो जाता है।

राजा परीक्षित को जब पता चला कि 7 दिन में ही उनकी मृत्यु हो जाएगी तो सुकदेव महाराज जैसे सदगुरु ने ही उनको मृत्यु रूपी अजगर से बचाया। राजा परीक्षित जब अपने सद्गुरु सुकदेव जी महाराज की शरण में गए तभी उनके जीवन से मृत्यु का भय दूर हो पाया। वैसे तो व्यक्ति अपनी जन्म कुंडली को सुधारने के लिए अनेक उपाय करता रहता है, अनेक प्रकार के मंत्रों का जाप तथा अनेक विधि अपनाता है, परंतु जिस व्यक्ति ने सद्गुरु से दीक्षा ली है सद्गुरु के अनुसार जीवन जीता है, उनकी आज्ञा में चलता है, ऐसा व्यक्ति सहज ही कर्मों तथा ग्रहों की चाल से निकल जाता है।

दुखी व्यक्ति जब मंदिर में जाकर भगवान से अपने दुख, अपनी पीड़ा को बताता है तो भगवान उसे उस दुख और पीड़ा से निकलने का रास्ता नहीं बताते। परंतु गुरु तो साक्षात ऐसे व्यक्ति की दुख, पीड़ा सुनता भी है और उसे दूर करने का निवारण और उपाय भी बताता है और कई बार तो अपनी साधना के द्वारा उस व्यक्ति के पाप को भस्म भी कर देते हैं। आप सभी साधकों को, सत शिष्यों को, गुरु पूर्णिमा की लाख-लाख बधाई। मैंने भी मेरे जीवन में, जो जितनी भी ऊंचाई पाई है, जो कुछ भी सीखा है और जो भी आज के समय में आप लोगों को बांट रहा हूं। वह सिर्फ और सिर्फ मेरे गुरुदेव के आशीर्वाद के कारण ही बांट पा रहा हूं। अगर मैं सही शब्दों में कहूं तो मेरी कोई औकात नहीं कि मैं किसी के कष्ट दूर कर पाता, किसी के दर्द दुख को सुन पाता, किसी के जीवन में खुशियां ला पाता। यह जो भी प्रसाद, जो भी प्रसन्नता, जो मधुरता आप लोगों के जीवन में मेरी वाणी सुनकर, उपाय अथवा मंत्र जाप आदि करके आ रहा है। उसका सारा श्रेय मेरे गुरुदेव को जाता है। अंत में मैं हाथ जोड़कर गुरु महाराज के चरणों में प्रणाम करके, उनके नाम का जयकारा लगाकर प्रार्थना करता हूं कि हे गुरुदेव जो भी आपकी शरण में आया है अथवा आएगा ? आप कृपया उन सबके कष्टों का निवारण करें, उनको जीवन में वह सब मिले जिसके वह हकदार हैं, उनके पाप कर्म कट जाएं और उनके पुण्यों में अभिवृद्धि हो जाए।

सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित् दुख भाग भवेत।।

ओम नमः शिवाय, शिव सदा सहाय।

बाबा महाराज आपका कल्याण करें। आपकी रक्षा करें।

पंडित सुनील वत्स

 

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नवरात्रि कब से ?

नवरात्रि कब से ?

विश्व में एकमात्र भारत ही ऐसा देश है। जहां लगभग हर दूसरे दिन कोई-न-कोई व्रत, कोई न कोई पर्व, कोई न कोई त्यौहार व उत्सव आदि होता है। क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने एक ऐसी पद्धति बनाई है कि जिससे व्यक्ति खुश रह सके।

व्रत करने से व्यक्ति को खुशी मिलती है। त्यौहार मनाने से व्यक्ति को खुशी मिलती है। कोई न कोई उत्सव होता है। कोई न कोई जागरण होता है। भक्ति की धाराएं बहती हैं। व्यक्ति आनंदित प्रसन्न और खुश रहता है। ‘त्यौहार’ शब्द सुनकर ही लगता है कि कुछ खुशी का मौका है।

जैसा की आप सभी जानते हैं हमारा भारत अनेक धर्मों का संगम है। अनेक प्रकार का रहन-सहन, बोलचाल, धर्म-संप्रदाय, रीती-रिवाज व रुढ़िवादिता के कारण अनेक प्रकार के भ्रम पैदा हो जाते हैं।

इसी भ्रम के कारण हम कई बार दो-दो त्यौहार मनाते हैं। कुछ लोग कल दिवाली मना रहे थे और कुछ आज मना रहे हैं। कुछ लोग कल जन्माष्टमी का व्रत रखे हुए थे। कुछ ने आज रख रखा है। कुछ ने कल एकादशी का व्रत रखा था। कुछ ने आज रखा हुआ है।

आखिर यह मत अंतर क्यों ?

