माघ मास का माहात्म्य ग्यारहवाँ अध्याय
Chapter 11
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यमदूत कहने लगा कि हे वैश्य! मनुष्य को सदैव शालिग्राम की शिला में तथा वज्र या कीट (गोमती) चक्र में भगवान वासुदेव का पूजन करना चाहिए क्योंकि सब पापों का नाश करने वाले, सब पुण्यों को देने वाले तथा मुक्ति प्रदान करने वाले भगवान विष्णु का इसमें निवास होता है। जो मनुष्य शालिग्राम की शिला या हरिचक्र में पूजन करता है वह अनेक मंत्रों का फल प्राप्त कर लेता है। जो फल देवताओं को निर्गुण ब्रह्म की उपासना में मिलता है वही फल मनुष्य को भगवान शालिग्राम का पूजन करने से यमलोक को नहीं देखने देता। भगवान को लक्ष्मी जी के पास अथवा वैकुंठ में इतना आनंद नहीं आता जितना शालिग्राम की शिला या चक्र में निवास करने में आता है।
स्वर्ण कमल युक्त करोड़ो शिवलिंग के पूजन से इतना फल नहीं मिलता जितना एक दिन शालिग्राम के पूजन से मिलता है। भक्तिपूर्वक शालिग्राम का पूजन करने से विष्णुलोक में वास करके मनुष्य चक्रवर्ती होता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से युक्त होकर भी मनुष्य शालिग्राम का पूजन करने से बैकुंठ में प्रवेश करता है। जो सदैव शालिग्राम का पूजन करते है वह प्रलयकाल तक स्वर्ग में वास करते हैं। जो दीक्षा, नियम और मंत्रों से चक्र में बलि देता है वह निश्चय करके विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो शालिग्राम के जल से अपने शरीर का अभिषेक करता है वह मानो सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करता है। गंगा, रेवा, गोदावरी सबका जल शालिग्राम में वास करता है। जो मनुष्य शालिग्राम की शिला के सन्मुख अपने पिता का श्राद्ध करता है उसके पितर कई कल्प तक स्वर्ग में वास करते हैं। जो लोग नित्य शालिग्राम की शिला का जल पीते हैं उनके हजारों बार पंचगव्य पीने से क्या प्रयोजन?
यदि शालिग्राम की शिला का जल पिया जाए तो सहस्त्रो तीर्थ करने से क्या लाभ? जहाँ पर शालिग्राम हैं वह स्थान तीर्थ स्थान के समान ही है, वहाँ पर किए गए सम्पूर्ण दान-होम, करोड़ो गुणा फल को प्राप्त होता है। जो एक बूँद भी शालिग्राम का जल पीता है वह माता के स्तनों का दुग्ध पान नहीं करता अर्थात गर्भाशय में नहीं आता। शालिग्राम शिला में जो कीड़े-मकोड़े एक कोस के अंतर पर मरते हैं वह भी वैकुंठ को प्राप्त होते हैं। जो फल वन में तप करने से प्राप्त होता है वही फल भगवान को सदैव स्मरण करने से प्राप्त होता है। मोहवश अनेक प्रकार के घोर पाप करने वाला मनुष्य भी भगवान को प्रणाम करने से नर्क में नहीं जाता।
संसार में जितने तीर्थ और पुण्य स्थान हैं, भगवान के केवल नाम मात्र के कारण से प्राप्त हो जाते हैं।
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