मंगलवार व्रत (Tuesday fast) का माहत्मय एवं विधि-विधान, व्रत कथा
यदि जातक की जन्म कुंडली में मंगल ग्रह अशुभ स्थिति में हो और मंगल ग्रह की अशुभ दशा चल रही हो उस समय मंगल ग्रह के व्रत करके मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव को शांत किया जा सकता है। मंगल देव (Mangal Dev) की शांति के लिए लगातार 21 मंगलवार तक रखना चाहिए। हनुमान (Hanuman) जी के भक्त मंगलवार (Mangalvar) का यह व्रत जीवन भर करते रहते हैं।
मंगलवार व्रत विधि | Mangalvar Vrat Vidhi
यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) मंगलवार (Mangalvar) से प्रारम्भ करके 21 या 45 व्रत करने चाहिए। हो सके तो यह व्रत आजीवन रखें। बिना सिला हुआ लाल वस्त्र धारण करके बीज मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ की 1, 5, या 7 माला जप करें। इस व्रत में नमक का सेवन वर्जित है। उस दिन गुड़ से बने हलवे का या लड्डूओं का दान करें और स्वयं भी खाएं। गुड़ से बना कुछ हलवा आदि बैल को भी खिलाएं।
मंगलवार (Tuesday) के व्रत के दिन अपने मस्तक में लालचन्दन का तिलक करें। मंगल देव (Mangal Dev) की प्रतिमा अथवा मंगल ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पात्र रजत पात्र ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति मंगल देव के मंत्र का जाप करना चाहिए।
मंगल शान्ति का सरल उपचारः- लालरंग की वस्तुओं का उपयोग, रात को लाल वस्त्र पहनें, तांबे के बर्तनों का प्रयोग, तांबे की अंगूठी पहनना।
मंगलवार व्रत उद्यापन विधि | Mangalvar Vrat udyaapan Vidhi
मंगलवार (Mangalvar) के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव मंगल ग्रह का दान जैसे मूंगा, सुवर्ण, ताम्र, मसूर, गुड़, घी, रक्तवस्त्र, केसर, रक्तकनेर, कस्तूरी, रक्तबैल, रक्तचन्दनआदि करना चाहिए मंगल ग्रह से संबंधित दान के लिए घटी 2 शेषदिन का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा।
मंगल ग्रह के मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ का कम से कम 10000 की संख्या में जाप तथा मंगल ग्रह की लकड़ी खदिर से मंगल ग्रह के बीज मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए।
हवन पूर्णाहुति करके लाल वस्त्र, तांबा, मसूर, गुड़, गेहूं तथा नारियल का दान करें। ब्राह्मणों तथा बच्चों को मीठा भोजन कराएं। मंगलवार (Mangalvar) का व्रत ऋणहर्ता तथा सन्तति-सुख प्रद है।
देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।
मंगलवार व्रत कथा | Mangalvar Vrat Vidhi
एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। वह मंगल देवता (Mangal Devta) को अपना इष्ट देवता मानकर सदैव मंगलवार (Mangalvar) को व्रत रखती और मंगल देव (Mangal Dev) का पूजन किया करती थी। उसका एक पुत्र था जो मंगलवार (Mangalvar) को उत्पन्न हुआ था। इस कारण उसको मंगलिया के नाम से पुकारा करती थी। मंगलवार (Mangalvar) के दिन वह न तो घर को लीपती और न ही पृथ्वी ही खोदती थी। एक दिवस मंगल देवता उसकी श्रद्धा को देखने के लिए उसके घर में साधु का रूप बनाकर आए और द्वार पर आवाज दी। बुढ़िया ने कहा-महाराज क्या आज्ञा है। साधु कहने लगा, बहुत भूख लगी है भोजन बनाना हैं। इसके लिए तू थोड़ी सी पृथ्वी लीप दे तो तेरा पुण्य होगा। यह सुनकर बुढ़िया ने कहा-महाराज, आज मंगलवार (Mangalvar) की व्रती हूँ इसलिए मैं चौका नहीं लगा सकती। कहो तो जल का छिड़काव कर दूं। उस जगह भोजन बना लेना, या फिर मैं आपके लिए भोजन बना देती हूं।
साधु कहने लगा-मैं गोबर से लीपे चौके पर ही खाना बनाता हूं। बुढ़िया ने कहा-पृथ्वी लीपने के सिवाय और कोई सेवा हो तो मैं सब-कुछ करने के लिए तैयार हूं परंतु गोबर से लीपुंगी नहीं। तब साधु ने कहा कि सोच-समझकर उत्तर दो, जो कुछ भी मैं कहूंगा, वह तुमको करना होगा। बुढ़िया कहने लगी-महाराज ! पृथ्वी लीपने के अलावा जो भी आज्ञा करेंगे उसका पालन अवश्य करूंगी। बुढ़िया ने ऐसा तीन बार वचन दे दिया। तब साधु कहने लगा-तू अपने लड़के को बुलाकर औंधा लिटा दे मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊंगा। साधु की बात सुनकर बुढ़िया चुप हो गई। तब साधु ने कहा- बुलाले लड़के को, अब सोच-विचार क्या करती है? बुढ़िया मंगलिया, मंगलिया कहकर पुकारने लगी। थोड़ी देर बाद लड़का आ गया। बुढ़िया ने कहा जा-बेटे तुझको बाबाजी बुलाते हैं। लड़के ने बाबाजी से जाकर पूछा कि क्या आज्ञा है महाराज? बाबा जी ने कहा-जाओ और अपनी माताजी को बुला लाओ। जब माता आ गई तो साधु ने कहा-तू ही इसको लिटा दे। बुढ़िया ने मंगल देवता (Mangal Dev) का स्मरण करते हुए अपने लड़के को औंधा लिटा दिया और उसकी पीठ पर अंगीठी रख दी।
