श्राद्ध
हर वर्ष आश्विन माह के आरंभ से ही श्राद्ध का आरंभ भी हो जाता है वैसे भाद्रपद माह की पूर्णिमा से ही श्राद्ध आरंभ हो जाता है क्योंकि जिन पितरों की मृत्यु तिथि पूर्णिमा है तो उनका श्राद्ध भी पूर्णिमा को ही मनाया जाता है। इसके बाद आश्विन माह की अमावस्या को श्राद्ध समाप्त हो जाते हैं और पितर अपने पितृलोक में लौट जाते हैं।
माना जाता है कि श्राद्ध का आरंभ होते ही पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं। इसलिए जिस दिन उनकी तिथि होती है। उससे एक दिन पहले संध्या समय में दरवाजे के दोनों ओर जल दिया जाता है। जिसका अर्थ है कि आप अपने पितरों को निमंत्रण दे रहे हैं और अगले दिन जब ब्राह्मण को उनके नाम का भोजन कराया जाता है तो उसका सूक्ष्म रुप पितरों तक भी पहुँचता है। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और अंत में पितर लोक को लौट जाते हैं। ऎसा भी देखा गया है कि जो पितरों को नहीं मनाते वह काफी परेशान भी रहते हैं।
पितृ पक्ष श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले 16 ग्रास अलग-अलग चीजों के लिए निकाले जाते हैं। जिसमें गौ ग्रास तथा कौवे का ग्रास मुख्य माना जाता है। मान्यता है कि कौवा आपका संदेश पितरों तक पहुँचाने का काम करता है। भोजन में खीर का महत्व है इसलिए खीर बनानी आवश्यक है।
भोजन से पहले ब्राह्मण संकल्प भी करता है। जो व्यक्ति श्राद्ध मनाता है तो उसके हाथ में जल देकर संकल्प कराया जाता है कि वह किस के लिए श्राद्ध कर रहा है। उसका नाम, कुल का नाम, गोत्र, तिथि, स्थान आदि सभी का नाम लेकर स्ंकल्प कराया जाता है। भोजन के बाद अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को वस्त्र तथा दक्षिणा भी दी जाती है।
यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरों की तिथि नहीं पता है तो वह अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है और अपनी सामर्थ्यानुसार एक या एक से अधिक ब्राह्मणों को भोजन करा सकता है। कई विद्वानों का यह भी मत है कि जिनकी अकाल मृत्यु हुई है या विष से अथवा दुर्घटना के कारण मृत्यु हुई है। उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए।
पितृ पक्ष श्राद्ध 15 दिन तक मनाए जाते हैं। पूर्वजों अथवा पितरों की तृप्ति के लिए उनकी तिथि पर तर्पण अवश्य करना चाहिए। जिस दिन भी श्राद्ध मनाया जाए उस दिन ब्राह्मण भोजन के समय पितृ स्तोत्र का पाठ व पितर गायत्री मंत्र का जाप किया जाना चाहिए। जिसे सुनकर पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस पाठ को भोजन करने वाले ब्राह्मण के सामने खड़े होकर किया जाता है। जिससे इस स्तोत्र को सुनने के लिए पितर स्वयं उस समय उपस्थित रहते हैं और उनके लिए किया गया श्राद्ध अक्षय होता है।
जो व्यक्ति सदैव निरोग रहना चाहता है, धन तथा पुत्र-पौत्र की कामना रखता है, उसे इस पितृ स्तोत्र व पितर गायत्री मंत्र से सदा पितरों की स्तुति करते रहनी चाहिए।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
प्रतिपदा श्राद्ध को पड़वा श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिपदा श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
प्रतिपदा श्राद्ध तिथि को नाना-नानी का श्राद्ध करने के लिए भी उपयुक्त माना गया है। यदि मातृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए कोई व्यक्ति नहीं है, तो इस तिथि पर श्राद्ध करने से नाना-नानी की आत्मायें प्रसन्न होती हैं। यदि किसी को नाना-नानी की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, तो भी इस तिथि पर उनका श्राद्ध किया जा सकता है। माना जाता है कि, इस श्राद्ध को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
द्वितीया श्राद्ध को दूज श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। द्वितीया श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वितीया तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की द्वितीया तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
तृतीया श्राद्ध को तीज श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। तृतीया श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की तृतीया तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
चतुर्थी श्राद्ध को चौथ श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। चतुर्थी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की चतुर्थी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
पञ्चमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु पञ्चमी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की पञ्चमी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
