शनि प्रदोष व्रत कथा | Shani Pradosh Vrat Katha Vidhi Mahatmya Saturday

शनि प्रदोष व्रत | Shani Pradosh Vrat

जिस प्रकार एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है । उसी प्रकार त्रयोदशी का व्रत यानी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है । जब त्रयोदशी का व्रत शनिवार के दिन आ जाए तो उस प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। शनि देव न्यायाधिपति और कर्म फल दाता हैं और शिव नई रचना के सर्जक और संहारक हैं। क्योंकि भगवान शिव, शनि देव जी के इष्ट देवता हैं। अतः शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) को करने से भगवान शनि देव और भगवान शिव पार्वती का आशीर्वाद मिलता है। इसीलिए यह व्रत एक त्यौहार की तरह भी मनाया जाता है।

यदि इस दिन पुष्य नक्षत्र योग के समय शनिदेव की पूजा की जाए तो व्यक्ति को भगवान शनिदेव की विशेष प्रसन्नता प्राप्त होती है। तथा शनि ग्रह के कारण जीवन में आने वाली समस्याओं का निवारण होता है। इस व्रत का पारण अगले दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाने से होता है।

जिन जातकों पर शनि की महादशा, साढ़ेसाती या ढैया चल रहा हो उन्हें शनि प्रदोष व्रत को करने से बहुत राहत मिलती है। यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में शनि ग्रह खराब अवस्था का बैठा हुआ हो। तो उन्हें शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) विशेष रुप से करना चाहिए।

शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) के दिन पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” तथा शनि के बीज मंत्र “ॐ प्राम प्रीम प्रौम स: शनिश्चराय नमः” का जाप करना चाहिए। यदि संभव हो सके तो इन मंत्रों से अपनी क्षमता के अनुसार हवन में आहुतियां भी डालनी चाहिए।

शनि प्रदोष व्रत कथा

प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे।जिनका घर सभी प्रकार की सुख सुविधाओं से पूर्ण था। परंतु वह और उनकी पत्नी दोनों ही हमेशा दुखी रहते थे । क्योंकि उन्हें कोई संतान नहीं थी । बहुत सोच विचार कर उन्होंने एक दिन निर्णय लिया कि वे तीर्थ यात्रा को जाएं ।अतः वे दोनों अपना सारा काम नौकरों के सहारे छोड़ कर तीर्थ यात्रा के लिए निकल गए। नगर के मुख्य द्वार के बाहर, वे एक साधु से मिले, अतः उन्होंने अपनी यात्रा शुरू करने से पहले साधु का आशीर्वाद लेने की सोची। वे साधु के पास बैठ गए और जब साधु ने अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने महसूस किया कि वह दंपति काफी समय से साधु के आशीर्वाद की प्रतीक्षा कर रहा था।

अतः, तब साधु ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत का पालन करने के लिए कहा और उन्हें शिव की प्रार्थना करने का मंत्र भी बताया।

“हे रुद्रदेव शिव नमस्कार। शिवशंकर जगतगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ सुर नमस्कार। शशि मौली चंद्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत सुधी नमस्कार। उग्रतव रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश प्रभु नमस्कार। विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।”

इसके बाद, साधु का आशीर्वाद लेने के बाद पति और पत्नी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए आगे बढ़ गए। तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद, उन्होंने शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) किया और उनके घर में एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ।

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ब्रह्मकपाल | गया में श्राद्ध पिंडदान के बाद | Importance of Pind Daan Shraddha In Gaya | Brahma Kapali

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गया श्राद्ध तथा बदरीनारायण में ब्रह्मकपाली में

– श्राद्ध पर विचार

यह आर्टिकल आपके बहुत से संशयों को दूर करेगा जैसे :- 

पहला श्राद्ध कहां करना चाहिए ?

गया जी तथा बद्रीनाथ जी में ब्रह्म कपाली में श्राद्ध कब करना चाहिए ?

शास्त्रों में दोनों स्थानों पर श्राद्ध की क्या महिमा बताई गई है ?

क्या बद्रीनारायण में ब्रह्म कपाल पर श्राद्ध करने के पश्चात गया जी में श्राद्ध हो सकता है ?

