सोमवार व्रत (Monday Fast) का माहत्मय एवं विधि-विधान, व्रत कथा
सोमवार (Somvar) के अधिपति देव चंद्रदेव हैं तथा इस व्रत को सोमेश्वर व्रत भी कहते हैं। चंद्र देव ने भगवान शिव की पूजा-आराधना की थी और भगवान शिव की द्वितीय के चन्द्रमा को अपनी जटाओं में धारण करते है। इसलिए सोमश्वर व्रत करते समय आप चंद्र देव के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा आराधना भी करते हैं ।
यदि जातक के जीवन में चंद्रमा अशुभ स्थिति में हो, नेत्रौं में पीड़ा, मानसिक अशांति तथा मन की चंचलता आदि विकार परेशान करते हैं तो ऐसे जातक को चंद्रदेव की प्रसन्नता के निमित्त तथा जीवन में चंद्र ग्रह के अशुभ प्रभाव को शुभता में बदलने के लिए सोमवार (Somvar) के व्रत करनी चाहिए। चंद्रदेव को स्वेत वस्तुएं परम प्रिय हैं। अत: पूजा करते समय श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए और पूजा में सफेद फूलों, बिना रंगे चावलों, घी के दीपक का प्रयोग करना चाहिए।
सोमवार व्रत विधि | Somvar Vrat Vidhi
चंद्रमा का व्रत शुक्ल-पक्ष के प्रथम (जेठे) सोमवार को प्रारंभ करके 54 या 10 व्रत करें। व्रत के दिन श्वेत वस्त्र धारण करके ऊपर चक्रलिखित बीज मंत्र की 11या 3 माला जप करें। सफेद फूलों से पूजन करके सफेद चंदन का तिलक करें। मध्याह्न के समय नमक के बिना दही-चावल, घी, खाण्ड का यथाशक्ति दान करके स्वयं भोजन करें।
सोमवार (Somvar) के व्रत के दिन अपने मस्तक में श्वेतचन्दन का तिलक करें। चंद्र देव की प्रतिमा अथवा चंद्र ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पात्र रजत पात्र ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति चंद्र देव के मंत्र का जाप करना चाहिए।
चन्द्रशांति का सरल उपचारः- सफेद जुराब, रुमाल, सफेद वस्त्र, दूध, दही का उपयोग, चांदी की अंगूठी पहनना।
सोमवार व्रत उद्यापन विधि | Somvar Vrat Udyaapan Vidhi
सोमवार (Somvar) के व्रत के उद्यापन के लिए यथासंभव चंद्र ग्रह का दान जैसे मोती, सुवर्ण, रजत, चावल, मिसरी, दही, श्वेतवस्त्र, शंख, श्वेतपुष्प, कर्पूर, श्वेतबैल, श्वेतचन्दन आदि करना चाहिए चंद्र ग्रह से संबंधित दान के लिए सन्धया का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। क्या-क्या और कितना दिया जाये, यह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर रहेगा।
चंद्र ग्रह के मंत्र ‘ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः’ का कम से कम 11000 की संख्या में जाप तथा चंद्र ग्रह की लकड़ी पलाश से चंद्र ग्रह के बीच मंत्र की एक माला का यज्ञ करना चाहिए।
हवन पूर्णाहुति करके खीर-खाण्ड से ब्राह्मण व बटुको को भोजन कराएं। इस व्रत के करने से व्यापार में लाभ, मानसिक कष्टों से शांति होती है। विशेष कार्यसिद्धार्थ भी यह पूर्ण फलदायक होता है।
देवता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्ति भाव पूर्वक सामर्थ्य के अनुसार पूजा, जप, तप, ध्यान, होम- हवन, दान दक्षिणा, ब्रह्म भोज करना चाहिए।
सोमवार (Somvar) के व्रत का उद्यापन श्रावन मास के प्रथम अथवा तृतीय सोमवार (Somvar) को करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
सोमवार व्रत कथा | Somvar Vrat Katha
एक बहुत धनवान साहूकार था, जिसके घर धन आदि किसी प्रकार की कमी नहीं थी। परंतु उसको एक दुःख था। उसके कोई पुत्र नहीं था। वह इसी चिंता में दिन-रात रहता था। वह पुत्र की कामना के लिए प्रति सोमवार को चंद्रदेव का सोमेश्वर व्रत तथा चंद्र देव और शिवजी का पूजन किया करता था तथा प्रतिदिन मंदिर में जाकर शिवजी पर दीपक जलाया करता था। उसके भक्ति भाव को देखकर एक दिन पार्वती जी ने शिवजी से कहा-हे महाराज यह साहूकार आपका अत्यंत भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है, इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।