आखिर इन सब में भेद क्यों ?

इसका क्या कारण है ?

आज मैं इसका कारण आपको बताना चाहता हूं। इसका कारण है। अधूरा – अधकचरा ज्ञान।

कुछ तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने शास्त्रों में बताए गए विधि – विधान को हटाकर अपना ज्ञान लोगों के दिमाग में डाल दिया है। जिस कारण से एक ही स्थान में, एक ही गांव में, एक ही घर में रहने के बावजूद भी लोग अलग-अलग तिथियों में तीज त्यौहार मना रहे होते हैं।

ऐसा ही एक भ्रम हमारे सामने आया है सन 2017 में चैत्र नवरात्रों का :-

कुछ लोग इसे 28 मार्च अमावस्या वाले दिन बता रहे हैं और कुछ लोग 29 मार्च को प्रतिपदा वाले दिन बता रहे हैं। किस दिन हमें व्रत रखना है ?

किस दिन हमें कलश स्थापना करनी है ? किस दिन से नवरात्रि शुरु हो रहे हैं ? यह मैं आपको धर्म शास्त्रों के प्रूफ दे कर बता रहा हूं।

वैदिक शास्त्रों के अनुसार तिथि और वार सुबह सूर्योदय से शुरू होती हैं । जबकि हम आज के समय में सब चीजें अंग्रेजी तारीखों के अनुसार देखते हैं। अंग्रेजी तारीखों के अनुसार 24 घंटे रात 12:00 बजे से लेकर अगले दिन के रात 12:00 बजे तक चलता है। परंतु हमारी तिथियां सुबह सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक चलती हैं।

सन 2017 में 28 मार्च के दिन सुबह 8:00 बज कर 27 मिनट तक अमावस्या तिथि रहेगी इसलिए जो व्यक्ति अपने पितरों का तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करते हैं, वह 27 तारीख दोपहर को अथवा 28 तारीख सुबह 8:27 से पहले कर सकते हैं।

इसके तुरंत बाद प्रतिपदा तिथि शुरू हो जाएगी और नवरात्रि आरंभ माने जाएंगे। अगले दिन 29 मार्च को सुबह 5:45 पर प्रतिपदा खत्म हो जाएगी। यानी सूर्योदय होने से पहले ही तिथि चली गई इसलिए 29 तारीख को तो प्रतिपदा होगी ही नहीं। शास्त्रों में लिखा है जिस दिन प्रतिपदा कम से कम एक मुहूर्त तक रहेगी उसी दिन नवरात्रि आरंभ माने जाएंगे। यही कारण है कि नवरात्र 28 तारीख को सुबह 08:27 के बाद प्रारंभ माने जाएंगे और इसी दिन से कलश स्थापना और दुर्गा जी के व्रत आराधना उपासना शुरू करनी है।

इस बारे में हमारे धर्म शास्त्र देवी पुराण का वाक्य है।

‘अमायुक्ता न कर्तव्या प्रतिपच्चण्डिकार्चने। मुहूर्त मात्रा कर्तव्या द्वितीयायां गुणान्विता।।

अर्थ :- यदि प्रतिपदा का क्षय हो जाए तो भी पहले ही दिन अम्मा युक्ता प्रतिपदा में ही नवरात्र आरंभ करने का शास्त्र वाक्य है।

हमारे एक और धर्मशास्त्र निर्णय सिंधु में यही बात कही गई है।

‘परदिने प्रतिपदोत्यन्तासत्तवे तु दर्शयुता पूर्वैव ग्राह्या।

इसीलिए आप सब लोगों की भलाई के लिए आप 28 मार्च 2017 मंगलवार के दिन ही दुर्गा देवी के नवरात्रों का आरंभ कीजिए। माता की आराधना उपासना कीजिए और अपने जीवन में आ रहे व आने वाले संकटों के नाश की प्रार्थना कीजिए।

हां एक और जरूरी बात यहां मैं बताना चाहता हूं। जो भी शक्ति के उपासक हैं। उन्हें यह जरूर जानना चाहिए कि दुर्गा जी और गायत्री जी के जितने भी मंत्र हैं वह सभी श्रापित हैं । इसीलिए व्यक्ति को मंत्र जाप का फल नहीं मिल पाता। आप सभी सज्जन जो भी व्रत उपवास करेंगे। वह सब आराधना करने से पहले कृपया श्राप विमोचन जरुर कर लीजिएगा।