क्या गया जी में अपने पितरों का पिंडदान आदि करने के पश्चात फिर कभी भी पितरों के लिए कुछ करना शेष नहीं रहता अर्थात पितरों की पूर्ण रूप से सद्गति हो जाती है ?

गया श्राद्ध करने के बाद क्या कभी भी पितरों का पिंडदान, तर्पण, होम – हवन, गायत्री मंत्र जाप तथा श्राद्ध आदि करने की आवश्यकता नहीं रहती।

गया में श्राद्ध करने की अत्यधिक महिमा हैं। शास्त्रों में लिखा हैं-

जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्।

गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभिर्पुत्रस्य पुत्रता।।

जीवनपर्यन्त माता-पिता की आज्ञा ​​का पालन करने, श्राद्ध में खूब भोजन कराने और गया तीर्थ में पितरों का पिण्डदान अथवा गया में श्राद्ध करने वाले पुत्रत्व सार्थक हैं।

(श्रीमद् देवी भागवत)

गयाभिगमनं कर्तु य शकतो नाभिगच्छति।

शोचन्ति पितरस्तस्य वृथा तेषां परिश्रमः।।

तस्मात्सर्वप्रयत्नेन ब्राह्मणस्तु विशेषतः।

प्रदद्याद् विधिवत् पिण्डान् गयां गतवा समाहितः।।

जो गया जाने में समर्थ होते हुए भी नहीं जाता हैं, उसके पितर सोचते हैं कि उनका सम्पूर्ण परिश्रम निरर्थक हैं। अत मनुष्य को पूरे प्रयत्न के साथ गया जाकर सावधानीपूर्वक विधि-विधान से पिण्डदान करना चाहिए।

इन वचनों के अनुसार पितृऋण से मुक्ति हेतु गया श्राद्ध करने की अनिवार्यता के कारण और उसके न करने से पा लगने के कारण जीवित समर्थ पुरूष को गया में पिण्डदान (Pind daan) तथा श्राद्ध (Shraddh) अवश्य करना चाहिए।

प्राचीन काल में जहाँ ब्रह्मा का शिर कपाल गिरा था, वहाँ बदरी क्षेत्र में पिण्डदान (Pind daan) करने का विशेष महत्व हैं।

सनत्कुमारसंहिता में यह वचन आता है- शिरः कपालं………..नारदैतन्मयोदितम्।।

अर्थात् प्राचीन काल में जहाँ ब्रह्मा का शिर कपाल गिरा था, वहां बदरी क्षेत्र में जो पुरूष पिण्डदान (Pind daan) करने में समर्थ हुआ, यदि वह मोह के वशीभूत होकर गया में पिण्डदान (Pind daan) करता हैं तो वह अपने पितरों का अध पतन करा देता है और उनसे शापित होता है अर्थात् पितर उसका अनिष्ट-चिन्तन करते हैं। हे नारद मैने आपसे यह कह दिया,

इस वचन के अनुसार बदरीक्षेत्र में ब्रह्मकपाली (Brahm Kapali) में पिण्डदान  (Pind daan) करने के बाद गया में पिण्डदान (Pind daan) करने का निषेध प्रतीत होता है। यद्यापि इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। परन्तु मुख्य पक्ष यही है कि पूर्वमें गया में पिण्डदानादि श्राद्ध सम्पन्न  करने के बाद ही बदरी क्षेत्र में ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करना चाहिए।

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बच्चों का श्राद्ध कैसे करें | How to do Child Shradhh | Sapindi | Tripindi | Narayan Nagbali

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बालकों के श्राद्ध की व्यवस्था



(1) 2 वर्ष के पूर्व के बालक का कोई श्राद्ध तथा जलांजलि आदि क्रिया करने की आवश्यकता नहीं है।


(2) 2 वर्ष पूर्ण होने जाने पर 6 वर्ष के पूर्व तक केवल श्राद्ध का पूर्व क्रिया अर्थात् मलिनषोडशी तक की क्रिया करनी चाहिए। इसके बाद ही अर्थात् एकादशाह तथा द्वादशाह की क्रिया करने की आवश्यकता नहीं हैं।


(3) 6 वर्ष के बाद श्राद्ध की संपूर्ण क्रिया मलिनषोडशी, एकादशाह तथा सपिण्डन आदि क्रियाएं करनी चाहिए।