शिवजी ने कहा -हे पार्वती ! यह संसार कर्म क्षेत्र है। जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है, उसी तरह इस संसार में जो जैसा करता है वैसा ही फल भोगता है। पार्वती जी ने अत्यंत आग्रह से कहा कि महाराज, जब यह आपका ऐसा भक्त है और यदि इसको किसी प्रकार का कोई दुःख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिए, क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु हैं, उनके दुःखों को दूर करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य क्यों आपकी सेवा-पूजा करेंगे।
पार्वती जी का यह आग्रह देख शिवजी महाराज कहने लगे-हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है, इसी चिंता से यह अति दुःखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र देता हूं, परंतु वह केवल बारह वर्ष तक जीवित रहेगा, इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। यह सब बातें वह साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई और न ही कुछ कष्ट हुआ। वह पहले जैसा ही शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ काल व्यतीत होने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार के घर में बहुत खुशियां मनाई गई, परंतु साहूकार ने उसकी केवल बारह वर्ष तक की आयु जान कोई अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न ही किसी को यह भेद बतलाया।
जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हो गया तो उसकी माता ने उसके पिता से लड़के के विवाह आदि के लिए कहा। परंतु साहूकार कहने लगा, मैं अभी इसका विवाह नहीं करूंगा और काशीजी पढ़ने के लिए भेजूंगा। फिर साहूकार ने अपने साले अर्थात् उस बालक के मामा को बुला उसको बहुत-सा धन देकर कहा-तुम इस बालक को काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ। रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ, यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाना। वह दोनों मामा-भांजे सब जगह सब प्रकार यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे।
रास्ते में उनको एक शहर पड़ा। उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे राजा का लड़का जो विवाह करने के लिए बरात लेकर आया वह एक आंख से काना था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं वर को देखकर कन्या के माता-पिता विवाह से मना न कर दें। इस कारण जब उसने सेठ के अति सुंदर लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न इस लड़के से वर के कपड़े पहना तथा घोड़ी पर चढ़ा ले जाए। यह कार्य बड़ी सुंदरता से हो गया। फेरों का समय आया तो वर के पिता ने सोचा, यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा दिया जाए तो क्या बुराई है? ऐसा विचार कर राजा ने लड़के और उसके मामा से कहा यदि आप फेरों और तिलक आदि का काम भी करा दें, तो आपकी बड़ी कृपा होगी और हम इसके बदले में बहुत-सा धन देंगे। उन्होंने भी स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से हो गया।
परंतु जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुन्दड़ी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस राजकुमार के साथ तुम को भेजेंगे वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी जी पढ़ने जा रहा हूं। उस राजकुमारी ने जब चुन्दड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ, जिसके साथ विवाह हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है। राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापिस चली गई।
उधर वह सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गये। वहां जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ाना शुरू कर दिया। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई और उस दिन भी उन्होंने यज्ञ रचा रखा था। लड़के ने अपने मामा जी से कहा-मामा जी, आज तो मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा-अंदर जाकर सो जाओ। लड़का अंदर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गये। जब उसके मामा ने आकर देखा कि वह तो मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि मैं अभी रोना और विलाप करना शुरू कर दूंगा तो यज्ञ कार्य अधूरा रह जाएगा। उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना आरंभ कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वती जी उधर से जा रहे थे। जब उन्होंने जोर-जोर से रोने-पीटने की आवाज सुनी तो पार्वती जी से कहने लगीं-महाराज! कोई दुखिया रो रहा है। इसके कष्ट दूर करो। तब शिवजी जी बोले इसकी आयु इतनी ही थी, सो भोग चुका। पार्वती जी ने कहा कि महाराज कृपा करके इस बालक को और आयु दो, नहीं तो उसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। पार्वती जी के इस प्रकार बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उस को वरदान दिया और शिव जी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया। शिव-पार्वती जी कैलाश चले गए।
तब लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते हुए अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए जहां विवाह हुआ था। वहां पर आकर उन्होंने यज्ञ आरंभ किया तो लड़के को ससुर ने पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर बड़ी खातिर की। राजा ने कुछ दिन उन्हें अपने यहां रखने के बाद बहुत से दास-दासियों के सहित आदर पूर्वक लड़की और जंवाई को विदा किया। जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर सबको खबर कर आता हूं। उस समय लड़के के माता-पिता अपने घर की छत पर बैठे हुए थे उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल घर पर आ जाएगा तब तो राजी-खुशी नीचे उतरकर आ जाएंगे, नहीं तो छत से गिर कर अपने प्राण खो देंगे। इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है। परंतु उनको विश्वास नहीं आया तब उसके मामा ने शपथ पूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन साथ में लेकर आया हुआ है तो सेठ ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे। इसी प्रकार जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उसके सब दुःख दूर होकर उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होते हैं।
भगवान सोमेश्वर से विनय | Prayer To God Shiva
हे सोमदेव अविनाशी, प्रभु राखो लाज हमारी।
मैं दुखिया शरण तिहारी, हे चंद्रदेव बलधारी।।
यह जालिम जगत मुझे बहुत सताये।
कदम-कदम पर बहुत नाच नचाये।
क्या करूं कुछ समझ न आए, ऐसी है लाचारी।
हे सोमदेव अविनाशी, मैं दुखिया शरण तिहारी।।
मुश्किल है इस भीषण दुःखों में जीना।
फटा जा रहा है गमों से यह सीना।
बुद्धि सही चकराय, है सुध बुध सभी बिसारी।
हे सोमदेव अविनाशी, मैं दुखिया शरण तिहारी।।
काम क्रोध मद लोभ ने भरमाया।
दिनों के फेर ने मुझे बहुत सताया।
टूट चुका हूं मैं मेरे प्रभु, है जीवन बाजी हारी।
हे सोमदेव अविनाशी, मैं दुखिया शरण तिहारी।।
प्रभु सोमेश्वर अपना दरश दिखा दो।
कृपा करो प्रभु सारे कष्ट मिटा दो।
आया हूं प्रभु तेरी शरण में, राखो लाज हमारी।
हे सोमदेव अविनाशी, मैं दुखिया शरण तिहारी।।
भगवान शिव की आरती | Aarti To God Shiva
जय जय हे शिव परम पराक्रम, ओंकारेश्वर तुम शरणम्।
नमामि शंकर भवानि शंकर, दीनजन रक्षक त्वं शरणम्।। टेक।।
दशभुज मंडप पंचवदन शिव, त्रिनयन शोभित शिव सुखदा।
जटाजूट सिर मुकुट बिराजै, श्रवण कुण्डल अति रमणा।।
ललाट चमकत रजनी नायक, पन्नग भूषण गौरीशा।
त्रिशूल अंकुश गणपति शोभा, डमरू बाजत ध्वनि मधुरा।।
भस्म विलेपन सर्वांगे शिव, नन्दी वाहन अति रमणा।
वामांगे गिरिजा हैं विराजित, घटां नाद की धुनि मधुरा।।
गज चर्माम्बर बाघाम्बर हर, कपाल माला गंगेशा।
पंचबदन पर गणपति शोभा, पृष्ठे गिरिपति कोटीशा।
कपिला संग में निर्मल जल है, कोटि तीरथे भय हरणम्।
नर्मदा कावेरी केल से, गंगमध्य शोभित गिरशिखरा।
इन्द्रादिक सुरपति सेवत, रम्भादिक ध्वनि अति मधुरा।।
मंगल मूर्ति प्रणवाष्टक शिव, अद्भुत् शोभा त्रिय भवनं।
सनकादिक मुनि करत स्तोत्र, मनवांछित फल भय हरणम।।
प्रणवाष्टक पद ध्याय जनेश्वर, रचयति विमल पदवाष्टम्।
तुमरि कृपा त्रिगुणात्मा शिवजी, पतित पावन भयहरणम्।।
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