श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पर्व शंका समाधान | Janmashtami Vrat Parv

Shri Krishna Janmashtmi 2019

कृष्ण जन्मोत्सव (Krishan Janmashtami) पर्व इस वर्ष 23 एवं 24 अगस्त 2019 को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी (Janmashtami) जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है पूरे भारत वर्ष में जन्माष्टमी पर्व पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

श्री कृष्णजन्माष्टमी (Janmashtami) भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु इस दिन मथुरा पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जात है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।

पौराणिक मान्यता
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पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने हेतु कृष्ण रुप में अवतार लिया, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में हुआ था। जन्माष्टमी को स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग ढंग से मनाते हैं. श्रीमद्भागवत को प्रमाण मानकर स्मार्त संप्रदाय के मानने वाले चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाते हैं तथा वैष्णव मानने वाले उदयकाल व्यापनी अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाते हैं।

अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमें केवल पहली अष्टमी है।

स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्य पुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो ‘जयंती’ नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नामवाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है। वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है। अन्त्य की दोनों में परा ही लें।

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे।

व्रजमण्डलमें श्रीकृष्णाष्टमी (Janmashtami) के दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्रीविग्रहपर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासीउसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्ययंत्रोंसे मंगलध्वनि बजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है।

संदिग्ध व्रत पर्व निर्णय
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गत वर्षो की भाँति इस वर्ष भी दो दिन अष्टमी व्याप्त होने से जन्माष्टमी व्रत एंव उत्सव के सम्बन्ध मे संशय बना हुआ है ओर इसी कारण हमारे पुराणो व धर्मग्रंथो मे कृष्ण जन्माष्टमी व्रत व उत्सव का निर्णय स्मार्त मत (गृहस्थ और सन्यासी) व वैष्णव मत (मथुरा वृन्दावन) साम्प्रदाय के लिए अलग अलग सिद्धांतो से किया है। गृहस्थ व उतरी भारत के लोग कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पूजा अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी रोहिणी नक्षत्र वृषभ लग्न मे करते है जबकि वैष्णव मत वाले लोग विशेष कर मथुरा वृन्दावन अन्य प्रदेशो मे उदयकालिन अष्टमी (नवमी युता) के दिन ही कृष्ण उत्सव मनाते आ रहे है। अर्द्धरात्रि को अष्टमी व रोहिणी नक्षत्र हो या न हो इस बात को महत्व नही देते है। जन्म स्थली मथुरा को आधार मानकर मनाई जाने वाले श्रीकृष्ण उत्सव के दिन ही सरकार छुट्टी की घोषणा करती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत तथा जन्मोत्सव दो अलग अलग स्थितिया है।

जन्माष्टमी निर्धारण के नियम
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1 अष्टमी पहले ही दिन आधी रात को विद्यमान हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन किया जाता है।

2 अष्टमी केवल दूसरे ही दिन आधी रात को व्याप्त हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

3 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र का योग एक ही दिन हो तो जन्माष्टमी व्रत रोहिणी नक्षत्र से युक्त दिन में किया जाता है।

4 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को विद्यमान हो और दोनों ही दिन अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त रहे तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

5 अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में दोनों दिन रोहिणी नक्षत्र का योग न हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

6 अगर दोनों दिन अष्टमी आधी रात को व्याप्त न करे तो प्रत्येक स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे ही दिन होगा।

विशेष: उपरोक्त मुहूर्त स्मार्त मत के अनुसार दिए गए हैं स्मार्त मत वाले प्रायः व्रत निर्णय उदयव्यापिनी तिथि को आधार मानकर ही करते है। वैष्णवों के मतानुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अगले दिन मनाई जाएगी। ध्यान रहे कि वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय मत को मानने वाले लोग इस त्यौहार को अलग-अलग नियमों से मनाते हैं।

हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार वैष्णव वे लोग हैं, जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय में बतलाए गए नियमों के अनुसार विधिवत दीक्षा ली है। ये लोग अधिकतर अपने गले में कण्ठी माला पहनते हैं और मस्तक पर विष्णुचरण का चिन्ह (टीका) लगाते हैं। इन वैष्णव लोगों के अलावा सभी लोगों को धर्मशास्त्र में स्मार्त कहा गया है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि – वे सभी लोग, जिन्होंने विधिपूर्वक वैष्णव संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली है, स्मार्त कहलाते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का मुहूर्त
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जन्‍माष्‍टमी की तिथि: 23 अगस्‍त और 24 अगस्‍त।