(4) कन्या का 2 वर्ष से लेकर विवाह के पूर्व पूर्व क्रिया अर्थात मलिनषोडशी तक की क्रिया करनी चाहिए तथा विवाह के अनन्तर अर्थात् 10 वर्ष के बाद संपूर्ण क्रिया अर्थात् मलिनषोडशी, एकादशाह  तथा सपिण्डन और क्रियाएँ करनी चाहिए।

 

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बालक की मृत्यु पर कितने दिन का पातक | How Many Days Sutak After Child Death

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बालकों की मृत्यु पर अशौच-विचार [Sutak – Patak Rules]

सज्जनों

आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे कि किस – किस आयु में बालक की मृत्यु होने पर कितने – कितने दिन का पातक अथवा सूतक [Sutak – Patak] लगता है।

(1) नाल कटने के बाद नामकरण के पूर्व अर्थात् 12 दिन के भीतर यदि बालक मर गया तो बन्धवर्ग स्नान मात्र से मरणाशौच [Patak] से निवृत्त हो जाते हैं। माता-पिता को पुत्र के मरने पर तीन रात्रि का तथा कन्या के मरने पर 1 दिन का अशौच रहता है, परंतु जननाशौच [Sutak] पूरे 10 दिन तक रहता है।

(2) नामकरण के पश्चात दांत के उत्पत्ति के पूर्व बालक के मरने पर बन्धुवर्ग स्नान मात्र से शुद्ध हो जाते हैं। माता-पिता को पुत्र के मरने पर 3 रात्रि का तथा कन्या के मरने पर 1 दिन का अशौच रहता है।

(3) दांत की उत्पत्ति तथा चुंडाकर्म हो चुके बालक के मरने पर माता-पिता को 3 दिन का मरणशौच लगता है और सपिण्ड को 1 दिन का मरणशौच लगता है।

(4) नामकरण के बाद उपनयन-संस्कार के पहले मरने पर 3  दिन का मरणाशौच रहता है।

(5) उपनयन-संस्कार होने के बाद मृत्यु होने पर 7 पुश्त के भीतर के लोगों को 10 दिन का मरणाशौच रहता है। चूँकि ब्राह्मण बालक के उपनयन का मुख्य काल 8 वर्ष का है। अंत: 8 वर्ष की अवस्था हो जाने पर उपनयन न होने पर भी बालक की मृत्यु होने पर पूरे 10 दिन का मरणाशौच रहता है। इसी प्रकार अन्य वर्णों के लिए भी उपनयन के लिए निर्धारित मुख्य काल के अनन्तर उपनयन न होने पर भी बालक की मृत्यु होने पर 10 दिन का मरणाशौच रहता है।

(6) अनुपनीत बालक तथा अविवाहित कन्या को माता और पिता के मरने पर ही 10 दिन का अशौच होता है। अन्य सगोत्रियों के मरने पर कोई भी अशौच नहीं होता।

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शास्त्रों में सूतक-पातक विचार

मृतक सूतक निर्णय

 

कब और किन स्थिति में लगती है अशुद्धि या सूतक, सूतक में क्या करें, क्या न करें ?

जानें, क्या होता है सूतक-पातक ? बरतें ये सावधानियां 

सूतक लगने पर हमें क्या विचार करना चाहिए ?

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Janiye Kis Din Kya Kaam Karna Shubh Hai | जानिए किस दिन क्या काम करें

Shubh Din

Shubh Din

जानिए किस दिन क्या काम करना शुभ है

 

रविवार

यात्रा में शुभ ग्रह दिशाएं:-  पूर्व, उत्तर (दक्षिण पूर्व)

यात्रा में त्याज्य:-  पश्चिम, नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम कोण)

विद्या एवं शिक्षा संबंधी:-  विज्ञान, इंजीनियरिंग, सेना, उद्योग, बिजली, मैडिकल एवं प्रशासनिक शिक्षा संबंधी l

व्यापार संबंधी कार्य:-  राज्य प्रशासनिक कार्य, सेना अधिकारी, ज्यूलर्स, औषधि, शास्त्र, अग्नि, अनाज, सोना, तांबा, चांदी, गाय – बैलादि का क्रय – विक्रय, मैडिकल, इलेक्ट्रिकल, मंत्रानुष्ठान व हवन आदि l

