शुक्रवार व्रत (Friday Fast) का महात्म्य एवं विधान, व्रत कथा
शुक्रवार (Friday) का यह व्रत संतोषी माता की निमित्त किए जाने वाले व्रत से पृथक है ।
शुक्रवार (Friday) को शुक्र ग्रह की शांति हेतु यह व्रत किया जाता है। शुक्र ग्रह सौंदर्य, काम शक्ति, तेजस्विता, सौभाग्य और समृद्धि को नियन्त्रि करते हैं, अतः इसकी अनुकूलता व्यक्ति को कुशल वक्ता, विद्धान, राजनेता और सफल उद्योगपति बनाती है। शुक्रवार (Shukravar Vrat) का यह व्रत यौन रोगों के निदान, बुद्धिवर्द्धन और सत्ता तथा राज सुख की प्राप्ति के लिए अमोघ अस्त्र है ।
शुक्रवार व्रत विधि | Shukravar Vrat Vidhi
इस व्रत को शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) शुक्रवार में जब शुक्र उदित हो अर्थात् शुक्र डूबा हुआ न हो से प्रारंभ कर, 31 या 21 व्रत करें। श्वेत वस्त्र धारण करके बीज मंत्र ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः’ की 3 या 21 माला जपें। भोजन में चावल, खाण्ड या दूध से बने पदार्थ ही सेवन करें। यही पदार्थ यथाशक्ति संभव हो तो एक ही एकाक्षी (एक आंख वाले) भिक्षुक या ब्राह्मण को श्वेत गाय दें।
शुक्रवार (Shukravar Vrat) के व्रत के दिन अपने मस्तक में श्वेतचन्दन का तिलक करें। शुक्र देव की प्रतिमा अथवा शुक्र ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पत्र, रजतपत्र, ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति शुक्र देव (Shukra Dev) के मंत्र का जाप करना चाहिए।
शुक्र ग्रह शांति का सरल उपचारः- सफेद वस्त्र, सफेद रुमाल, सफेद फूल धारण करना आदि, गाय को हरा घास या पेड़ा देना, शिवपूजन।
शुक्रवार व्रत उद्यापन विधि | Shukravar Vrat Udyaapan Vidhi
शुक्रवार (Friday Fast) के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव बृहस्पति ग्रह का दान जैसे हीरा, सुवर्ण, रजत, चावल, मिसरी, दूध, श्वेतवस्त्र, सुगंध, श्वेतपुष्प, दधि, श्वेतघोड़ा, श्वेतचन्दन आदि करना चाहिए। शुक्र ग्रह से संबंधित दान के लिए सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ होता है क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा। शुक्र ग्रह के मंत्र ‘‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः” का कम से कम 16000 की संख्या में जाप तथा शुक्र ग्रह की लकड़ी उदुम्बर से शुक्र ग्रह के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए।
हवन-पूर्णाहुति के बाद खीर-खाण्ड से बने पदार्थ ब्राह्मणों को खिलाएं। चांदी, श्वेत वस्त्र, खाण्ड, चावल का दान करें। इस व्रत से स्त्री सुख एवं ऐश्वर्या की वृद्धि होती है।
देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।
शुक्रवार व्रत कथा | Shukravar Vrat Katha