अष्‍टमी तिथि प्रारंभ: 23 अगस्‍त 2019 को सुबह 08 बजकर 08 मिनट से।

अष्‍टमी तिथि समाप्‍त: 24 अगस्‍त 2019 को सुबह 08 बजकर 30 मिनट तक।

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 24 अगस्‍त 2019 की सुबह 04 बजकर 15 मिनट से।

रोहिणी नक्षत्र समाप्‍त: 25 अगस्‍त 2019 को सुबह 07 बजकर 58 मिनट तक।

व्रत का पारण: जानकारों के मुताबिक जन्‍माष्‍टमी के पहले दिन यानी 23 अगस्त को व्रत रखने वालों को अष्‍टमी तिथि 24 अगस्त प्रातः 8 बजकर 30 मिनट पर खत्म होने पर किया जाना चाहिये। और जो भक्त लोग 24 अगस्त को व्रत रखेंगे उन्हें रोहिणी नक्षत्र के खत्‍म होने के बाद व्रत का पारण करना चाहिये।

SOMVATI AMAVASYA – सोमवती अमावस्या पर करे अकाट्य उपाय

Somvati Amavsya

गौ, ब्राह्मण, गर्भस्थ शिशु , स्त्री हत्या, विश्वासघात

तथा किसी के द्वारा दिए गए श्राप का अकाट्य उपाय

ओम नमः शिवाय,

सज्जनों,

ओम नमः शिवाय,

आज के इस एपिसोड में हम जानेंगे की बहुत सारे उपाय करने के उपरांत भी व्यक्ति को पूर्ण लाभ क्यों नहीं मिल पाता है सज्जनों शास्त्रों के अनुसार से यदि किसी व्यक्ति के महा पातक उदय हो रखे होते हैं तो उस व्यक्ति के महापातकों के कारण से पुण्य दब जाते हैं और व्यक्ति की पूजा पाठ तथा शुभ कर्म फलीभूत नहीं हो पाते। महा पातक कौन कौन से होते हैं गो, ब्राह्मण, गर्भस्थ शिशु, स्त्री हत्या, विश्वासघात, जघन्य अथवा क्रूर कर्म आदि तथा किसी के द्वारा दिया गया श्राप इन सब महापापों के कारण से व्यक्ति को पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता। सोमवती अमावस्या पर एक ऐसा दुर्लभ संयोग बनता है। जिसके कारण से स्कंद पुराण, अग्नि पुराण तथा पदम पुराण में दिए गया अकाट्य उपाय करने से सभी प्रकार के महापातकों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति सुख की राह पर आगे बढ़ सकता है। आइए विस्तार से जानते हैं।

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दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त | Deepawali Pujan Shubh Muhurat

ओम नमः शिवाय,

सज्जनों,

दीपावली का पर्व आ गया है। किन किन राशि में जन्मे हुए अथवा किन-किन लग्न में जन्मे हुए व्यक्तियों को अपने कार्यस्थल पर किस मुहूर्त में पूजा अर्चना करनी चाहिए। यह आज के इस लेख में बताया गया है। शास्त्र की दृष्टि से जो समय बताया गया है। उस समय में अपनी राशि के अनुसार पूजा पाठ करने वाले को कई गुना फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त के बारे में –

तुला राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए सुबह 7:28 से 9:48 तक

वृश्चिक राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त सुबह 9:48 से सुबह 11:53 तक

धनु राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त सुबह 11:53 से दोपहर 1:34 तक

मकर राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त दोपहर 1:34 से दोपहर 2:59 तक

कुंभ राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त दोपहर 2:59 से शाम 4:21 तक

मीन राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त दोपहर 4:21 से शाम 5:54 तक

मेष राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त शाम 5:54 से शाम 7:49 मिनट तक

वृषभ राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त शाम 7:59 से रात्रि 10:03 तक

मिथुन राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त रात्रि 10:03 से रात 12:25 तक

कर्क राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त 12:25 से रात्रि 2:45 तक

सिंह राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त रात 2:45 से सुबह 5:03 तक

कन्या राशि अथवा लग्न में जन्मे हुए जातकों के लिए मुहूर्त रात 5:03 से सुबह 7:24 तक