बुढ़िया कहने लगी-हे महाराज ! अब जो कुछ आपको करना है कीजिए। मैं जाकर अपना काम करती हूं। साधु ने लड़के की पीठ पर रखी हुई अंगीठी में आग जलाई और उस पर भोजन बनाया। जब भोजन बन चुका तो साधु ने बुढ़िया से कहा-अब अपने लड़के को बुलाओ वह भी आकर ले जाए। बुढ़िया कहने लगी-यह कैसे आश्चर्य की बात है कि उसकी पीठ पर आपने आग जलाई और उसे ही प्रसाद के लिए बुलाते हैं। क्या यह संभव है। क्या अब भी आप उसको जीवित समझते हैं। आप कृपा करके उसका स्मरण भी मुझको न कराइये और भोग लगाकर जहां जाना हो जाइये। साधु के अत्यंत आग्रह करने पर बुढ़िया ने ज्यों ही मंगलिया कहकर आवाज लगाई त्यों ही लड़का एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया। साधु ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा कि माई, तेरा व्रत सफल हो गया। तेरे हृदय में दया है और अपने इष्ट-देव में अटल श्रद्धा हैं। इसके कारण तुमको कोई भी कष्ट नहीं पहुंचेगा।
मंगलवार व्रत की दूसरी कथा | Mangalvar Vrat Katha
एक ब्राह्मण दम्पत्ति के कोई संतान न थी। इसके कारण पति-पत्नी दुःखी रहते थे। वह ब्राह्मण हनुमान (Hanuman) जी की पूजा के हेतु वन में चला गया। वह पूजा के साथ महावीर जी के 1 पुत्र की कामना किया करता था। घर पर उसकी पत्नी मंगलवार (Mangalvar) का व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिए किया करती थी। मंगल के दिन व्रत के अंत में भोजन बनाकर हनुमान जी (Hanuman) का भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। एक बार कुटुंब में विवाह के कारण ब्रह्मणी भोजन न बना सकी, अतः हनुमान जी का भोग भी नहीं लगा। वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार (Mangalvar) को हनुमान जी (Hanuman) का भोग लगाकर ही अन्न-पानी ग्रहण करूंगी। वह भूखी-प्यासी 6 दिन रही। मंगलवार के दिन तो उसे मूर्छा ही आ गई। तब हनुमान जी (Hanuman) उसकी लगन और निष्ठा को देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे दर्शन दे सचेत किया और कहा-मैं तेरे से अति प्रसन्न हूं, मैं तुझको एक सुंदर बालक देता हूं जो तेरी बहुत सेवा करेगा।
हनुमान जी (Hanuman) द्वारा दिया गया सुंदर बालक पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई। ब्राह्मणी ने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय पश्चात ब्राह्मण वन से लौटकर आया। प्रसन्नचित्त सुंदर बालक को घर में क्रीड़ा करते देखकर वह ब्राह्मण पत्नी से बोला-यह बालक कौन है पत्नी ने कहा-मंगलवार (Mangalvar) के व्रत से प्रसन्न हो हनुमान जी (Hanuman) ने दर्शन देकर मुझे यह बालक दिया है। पत्नी की बात छल से भरी जान उसने सोचा, यह कुलटा, व्यभिचारिणी अपनी कलुषता छुपाने के लिए बात बना रही है। एक दिन उसका पति कुएं पर पानी भरने चला तो पत्नी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ। वह मंगल को साथ ले गया। बालक को कुएं में डाल कर वापस पानी भरकर घर आया तो पत्नी ने पूछा कि मंगल कहां है? तभी मंगल मुस्कुराता हुआ घर आ गया। उसको देख ब्राहमण आश्चर्यचकित रह गया। रात्रि में उस ब्राह्मण से हनुमान जी (Hanuman) ने स्वप्न में कहा-यह बालक मैंने दिया है। पति यह जानकर हर्षित हुआ। वे पत्नी-पति मंगलवार (Mangalvar) का व्रत करते हुए और अपने जीवन को आनन्दपूर्वक व्यतीत करते हुए अंत में मोक्ष को प्रप्त हुए।
मंगल वार की पावन आरती | Mangalvar Aarti
मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता।
हाथ वज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन।
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना।
काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी।
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे।
शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै।
सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना।
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा।
रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा।
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता।
हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए।
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुख दरिद्र बंधन प्रकटाने।
तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा।
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुख स्वप्न विनाशा।
शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे।
विपति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा।
मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी।
श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई।
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई।
मंगल देव की सुगम आरती | Mangal Dev Aarti
ॐ जय मंगल देवा, स्वामी जय मंगल देवा।
भक्त आरती गावें, करें विविध भांती सेवा।।
हठी मेष है वाहन आपका, पृथ्वी है माता।
सुख समृद्धि के नायक, अतुल शांति दाता।।
जब होता है कोप आपका, सब कुछ छीन जाता।
जिस पर कृपा करो तुम स्वामी, सब कुछ है पाता।
मंगल देव की आरती, जो सच्चे मन से गावे।
रोग-शोक मिट जावे, अति सुख-वैभव पावे।।
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