Chaitra Papmochani Ekadashi Vrat Katha | चैत्र कृष्णा पापमोचनी एकादशी कथा

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।। चैत्र कृष्णा एकादशी व्रत कथा ।।
पापमोचनी एकादशी

Chaitra Papmochani Ekadashi Vrat Katha

 

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धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे महाराज ! आपने फाल्गुन शुक्ला एकादशी का माहात्म्य बतलाया। अब कृपा करके यह बतलाइए कि चैत्र कृष्णा एकादशी का क्या नाम है ? इसमें कौन से देवता की पूजा की जाती है और इसकी विधि क्या है ?

कृष्ण भगवान कहने लगे कि हे राजन् ! यही प्रश्न एक समय राजा मांधाता ने लोमश ऋषि से किया था और जो कुछ उन्होंने उत्तर दिया था सो वही तुमसे कहता हूं।

लोमश ऋषि कहने लगे कि हे राजन् ! इस एकादशी का नाम पापमोचनी एकादशी है और इसके करने से अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। अब मैं इसकी कथा कहता हूं। प्राचीन समय में कुबेर का चैत्ररथ नाम का एक बाग था। उसमें गंधर्व की कन्याएं किन्नरों के साथ विहार करती थी। वहां अनेक प्रकार के पुष्प खिल रहे थे, उसी वन में अनेक ऋषि तपस्या करते थे। स्वयं इंद्र भी चैत्र और वैशाख मास में देवताओं के सहित वहां आकर क्रीड़ा किया करते थे। वही अपने आश्रम में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में संलग्न थे। वे शिव के भक्त थे।

एक समय मंजुघोषा नाम की अप्सरा ने उनको मोहित करने का विचार किया। वह ऋषि के भय के मारे समीप नहीं गई, वरन् दूर बैठकर वीणा पर मधुर गीत गाने लगी। उस समय कामदेव ने भी मेधावी ऋषि को जीतने की चेष्टा की। उन्होंने उस सुंदर अप्सरा के भ्रू को धनुष, कटाक्ष को डोरी, नेत्रों को धनुष की लचक, कूचों को कुरी बनाकर मंजुघोषा को सेनापति बनाया। उस समय मेधावी ऋषि भी युवा और हष्ट पुष्ट थे। साथ ही यज्ञोपवीत तथा दंड धारण किए हुए ब्रह्म तेज से युक्त थे।

मंजुघोषा ऐसे सुंदर ऋषि को देखकर उनकी सुंदरता पर मुग्ध हो गई और अपने गीत, चूड़ियों और नूपुरों की झंकार तथा नृत्य कला द्वारा हाव-भाव दिखाकर मुनि को रिझाने लगी। पर्याप्त समय तक यह क्रम चलता रहा और अंत में कामदेव ने ऋषि को पराजित कर दिया।

फलस्वरूप ऋषि मंजुघोषा के साथ रमण करने लगे और काम के इतने वशीभूत हो गए कि उन्हें दिन तथा रात्रि का कुछ भी विचार नहीं रहा।

इस प्रकार बहुत समय बीत गया, तब एक दिन मंजुघोषा कहने लगी ऋषि जी बहुत दिन हो गए अब मुझको स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए।

मुनि ने कहा आज इसी संध्या को तो आई हो प्रातः काल होने तक चली जाना। मुनि के ऐसे वचन सुनकर अप्सरा कुछ समय तक और रुकी।

अंत में उसने पुनः मुनि से विदा मांगी तो मुनि कहने लगे कि अभी तो आधी रात ही हुई है।

अप्सरा ने कहा महाराज आपकी रात तो बहुत लंबी है। इसका क्या परिमाण है ? मुझको यहां पर आए कितने ही वर्ष बीत गए हैं।

उस अप्सरा की यह बात सुनकर मुनि को समय का ज्ञान हुआ तो विचार करने लगे कि इस अप्सरा के साथ रमण करते हुए हमको सत्तावन वर्ष, सात माह और तीन दिन बीत गए, तो वह उनको काल के समान प्रतीत हुई।

मुनि अत्यंत क्रोधित हुए और उनकी आंखों से ज्वाला उत्पन्न होने लगी। वे कहने लगे कि मेरी कठिन परिश्रम से एकत्रित की हुई तपस्या को तूने नष्ट करा दिया है। तुम महा पापिनी और दुराचारिणी है, तुझे धिक्कार है। तूने मेरे साथ घात किया है इसलिए तू मेरे श्राप से पिशाचिनी हो जा।

मुनि के श्राप से मंजुघोषा तत्क्षण पिशाचिनी हो गई और भयभीत होकर मुनि से प्रार्थना करने लगी कि महाराज इस श्राप का किसी प्रकार से निवारण कीजिए। अप्सरा के ऐसे दीन वचन सुनकर मुनि बोले कि दुष्टे यद्यपि तूने मेरा बहुत अनिष्ट किया है परंतु फिर भी

मैं तुझे श्राप से छूटने का उपाय बतलाता हूं। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम आप पापमोचनी है और यह सब प्रकार के पापों का नाश करने वाली है। उसका व्रत करने से पिशाच योनि से मुक्त हो जाएगी।

ऐसा कहकर मेधावी ऋषि अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम में चले गए।

मेधावी को देखकर च्यवन ऋषि कहने लगे कि अरे पुत्र ! तूने ऐसा क्या किया जिससे तेरा सारा पुण्य क्षीण हो गया ?

मेधावी कहने लगे कि पिताजी मैंने अप्सरा के साथ रमण करके घोर पाप किया है। अब आप इस पाप से छूटने का प्रायश्चित मुझे बतलाइए।

तब च्यवन ऋषि कहने लगे कि हे पुत्र ! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से सब पापों का नाश हो जाता है, इसलिए तुम इस व्रत को करो। पिता की आज्ञा पाकर मेधावी ऋषि ने भी इस व्रत को किया जिससे उनके सब पाप नष्ट हो गए और वे पवित्र हो गये।

उधर मंजुघोषा भी व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से छूटकर दिव्य देह धारण करके स्वर्ग को चली गई। लोमश ऋषि कहने लगे कि हे राजन् पापमोचनी एकादशी के व्रत को करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। इस कथा को पढ़ने और सुनने से हजार गोदान का फल प्राप्त होता है और व्रत से ब्रह्महत्या, गर्भपात, बालहत्या, सुरापान, गुरु स्त्री से प्रसंग आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

।। बोलिए श्री विष्णु भगवान की जय ।।

।। श्री एकादशी माता की जय ।।

 
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