जिससे अतिशीघ्र आप सब की मनोकामना पूर्ण हो। मां जगदंबा आपके ऊपर रहमत करें। अपनी कृपा बरसाए।

ओम नमः शिवाय

“पंडित सुनील वत्स”

 

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HOLI | होली का संदेश

होली का मतलब है, जो हो गया सो हो गया।

किसी कवि ने बड़ा ठीक कहा है।

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि ले।

holi

जीवन में हमसे जो गलतियां हुई हैं। जो कमियां हमने की हैं। जो असफलता हमने पाई है। जो धोखा हमने खाया है। जो नुकसान हमने सहा है।

उन सभी से सीख लेते हुए आगे बढ़ें। बीते हुए जीवन में आई हुई परेशानियों को याद करते हुए सिर पर हाथ रखकर ना बैठे रहें। अपने भाग्य को अथवा विपरीत परेशानियों को ना कोसते रहे यही संदेश देती है होली।

होली की शुरुआत भक्त प्रल्हाद से शुरू हुई। आपके और हमारे जीवन में क्या परेशानियां आई ?

क्या भक्त प्रल्हाद से भी बड़ी ?

आप को किसने धोखा दिया ? रिश्तेदार ने ?  मित्र ने ? या दुश्मन ने ? पिता ने तो नहीं दिया ?

पर भक्त प्रह्लाद को तो पिता ने ही धोखा दे दिया।

आपको किसने नष्ट करने की कोशिश की ? आपके दुश्मन ने ?

पर भक्त प्रह्लाद को तो उनके पिताजी ने ही नष्ट करने की कोशिश की ।

क्या आपको पहाड़ से फेंका गया ? अथवा अग्नि में जलाया गया ? क्या हाथी तले रौंद ने की कोशिश की गई ? क्या आपको भगवान का नाम लेने से उनकी प्रार्थना करने से किसी ने रोका है ?

नहीं ना ?

तो हम से तो बहुत अधिक दुख भक्त प्रह्लाद को झेलने पड़े और उन्होंने भगवान के नाम का आश्रय लेते हुए। भगवान की भक्ति का आश्रय लेते हुए। भगवान के मंत्रों का जाप जपते हुए।

इतने गहन दुख अपने ऊपर झेल लिए बल्कि वह तो भगवान की भक्ति में, भगवान के मंत्र जाप में इतने रमे हुए थे कि उन्हें दुख की अनुभूति भी नहीं हुई। तो सोचिए कितना गहन विश्वास होगा उनका भगवान के प्रति।

क्या हमारा ऐसा विश्वास है हमारे धर्म में ? हमारे शास्त्रों में ? हमारे इष्टदेव में ? हमारे गुरु में अथवा हमारे मंत्र में ?

अगर हम इस बात को तोल कर देखें तो हम कहां पाएंगे अपने आपको। यह बात किसी को बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि व्यक्ति अपने आप इस बात की अनुभूति कर सकता है।

जिसके घर में राक्षस भरे हुए हो ? जो हर समय नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हो ? इसके बावजूद भी जो अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है। उसको कोई नहीं रोक सकता और परमात्मा स्वयं उसके लिए नरसिंह अवतार धारण करके उसके जीवन में आ रहे संकटों का खात्मा करते हैं, तो होली सिर्फ इसी बात का संदेश देने के लिए आती है, कि जो हो गया, सो हो गया।

जो हो लिया, सो हो लिया। अब जीवन में आई हुई परिस्थितियों से सबक सीखते हुए हमें आगे बढ़ना चाहिए।

इसीलिए कहा भी गया है ‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले।’

क्या हाय-हाय करने से अथवा मैं दुखी, मैं दुखी करने से हमारे दुख दूर हो जाएंगे ? क्या कोई आकर हमें आगे बढ़ा देगा ? कौन हमें सहारा देगा ? याद रखिए सुखी, खुश और चमकते हुए चेहरे के पास ही कोई जाना पसंद करता है। उसको देखना पसंद करता है। उससे बात करना पसंद करता है।

दुखिया के पास कोई नहीं जाता। उससे कोई नहीं बात करता। उसकी तरफ कोई देखता भी नहीं। हम और आप मंदिर में जाते हैं। उस परमात्मा के घर में जाते हैं। वहां परमात्मा की बहुत सुंदर मूर्तियां होती हैं, तो क्या परमात्मा का चेहरा दुखी अवस्था का दिखता है ? क्या वह परेशान दिखते हैं ? नहीं ना जबकि हर एक अवतार ने बहुत संघर्ष किया है अपने जीवन में। फिर भी उनके चेहरे पर चमक होती है। खुशी होती है। आनंद होता है। प्रसन्नता होती है। मधुरता होती है।

