माघ मास का माहात्म्य सातवाँ अध्याय | Chapter 7 Magha Puran ki Katha

Magh mass satwa adhyay

माघ मास का माहात्म्य सातवाँ अध्याय

Chapter 7

 

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चित्रगुप्त ने उन दोनों के कर्मों की आलोचना करके दूतों से कहा कि बड़े भाई कुंडल को घोर नरक में डालो और दूसरे भाई विकुंडल को स्वर्ग में ले जाओ जहां उत्तम भोग हैं तब एक दूत तो कुंडल को नरक में फेंकने के लिए ले गया और दूसरा दूत बड़ी नम्रता से कहने लगा कि हे विकुंडल! चलो तुम अच्छे कर्मों से स्वर्ग को प्राप्त होकर अनेक प्रकार के भोगों को भोगों तब विकुंडल बड़े विस्मय के साथ मन में संशय धारकर दूत से कहने लगा कि हे यमदूत! मेरे मन में बड़ी भारी शंका उत्पन्न हो गई है अतएव मैं तुमसे कुछ पूछता हूँ कृपा कर के मेरे प्रश्नों का उत्तर दो। हम दोनों भाई एक ही कुल में उत्पन्न हुए, एक जैसे ही कर्म करते रहे, दोनों भाइयों ने कभी कोई शुभ कार्य नहीं किया फिर एक को नरक क्यों और दूसरे को स्वर्ग किस कारण प्राप्त हुआ?

मैं अपने स्वर्ग में आने का कोई कारण नहीं देखता तब यमदूत कहने लगा कि हे विकुंडल! माता-पिता, पुत्र, पत्नी, भाई, बहन से सब संबंध जन्म के कारण होते हैं और जन्म, कर्म को भोगने के लिए ही प्राप्त होता है। जिस प्रकार एक वृक्ष पर अनेक पक्षियों का आगमन होता है उसी तरह इस संसार में पुत्र, भाई, माता, पिता का भी संगम होता है। इनमें से जो जैसे-जैसे कर्म करता है वैसे ही फल भोगता है। तुम्हारा भाई अपने पाप कर्मों से नरक में गया तुम अपने पुण्य कर्म के कारण स्वर्ग में जा रहे हो तब विकुंडल ने आश्चर्य से पूछा कि मैंने तो आजन्म कोई धर्म का कार्य नहीं किया सदैव पापों में ही लगा रहा। मैं अपने पुण्य के कर्म को नहीं जानता, यदि तुम मेरे पुण्य के कर्म को जानते हो तो कृपा कर के बताइए तब देवदूत कहने लगा कि मैं सब प्राणियों को भली-भाँति जानता हूँ, तुम नहीं जानते।

सुनो, हरिमित्र का पुत्र सुमित्र नाम का ब्राह्मण था जिसका आश्रम यमुना नदी के दक्षिणोत्तर दिशा में था। उसके साथ जंगल में ही तुम्हारी मित्रता हो गई और उसके साथ तुमने दो बार माघ मास में श्री यमुना जी में स्नान किया था। पहली बार स्नान करने से तुम्हारे सब पाप नष्ट हो गए और दूसरी बार स्नान करने से तुमको स्वर्ग प्राप्त हुआ। सो हे वैश्यवर! तुमने दो बार माघ मास (Magh Maas) में स्नान किया इसी के पुण्य के फल से तुमको स्वर्ग प्राप्त हुआ और तुम्हारा भाई नरक को प्राप्त हुआ। दत्तात्रेय जी कहने लगे कि इस प्रकार वह भाई के दुखों से अति दुखित होकर नम्रतापूर्वक मीठे वचनों से दूतों से कहने लगा कि हे दूतों! सज्जन पुरुषों के साथ सात पग चलने से मित्रता हो जाती है और यह कल्याणकारी होती है। मित्र प्रेम की चिंता न करते हुए तुम मुझको इतना बताने की कृपा करो कि कौन-से कर्म से मनुष्य यमलोक को प्राप्त नहीं होता क्योंकि तुम सर्वज्ञ हो।

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