Thursday Fast – जानिए बृहस्पति व्रत कैसे करें, सम्पूर्ण कथा पूजन और उद्यापन विधि

Brihaspati Dev

Brihaspati Dev

बृहस्पति व्रत (Thursday Fast) का महात्म्य एवं विधि-विधान, व्रत कथा

देव गुरु बृहस्पति देव (Brihaspati Dev) जी विद्या, बुद्धि, धन-वैभव, मान सम्मान, यश-पद और पुत्र-पोत्र प्रदाता, अत्यंत दयालु देवता है। नव ग्रहों में सबसे बड़े और शक्तिशाली तथा देवताओं के गुरु होने के नाते बृहस्पति देव (Brihaspati Dev) के निमित्त व्रत और पूजा करने पर अन्य सभी ग्रह और देवता भी हम पर कृपालु बने रहते हैं। इनका वाहन हाथी है और हाथों में शंख एवं पुस्तक के साथ-साथ त्रिशूल भी धारण करते हैं। देव गुरु बृहस्पति जी के शरीर का रंग सोने जैसा पीला है और पीले वस्त्र एवं भरपूर स्वर्ण आभूषण धारण करते हैं। इनके पूजन में पीले फूलों, हल्दी में रंगे हुए चावल, रोली के स्थान पर पीसी हुई हल्दी और प्रसाद के रूप में पानी में भीगी हुई चने की दाल अथवा बेसन के लड्डूओं का प्रयोग किया जाता है। व्रत करने वाले साधक को भी पीले वस्त्र तथा पीली वस्तुओं का प्रयोग तथा पीला भोजन ही करना चाहिए।

बृहस्पति व्रत विधि | Brihaspati Vrat Vidhi

यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) गुरुवार (Guruvar)  से आरंभ करें। तीन वर्षपर्यन्त या 16 व्रत करें। उस दिन पीतवस्त्र धारण करके बीज मंत्र की 11 या 3 माला जप करें। पीतपुष्पों से पूजन अर्घ्य दानादि के बाद भोजन में चने के बेसन की घी-खाण्ड से बनी मिठाई, लड्डू या हल्दी से पीले या केसरी चावल आदि ही खाएं और इन्हीं का दान करें।

बृहस्पतिवार (Brihaspativar | Guruvar Vrat) के व्रत के दिन अपने मस्तक में हल्दी का तिलक करें। हल्दी में रंगे चावलों अथवा चने की दाल की वेदी बनाकर और उस पर रेशमी पीला वस्त्र बिछाकर बृहस्पति देव की प्रतिमा अथवा बृहस्पति ग्रह के यंत्र को स्वर्णपत्र, रजतपत्र, ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति बुध देव के मंत्र का जाप करना चाहिए।

बृहस्पतिवार व्रत उद्यापन विधि | Brihaspativar  Vrat Udyaapan Vidhi

बृहस्पतिवार (Brihaspativar | Guruvar Vrat) के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव बृहस्पति ग्रह का दान जैसे पुखराज, सुवर्ण, कांसी, दालचने, खांड, घी, पीतवस्त्र, हल्दी, पीतपुष्प, पुस्तक, घोड़ा, पीतफल आदि करना चाहिए बृहस्पति ग्रह से संबंधित दान के लिए सन्धया का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा।

बृहस्पति ग्रह के मंत्र ‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः’ का कम से कम 19000 की संख्या में जाप तथा बृहस्पति ग्रह की लकड़ी अश्वत्थ से बृहस्पति ग्रह के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए

देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।

हवन पूर्णाहुति के बाद ब्राह्मण व बटुको को लड्डू भोजन कराएं। स्वर्ण, पीत वस्त्र, चने की दाल आदि का दान करें। यह व्रत विद्यार्थियों के लिए बुद्धि तथा विद्याप्रद है। धन की स्थिरता तथा यश वृद्धि करता है। अविवाहितों के लिए स्त्री प्राप्तिप्रद सिद्ध होता है।

बृहस्पति ग्रह शांति का सरल उपचारः- पीले वस्त्र, रुमाल आदि, पीले फूल धारण करना, सोने की अंगूठी पहनना।