सोमवार

यात्रा में शुभ ग्रह दिशाएं:-  पश्चिम, दक्षिण (उत्तर, पश्चिम)

यात्रा में त्याज्य:- पूर्व, उत्तर आग्नेय (दक्षिण – पूर्व)

विद्या एवं शिक्षा संबंधी:-  लेखननादि कार्य, मैडिकल, शिक्षा, सौंदर्य, प्रसाधन, औषधि निर्माण, योजना संबंधी l

व्यापार संबंधी कार्य:-  कृषि, गाय, भैंस, दूध, घी, डेयरी, फॉर्म, औषधि, तरल पदार्थ, शंख, मोती, स्त्री, धन – सम्पदा, सौंदर्य प्रसाधन संबंधी वस्तुओं का क्रय – विक्रय, विदेशी पत्राचार आदि l

मंगलवार

यात्रा में शुभ ग्रह दिशाएं:-  दक्षिण-पूर्व

यात्रा में त्याज्य:-  उत्तर, पश्चिम वायव्य (उत्तर-पश्चिम)

विद्या एवं शिक्षा संबंधी:-  बिजली, सर्जरी की परीक्षा, शस्त्र, विद्या सीखना अग्नि, स्पोर्ट्स और भूगर्भ विज्ञान, दंत चिकित्सा आदि l

व्यापार संबंधी कार्य:-  शक्ति, अग्नि एवं बिजली से संबंधित कार्य, बेकरी इलेक्ट्रॉनिक,गुड़, सोना, तांबा, मूंगा, पीतल का कार्य, भूमि, सर्जरी एवं रक्षा सामग्री संधि विच्छेद अदि कार्य l

बुधवार

यात्रा में शुभ ग्रह दिशाएं:-  दक्षिण, पूर्व नैऋत्य (दक्षिण, पश्चिम)

यात्रा में त्याज्य:-  उत्तर, पश्चिम, ईशान (पूर्व – उत्तर)

विद्या एवं शिक्षा संबंधी:-  गणित,लेखनादि, बौद्धिककार्य, बैंक, वकालत, तकनीकी कार्य, ज्योतिषी, विज्ञान, वाहन चलाना सीखना l

व्यापार संबंधी कार्य:-  कृषि एवं व्यापारिक वस्तुओं का क्रय – विक्रय, शेयर बाजार, बैंकिंग, पुस्तक, लेखन प्रशासन अकाउंट्स, शिक्षण वकालत,शिल्प, एवं सम्पादन कार्य, वाहन क्रय – विक्रय।

वीरवार

यात्रा में शुभ ग्रह दिशाएं:-  पूर्व, उत्तर ईशान (पूर्व, उत्तर)

यात्रा में त्याज्य:-  दक्षिण -पूर्व नैऋत्य (दक्षिण – पश्चिम)

विद्या एवं शिक्षा संबंधी:- दर्शन-शास्त्र, धर्म-मंत्र,ज्योतिष, वकालत, उच्च पद प्रशासनिक शिक्षा, औषधि आदि l

व्यापार संबंधी कार्य:-धार्मिक अनुष्ठान, उच्च प्रशासनिक कार्य, उच्च शिक्षा के कार्य, आभूषण, लकड़ी, भूमि, वाहन का लेन-देन, विदेश गमनादि कार्य l

शुक्रवार

यात्रा में शुभ ग्रह दिशाएं:-  पूर्व, उत्तर (उत्तर, पूर्व)

यात्रा में त्याज्य:-  पश्चिम, दक्षिण नैऋत्य कोण (दक्षिण, पश्चिम)

विद्या एवं शिक्षा संबंधी:-  नृत्य, वाद्य, गायन, कला, संगीत, एक्टिंग, गीत-काव्य, रचना, स्त्रियों एवं सौंदर्य संबंधी शिक्षा।

व्यापार संबंधी कार्य:-  संगीत, सिनेमा, विदेश यात्रा, टेलीविजन, स्त्रियों एवं सौंदर्य संबंधी संबंधित कार्य, रूई, कपड़ा, चांदी , जवाहरात, रसायन, शराब, सोडा, सुगन्धित द्रव्य, वाहनादि क्रय- विक्रय, परफ्यूम आदि ।