घर में दीपावली पूजन करने का मुहूर्त

शाम 7:59 से रात्रि 10:03 तक

यंत्र – मंत्र – तंत्र साधना करने का महत्वपूर्ण काल

निशिथ काल

रात 12:25 से रात्रि 2:45 तक

महानिशिथ काल

रात 2:45 से सुबह 5:03 तक

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 Diwali Pooja Muhurat / दिवाली पूजा मुहूर्त के बारे में यह artical यदि आपको पसंद आया हो, तो इसे like और दूसरों को share करें, ताकि यह जानकारी और लोगों तक भी पहुंच सके। आप Comment box में Comment जरुर करें। इस subject से जुड़े प्रश्न आप नीचे Comment section में पूछ सकते हैं।

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Pitra Puja|Shraddh paksh में पितरों के लिए यह अवश्य करें

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ओम नमः शिवाय

सज्जनों, जैसा कि हमने जाना हमने पिछले वीडियो में यह जाना था कि पितृ पक्ष में कौन से कार्य भूल कर भी नहीं करने चाहिए। इसी प्रकार से यह एक नया वीडियो बनाया गया है। जिसमें पितृपक्ष में कौन से कार्य अवश्य करनी चाहिए। किस प्रकार के उपाय करने से पितरों की प्रसन्नता और कृपा हम पर बनी रहती है। इस वीडियो में विस्तार से बताया गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में


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Mahalaya|Shraddha paksh | पितृ पक्ष में भूलकर भी ना करें यह कार्य

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ओम नमः शिवाय

सज्जनों पितृपक्ष आने वाला है। पितृ हमारे घर के कुलदेवता तथा बड़े बुजुर्ग हैं। पितृपक्ष के समय में हमें कौन से कार्य नहीं करने चाहिए ? ऐसे कौन से कार्य शास्त्रों में बताए गए हैं जो हमारे लिए निषेध है ? आज उसी के बारे में वीडियो में बताया जाएगा। आइए देखते हैं आज का वीडियो ।

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Rishi Panchami Vrat katha, Vidhi| ऋषिपंचमी व्रत कथा – महात्म्य

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सज्जनों जाने अनजाने में प्रत्येक मनुष्य से कुछ न कुछ पाप कर्म अथवा दूषित कर्म अवश्य होते हैं। इसी प्रकार से स्त्रियों में भी एक कर्म ऐसा है जो प्रत्येक स्त्री जाने अनजाने में अवश्य करती है और इस पाप कर्म के कारण से उस स्त्री के शरीर, स्वभाव, घर, परिवार, मन तथा आत्मा आदि पर कुप्रभाव पड़ता है । आइए आज के इस वीडियो में जानते हैं कि यह दुष्प्रभाव किस तरह का होता है ? क्या पाप कर्म करने से यह दुष्प्रभाव स्त्री के ऊपर पड़ता है ? इसका निवारण क्या है ?


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Bhadrapada Kalank Chaturthi Katha in Hindi | कलंक चतुर्थी

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क्या आपके ऊपर लगा है झूठा इल्जाम, तो करें यह एक अचूक उपाय

सज्जनों, आज के इस वीडियो में हम जानेंगे कि कई बार व्यक्ति के जीवन में झूठे आरोप, षड्यंत्र, इल्जाम आदि लगते हैं। ऐसा क्या कारण होता है कि व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का अशुभ योग बनता है तथा इन सभी परेशानियों से निजात दिलाने के लिए क्या उपाय करना चाहिए ? आइए जानते हैं आज के इस वीडियो में।


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Pithori Amavasya Puja | कुशोत्पाटिनी अमावस्या की महिमा व विधि।

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RAKSHA BANDHAN |रक्षाबंधन – भाई का अकाल मृत्यु दोष निवारण

Rakhi

रक्षाबंधन पर करें, भाई के अकाल मृत्यु दोष निवारण के लिए उपाय

ओम नमः शिवाय, सज्जनों, आज के इस एपिसोड में हम जानेंगे कि 37 साल के बाद पहली बार रक्षाबंधन के पर्व पर ऐसा योग रहा है। जब पूरे दिन भद्रा का वास नहीं है। मुहूर्त शास्त्रों में रक्षाबंधन के पर्व पर भद्रा काल वर्जित माना गया है। आज के इस वीडियो में आपको बताया जाएगा कि कौन सा उपाय करने से यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली की मृत्यु स्थान पर पापी या फिर क्रूर ग्रह बैठकर अकाल मृत्यु अथवा असामायिक मृत्यु का योग बना रहे हैं तो क्या उपाय करने से उनका दोष कटेगा और वह व्यक्ति दीर्घायु हो पाएगा। आइए देखते हैं आज के इस वीडियो में।


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Vyasa Purnima | Guru Purnima | गुरु पूर्णिमा का महत्त्व

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