पञ्चमी श्राद्ध को कुँवारा पञ्चमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन उन मृतकों के लिये श्राद्ध करना चाहिये जिनकी मृत्यु उनके विवाह के पूर्व हो गयी हो।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
षष्ठी श्राद्ध को छठ श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। षष्ठी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की षष्ठी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
सप्तमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की सप्तमी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
अष्टमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की अष्टमी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
नवमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु नवमी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की नवमी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
नवमी श्राद्ध तिथि को मातृनवमी के रूप में भी जाना जाता है। यह तिथि माता का श्राद्ध करने के लिये सबसे उपयुक्त दिन होता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने से परिवार की सभी मृतक महिला सदस्यों की आत्मा प्रसन्न होती है।
नवमी श्राद्ध को नौमी श्राद्ध तथा अविधवा श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
दशमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु दशमी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की दशमी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
एकादशी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु एकादशी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की एकादशी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
द्वादशी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की द्वादशी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
जो लोग मृत्यु से पूर्व सन्यास ग्रहण कर लेते हैं, उनके श्राद्ध के लिये भी द्वादशी तिथि उपयुक्त मानी जाती है।
द्वादशी श्राद्ध को बारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
त्रयोदशी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु त्रयोदशी तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है।
त्रयोदशी श्राद्ध तिथि मृत बच्चों के श्राद्ध के लिये भी उपयुक्त है। इस श्राद्ध तिथि को गुजरात में काकबली एवं बालभोलनी तेरस के नाम से भी जाना जाता है।
त्रयोदशी श्राद्ध को तेरस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
चतुर्दशी श्राद्ध तिथि केवल उन मृतकों के श्राद्ध के लिये उपयुक्त है, जिनकी मृत्यु किन्हीं विशेष परिस्थितियों में हुई हो, जैसे किसी हथियार द्वारा मृत्यु, दुर्घटना में मृत्यु, आत्महत्या अथवा किसी अन्य द्वारा हत्या। इनके अतिरिक्त चतुर्दशी तिथि पर किसी अन्य का श्राद्ध नहीं किया जाता है, अपितु इनके अतिरिक्त चतुर्दशी पर होने वाले अन्य श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किये जाते हैं।
चतुर्दशी श्राद्ध को घट चतुर्दशी श्राद्ध, घायल चतुर्दशी श्राद्ध तथा चौदस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
अमावस्या तिथि श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि तथा चतुर्दशी तिथि को हुई हो।
यदि कोई सम्पूर्ण तिथियों पर श्राद्ध करने में सक्षम न हो, तो वो मात्र अमावस्या तिथि पर श्राद्ध (सभी के लिये) कर सकता है। अमावस्या तिथि पर किया गया श्राद्ध, परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिये पर्याप्त है। जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी अमावस्या तिथि पर किया जा सकता है।
इसीलिये अमावस्या श्राद्ध को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
साथ ही पूर्णिमा तिथि पर मृत्यु प्राप्त करने वालों के लिये महालय श्राद्ध भी अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है, न कि भाद्रपद पूर्णिमा पर। हालाँकि, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष से एक दिन पहले पड़ता है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है। सामान्यतः पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध के अगले दिन से आरम्भ होता है।
अमावस्या श्राद्ध को अमावस श्राद्ध के रूप में भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में महालय अमावस्या नवरात्रि उत्सव के आरम्भ का प्रतीक है। देवी दुर्गा के भक्तों का मानना है कि, इस दिन देवी दुर्गा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
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