शनिवार

यात्रा में शुभ ग्रह दिशाएं:-  पश्चिम, दक्षिण नैऋत्य (दक्षिण, पश्चिम)

यात्रा में त्याज्य:- पूर्व, उत्तर, ईशान (पूर्व-उत्तर)

विद्या एवं शिक्षा संबंधी:-  तकनीकी शिल्प, कला, मशीनरी संबंधी ज्ञान, अंग्रेजी, उर्दू फारसी का ज्ञान शुरू करना ।

व्यापार संबंधी कार्य:-  मशीनरी, लोहा, लकड़ी, चमड़ा, सीमेंट, तेल, पेट्रोल, पत्थर, भूमि, ठेकेदारी, शस्त्रों का क्रय-विक्रय, अन्वेषण कार्य, अधीनस्थ कर्मचारी, वाहनादि प्रयोग, विदेश यात्रा आदि कार्य ।

नाम 

वार

रवि सोम मंगल बुध वीर शुक्र शनि

नवीन वस्त्र 

धारण करना

शुभ  मध्यम अशुभ शुभ शुभ 

अति 

शुभ

अशुभ

नवीन आभूषण

धारण

शुभ शुभ मध्यम शुभ शुभ शुभअशुभ
तेल लगाना अशुभ शुभ अशुभ

विशेष

 शुभ

अशुभ शुभ

विशेष

 शुभ

हजामत करना मध्यम शुभअशुभ शुभ अशुभ शुभ मध्यम

नया जूता 

पहनना

  अशुभ शुभअशुभ शुभ मध्यमशुभ मध्यम
मुकदमा करना  अशुभ अशुभ शुभ शुभ अशुभ मध्यम शुभ 

 

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Ashwin Krishna Paksha Shradh Calendar List 2024 | श्राद्ध पक्ष

Shradh Paksh calendar

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हिंदू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है। श्राद्ध विधि इसी भावना पर आधारित है।

मृत्यु के बाद जीवनात्मा को उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग-नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुन मृत्युलोक में आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के चक्र में मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।

पितृयान मार्ग में जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चंद्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अंत कृष्ण पक्ष में उनके वंशजों को उनके लिए आहार पुहँचाना चाहिए, इसलिए श्राद्ध एवं पिंडदान की व्यवस्था की गई है। शास्त्रों में आता है कि अमावस के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए।

प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर देवऋण, पितृऋण एवं ऋषिऋण रहता है। श्राद्ध क्रिया द्वारा पितृऋण से मुक्त हुआ जाता है। देवताओं को यज्ञ-भाग देने पर देवऋण से मुक्त हुआ जाता है। ऋषि-मुनि-संतो के विचारों को, आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से, उनका प्रचार-प्रसार करने से एवं उनके लक्ष्य मानकर आदरसहित आचरण करने से ऋषिऋण से मुक्त हुआ जाता है।

पुराणों में आता है कि अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस के दिन सूर्य एवं चंद्र की युति होती है। सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है इस दिन हमारे पितर यमलोक से अपना निवास छोड़कर सूक्ष्म रूप से मृत्युलोक में अपने वंशजों के निवास-स्थान में रहते हैं । अंत उस दिन उनके लिए विभिन्न श्राद्ध करने से वे तृप्त होते हैं।

जो नि संतान ही चल बसे हो उन्हें मृतात्माओं के लिए भी यदि कोई व्यक्ति इन दिनों में श्राद्ध-तर्पण करेगा अथवा जलांजलि देगा तो वह भी उन तक पहुंचेगी। जिन की मरण-तिथि ज्ञात न हो उनके लिए भी अवधि के दौरान दी गई अंजलि पहुंचती है।

