रविवार व्रत (Sunday Fast) का माहत्म्य एवं विधि-विधान, व्रत कथा
सूर्य देव (Surya Dev) भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) के स्थूल रूप तथा तथा पांच प्रमुख देवों में से एक हैं। भगवान भास्कर सभी ग्रहों के केंद्र बिंदु और अपरमित ज्योति के पुंज भी हैं। सूर्य देव हमारी पृथ्वी सहित सभी ग्रहों के केंद्र, संचालक और नियंत्रणकर्त्ता हैं। यही कारण है कि जब सूर्य देव हमसे प्रसन्न एवं संतुष्ट होते हैं तब हमें संसार के सभी ऐश्वर्य तो प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत भगवान भास्कर के कुपित हो जाने पर हमारा जीवन अनेक परेशानियों, रोग-शोक तथा अपयश के जाल में घिर जाता है।
परम शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी इतने दयालु हैं कि नित्य प्रातः सामान्य जल के अर्ध्य एवं रविवार के व्रत से ही परम प्रसन्न होकर भक्त की सभी मनोकामनाओं की आपूर्ति कर देते हैं।
यदि जातक की जन्म कुंडली में सूर्य ग्रह पीड़ित अवस्था में हो अथवा नीच, वक्री या शत्रु ग्रह के साथ योग बनाए हुए हो तो, जब जब सूर्य ग्रह की महादशा, दशा अथवा अंतर्दशा आती है, तो वह जातक को सूर्य ग्रह से संबंधित अशुभ फल प्रधान करती है। सूर्य पिता का कारक भी होता है। जिससे पिता तथा तथा पैतृक धन परिवार से भी जातक को अशुभ फल मिलता है। सूर्य देव (Surya Dev) को प्रसन्न करने के लिए तथा सूर्य ग्रह के अशुभ प्रभाव को शुभ बनाने के लिए रविवार (Ravivar) की व्रत करना शुभ फलदाई रहता है।
सूर्य शांति का सरल उपचारः– लाल वस्तुओं का विशेष उपयोग करें- जैसे- लाल चादर, परना तथा तांबे की अंगूठी का पहनना।
रविवार व्रत विधि | Ravivar Vrat Vidhi
सूर्य (Surya) का व्रत रविवार (Ravivar) को करें। यह व्रत शुक्ल पक्ष के पहले (जेठे) रविवार से आरंभ करके तीस या कम से कम 12 व्रत करें। उस रोज केवल गेहूं की रोटी, घी और लालखाण्ड के साथ या गेहूं का गुड़ से बना दलिया या हलवा इलायची डाल कर दान करें। इसमें सूर्यास्त के पूर्व केवल एक बार भोजन किया जाता है। नमक, खटाई, सभी प्रकार के क्षार और खट्टे फल आप इस व्रत में वर्जित हैं, परंतु दही का प्रयोग कर सकते हैं।
रविवार (Ravivar Vrat)के व्रत के दिन अपने मस्तक में लालचन्दन का तिलक करें। सूर्य को गन्धाक्षत, रक्त पुष्प, दूर्वायुक्त अर्घ्य प्रदान करें तथा अष्टदल कमल बना कर उस पर सूर्य देव की प्रतिमा रखकर अथवा सूर्य ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पात्र रजत पात्र ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति सूर्य देव के मंत्र का जाप करना चाहिए।
स्कन्दपुराण के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के अंतिम रविवार (Ravivar) से व्रत प्रारम्भ करनाअधिक फलप्रद रहता है। माघ मास की सप्तमी तिथि को उसे रथ सप्तमी भी कहते हैं इस व्रत का उद्यापन करना श्रेष्ठ रहता है।
रविवार व्रत उद्यापन विधि | Ravivar Vrat Udyaapan Vidhi
रविवार (Ravivar Vrat) के व्रत के उद्यापन के लिए यथा संभव सूर्य ग्रह का दान जैसे माणिक, सुवर्ण, ताम्र, गेहूं, गुड़, घी, रक्तवस्त्र, केसर, रक्तपुष्प, मूंग, रक्तगाय, रक्तचन्दन आदि करना चाहिए। सूर्य ग्रह से संबंधित दान के लिए सूर्य उदय का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा। सूर्य ग्रह के मंत्र ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का कम से कम सात हजार की संख्या में जाप तथा सूर्य ग्रह की लकड़ी अर्क से सूर्य ग्रह के बीच मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए।
