Sampuran Durga Saptashati (Chandi) Path & Puja Vidhi – Durga Puja

chndi path vidhi

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नवरात्र (Navratri) शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है क्योंकि ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता।

इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। यहां तक कि कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

नवरात्रि कैेलेंडर लिस्ट | Navratri Calender List

नवरात्रि में माँ भगवती की उपासना के लिये दुर्गा सप्तशती अनुष्ठान विधि (Durga Saptashati anushthan vidhi)

 

दुर्गा सप्तशती के अध्याय पाठन से कामनापूर्ति।

  1.  प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
  2.  द्वितीय अध्याय- मुकदमे व झगड़े आदि में विजय पाने के लिए।
  3.  तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
  4.  चतुर्थ अध्याय- भक्ति, शक्ति की प्राप्ति तथा भगवती जी के दर्शन के लिये।
  5.  पंचम अध्याय- भक्ति, शक्ति की प्राप्ति तथा भगवती जी के दर्शन के लिये।
  6.  षष्ठम अध्याय- भय व संदेह का निवारण करने के लिए डर।
  7.  सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
  8.  अष्टम अध्याय- परस्पर स्नेह – मिलाप व वशीकरण के लिये।
  9.  नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि सुख के लिये।
  10.  दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि सुख के लिये।
  11.  एकादश अध्याय- व्यापार में लाभ व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।
  12.  द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।
  13.  त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने और सिद्ध करने की मुख्य विधियाँ

 

सामान्य विधि

नवार्ण मंत्र जप और सप्तशती न्यास के बाद तेरह अध्यायों का क्रमशः पाठ, प्राचीन काल में कीलक, कवच और अर्गला का पाठ भी सप्तशती के मूल मंत्रों के साथ ही किया जाता रहा है। आज इसमें अथर्वशीर्ष, कुंजिका मंत्र, वेदोक्त रात्रि देवी सूक्त आदि का पाठ भी समाहित है जिससे साधक एक घंटे में देवी पाठ करते हैं।

वाकार विधि

यह विधि अत्यंत सरल मानी गयी है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है।

संपुट पाठ विधि

किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है।

सार्ध नवचण्डी विधि

इस विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि द्वारा पाठ करते हैं। एक ब्राह्मण सप्तशती का आधा पाठ करता है। (जिसका अर्थ है- एक से चार अध्याय का संपूर्ण पाठ, पांचवे अध्याय में ”देवा उचुः- नमो देव्ये महादेव्यै” से आरंभ कर ऋषिरुवाच तक, एकादश अध्याय का नारायण स्तुति, बारहवां तथा तेरहवां अध्याय संपूर्ण) इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण कार्य की पूर्णता मानी जाती है। एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता है। इस प्रकार कुल ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा नवचण्डी विधि द्वारा सप्तशती का पाठ होता है। पाठ पश्चात् उत्तरांग करके अग्नि स्थापना कर पूर्णाहुति देते हुए हवन किया जाता है। जिसमें नवग्रह समिधाओं से ग्रहयोग, सप्तशती के पूर्ण मंत्र, श्री सूक्त वाहन तथा शिवमंत्र ‘सद्सूक्त का प्रयोग होता है। जिसके बाद ब्राह्मण भोजन,’ कुमारी का भोजन आदि किया जाता है। वाराही तंत्र में कहा गया है कि जो ”सार्ध नवचण्डी” प्रयोग को संपन्न करता है। वह प्राणमुक्त होने तक भयमुक्त रहता है। राज्य, श्री व संपत्ति प्राप्त करता है।

शतचण्डी विधि

मां की प्रसन्नता हेतु किसी भी दुर्गा मंदिर के समीप सुंदर मण्डप व हवन कुंड स्थापित करके (पश्चिम या मध्य भाग में) दस उत्तम ब्राह्मणों (योग्य) को बुलाकर उन सभी के द्वारा पृथक-पृथक मार्कण्डेय पुराणोक्त श्री दुर्गा सप्तशती का दस बार पाठ करवाएं। इसके अलावा प्रत्येक ब्राह्मण से एक-एक हजार नवार्ण मंत्र भी करवाने चाहिए। शक्ति संप्रदाय वाले शतचण्डी (108) पाठ विधि हेतु अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा का दिन शुभ मानते हैं। इस अनुष्ठान विधि में नौ कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो दो से दस वर्ष तक की होनी चाहिए तथा इन कन्याओं को क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, चंडिका तथा मुद्रा नाम मंत्रों से पूजना चाहिए। इस कन्या पूजन में संपूर्ण मनोरथ सिद्धि हेतु ब्राह्मण कन्या, यश हेतु क्षत्रिय कन्या, धन के लिए वेश्य तथा पुत्र प्राप्ति हेतु शूद्र कन्या का पूजन करें। इन सभी कन्याओं का आवाहन प्रत्येक देवी का नाम लेकर यथा ”मैं मंत्राक्षरमयी लक्ष्मीरुपिणी, मातृरुपधारिणी तथा साक्षात् नव दुर्गा स्वरूपिणी कन्याओं का आवाहन करता हूं तथा प्रत्येक देवी को नमस्कार करता हूं।” इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए। वेदी पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर कलश स्थापना कर पूजन करें। शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषी, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्यान्य देवताओं का वैदिक पूजन होता है। जिसके पश्चात् चार दिनों तक पूजा सहित पाठ करना चाहिए। पांचवें दिन हवन होता है।

इन सब विधियों (अनुष्ठानों) के अतिरिक्त प्रतिलोम विधि, कृष्ण विधि, चतुर्दशीविधि, अष्टमी विधि, सहस्त्रचण्डी विधि (१००८) पाठ, ददाति विधि, प्रतिगृहणाति विधि आदि अत्यंत गोपनीय विधियां भी हैं। जिनसे साधक इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति कर सकता है।

कुछ लोग दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद हवन खुद की मर्जी से कर लेते है और हवन सामग्री भी खुद की मर्जी से लेते है ये उनकी गलतियों को सुधारने के लिए है।
दुर्गा सप्तशती के वैदिक आहुति की सामग्री।

प्रथम अध्याय: एक पान देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।

द्वितीय अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष

तृतीय अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद

चतुर्थ अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष,
चतुर्थ अध्याय: के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।

पंचम अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।

षष्टम अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।

सप्तम अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।

अष्टम अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।

नवम अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।

दशम अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।

एकादश अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।
द्वादश अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल।

त्रयोदश अध्याय: प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।

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