आश्विन कृष्ण पक्ष के श्राद्ध की सूची संवत 2081 सन 2024

तिथि का श्राद्ध 

तारीख

पूर्णिमा/प्रोष्पदी का श्राद्ध

17 सितंबर 2024

प्रतिपदा का श्राद्ध

18 सितंबर 2024

द्वितीया का श्राद्ध

19 सितंबर 2024

तृतीया का श्राद्ध

20 सितंबर 2024
चतुर्थी का श्राद्ध
भरणी का श्राद्ध

21 सितंबर 2024

पंचमी का श्राद्ध

22 सितंबर 2024

पष्ठी का श्राद्ध
सप्तमी का श्राद्ध

23 सितंबर 2024

अष्टमी का श्राद्ध

24 सितंबर 2024

नवमी/ सौभाग्यवतीनां श्राद्ध

25 सितंबर 2024

दशमी का श्राद्ध

26 सितंबर 2024

एकादशी का श्राद्ध

27 सितंबर 2024

द्वादशी , सन्यासियों का श्राद्ध
मघा श्राद्ध

29 सितंबर 2024

त्रयोदशी का श्राद्ध

30 सितंबर 2024

चतुर्दशी श्राद्ध – अपमृत्यु वालों का श्राद्ध

01 अक्टूबर 2024

सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात मृतकों का श्राद्ध, महालय श्राद्ध

02 अक्टूबर 2024

विशेष: नाना नानी का श्राद्ध अमावस्या तिथि अथवा प्रतिपदा तिथि पर किया जाता है। सभी अपने स्थानों के अनुसार इसे कर सकते हैं।

Pitru Paksha | Shradh 2021: कब से शुरु है पितृ पक्ष? जानें ​महत्वपूर्ण जानकारी

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Amavasya Calendar List 2024-2025 | अमावस्या की लिस्ट

Amavasya calendar

 Amavasya calendar

अमावस्या का ज्योतिष शास्त्र तथा धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है। इस दिन पितरों के निमित्त से तर्पण, पूजन, मार्जन आदि करने से पितृ दोष से मुक्ति होती है। जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष हो l  उनके लिए इस तिथि पर पितरों के निमित्त से कुछ भी किया जाए तर्पण करने से पित्र दोष शांत हो जाता है l अमावस्या तिथि को ही सूर्य पर ग्रहण लगता है l 

अमावस्या से शुरू होने वाले पक्ष को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि इस दिन अपने पूर्वजों को याद कर पूजा करने और गरीबों को दान देने से मनुष्य के पापों का नाश होता है। वैसे तो सभी अमावस्या को एक समान माना जाता है, लेकिन सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या जिसे हम सोमवती अमावस्या कहते हैं। वो अन्य अमावस्या की तुलना में इस विशेष महत्व रखता है। पितरों की तर्पण के लिए भौमवती और शनिचरी अमावस्या का विशेष महत्व है l

अमावस्या की सूची संवत 2081 सन 2024

मास (महीना)

तारीख

पौष मास

11 जनवरी 2024 (गुरुवार)

माघ मास

09 फरवरी 2024 (शुक्रवार)

फाल्गुन मास

10 मार्च 2024 (रविवार)

चैत्र मास

08 अप्रैल 2024 (सोमवार)

वैशाख मास

08 मई 2024 (बुधवार)

ज्येष्ठ मास

06 जून 2024 (गुरुवार)

आषाढ़ मास

05 जुलाई 2024 (शुक्रवार)

श्रावण मास

04 अगस्त 2024 (रविवार)

भाद्रपद मास

02 सितंबर 2024 (सोमवार)

भाद्रपद मास

03 सितंबर 2024 (मंगलवार)

आश्विन मास

02 अक्टूबर 2024 (बुधवार)

कार्तिक मास

01 नवंबर 2024 (शुक्रवार)

मार्गशीर्ष मास

01 दिसंबर 2024  (रविवार)

पौष मास

30 दिसंबर 2024 (सोमवार)

अमावस्या की सूची संवत 2081 सन 2025

माघ मास

29 जनवरी 2025 (बुधवार)

फाल्गुन मास

27 फरवरी 2025 (गुरुवार)

चैत्र मास

29 मार्च 2025 (शनिवार)

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Masik Kalashtami Calendar List 2024-2025 | मासिक कालाष्टमी लिस्ट

Masik Kalashtami Vrat Calendar
Masik Kalashtami Vrat Calendar

जो कोई भी व्यक्ति कालाष्टमी की पूजा करता है l उसे भैरव बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं प्रत्येक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मासिक कालाष्टमी कहा जाता हैं l अतः वर्ष भर में 12 मासिक कालाष्टमी आती हैं।