हवन पूर्णाहुति के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। ऐसा करने से सूर्य का अशुभ फल शुभ फल के परिणत हो जाएगा। तेजस्विता बढ़ेगी। नेत्र रोग, चर्म रोग एवं अन्य शारीरिक रोग भी शांत होंगे।
देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।
रविवार (इतवार) व्रत कथा | Ravivar Vrat Katha
एक बुढ़िया थी। उसका नियम था कि प्रत्येक रविवार को सवेरे ही स्नान आदि करके और घर को गोबर से लीपकर फिर भोजन तैयार कर, भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करती थी। ऐसा व्रत करने से उसका घर अनेक प्रकार के धन-धान्य से पूर्ण था। भगवान भास्कर की कृपा से घर में किसी प्रकार का विध्न या दुःख नहीं था, सब प्रकार से घर में आनंद रहता था। इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर उसकी एक पड़ोसन जिसकी गौ का गोबर वह लाया करती थी विचार करने लगी, यह वृद्धा सर्वदा मेरी गौ का गोबर ले जाती है इसलिए अपने गौ को अपने घर के भीतर बांधने लग गई। इस कारण बुढ़िया गोबर न मिलने के कारण रविवार के दिन अपने घर को न लीप सकी। तब उसने न तो भोजन बनाया और न ही भगवान को भोग लगाया तथा स्वयं भी उसने भोजन नहीं किया। इस प्रकार उसे निराहार व्रत किये रात्रि हो गयी और वह भूखी-प्यासी ही सो गई।
रात्रि में सूर्यदेव ने उसे स्वपन दिया और भोजन न बनाने और भोग न लगाने का कारण पूछा। वृद्धा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया। तब भगवान ने कहा कि माता, हम तुमको ऐसी गौ देते हैं जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो, इससे मैं खुश होकर तुमको यह वरदान देता हूं। ऐसा करने से मैं अत्यंत संतुष्ट होता हूं और निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर उनके दुःखों को दूर करता हूं तथा अंत समय में मोक्ष देता हूं।
स्वपन में ऐसा वरदान देकर भगवान को अन्तर्ध्यान हो गए, जब वृद्धा की आंख खुली तो वह क्या देखती है कि आंगन में एक अति सुंदर गाय और बछड़ा बंधे हुए हैं। वह गौ और बछड़े को देखकर अति प्रसन्न हुई और उनको घर के बाहर बांध दिया और वही खाने को चारा डाल दिया।
सुबह बुढ़िया की पड़ोसिन ने देखा की बुढ़िया की गाय ने सोने का गोबर किया है, तब वह उस गोबर को तो ले गई और अपनी गौ का गोबर उसकी जगह रख गई। वह प्रतिदिन ऐसा ही करती रही और सीधी-सादी बुढ़िया को इसकी खबर नहीं होने दी। तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसिन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही है तो भगवान ने संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर से आंधी चला दी। इससे बुढ़िया ने अंधेरे के भय से अपने गौ और बछड़े को घर के भीतर बांध लिया। प्रातःकाल उठकर जब वृद्धा ने देखा कि गाय ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गौ को घर के भीतर ही बांधने लगी।
उधर पड़ोसिन ने देखा कि गौ घर के भीतर बंधने लगी है और उसका सोने का गोबर उठाने का दांव नहीं चलता। वह ईर्ष्या और डाह से जल उठी। कुछ और उपाय न देख पड़ोसिन ने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा-महाराज! मेरे पड़ोस में वृद्धा के पास ऐसी गऊ है जो आप जैसे राजाओं के योग्य है। वह नित्य सोने का गोबर देती है। आप उस सोने से प्रजा का पालन करिए। राजा ने यह बात सुन अपने दूतों को वृद्धा के घर में गऊ लाने की आज्ञा दी। वृद्धा प्रातः ईश्वर को भोग लगा भोजन करने ही जा रही थी कि राजा के कर्मचारी गऊ खोल कर ले गए। वृद्धा काफी रोई चिल्लाई किंतु राज्य कर्मचारियों के समक्ष वह क्या कर सकती थी? उस दिन वृद्धा गऊ के वियोग में भोजन न खा सकी। रात को रो-रो कर ईश्वर से गऊ को पुनः पाने के लिए प्रार्थना करती रही। उधर राजा गऊ को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। लेकिन