वह हमें इसी बात का संदेश देने के लिए अवतार रूप में आते हैं, की परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो, व्यक्ति को कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हमेशा अपने आत्म बल को याद करके आगे बढ़ते रहना चाहिए। ना तो दुनिया की चकाचौंध में फसना चाहिए। वाहवाही में ठहरना नहीं और कोई निंदा चुगली करें हमारे लिए बुरा बोले तो उसमें फसना नहीं।

जो बात जुबान से निकल गई, उस बात का पीछा कौन करे।

जो तीर कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे।

क्या भगवान राम की किसी ने निंदा नहीं की ? क्या उनके लिए किसी ने अपशब्द नहीं बोले ? क्या सतयुग में नहीं बोले ? द्वापर में नहीं बोले या अब कलयुग में नहीं बोलते ? उनके सामने भी बोला और उनके बाद भी बोला, पर क्या इससे भगवान की महिमा कम हो गई। इसी तरह हमें भी उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन पथ में आ रही तमाम परिस्थितियों से लड़ते हुए आगे बढ़ना है।

यही बात हमें होली सिखाती है। भक्त प्रह्लाद के भी जीवन में अनेक विघ्न और संकट आए परंतु वह डटे रहे और आखिर में स्वयं भगवान नरसिंह ने उनको अपनी गोद में बैठाया अर्थात सभी दुखों से मुक्त कर दिया।

सावधान

आज के समय में बहुत से लोग होली नहीं खेलते, बल्कि होली के नाम पर दुश्मनी खेलते हैं। आप सभी सज्जनों को मेरी ओर से यह प्रार्थना है कि बड़े ही संयम के साथ होली खेलें। होली से 8 दिन पहले ही होलाष्टक आरंभ हो जाता है। इस समय ग्रह चाल के कारण से कुछ शक्तियां बड़ी प्रबल हो जाती हैं। इसीलिए अनेक प्रकार की सिद्धियां, यंत्र – मंत्र – तंत्र का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। इन सावधानियों में मुख्य रूप से किसी के यहां भोजन आदि नहीं करना चाहिए। यदि करते भी हैं तो नमकीन भोजन कर सकते हैं। मीठा अथवा तरल जैसे जूस अथवा दूध आदि का सेवन तो भूल कर भी ना करें।

जिस पर आपको शक है। उसके यहां ना जाए। मध्याहन, संध्या काल अथवा रात्रि काल में चौराहे आदि को न लाघें।  इस बात का पूर्ण रुप से ध्यान रखें कि किसी का दिया हुआ प्रसाद स्वीकार तो जरूर करें, पर उसका सेवन ना करें। उसे किसी एकांत और पवित्र स्थान पर किसी पेड़ आदि के नीचे रख दें। उसके बाद हाथ मुंह धो कर जल का छीटा अपने ऊपर मार लें।

हर्बल होली

अब बात आती है होली खेलने की। आजकल बहुत सारे कृत्रिम और रासायनिक रंगों से होली खेली जाती है। जो कि हमारे तन, मन, शरीर-स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। क्योंकि हानिकारक रसायन त्वचा के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश करता है और उससे अनेक प्रकार के बीमारियां होती हैं।

हर्बल होली खेलने की परंपरा आदि काल से ही है। आज मैं आपको हर्बल रंग बनाने की विधि बताता हूं।

सामग्री

100 ग्राम टेसू के फूल, 50 ग्राम गुलाब की पत्तियां और एक शीशी सर्व औषधी ले लीजिए।  यह सभी सामान आपको पंसारी की दुकान पर मात्र 50-60 रुपए में रुपए में मिल जाएगा।  एक बर्तन में 4 – 5 लिटर पानी भरकर यह तीनों सामान उसमे डाल दीजिए और पानी को गर्म कर दीजिए। पानी में एक उबाला आने के बाद ठंडा करके पानी छान लीजिए। यह बन गया आपका हर्बल रंग। जो कि आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा रहेगा। अब आप कपड़ों सहित इस रंग को अपने, परिवार के सदस्यों, मित्रों व अपने प्रिय जनों के ऊपर डाल सकते हैं। ध्यान रहे – कपड़े को भीगा रहने दें। जितनी ज्यादा देर तक हर्बल रंग से भीगा कपड़ा हमारे शरीर से लगा रहेगा उतना ज्यादा यह यह फूलों और औषधियों का रस हमारे शरीर के अंदर जाएगा। यह हर्बल रंग रोमकूपों को खोलेगा।

