गया श्राद्ध तथा बदरीनारायण में ब्रह्मकपाली में
– श्राद्ध पर विचार
यह आर्टिकल आपके बहुत से संशयों को दूर करेगा जैसे :-
पहला श्राद्ध कहां करना चाहिए ?
गया जी तथा बद्रीनाथ जी में ब्रह्म कपाली में श्राद्ध कब करना चाहिए ?
शास्त्रों में दोनों स्थानों पर श्राद्ध की क्या महिमा बताई गई है ?
क्या बद्रीनारायण में ब्रह्म कपाल पर श्राद्ध करने के पश्चात गया जी में श्राद्ध हो सकता है ?
क्या गया जी में अपने पितरों का पिंडदान आदि करने के पश्चात फिर कभी भी पितरों के लिए कुछ करना शेष नहीं रहता अर्थात पितरों की पूर्ण रूप से सद्गति हो जाती है ?
गया श्राद्ध करने के बाद क्या कभी भी पितरों का पिंडदान, तर्पण, होम – हवन, गायत्री मंत्र जाप तथा श्राद्ध आदि करने की आवश्यकता नहीं रहती।
गया में श्राद्ध करने की अत्यधिक महिमा हैं। शास्त्रों में लिखा हैं-
जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्।
गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभिर्पुत्रस्य पुत्रता।।
जीवनपर्यन्त माता-पिता की आज्ञा का पालन करने, श्राद्ध में खूब भोजन कराने और गया तीर्थ में पितरों का पिण्डदान अथवा गया में श्राद्ध करने वाले पुत्रत्व सार्थक हैं।
(श्रीमद् देवी भागवत)
गयाभिगमनं कर्तु य शकतो नाभिगच्छति।
शोचन्ति पितरस्तस्य वृथा तेषां परिश्रमः।।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन ब्राह्मणस्तु विशेषतः।
प्रदद्याद् विधिवत् पिण्डान् गयां गतवा समाहितः।।
जो गया जाने में समर्थ होते हुए भी नहीं जाता हैं, उसके पितर सोचते हैं कि उनका सम्पूर्ण परिश्रम निरर्थक हैं। अत मनुष्य को पूरे प्रयत्न के साथ गया जाकर सावधानीपूर्वक विधि-विधान से पिण्डदान करना चाहिए।
इन वचनों के अनुसार पितृऋण से मुक्ति हेतु गया श्राद्ध करने की अनिवार्यता के कारण और उसके न करने से पा लगने के कारण जीवित समर्थ पुरूष को गया में पिण्डदान (Pind daan) तथा श्राद्ध (Shraddh) अवश्य करना चाहिए।
प्राचीन काल में जहाँ ब्रह्मा का शिर कपाल गिरा था, वहाँ बदरी क्षेत्र में पिण्डदान (Pind daan) करने का विशेष महत्व हैं।
सनत्कुमारसंहिता में यह वचन आता है- शिरः कपालं………..नारदैतन्मयोदितम्।।
अर्थात् प्राचीन काल में जहाँ ब्रह्मा का शिर कपाल गिरा था, वहां बदरी क्षेत्र में जो पुरूष पिण्डदान (Pind daan) करने में समर्थ हुआ, यदि वह मोह के वशीभूत होकर गया में पिण्डदान (Pind daan) करता हैं तो वह अपने पितरों का अध पतन करा देता है और उनसे शापित होता है अर्थात् पितर उसका अनिष्ट-चिन्तन करते हैं। हे नारद मैने आपसे यह कह दिया,
इस वचन के अनुसार बदरीक्षेत्र में ब्रह्मकपाली (Brahm Kapali) में पिण्डदान (Pind daan) करने के बाद गया में पिण्डदान (Pind daan) करने का निषेध प्रतीत होता है। यद्यापि इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। परन्तु मुख्य पक्ष यही है कि पूर्वमें गया में पिण्डदानादि श्राद्ध सम्पन्न करने के बाद ही बदरी क्षेत्र में ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करना चाहिए।
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