ओम नमः शिवाय,
सज्जनों,
आज हम आपको एक ऐसे व्रत के बारे में बताएंगे जो प्रत्येक स्त्री को अवश्य और अवश्य करना चाहिए। जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि प्रत्येक स्त्री महीने में एक बार अशुद्ध अवस्था में अवश्य होती है। इसी कारण से स्त्रियों द्वारा जाने या अनजाने में एक पाप अवश्य होता है। स्त्रियों को घर परिवार के संपूर्ण काम करने होते हैं। कई बार अशुद्ध अवस्था में पूजा पाठ से संबंधित वस्तु को छू देना अथवा मंत्र आदि का जाप कर लेना। ध्यान ना रहने पर पूजा पाठ में सम्मिलित हो जाना। अशुद्ध अवस्था में इस प्रकार के कार्य करने से दोष लगता है। शास्त्रों में बताया गया है कि अशुद्ध अवस्था (During Periods | Menstruation) में पूजा-पाठ वाले स्थान से अथवा पूजा की वस्तुओं से स्त्री को दूर रहना चाहिए परंतु अति आवश्यक भागदौड़ वाला जीवन, छोटे होते हुए परिवार। इन सब व्यस्तताओं के बीच में कई बार ऐसी चीजें छूनी भी पड़ जाती है और ऐसे क्रियाकलाप में शामिल भी होना पड़ता है। इससे स्त्रियों के ऊपर अशुभ प्रभाव आता है। इसी दोष का निवारण हमारे शास्त्रों में ऋषि मुनियों के द्वारा बताया गया है कि साल में एक बार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि जिसे ऋषि पंचमी भी कहा जाता है। उस तिथि को व्रत रखना चाहिए। आइए आज मैं आपको बताता हूं इस व्रत की क्या विधि है ? किस तरीके से यह व्रत करना है ? यह व्रत किन के लिए क्या जाता है ?
ऋषि पंचमी पूजा विधि
सबसे पहले प्रातः स्नानादि करने के लिए तुलसी जी के गमले की मिट्टी, जहां पर गाय निवास करती है, गौ स्थान की मिट्टी, गाय का मूत्र यानी गोझरण, गंगाजल, पीपल के नीचे की मिट्टी। यह सब मिट्टी ले कर के अपने शरीर पर लेप करते हुए और गंगा जी आदि तीर्थों का स्मरण करते हुए अपने शरीर की शुद्धि के लिए स्नान करें। स्नान आदि से निवृत्त होकर अच्छे योग्य वस्त्र पहनें तत्पश्चात पूजा की तैयारी करें। पूजा के लिए हल्दी आदि से एक चकोर मंडल थाली आदि में बनाकर गौरी गणपति जी, कलश देवता तथा सप्तर्षियों की पूजा आराधना करें। मैं वह संक्षिप्त रूप में मैं यहां बता रहा हूं।
ॐ गम गणपतये नमः।
ॐ गौरी देव्यै नमः।
इन मंत्र से भगवान गणपति जी व माता गौरी का ध्यान, आवाहन करें और थाली में चावलों के साथ ढेरी लगाकर सप्त ऋषियों का नाम लेते हुए वहां पर उनकी पूजा व ध्यान आदि करें।
कश्यपो अत्रि भरद्वाजो, विश्वामित्रो अथ गौतम।
जमदग्रिर्वशिष्ठ च, सप्तैते ऋषय स्मृता।।
दहन्तुपापम् में सर्वं ग्रहणन्त्व अघर्यं नमो नमः।।
सप्त ऋषि
- कश्यप ऋषि
- अत्रि ऋषि
- भारद्वाज ऋषि
- विश्वामित्र
- गौतम ऋषि
- जमदग्रि ऋषि
- वशिष्ट ऋषि
इस प्रकार सप्त ऋषियों की पूजा करनी है। भक्ति भाव से नैवेद्य, फल, फूल, मेवा, मिठाई आदि वहां अर्पण करें।
यदि किसी बहन के यहां और किसी स्त्री के यहां पर उसके भाई के यहां से अन्न जैसे चावल आदि आए हुए हो तो थोड़े से चावल कच्चे-पक्के बना करके कौवे को खिलाएं।
ऐसा करने से ससुराल पक्ष और मायके पक्ष के लोगों की आसुरी शक्तियों से रक्षा होती है। पूरे दिन सप्तर्षियों के नामों का उच्चारण करें तथा अपने द्वारा जाने – अनजाने में जो कुछ भी भूल हुई है। उसकी क्षमा प्रार्थना करते रहें। दिन में एक बार खाना खाएँ जिसमें दूध, दही, चीनी व अनाज आदि कुछ भी ना खाएँ। हल से जोती हुई चीजें भी न खाएँ। बस फल और मेवा खाएँ।
इस प्रकार से यहां पर एक कथा भी आती है। यह कथा पढ़कर जल से भरे कलश में चीनी व चावल के कुछ दाने डालकर वह जल भगवान सूर्य को अर्पण करें।
ऋषि पंचमी की व्रत कथा | Rishi Panchmi Vrat Katha
ब्रह्मपुराण के अनुसार राजा सिताश्व ने ब्रह्मा जी से पूछा कि सभी पापों को नष्ट करने वाला कौन-सा श्रेष्ठ व्रत है? तब ब्रह्माजी ने ऋषि लिखी पंचमी को उत्तम बतलाया और कहा- “हे राजन् सिताश्व! विदर्भ देश में एक उत्तंक नामक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था। उसके दो संतानें थीं- एक पुत्री और दूसरा पुत्र। कन्या विवाह होने के पश्चात विधवा हो गई। इस दु:ख से दु:खित ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित ऋषि पंचमी व्रत रखने लगे जिसके प्रभाव से वे जन्मों के आवागमन से छुटकारा पाकर स्वर्गलोक के वासी हो गए।”
कथा पढ़ने अथवा सुनने के पश्चात कुछ सुखा सीधा जैसे आटा, चावल, चीनी, फल, मेवा, दूध, दही आदि किसी ब्राह्मण दंपति ब्राह्मण या सिर्फ ब्राह्मणी को उन चीजों का दान करें और यह व्रत करें। यदि संभव हो तो संपूर्ण रात्रि जागरण करें अथवा ऋषियों का ध्यान करें और इन मंत्रों का जाप करते समय व्यतीत करें। इस प्रकार यह उत्तम व्रत करने से स्त्रियों के माथे पर जो पाप का फल आता है। उसका नाश होगा और उसके घर परिवार की रक्षा होगी, दीर्घायु होंगे और उनका कल्याण होगा।