आप सभी को पता है कि होली के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है। जिसमें लू लगने के चांस बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं। परंतु यह हर्बल रंग आने वाली भीषण गर्मी से आपकी रक्षा करता है।

टेसू के फूल ठंडे होते हैं और साथ ही गुलाब जल भी ठंडा होता है। आने वाली गर्मियों के लिए यह आपके लिए अमृत के समान होगा। गर्मी अधिक नहीं लगेगी। लू लगना, मितली आना, उल्टी आना जैसे रोगों की शांति होगी और भी बहुत सारे लाभ आपको मिलेंगे।

भोजन

इस दिन  चिकना – चुपड़ा अथवा तला हुआ भोजन खाने का रिवाज भी सदियों पुराना है। उसका भी अपना एक कारण है, क्योंकि होली से पहले सर्दी की ऋतु जाती है। त्वचा बहुत अधिक खुश्क, रूखी – सुखी व बेजान हो जाती है।  इसीलिए तला, चिकना – चुपड़ा भोजन खाने से शरीर की खुश्की दूर होकर तरलता व चिकनापन आता है। जिससे शरीर की शुद्धि होती है और शरीर खुल जाता है। घर के बनाए हुए तेल आदि में अगर हम पकवान पकाते हैं। तला हुआ खाते हैं, तो यह हमारे शरीर के लिए अच्छा रहता है। आप भी खाएं और औरों को भी खिलाएं। यह तन और मन दोनों को प्रफुल्लित करता है।

हुल्लड, नाच गान

आपने देखा होगा उस दिन बहुत सारे लोग खूब हो-हल्ला करके हुल्लड़ और नाच गान करते हैं। ऐसा करने की भी पुरानी परंपरा है इसके पीछे भी ऋषि मुनियों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। इस दिन हम भगवान के नाम का भी हुल्लड़ और नाच गान सकते हैं। उनके नाम की पुकार कर सकते हैं। भजन गाकर नाच गान कर सकते हैं। क्योंकि जोर जोर से बोलने व नाचने से हमारे शरीर में जमा हुआ कफ जल्दी पिघलता है। इससे हमारा शरीर खुल जाता है। एकदम स्वस्थ और तरो – ताजा हो जाता है। शरीर में तेज – ओज – बल की वृद्धि होती है।

सज्जनों आप अगर देखेंगे कि हमारे जितने भी तीज – त्यौहार हैं। उन सब का कोई न कोई महत्व है। वह कोई न कोई संदेश देते हैं। त्यौहार मनाना भारतीय परंपरा के अनुसार हर एक व्यक्ति के लिए शुभ होता है। भले ही वह हमें नहीं दिखता, परंतु इसके बहुत सारे वैज्ञानिक दृष्टिकोण हैं।

भले ही हमारे ऋषि – मुनि जंगलों में रहते थे। एकांत जीवन जीते थे। परंतु उन्होंने मनुष्य मात्र के भले के लिए ऐसे त्योहारों का आयोजन किया। जिससे व्यक्ति अपने जीवन में आनंद और प्रसन्नता प्राप्त कर सके।

आप देखेंगे कि लगभग सभी तीज – त्यौहार आनंद और प्रसन्नता ही देते हैं । खुशी का माहौल बनता है। लोग एक दूसरे से मिलते हैं। जान पहचान होती है। गिले शिकवे दूर होते हैं और परस्पर प्रेम बढ़ता है। इसलिए हमें अपने सभी त्योहार पूरी श्रद्धा और आदर के साथ मनाने चाहिए। साथ ही अगर उन त्योहारों के संदेश हमें पता हो तो इसका आनंद ही अलग हो जाता है।

नमः शिवाय

आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आपके जीवन में जो भी समस्याएं हैं। जो विपरीत परिस्थितियां हैं। भगवान करे उन सभी की होली हो जाए अर्थात वह जलकर भस्म हो जाए।

जिस प्रकार प्रह्लाद भक्त प्रल्हाद धधकती हुई अग्नि से सकुशल बाहर आ गए थे इसी तरह आप भी विपरीत परिस्थितियों से सकुशल बाहर आ जाएं। ऐसी मेरी भगवान से प्रार्थना है। आप सभी लोगों का मंगल हो। आप का कल्याण हो।

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