कार्तिक माह माहात्म्य इक्कतीसवाँ अध्याय | Chapter -31 Kartik Puran ki Katha

kartik mass chapter 31

कार्तिक माह के माहात्म्य का इक्कतीसवाँ अध्याय

Chapter – 31

 

Click Here For Download Now

 

कार्तिक मास माहात्म्य का, यह इकत्तीसवाँ अध्याय।
बतलाया भगवान ने, प्रभु स्मरण का सरल उपाय।।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – पूर्वकाल में अवन्तिपुरी (उज्जैन) में धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह रस, चमड़ा और कम्बल आदि का व्यापार करता था। वह वैश्यागामी और मद्यपान आदि बुरे कर्मों में लिप्त रहता था। चूंकि वह रात-दिन पाप में रत रहता था इसलिए वह व्यापार करने नगर-नगर घूमता था। एक दिन वह क्रय-विक्रय के कार्य से घूमता हुआ महिष्मतीपुरी में जा पहुंचा जो राजा महिष ने बसाई थी। वहाँ पापनाशिनी नर्मदा सदैव शोभा पाती है। उस नदी के किनारे कार्तिक का व्रत करने वाले बहुत से मनुष्य अनेक गाँवों से स्नान करने के लिए आये हुए थे। धनेश्वर ने उन सबको देखा और अपना सामान बेचता हुआ वह भी एक मास तक वहीं रहा।

वह अपने माल को बेचता हुआ नर्मदा नदी के तट पर घूमता हुआ स्नान, जप और देवार्चन में लगे हुए ब्राह्मणों को देखता और वैष्णवों के मुख से भगवान विष्णु के नामों का कीर्तन सुनता था। वह वहाँ रहकर उनको स्पर्श करता रहा, उनसे बातचीत करता रहा। वह कार्तिक के व्रत की उद्यापन विधि तथा जागरण भी देखता रहा। उसने पूर्णिमा के व्रत को भी देखा कि व्रती ब्राह्मणों तथा गऊओं को भोजन करा रहे हैं, उनको दक्षिणा आदि भी दे रहे हैं। उसने नित्य प्रति भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिए होती दीपमाला भी देखी।

त्रिपुर नामक राक्षस के तीनों पुरों को भगवान शिव ने इसी तिथि को जलाया था इसलिए शिवजी के भक्त इस तिथि को दीप-उत्सव मनाते हैं। जो मनुष्य मुझमें और शिवजी में भेद करता है, उसकी समस्त क्रियाएँ निष्फल हो जाती हैं। इस प्रकार नर्मदा तट पर रहते हुए जब उसको एक माह व्यतीत हो गया तो एक दिन अचानक उसे किसी काले साँप ने डस लिया। इससे विह्वल होकर वह भूमि पर गिर पड़ा। उसकी यह दशा देखकर वहाँ के दयालु भक्तों ने उसे चारों ओर से घेर लिया और उसके मुँह पर तुलसीदल मिश्रित जल के छींटे देने लगे। जब उसके प्राण निकल गये तब यमदूतों ने आकर उसे बाँध लिया और कोड़े बरसाते हुए उसे यमपुरी ले गये।

उसे देखकर चित्रगुप्त ने यमराज से कहा – इसने बाल्यावस्था से लेकर आज तक केवल बुरे कार्य ही कियें हैं इसके जीवन में तो पुण्य का लेशमात्र भी दृष्टिगोचर नहीं होता। यदि मैं पूरे एक वर्ष तक भी आपको सुनाता रहूँ तो भी इसके पापों की सूची समाप्त नहीं होगी। यह महापापी है इसलिए इसको एक कल्प तक घोर नरक में डालना चाहिए। चित्रगुप्त की बात सुनकर यमराज ने कुपित होकर कालनेमि के समान अपना भयंकर रुप दिखाते हुए अपने अनुचरों को आज्ञा देते हुए कहा – हे प्रेत सेनापतियों! इस दुष्ट को मुगदरों से मारते हुए कुम्भीपाक नरक में डाल दो।

सेनापतियों ने मुगदरों से उसका सिर फोड़ते हुए कुम्भीपाक नरक में ले जाकर खौलते हुए तेल के कड़ाहे में डाल दिया। प्रेत सेनापतियों ने उसे जैसे ही तेल के कड़ाहे में डाला, वैसे ही वहाँ का कुण्ड शीतल हो गया ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पूर्वकाल में प्रह्लादजी को डालने से दैत्यों की जलाई हुई आग ठण्डी हो गई थी। यह विचित्र घटना देखकर प्रेत सेनापति यमराज के पास गये और उनसे सारा वृत्तान्त कहा।

सारी बात सुनकर यमराज भी आश्चर्यचकित हो गये और इस विषय में पूछताछ करने लगे। उसी समय नारदजी वहाँ आये और यमराज से कहने लगे – सूर्यनन्दन! यह ब्राह्मण नरकों का उपभोग करने योग्य नही है। जो मनुष्य पुण्य कर्म करने वाले लोगों का दर्शन, स्पर्श और उनके साथ वार्तालाप करता है, वह उनके पुण्य का छठवाँ अंश प्राप्त कर लेता है। यह धनेश्वर तो एक मास तक श्रीहरि के कार्तिक व्रत का अनुष्ठान करने वाले असंख्य मनुष्यों के सम्पर्क में रहा है। अत: यह उन सबके पुण्यांश का भागी हुआ है। इसको अनिच्छा से पुण्य प्राप्त हुआ है इसलिए यह यक्ष की योनि में रहे और पाप भोग के रुप में सब नरक का दर्शन मात्र कर के ही यम यातना से मुक्त हो जाए।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – सत्यभामा! नारदजी के इस प्रकार कहकर चले जाने के पश्चात धनेश्वर को पुण्यात्मा समझते हुए यमराज ने दूतों को उसे नरक दिखाने की आज्ञा दी ।

kartik puran ki katha,kartik puran ki kahani, kartik maas mahatamya, kartik maas ki katha, kartik maas ki kahani, kartik mahatam ki katha, kartik maas ki katha hindi, kartik maas ki katha hindi pdf, kartik maas ki ekadashi, kartik maas ki katha pdf, kartik maas ki kahani in hindi, kartik maas katha in hindi, kartik maas ki ekadashi ki katha, kartik maas ki ganesh ji ki kahani, kartik maas ki chauth ki kahani, kartik maas ki sari kahani, kartik maas ki purnima ki katha, kartik maas ki teesri katha, kartik maas ki ganesh chaturthi vrat katha, kartik maas ki chauth ki katha, kartik maas ka mahatam, kartik mahatma ki katha, kartik maas ki katha in hindi, kartik maas ganesh ji ki katha, kartik maas ki 5 din ki katha, कार्तिक मास की कथा, व्रत कथा, कार्तिक पुराण कथा, कार्तिक मास की पांचवी कहानी, कार्तिक कब से शुरू है , Kartik month in Hindi

No comment yet, add your voice below!


Add a Comment