एक समय कायस्थ, ब्राह्मण और वैश्य इन तीनों लड़को में परस्पर गहरी मित्रता थी। उन तीनों का विवाह हो गया। ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों को गौना भी हो गया था, परंतु सेठ के लड़के का नहीं हुआ था। एक दिन कायस्थ के लड़के ने कहा-हे मित्र! तुम विदा कराके अपनी स्त्री को घर क्यों नहीं लाते? स्त्री के बिना घर कैसा बुरा लगता है। यह बात सेठ के लड़के को जंच गई। वह कहने लगा-मैं अभी जाकर उसे विदा करा ले आता हूं। ब्राह्मण के लड़के ने कहा-अभी मत जाओ क्योंकि शुक्र का अस्त्र हो रहा है, जब उदय हो जाए तब जाकर ले आना। परंतु सेठ के लड़के को ऐसी जिद्द हो गई कि किसी प्रकार से नहीं माना। जब उसके घर वालों ने सुना तो उन्होंने भी बहुत समझाया परंतु वह किसी प्रकार से नहीं माना और अपनी ससुराल चला गया।
उसको आया हुआ देखकर ससुराल वाले भी चकराये। पूछा-आपका कैसा आना हुआ वह कहने लगा-मैं विदा के लिए आया हूं। ससुराल वालों ने भी बहुत समझाया कि इन दिनों शुक्र का अस्त है, उदय होने पर ले जाना। परंतु उसने एक न सुनी और स्त्री को ले जाने का आग्रह करता रहा। जब वह किसी प्रकार माना तो उन्होंने लाचार होने दोनों को विदा कर दिया। थोड़ी देर जाने के बाद मार्ग में उसके रथ का पहिया टूट कर गिरा पड़ा। रथ के बैल का पैर टूट गया। उसकी स्त्री भी घायल हो गई। जैसे-तैसे आगे चला तो रास्ते में डाकू मिल गए। उसके पास जो धन, वस्त्र तथा आभूषण थे वे सब डाकुओं ने छीन लिए। इस प्रकार अनेक कष्टों का सामना करते हुए जब वे अपने घर पहुंचे तो आते ही सेठ के लड़के को सर्प ने काट लिया और वह मूर्छा खाकर गिर पड़ा। तब उसकी स्त्री अत्यंत विलाप कर रोने लगी। उसे वैद्यों को दिखलाया तो वैद्य कहने लगे-यह 3 दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा।
जब उसके मित्र ब्राह्मण के लड़के को पता लगा तो उसने कहा-सनातन धर्म की प्रथा है कि जिस समय शुक्र का अस्त हो तो कोई अपनी स्त्री को नहीं लाता। परंतु यह शुक्र के अस्त में स्थिति को विदा करा कर ले आया है इस कारण सारे विघ्न उपस्थित हुए हैं। यदि यह दोनों ससुराल में वापिस चले जाये, शुक्र के उदय होने पर पुनः आवें तो निश्चय ही विघ्न टल सकता है। इतना सुनते ही सेठ ने अपने पुत्र और उसकी स्त्री को शीघ्र ही उसकी ससुराल में वापिस पहुंचा दिया। पहुंचते ही सेठ के लड़के की मूर्छा दूर हो गई और फिर साधारण उपचार से वह सर्प-विष से मुक्त हो गया। अपने दामाद की स्वस्थ देखकर ससुराल वाले अत्यंत प्रसन्न हुए और जब शुक्र का उदय हुआ तब बड़े हर्ष पूर्वक उन्होंने अपनी पुत्री सहित विदा किया। इसके पश्चात वह दोनों पति-पत्नी घर आकर आनंद से रहने लगे। इस व्रत को करने से अनेक विघ्न दूर होते हैं।
शुक्रदेव से विनय | Prayer To God Shukra Dev
हे शुक्रदेव बलशाली, मैं दुःखिया शरण तिहारी।
कर जोर करूं मैं विनती, प्रभु राखो लाज हमारी।।
दिनों के फेर ने प्रभु है बहुत सताया।
काम क्रोध मद लोभ ने है भरभाया।
बुद्धि रही चकराय, सुध-बुध है बिसारी।
हे शुक्र देव बलशाली, मैं दुःखिया शरण तिहारी।
मुशिकल है इन भीषण दुःखों में जीना।
फटा जा रहा है गमों से यह सीना।
टूट चुका हूं मेरे प्रभु, यह जीवन बाजी हारी।
हे शुक्रदेव बलशाली, मैं दुःखिया शरण तिहारी।
स्वामी शुक्र देव अपना दसम दिखा दो।
कृपा करो प्रभु मेरे कष्ट मिटा दो।
आया हूं मैं शरण आपकी, चरणों में बलहारी।
हे शुक्र देव बलशाली, मैं दुःखिया शरण तिहारी।
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