बृहस्पति व्रत कथा | Brihaspati Vrat Katha

अत्यंत प्राचीन काल की बात है। एक गांव में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहते थे। वे अत्यंत निर्धन तो थे ही, उनके कोई संतान भी नहीं थी। वह ब्राह्मणी बहुत मलीनता से रहती थी। वह न तो स्नान करती और न ही किसी देवता का पूजन। प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम भोजन करती, बाद में कोई अन्य कार्य करती थी। इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुखी थे। बेचारे बहुत कुछ कहते थे किंतु उसका कोई परिणाम न निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री के कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ और वह कन्या अपने पिता के घर में बड़ी होने लगी। वह बालिका प्रतिदिन पूजा और प्रत्येक बृहस्पति (Brihaspati) को व्रत करने लगी। अपने पूजा-पाठ को समाप्त करके स्कूल जाती तो मुट्ठी में जौं भरकर ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। बाद में ये जौं स्वर्ण के हो जाते और वह लौटते समय उनको बीनकर घर ले आती। एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौंओं को फटक रही थी। उसके पिता ने देखा और कहा-बेटी! सोने की जौंओं को फटकने के लिए तो सोने का सूप होना चाहिए। दूसरे दिन गुरुवार था। उस कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पति देव से प्रार्थना करके कहा-हे प्रभो! मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। बृहस्पति देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। रोजाना की तरह वह कन्या जौं फैलाती हुई जाने लगी। जब लौटकर जौं बीन रही थी तो बृहस्पति (Brihaspati) की कृपा से उसे सोने का सूप मिला। उसे वह घर ले आई और उससे जौं साफ करने लगी। परंतु उसकी मां का वही ढंग रहा।

एक दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप में सोने के जौं साफ कर रही थी। उस समय शहर का राजपूत्र वहां होकर निकला। इस कन्या के रूप और रंग को देखकर वह मोहित हो गया तथा अपने घर आकर भोजन तथा जल त्याग कर उदास हो लेट गया। राजा को इस बात का पता लगा तो मंत्रियों के साथ उसके पास आये और बोले-हे बेटा! तुम्हें किस बात का कष्ट है। किसी ने अपमान किया हो अथवा कोई और कारण हो सो कहो। मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो। राजकुमार अपने पिता की बातें सुनकर बोला-मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुःख नहीं है। किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है। परंतु मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में सोने के जौ साफ कर रही थी।

यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ गया और बोला-हे बेटा! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ, मैं उसके साथ विवाह अवश्य करवा दूंगा। राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतला दिया। तब राजा का प्रधानमंत्री उस लड़की के घर गया और ब्राह्मण की उस कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया।

कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी आ गई। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुःखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गये। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देखा और अपनी मां का हाल पूछा। तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने बहुत- सा धन देकर पिता को विदा कर दिया। इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुख पूर्वक व्यतीत हुआ। कुछ दिन बाद वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के यहां गया और सभी हाल बताया। तब लड़की बोली-हे पिताजी! आप माताजी को यहां लिवा लाओ, मैं उन्हें विधि बता दूंगी। जिसे गरीबी दूर हो जाएगी। वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को लेकर पुत्री के घर पहुंचे तो पुत्री अपनी मां को समझाने लगी-हे मां! तुम प्रातःकाल उठकर प्रथम स्नानादि करके भगवान् का पूजन करो तो सब् दरिद्रता दूर हो जाएगी। लेकिन उसकी मां ने एक भी बात नहीं मानी और प्रातःकाल उठते ही अपनी पुत्री के बच्चों का झूठन खा लिया। एक दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया। उसमें उस रात कोठरी से सभी सामान निकाला और अपनी मां को उसमें बंद कर दिया। प्रातःकाल उसमें से निकाला तथा स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई। फिर तो वह प्रत्येक बृहस्पति को व्रत रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मां भी बहुत धनवान तथा पुत्रवती हो गई और बृहस्पति देव जी के प्रभाव से वे दोनों इस लोक में सभी सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए।

