कार्तिक माह माहात्म्य दसवाँ अध्याय | Chapter -10 Kartik Puran ki Katha (Kahani)

kartik mass chapter 10

कार्तिक माह माहात्म्य दसवाँ अध्याय

Chapter – 10

 

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मायापति नारायण के, चरणों में सीस नवाय।

दसवाँ अध्याय कार्तिक, लिखूं नारायण राय।।

राजा पृथु बोले – हे ऋषिश्रेष्ठ नारद जी! आपको प्रणाम है । कृपया अब यह बताने की कृपा कीजिए कि जब भगवान शंकर ने अपने मस्तक के तेज को क्षीर सागर में डाला तो उस समय क्या हुआ?

नारद जी बोले – हे राजन्! जब भगवान शंकर ने अपना वह तेज क्षीर सागर में डाल दिया तो उस समय वह शीघ्र ही बालक होकर सागर के संगम पर बैठकर संसार को भय देने वाला रूदन करने लगा । उसके रूदन से सम्पूर्ण जगत व्याकुल हो उठा। लोकपाल भी व्याकुल हो गये । चराचर चलायमान हो गया । शंकर सुवन के रुदन से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड व्याकुल हो गया । यह देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि व्याकुल होकर ब्रह्माजी की शरण में गये और उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगे । उन सभी ने ब्रह्मा जी से कहा – हे पितामह! यह तोन बहुत ही विकट परिस्थिति उत्पन्न हो गई है । हे महायोगिन! इसको नष्ट कीजिए ।

देवताओं के मुख से इस प्रकार सुनकर ब्रह्माजी सत्यलोक से उतरकर उस बालक को देखने के लिए सागर तट पर आये । सागर ने ब्रह्मा जी को आता देखकर उन्हें प्रणाम किया और बालक को उठाकर उनकी गोद में दे दिया । आश्चर्य चकित होते हुए ब्रह्मा जी ने पूछा – हे सागर! यह बालक किसका है, शीघ्रतापूर्वक कहो ।

सागर विनम्रतापूर्वक बोला – प्रभो! यह तो मुझे ज्ञात नहीं है परन्तु मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि यह गंगा सागर के संगम पर प्रगट हुआ है इसलिए हे जगतगुरु! आप इस बालक का जात कर्म आदि संस्कार कर के इसका जातक फल बताइए ।
नारद जी राजा पृथु से बोले – सागर ब्रह्माजी के गले में हाथ डालकर बार-बार उनका आकर्षण कर रहा था । फिर तो उसने ब्रह्माजी का गला इतनी जोर से पकड़ा कि उससे पीड़ित होकर ब्रह्मा जी की आँखों से अश्रु टपकने लगे । ब्रह्माजी ने अपने दोनों हाथों का जोर लगाकर किसी प्रकार सागर से अपना गला छुड़वाया और सागर से कहा – हे सागर! सुनो, मैं तुम्हारे इस पुत्र का जातक फल कहता हूँ । मेरे नेत्रों से जो यह जल निकला है इस कारण इसका नाम जलन्धर होगा । उत्पन्न होते ही यह तरुणावस्था को प्राप्त हो गया है इसलिए यह सब शास्त्रों का पारगामी, महापराक्रमी, महावीर, बलशाली, महायोद्धा और रण में विजय प्राप्त करने वाला होगा ।

यह बालक सभी दैत्यों का अधिपति होगा । यह किसी से भी पराजित न होने वाला तथा भगवान विष्णु को भी जीतने वाला होगा । भगवान शंकर को छोड़कर यह सबसे अवध्य होगा। जहां से इसकी उत्पत्ति हुई है यह वहीं जायेगा । इसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता, सौभाग्यशालिनी, सर्वांगसुन्दरी, परम मनोहर, मधुर वाणी बोलने वाली तथा शीलवान होगी ।

सागर से इस प्रकार कहकर ब्रह्माजी ने शुक्राचार्य को बुलवाया और उनके हाथों से बलक बालक का राज्याभिषेक कराकर स्वयं अन्तर्ध्यान हो गये । बालक को देखकर सागर की प्रसन्नता की सीमा न रही, वह हर्षित मन से घर आ गया । फिर सागर में उस बालक का लालन-पालन कर उसे पुष्ट किया, फिर कालनेमि नामक असुर को बुलाकर वृन्दा नामक कन्या से विधिपूर्वक उसका विवाह करा दिया । उस विवाह में बहुत बड़अ उत्सव हुआ । श्री शुक्राचार्य के प्रभाव से पत्नी सहित जलन्धर दैत्यों का राजा हो गया ।

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