मासिक कालाष्टमी की सूची संवत 2081 सन 2024

मास (महीना)

तारीख

चैत्र मास

02 अप्रैल 2024

वैशाख मास

01 मई 2024

ज्येष्ठ मास

30 मई 2024

आषाढ़ मास

28 जून 2024

श्रावण मास

28 जुलाई 2024

भाद्रपद मास

26 अगस्त 2024

आश्विन मास

24 सितंबर 2024

कार्तिक मास

24 अक्टूबर 2024

मार्गशीर्ष मास

23 नवंबर 2024

पौष मास

22 दिसंबर 2024

मासिक कालाष्टमी की सूची संवत 2081 सन 2025

मास (महीना)

तारीख

माघ मास

21 जनवरी 2025

फाल्गुन मास

20 फरवरी 2025

चैत्र मास

22 मार्च 2025

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Siddhi Vinayak Chaturthi Vrat Calendar List 2024-2025 | विनायक चतुर्थी व्रत लिस्ट

Siddhi Vinayaka Chuturthi Vrt Calendar

Siddhi Vinayaka Chuturthi Vrt Calendar
प्रत्येक मास दो चतुर्थी तिथि आती है, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। गणेश पुराण में बताया गया है कि चतुर्थी तिथि गणपति भगवान को समर्पित है। कहीं-कहीं पर इसे वरद चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन बप्पा की आराधना करने से गणेश भगवान आर्थिक संपन्नता प्रदान करते हैं साथ ही ज्ञान और बुद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं। चतुर्थी पर बप्पा की पूजा करने से हर कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है और गणपति भगवान अपने भक्तों के सारे दुख दूर करते हैं ।

सिद्धि विनायक चतुर्थी व्रत की सूची संवत 2081 सन 2024

मास (महीना) 

तारीख

चैत्र मास

12 अप्रैल 2024

वैशाख मास

11 मई 2024

ज्येष्ठ मास

10 जून 2024

आषाढ़ मास

09 जुलाई 2024

श्रावण मास

08 अगस्त 2024

भाद्रपद मास

07 सितंबर 2024

आश्विन मास

06 अक्टूबर 2024

कार्तिक मास

05 नवंबर 2024

मार्गशीर्ष मास

05 दिसंबर 2024

सिद्धि विनायक चतुर्थी व्रत की सूची संवत 2081 सन 2025

मास (महीना) 

तारीख

पौष मास

04 जनवरी 2025

माघ मास

01 फरवरी 2025

फाल्गुन मास

03 मार्च 2025

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Masik Durga Ashtami Calendar List 2024-2025 | मासिक श्री दुर्गाष्टमी व्रत लिस्ट

Masik Shree Durga Ashtami Calendar

 

प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष को आने वाली अष्टमी को दुर्गाष्टमी कहते हैं। यह तिथि मां दुर्गा को समर्पित होती है। अतः इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने का विधान है ।प्रत्येक माह की आने वाली दुर्गा अष्टमी का व्रत बहुत शुभ फलदायी होता है। वर्ष में 12 महीने होने के कारण वर्ष भर में 12 मासिक दुर्गा अष्टमी आती हैं l

दुर्गा अष्टमी का व्रत गृहस्थियों के लिए सुख और समृद्धि देने वाला है l माता दुर्गा की आराधना करने से महामारी बाढ़ सूखा जैसे प्राकृतिक उपद्रवों से भी रक्षा होती है l

मासिक दुर्गा अष्टमी की सूची संवत 2081 सन 2024

मास (महीना) 

तारीख

चैत्र मास

16 अप्रैल 2024

वैशाख मास

15 मई 2024

ज्येष्ठ मास

14 जून 2024

आषाढ़ मास

14 जुलाई 2024

श्रावण मास

13 अगस्त 2024

भाद्रपद मास

11 सितंबर 2024

आश्विन मास

11 अक्टूबर 2024

कार्तिक मास

09 नवंबर 2024

मार्गशीर्ष मास

09 दिसंबर 2024

मासिक दुर्गा अष्टमी की सूची संवत 2081 सन 2025

मास (महीना) 

तारीख

पौष मास

07 जनवरी 2025

माघ मास

05 फरवरी 2025

फाल्गुन मास

07 मार्च 2025

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