शनि प्रदोष व्रत | Shani Pradosh Vrat
जिस प्रकार एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है । उसी प्रकार त्रयोदशी का व्रत यानी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है । जब त्रयोदशी का व्रत शनिवार के दिन आ जाए तो उस प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। शनि देव न्यायाधिपति और कर्म फल दाता हैं और शिव नई रचना के सर्जक और संहारक हैं। क्योंकि भगवान शिव, शनि देव जी के इष्ट देवता हैं। अतः शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) को करने से भगवान शनि देव और भगवान शिव पार्वती का आशीर्वाद मिलता है। इसीलिए यह व्रत एक त्यौहार की तरह भी मनाया जाता है।
यदि इस दिन पुष्य नक्षत्र योग के समय शनिदेव की पूजा की जाए तो व्यक्ति को भगवान शनिदेव की विशेष प्रसन्नता प्राप्त होती है। तथा शनि ग्रह के कारण जीवन में आने वाली समस्याओं का निवारण होता है। इस व्रत का पारण अगले दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाने से होता है।
जिन जातकों पर शनि की महादशा, साढ़ेसाती या ढैया चल रहा हो उन्हें शनि प्रदोष व्रत को करने से बहुत राहत मिलती है। यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में शनि ग्रह खराब अवस्था का बैठा हुआ हो। तो उन्हें शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) विशेष रुप से करना चाहिए।
शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) के दिन पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” तथा शनि के बीज मंत्र “ॐ प्राम प्रीम प्रौम स: शनिश्चराय नमः” का जाप करना चाहिए। यदि संभव हो सके तो इन मंत्रों से अपनी क्षमता के अनुसार हवन में आहुतियां भी डालनी चाहिए।
शनि प्रदोष व्रत कथा
प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे।जिनका घर सभी प्रकार की सुख सुविधाओं से पूर्ण था। परंतु वह और उनकी पत्नी दोनों ही हमेशा दुखी रहते थे । क्योंकि उन्हें कोई संतान नहीं थी । बहुत सोच विचार कर उन्होंने एक दिन निर्णय लिया कि वे तीर्थ यात्रा को जाएं ।अतः वे दोनों अपना सारा काम नौकरों के सहारे छोड़ कर तीर्थ यात्रा के लिए निकल गए। नगर के मुख्य द्वार के बाहर, वे एक साधु से मिले, अतः उन्होंने अपनी यात्रा शुरू करने से पहले साधु का आशीर्वाद लेने की सोची। वे साधु के पास बैठ गए और जब साधु ने अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने महसूस किया कि वह दंपति काफी समय से साधु के आशीर्वाद की प्रतीक्षा कर रहा था।
अतः, तब साधु ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत का पालन करने के लिए कहा और उन्हें शिव की प्रार्थना करने का मंत्र भी बताया।
“हे रुद्रदेव शिव नमस्कार। शिवशंकर जगतगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ सुर नमस्कार। शशि मौली चंद्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत सुधी नमस्कार। उग्रतव रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश प्रभु नमस्कार। विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।”
इसके बाद, साधु का आशीर्वाद लेने के बाद पति और पत्नी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए आगे बढ़ गए। तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद, उन्होंने शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) किया और उनके घर में एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ।
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