बृहस्पतिवार व्रत की दूसरी कथा | Brihaspati Vrat Katha

किसी गांव में एक साहूकार रहता था, जिसके घर में अन्न, वस्त्र और धन किसी की कोई कमी नहीं थी। परंतु उसकी स्त्री बहुत ही कृपण थी। किसी भिक्षार्थी को कुछ नहीं देती थी, सारे दिन घर में कामकाज में लगी रहती। एक समय एक साधु-महात्मा बृहस्पतिवार (Brihaspativar) के दिन उसके द्वार पर आये और भिक्षा की याचना की। स्त्री उस समय घर का आंगन लीप रही थी, इस कारण साधु महाराज से कहने लगी कि महाराज इस समय तो मैं लीप रही हूं आपको कुछ नहीं दे सकती, फिर किसी दिन का अवकाश के समय आना। साधु महात्मा खाली हाथ चले गये। कुछ दिन के पश्चात वही साधु महाराज आये और उसी तरह भिक्षा मांगी। साहूकारनी उस समय लड़के को खिला रही थी। कहने लगी-महाराज, मैं क्या करूं? अवकाश नहीं है, इसलिए आपको भिक्षा नहीं दे सकती। तीसरी बार महात्मा आए तो उसने उन्हें उसी तरह टालना चाहा, परंतु महात्मा जी कहने लगे कि यदि तुम को बिल्कुल ही अवकाश हो जाए तो मुझको भिक्षा दोगी? साहूकारनी कहने लगी-हां महाराज ! यदि ऐसा हो जाये तो आपकी बहुत कृपा होगी। साधु-महात्मा जी कहने लगे कि अच्छा मैं एक उपाय बताता हूं। तुम बृहस्पतिवार (Brihaspativar) को दिन चढ़ने पर उठना और सारे घर के झाड़ू लगाकर कूड़ा एक कोने में जमा कर रख देना। घर में चौक इत्यादी मत लगाना। घर वालों से कह दो, उस दिन सब हजामत अवश्य बनवाएं। रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रखा करो, सामने कभी न रखो। सायंकाल को अंधेरा होने के बाद दीपक जलाया करो तथा बृहस्पतिवार (Brihaspativar) को पीले वस्त्र मत धारण करो, न पीले रंग की चीजों का भोजन करो। यदि ऐसा करोगी तो तुम को घर का कोई काम नहीं करना पड़ेगा।

साहूकारनी ने ऐसा ही किया। बृहस्पतिवार (Brihaspativar) को दिन चढ़े उठी, झाड़ू लगाकर कूड़े को घर में जमा कर दिया। पुरुषों ने हजामत बनवाई। भोजन बनाकर चूल्हे के पीछे रखा। वह कई बृहस्पतिवारों तक ऐसा ही करती रही। इससे कुछ काल बाद उसके घर में खाने को दाना न रहा। थोड़े दिनों बाद वही महात्मा फिर आये और भिक्षा मांगी। सेठानी ने कहा-महाराज, मेरे घर में खाने को अन्न ही नहीं, आपको क्या दे सकती हूं। तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर में सब कुछ था तब भी तुम कुछ नहीं देती थी।

अब पूरा-पूरा अवकाश है तब भी कुछ नहीं दे रही हो, तुम क्या चाहती हो वह कहो तब सेठानी ने कहा हाथ जोड़कर प्रार्थना की-हे महाराज! अब कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरे पहले जैसा धन-धान्य हो जाये। अब मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि अवश्यमेव जैसा आप कहोगे वैसा ही करूंगी। तब महाराज जी ने कहा-बृहस्पतिवार को प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त हो घर को गौ के गोबर से लीपो तथा घर के पुरुष हजामत न बनवायें। भूखों को अन्न-वस्त्र देती रहा करो। ठीक सायंकाल दीपक जलाओ। यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सब मनोकामनाएं भगवान बृहस्पति जी की कृपा से पूर्ण होगीं, सेठानी ने ऐसा ही किया और उसके घर में धन-धान्य वैसा ही हो गया जैसे कि पहले था। इस प्रकार भगवान बृहस्पति देव (Brihaspati Dev) की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगती हुई है त्रिकाल तक वह दीर्घकाल तक जीवित रही और अंत में मोक्ष प्राप्त हुई।

बृहस्पति देव की आरती | Brihaspati Dev Aarti

ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।

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