सुबह जैसे ही सो कर उठा तो सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा। राजा यह देखकर घबरा गया। रात्रि में राजा को स्वप्न में भगवान ने कहा-हे राजन! यह गाय वृद्धा को लौटाने में ही तेरा भला है। उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी हैं। प्रातः होते ही राजा ने वृद्धा को बुला बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गऊ-बछड़ा लौटा दिये। उसकी पड़ोसिन दुष्ट बुढ़िया को बुलाकर उचित दंड दिया। तब जाकर राजा के महल से गंदगी दूर हुई। उसी राजा ने नगर निवासियों को आदेश-दिया कि राज्य में सभी स्त्री-पुरुष अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत किया करें। व्रत करने से सारी प्रजा सुखी जीवन व्यतीत करने लगी।
सूर्य देव की मधुर आरती | Surya Dev Aarti
ॐ जय सूर्य देवा, स्वामी जय सूर्य देवा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, संत करे सेवा।।
दुःख हरता सुख करता, जय आनन्द कारी।
वेद पुराण बखानत, भय पातक हारी।।
स्वर्ण सिंहासन बिस्तर, ज्योति तेरी सारी।
प्रेम भाव से पूजें, सब जग के नर नारी।।
दीनदयाल दयानिधि, भव बंधन हारी।
शरणागत प्रतिपालक, भक्तन हितकारी।।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
धन-संपत्ति और लक्ष्मी, सहजे सो पावे।।
सफल मनोरथ दायक, निर्गुण सुख राशि।
विश्व चराचर पालक, ईश्वर अविनाशी।।
योगीजन हृदय में, तेरा ध्यान धरें।
सब जग के नर नारी, पूजा पाठ करें।।
सूर्य देव वंदना | Prayer To God Surya
जय कश्यप-नंदन, ॐ जय अदिति-नंदन।
त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चंदन।। जय।।
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्र धारी।
दुःख हारी, सुख कारी मानस-मल हारी।। जय।।
सुर-मुनि-भूसर वन्दित विमल विभवसाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर दिव्य किरण माली।। जय।।
सकल सुकर्म प्रसविता सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन भव बंधन हारी।। जय।।
कमल समूह विकाशक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत मनसिज सन्तापा।। जय।।
नेत्र व्याधिहर सुखर भू पीड़ा हारी।
सृष्टि विलोचन स्वामी परहित व्रतधारी।। जय।।
सूर्यदेव करूणाकर अब करूणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब तत्व ज्ञान दीजै।। जय।।
सूर्य नमस्कार | Prayer To Surya
नमो भास्करम् विश्व पालं दयालम्।
नमो मार्तण्डम्, नमामी कृपालम्।।
नमो अर्क पूषा तपन चित्र भानु।
नमो हे दिनेशं तिमिर हर प्रकाशम्।।
नमो विघ्नहर्ता, नमो विश्व तारण।
नमो रक्त चंदन दिपै नाथ भालम्।।
नमो द्युतिमणि स्वामी प्रभाकर दिवाकर।
नमो रवि विरोचन विकर्तन विशालम्।।
नमो सूर्य सविता अहस का पतंगा।
नमो मित्र गृहपति अरूण दैत्य द्यालम्।।
नमो हंस हरि दृश्य भास्वान तापन।
नमो अर्हपति विभावसु त्रिकालम्।।
नमो सहस्त्रासु मिहिर उष्ण रस्मिन्।
नमो तरणि तप्ताश्व करिये निहालम्।
नमो नाभ विवस्वान बन्दौ त्विषापति।
नमो नाथ अस्तुति करति भक्त आपम्।।
रवि देव की आरती | Aarti To God Ravi Dev
जय जय श्रीरविदेव, जय जय श्री रवि देव।।
रजनी पति मदहारी शतदल जीवनदाता।
षटपद मन मुदकारी हे दिमणि ताता।
जग के हे पालन कर्ता जय जय श्री रवि देव।नम मंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।
निज जनहित सुख रासी, हम करें तिहारी सेवा।करते हैं आपकी सेवा, जय जय श्री रवि देव।
कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।निज मंडल में मंडित, रुचिर, प्रभा प्यारी।
हे सुरवर श्री रवि देव, जय जय श्री रवि देव।Other Keywords:-
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